पाकिस्तान के केंद्रीय वित्त मंत्री इसहाक़ डार ने चीन की ओर से 70 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ मिलने का एलान किया तो शायद उनके ख़ुश होने की वजह पाकिस्तान के कम होते विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी थी लेकिन चीन और चीनी बैंकों से हासिल किए गए क़र्ज़ अब पाकिस्तान पर कुल क़र्ज़ का एक तिहाई हो चुके हैं। पाकिस्तान पर जितना क़र्ज़ है बीते आठ सालों में चीन और चीनी कमर्शियल बैंकों से हासिल किए गए क़र्ज़ों में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गई है।
ऐसे में पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक हालत की एक बड़ी वजह विदेशी क़र्ज़ों की वापसी को बताया जा रहा है जिसकी वजह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में काफ़ी कमी हो रही है। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान को मौजूदा वित्तीय वर्ष और अगले दो वित्तीय वर्षों में विदेशी क़र्ज़ों में बड़ी अदायगी करनी है।
मौजूदा वित्तीय वर्ष के बाक़ी महीनों में पाकिस्तान को आठ अरब डॉलर के विदेशी क़र्ज़ों की अदायगी करनी है। इससे ज़्यादा बड़ी चुनौती अगले दो सालों में पाकिस्तान को 50 अरब डॉलर का विदेशी क़र्ज़ अदा करना है। इसमें वो क़र्ज़ भी शामिल है जो चीन और चीनी कमर्शियल बैंकों को वापस करना है।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की ओर से क़र्ज़ अदायगी की सुविधा निश्चित रूप से पाकिस्तान के आर्थिक मोर्चे पर जोखिम को कम कर सकती है। लेकिन इसके साथ साथ दूसरे देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की ओर से क़र्ज़ों की रिशिड्यूलिंग भी बहुत ज़रूरी है।
मौजूदा सदी के पहले दशक में पेरिस क्लब के सदस्य देशों द्वारा दिए गए क़र्ज़ का अनुपात पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ का बड़ा हिस्सा था लेकिन पिछले सात से आठ सालों में चीन का दिया गया क़र्ज़ सबसे अधिक है। इसके साथ ही चीनी बैंकों के क़र्ज़ में भी ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक़ चीनी क़र्ज़ बढ़ने की वजह पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा (CPEC) भी है जिसमें ऊर्जा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में क़र्ज़ के रूप में चीन से पैसा लिया गया है इसके अलावा विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए चीनी कमर्शियल बैंकों से भी क़र्ज़ लिया गया है।
इसका ताज़ा उदाहरण चाइना डिवेलपमेंट बैंक की ओर से मिलने वाला 70 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ है। इसके बारे में वित्त मंत्री इसहाक़ डार ने कहा है कि ये विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मदद देगा।
लेकिन सवाल ये उठता है कि ये क़र्ज़ पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलों की असल वजह है?
बीबीसी ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए विशेषज्ञों से बातचीत की। हालांकि पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की ओर से संपर्क करने के बावजूद सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।
वित्त मंत्री इसहाक़ डार , वित्त राज्य मंत्री डॉक्टर आयशा ग़ौस पाशा और वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस सिलसिले में किए गए कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया।
पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ में चीन का क़र्ज़ कितना है?
पाकिस्तान का कुल विदेशी क़र्ज़ वर्तमान में 97 अरब डॉलर से अधिक है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, विभिन्न देशों, विदेशी वाणिज्यिक बैंकों और अंतरराष्ट्रीय बांड बाज़ार का क़र्ज़ शामिल है।
स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के मुताबिक़ इस क़र्ज़ में पेरिस क्लब, आईएमएफ़, वर्ल्ड बैंक, एशियन डिवेलपमेंट बैंक और दूसरे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के क़र्ज़ शामिल हैं।
पिछले सात सालों में पाकिस्तान की उधारी को देखते हुए, विदेशी क़र्ज़ जो 2015 में सकल घरेलू उत्पाद का 24% था, 2022 में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 40% हो गया।
पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, अन्य देशों और वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए क़र्ज़ शामिल हैं लेकिन पाकिस्तान सरकार और सेंट्रल बैंक की रिपोर्ट में उन क़र्ज़ों को 'पेरिस क्लब' और 'नॉन पेरिस क्लब' देशों से लिया गया दिखाया जाता है। इन क़र्ज़ों को लेकर किसी देश को व्यक्तिगत रूप से नामित नहीं किया जाता है।
हालांकि, जब आईएमएफ़ ने पिछले समीक्षा मिशन के बाद पेश की गई रिपोर्ट में पाकिस्तान के क़र्ज़ का ब्यौरा पेश किया था तो इसमें पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ में चीन की भागीदारी 30 फ़ीसदी थी।
आईएमएफ़ के अनुसार, चीनी सरकार ने अब तक 23 अरब डॉलर का क़र्ज़ दिया है, जबकि चीनी वाणिज्यिक बैंकों ने अब तक लगभग सात अरब डॉलर का क़र्ज़ दिया है।
अर्थशास्त्री अम्मार हबीब ख़ान ने बीबीसी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि चीनी वाणिज्यिक बैंकों का दिया गया क़र्ज़ चीन का दिया हुआ क़र्ज़ ही है। इसे ऐसे समझा जाना चाहिए कि चीन के वाणिज्यिक बैंक सरकार की निगरानी में ही चलते हैं जिस तरह से पाकिस्तान में नेशनल बैंक सरकार ही चलाते हैं।
पाकिस्तान में चीन का क़र्ज़ क्यों बढ़ा?
चीन और उसके वाणिज्यिक बैंकों का पाकिस्तान के कुल विदेशी क़र्ज़ में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान है। पिछले वित्त वर्ष के क़र्ज़ भुगतान के आंकड़ों पर नज़र डालें तो चीन और चीन के वाणिज्यिक बैंकों को सबसे ज़्यादा क़र्ज़ अदायगी की गई।
आथिक मामलों की डिविज़न की वेबसाइट पर मौजूद क़र्ज़ चुकाने के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में, सऊदी अरब की तुलना में, चीन को लौटाए गए क़र्ज़ों की राशि, ब्याज सहित 50 करोड़ डॉलर से ज़्यादा थी। इसके मुक़ाबले में सऊदी अरब, जापान, कुवैत और फ़्रांस को वापस किए जाने वाले क़र्ज़े की वैल्यू बहुत कम थी।
इसी तरह विदेशी वाणिज्यिक बैंकों को चुकाए गए क़र्ज़ों की मात्रा भी अधिक है, जिनमें ज़्यादातर चीनी वाणिज्यिक बैंक शामिल हैं।
पिछले सात या आठ सालों में पाकिस्तान के कुल विदेशी क़र्ज़ में चीनी क़र्ज़ में बढ़ोतरी के बारे में बीबीसी न्यूज़ से बात करते हुए पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री डॉ हफ़ीज़ पाशा ने कहा कि चीन तीन प्रकार के क़र्ज़ देता है। चीन का एक क़र्ज़ CPEC परियोजना के लिए दिया गया था। दूसरा क़र्ज़ चीनी वाणिज्यिक बैंकों का दिया हुआ है जबकि तीसरा क़र्ज़ चीन की पाकिस्तान के स्टेट बैंक में रखी गई जमा राशि है।
जेएस रिसर्च में आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ अमरीन सोरानी के अनुसार, 'पाकिस्तान के क़र्ज़ जोखिम में चीनी क़र्ज़ों में बढ़ोतरी का कारण CPEC में परियोजनाओं के लिए दिए गए क़र्ज़ों के साथ-साथ चीन की पाकिस्तान को दी गई जमा राशि है। इसी वजह से पाकिस्तान पर चीन का कुल क़र्ज़ 25 से 30 फ़ीसद तक बढ़ गया है।'
इस्लामाबाद में आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार शाहबाज़ राणा के मुताबिक़ CPEC के विभिन्न उद्देश्यों में चीन और इसके कमर्शियल बैंकों की ओर से पाकिस्तान को क़र्ज़ दिया गया था हालांकि इस वक़्त जो क़र्ज़े पाकिस्तान के लिए चुनौती बने हुए हैं वो चीन और उसके कमर्शियल बैंकों की ओर से एक्सटर्नल फ़ाइनैंसिंग, चालू खाता घाटे को कम करने और विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए दिए गए थे।
उनके मुताबिक़ CPEC में जो क़र्ज़े ऊर्जा के क्षेत्र में दिए गए वो इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स (IPR) को दिए गए और वो पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ में नहीं जोड़े गए हालांकि इन्फ़्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं जैसे सिखर मुल्तान मोटरवे, थाकोट मोटरवे और कुछ दूसरे इन्फ़्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में जो क़र्ज़े दिए गए हैं वो बताए गए हैं।
चीन का क़र्ज़ पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलों की असली वजह है?
चीनी क़र्ज़ चुकाने में आ रही दिक्कतों के बारे में बात करते हुए शाहबाज़ राणा ने कहा कि जब चीनी क़र्ज़ चुकाने की बात आती है तो समस्या मुख्य रूप से वो क़र्ज़ बना हुआ है जो पाकिस्तान ने विदेशी वित्तीय ज़रूरत के लिए लिया था और ये कमर्शियल बैंकों से लिया गया था।
उनके मुताबिक़ इस चीनी क़र्ज़े की वापसी की अवधि डेढ़ से दो साल की होती है और क़र्ज़ वापसी की मैच्योरिटी बहुत जल्द आ जाती है जिसकी वजह से पाकिस्तान जैसे विदेशी मुद्रा भंडार की क़िल्लत के शिकार मुल्क को समस्याएं होती हैं।
शाहबाज़ राणा ने कहा कि पेरिस क्लब के तहत मिलने वाले क़र्ज़ों की अदायगी की अवधि ज़्यादा होती है जो 15-20 साल से लेकर 25-30 साल तक भी चली जाती है हालांकि चीनी कमर्शियल बैंकों के क़र्ज़ों की अवधि कम होती है।
अम्मार हबीब ने इस सिलसिले में बताया कि चीनी क़र्ज़े की अदायगी में कोई इतनी ख़ास मुश्किल नहीं है।
उन्होंने कहा कि ये क़र्ज़े रोल ओवर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि ये क़र्ज़ एक दो साल के लिए होता है और दोनों पार्टियां इस बात को जानते हैं कि इस क़र्ज़े को रोल ओवर करना पड़ेगा इसलिए रोल ओवर हो जाता है।
अमरीन सोरानी ने इस सिलसिले में बताया कि प्रोजेक्ट के लिए दिए जाने वाले क़र्ज़े की अवधि लंबी होती है और डिपॉज़िट की एक प्रक्रिया होती है जिसका आवेदन चीनी डिपॉज़िट पर भी वैसे ही किया जाता है जैसे दूसरे देशों के डिपॉज़िट पर होता है।
वित्तीय विशेषज्ञ और सिटी बैंक के पूर्व बैंकर यूसुफ़ नज़र के अनुसार, पाकिस्तान के कुल क़र्ज़ में चीनी क़र्ज़ की हिस्सेदारी बढ़ गई है, जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान पर अब सबसे अधिक चीन का क़र्ज़ है।
उन्होंने कहा कि CPEC के तहत मिले क़र्ज़ को विदेशी मुद्रा के रूप में चुकाना होता है जबकि इन परियोजनाओं से होने वाली कमाई पाकिस्तानी रुपये में होती है जिसका निश्चित रूप से विदेशी भुगतान पर असर पड़ता है।
यूसुफ़ ने कहा कि इसी तरह चीन के वाणिज्यिक क़र्ज़ की ब्याज दर देखें तो यह विश्व बैंक और आईएमएफ़ के क़र्ज़ से भी महंगा है और पाकिस्तान जैसे देश के लिए अरबों डॉलर में आधा फ़ीसदी ज़्यादा क़र्ज़ काफ़ी महंगा है।
इस आर्थिक संकट में चीन क्या मदद कर सकता है?
पाकिस्तान के बकाया क़र्ज़ में चीनी क़र्ज़ का अनुपात पिछले सात से आठ सालों में बढ़ गया है, इस लिहाज़ से पाकिस्तान पर किसी और देश की तुलना में चीन का अधिक बकाया है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक़ इन क़र्ज़ों की वापसी की वजह से पाकिस्तान को विदेशी फ़ाइनैंसिंग के क्षेत्र में मदद कर सकती है जो पाकिस्तान के गिरते विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से मुश्किल बनती जा रही है।
अम्मार हबीब का कहना है कि इन क़र्ज़ों को रोल ओवर करने में सुविधा वास्तविक तौर पर पाकिस्तान के लिए ज़रूरी है और उनके मुताबिक़ ये रोल ओवर हो भी जाते हैं क्योंकि दोनों पक्ष समझते हैं कि जब उनकी वापसी की अवधि ख़त्म होगी तो इसे रोल ओवर करना ही पड़ता है और ये होते रहते हैं।
अमरीन सोरानी ने इस सिलसिले में बताया कि चीनी क़र्ज़ों को रोल ओवर होना चाहिए न कि उनकी रिस्ट्रक्चरिंग होनी चाहिए। उन्होंने कहा रिस्ट्रक्चरिंग में नई शर्तें तय होती हैं लेकिन रोल ओवर में ये नहीं होता।
उन्होंने बताया कि उसकी एक मिसाल चीन के बैंक की ओर से पाकिस्तान के लिए 70 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ देने की मंज़ूरी है।
उनके मुताबिक़ ये एक तरह का रोल ओवर है क्योंकि पाकिस्तान ने कुछ समय पहले अदायगी की थी और अब उसी क़र्ज़े को रोल ओवर करके दोबारा पाकिस्तान को दिया गया है।
डॉक्टर पाशा के मुताबिक़, 'क़र्ज़े की रिशिड्यूलिंग आपसी क़र्ज़ों पर होती है, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान ये रिशिड्यूलिंग नहीं करते।'
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पेरिस क्लब से पहले भी क़र्ज़े की रिशिड्यूल करा चुका है और अब दोबारा वहां से उनको रिशिड्यूल कराना उचित नहीं लगता और चीन से ये सुविधा पाकिस्तान के लिए उपयोगी साबित हो सकती है।
यूसुफ़ नज़र ने इस सिलसिले में बताया कि पाकिस्तान को क़र्ज़ों की वापसी सबसे ज़्यादा चीन को ही करनी है तो वास्तव में चीन इस सिलसिले में सबसे ज़्यादा मदद कर सकता है। हालांकि क़र्ज़ों की रिशिड्यूलिंग के लिए चीन और वैश्विक वित्तीय संस्थान को इकट्ठा बैठना होगा लेकिन अभी तक चीन की ओर से ऐसा कोई इशारा नहीं मिला।
उनके मुताबिक़ इस वक़्त चीन का क़र्ज़ा सबसे ज़्यादा है हालांकि वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ़ के साथ मिलकर पाकिस्तान के क़र्ज़ों की रिशिड्यूलिंग का काम हो सकता है क्योंकि दुनिया में यही होता है कि क़र्ज़ देने वाले देश या संगठन मिलकर ये काम करते हैं जैसा कि पहले भी प्रेस क्लब के सदस्यों ने मिलकर ऐसा किया था।