बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को पेगासस मामले की जाँच की माँग की है। ऐसी माँग करने वाले वो एनडीए के पहले नेता हैं। हालांकि उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया कि वो इस मामले में किस तरह की जाँच चाहते हैं।
पटना में पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "इतने दिनों से जब लोग लगातार बोल रहे हैं, तो इसके बारे में निश्चित रूप से मेरी समझ से जाँच कर लेनी चाहिए ताकि जो भी सच्चाई हो, वो सामने आ जाए और कभी भी, किसी को परेशान करने के लिए इस तरह का काम करता है तो ये नहीं होना चाहिए। इसके लिए ये ज़रूरी है कि सब चीज़ों पर बात हो जाए।"
इस मामले में नीतीश के बयान के बाद बीजेपी शायद थोड़ा असहज हुई होगी।
विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार इस पूरे मामले में जाँच से भाग रही है, लेकिन केंद्र का तर्क है कि पूरे मामले पर संबंधित मंत्री संसद में सरकार का पक्ष स्पष्ट कर चुके हैं।
इसराइली स्पाइवेयर पेगासस के ज़रिए कथित तौर पर राजनेताओं और अन्य लोगों की जासूसी के मामले पर विपक्ष लगातार मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। अब उसमें एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू ने भी जाँच की माँग कर दी है।
इतना ही नहीं जानकार नीतीश के इस बात को ज़्यादा तवज्जो इसलिए भी दे रहे हैं क्योंकि इस कथित जासूसी में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के फ़ोन की जासूसी होने की बात भी सामने आई है।
प्रशांत किशोर पूर्व में नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों के संबंध बहुत मधुर नहीं रहे हैं। आजकल विपक्ष को मोदी के ख़िलाफ़ एकजुट करने में प्रशांत किशोर की भूमिका अहम मानी जा रही है।
बीजेपी से अलग राय
लेकिन हाल के दिनों में ये नीतीश कुमार का पहला बयान नहीं है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से अलग अपना मत ज़ाहिर किया है।
इसके पहले 30 जुलाई को उन्होंने जातिगत जनगणना पर भी केंद्र सरकार के इतर राय जाहिर की थी और कहा था कि वो प्रधानमंत्री से जातिगत जनगणना के लिए गुहार लगाएंगे।
बिहार सरकार की तरफ़ से यहाँ तक इशारा किया गया है कि जातिगत जनगणना पर केंद्र राज़ी न हो तो, राज्य सरकार अपने स्तर पर ऐसी जनगणना करा सकती है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण बिल पर भी उन्होंने अलग राय रखते हुए कहा था कि क़ानून लाकर जनसंख्या नियंत्रित नहीं की जा सकती। तब भी नीतीश कुमार की राय को योगी विरोध से जोड़ कर देखा गया था।
एक अगस्त को ही उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला के साथ दोपहर के भोजन पर मुलाक़ात की। जानकार इस मुलाक़ात में भी राजनीति देख रहे हैं। ये मुलाक़ात भले ही चौटाला के निमंत्रण पर हुई हो, लेकिन निमंत्रण ऐसे वक़्त में नीतीश कुमार ने स्वीकार किया, जब तृणमूल नेता ममता बनर्जी और एनसीपी नेता शरद पवार मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं।
नीतीश कुमार के पिछले तीन-चार बयानों और मुलाक़ातों में संभावनाएँ तलाशने वाले कुछ इसे संयोग मान रहे हैं और कुछ इसे प्रयोग बता रहे हैं।
टाइमिंग पर सवाल
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बदले सुर संयोग है या प्रयोग, ये तय करने से पहले एक नज़र ज़रा बयानों और मुलाक़ात की टाइमिंग पर डाल लें। ये सभी बयान केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद ही सामने आए हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल 7 जुलाई को हुआ था।
जनसंख्या क़ानून पर उनका बयान 12 जुलाई का है।
जातिगत जनगणना पर बयान 30 जुलाई का है।
ओम प्रकाश चौटाला से मुलाक़ात एक अगस्त की है।
और पेगासस पर जाँच की माँग 2 अगस्त की है।
यानी सुर बदले मंत्रिमंडल विस्तार के बाद। इसलिए उनके बयान की टाइमिंग को लेकर भी सवाल पूछे जा रहे हैं।
संयोग या प्रयोग?
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं, "नीतीश कुमार एक प्रयोग कर रहे हैं। वो अचानक से राजनीति में कोई क़दम नहीं उठाते। वो धीरे-धीरे चीज़ों को तोलते हैं और फिर कोई क़द़म उठाते हैं। उनके पिछले कुछ बयानों से ज़ाहिर होता है कि वो बीजेपी के साथ दूरी बनाने की कोशिश में हैं।"
ऐसे में सवाल उठता है कि वो ऐसा क्यों करेंगे? केंद्र में भी उनकी पार्टी जेडीयू सत्ता में अब हिस्सेदार हैं और बिहार में भी। सीटें कम होने के बावजूद नीतीश कुमार को बीजेपी ने बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया है।
इस सवाल के जवाब में राधिका रामाशेषन कहती हैं, "बिहार में कम सीटें लाकर भी मुख्यमंत्री बनना, केंद्रीय कैबिनेट में फेरबदल के बाद भी उनकी पार्टी को एक ही कैबिनेट मंत्री मिलना, ये सब बताता है कि उन्होंने जनता के बीच अपना आधार खोया है। अब वो एक 'राजनीतिक लाइफ़लाइन' की तलाश में हैं, जिससे उनको फिर से खोई हुई ज़मीन वापस मिल जाए।"
"आने वाले समय में दो मुख्य चुनाव आने वाले हैं, पहले 2022 में उत्तर प्रदेश का चुनाव और 2024 में लोकसभा का चुनाव। उत्तर प्रदेश के चुनाव में नीतीश भी जानते हैं कि उनकी भूमिका ज़्यादा नहीं है। लेकिन 2024 के लिए सहमे विपक्ष ने ख़ुद को एकजुट करने की क़वायद शुरू की है। नीतीश शायद ये तौल रहे हैं कि क्या विपक्ष की एकजुटता के बाद उनकी कोई भूमिका हो सकती है? नीतीश एक ज़मीनी नेता है, उनका अपना आकलन हो सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर (उत्तर भारत में) एनडीए के लिए ज़मीन सिकुड़ती जा रही है और विपक्ष के लिए जगह बनती दिख रही है।"
हालांकि राधिका नीतीश के इस आकलन से सहमत नज़र नहीं आती। उनको लगता है कि उत्तर भारत में अब भी बीजेपी का ही दबदबा है।
जेडीयू के अंदर की बात
तो क्या एनडीए में जनता दल यूनाइटेड की भूमिका से नीतीश संतुष्ट नहीं हैं क्या?
नाम न छापने की शर्त पर जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने बीबीसी से कहा, "पेगासस पर जो कुछ नीतीश कुमार ने कहा, वही स्टैंड हमारा संसद में भी होगा। इस मुद्दे पर एनडीए के घटक दलों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है।"
लेकिन आगे उन्होंने कई सवाल भी पूछे - याद कीजिए एनडीए के घटक दलों की आख़िरी बार बैठक किसी मुद्दे पर चर्चा के लिए कब हुई थी? कृषि क़ानून हो या 370 हटाने के पहले किससे सलाह मशविरा किया गया था? संयुक्त एनडीए का कोई एजेंडा या कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तो है नहीं? हमारी एक अलग राजनीतिक पार्टी है। 50 साल से हम भी राजनीतिक जीवन में हैं। कई मुद्दों पर हमारा अपना रुख़ रहा ही है।"
उनकी बातों से ये तो स्पष्ट था कि जेडीयू और बीजेपी में सब ठीक नहीं चल रहा लेकिन इसे उन्होंने स्वीकार भी नहीं किया।
नीतीश के क्यों बदले सुर?
जो सवाल जेडीयू नेता ने उठाए, कुछ ऐसा ही विश्लेषण पटना में पीटीआई के वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण भी करते हैं।
पटना से बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "अपने बयान को जेडीयू इस तरीक़े से डिफ़ेंड कर सकती है कि साथ में रहते हुए जेडीयू और बीजेपी में कई मुद्दों पर वैचारिक मतभेद पहले भी रहे हैं। जैसे एनआरसी का मुद्दा है या फिर तीन तलाक़ का मुद्दा।"
नचिकेता एक एक कर नीतीश के बयानों पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं, "पेगासस पर नीतीश कुमार का बयान आश्चर्य में ज़रूर डालता है। उनकी भाषा में एक 'बैलेंसिंग एक्ट' जैसा भाव आ रहा था। ओम प्रकाश चौटाला से मुलाक़ात पर उन्होंने सफ़ाई में पुराने संबंधों का हवाला ज़रूर दिया है।"
"लेकिन जातिगत जनगणना पर नीतीश कुमार का ये पुराना स्टैंड है और इस पर बिहार बीजेपी भी उनसे इत्तेफ़ाक रखती है। केंद्र में चाहे बीजेपी सरकार ने जो भी बयान दिया हो। बिहार विधानसभा में बीजेपी ने भी इसके पक्ष में ही वोट किया था। इसलिए जातिगत जनगणना पर नीतीश के बयान को बदले हुए सुर के तौर पर नहीं देख सकते। उसे बिहार के परिप्रेक्ष्य में देखने की ज़रूरत हैं, जहाँ ओबीसी राजनीति पर हावी है।"
वो आगे कहते हैं, "जहाँ तक बात उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण बिल पर है, जनता उसे एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ मानती है, जिनमें नीतीश कुमार की अपनी पैठ भी है। "
लेकिन वो भी मानते हैं कि पिछले कुछ दिनों में नीतीश के सुर बदले ज़रूर है। इसके पीछे की वजह गिनाते हुए वो कहते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में नहीं रह गए हैं। संख्या बल के आधार पर उस भूमिका में वो दोबारा नहीं जा सकते, लेकिन बयानों के ज़रिए वो उस भूमिका में वापस आने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं। इन बयानों से वो बताना चाहते हैं कि जेडीयू भाजपा की सहयोगी है, अनुयायी नहीं है।
क्या नीतीश कुमार, बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं?
तो क्या जेडीयू एक बार फिर बीजेपी से अलग हो सकती है? क्या ये उस दिशा में पहला क़दम है?
नचिकेता नारायण के मुताबिक़, "अभी नीतीश कुमार ऐसा कुछ नहीं सोच रहे होंगे। वैसे भी एनडीए से निकल कर अभी वो करेंगे क्या? कोई दूसरा मज़बूत गठबंधन तैयार भी नहीं हैं। इस तरह की बयानबाज़ी केवल ये बताने की कोशिश है कि अगर बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बीजेपी की मेहरबानी की वजह से है, तो बीजेपी समझ ले कि अगर नीतीश नहीं होंगे, तो बिहार की सत्ता बीजेपी के पास भी नहीं रहेगी।"
वो आगे कहते हैं कि बीजेपी से अलग बयान के पीछे केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू के ज़्यादा चेहरे शामिल न करना भी एक 'कंट्रीब्यूटिंग फ़ैक्टर' हो सकता है। इनके ज़रिए वो बारीक़ी से अपनी नाराज़गी दिखा रहे हैं।
राधिका रामाशेषन कहती हैं, "अगर नीतीश ऐसा कुछ करते हैं तो साख़ पर सवाल खड़ें होंगे। उनकी 'सुशासन बाबू की छवि को धक्का लगेगा।"
सच ये भी है कि नीतीश कुमार के बयान के बाद पेगासस पर नई राजनीति ज़रूर शुरू हो गई है। अब जीतन राम मांझी ने भी इस मामले में जाँच की माँग की है।