कोवैक्सीन को भारत बायोटेक और आईसीएमआर ने मिलकर तैयार किया है। भारतीय ड्रग कंट्रोलर (DCGI) ने जनवरी में ही इसके इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी। अब तक भारत में कोवैक्सीन की करीब 6 करोड़ डोज लगाई जा चुकी हैं।
राहुल सांकृत्यायन उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने कोरोना वैक्सीन के तौर पर भारत में उपलब्ध चार वैक्सीन में से कोवैक्सीन लगवाई है। वह कहते हैं कि उन्होंने यह फैसला वैज्ञानिक जानकारी के बजाए परिस्थितियों को देखते हुए किया। नौकरी के लिए दिल्ली में रहने वाले राहुल फिलहाल बस्ती में अपने घर से ही काम कर रहे हैं।
वह कहते हैं कि मैं चाहता था कि अगर मुझे दिल्ली वापस जाना पड़े तो मैं पूरा वैक्सीनेशन करवा कर ही जाऊं ताकि वहां इसके साइड इफेक्ट्स से बच सकूं। भारत में आए दिन वैक्सीन की कमी की खबरों के बीच मैं जल्द से जल्द दोनों डोज लगवाना चाहता था। ऐसा कोवैक्सीन के जरिए ही संभव था, क्योंकि कोवीशील्ड की दोनों डोज के लिए तीन महीने इंतजार करना पड़ता है। कोवीशील्ड न लगवाने की एक वजह इससे होने वाले बुखार और शरीर में दर्द जैसे बुरे प्रभाव भी थे। अब एक ही महीने में दोनों डोज लगवाने के बाद मैं भारत के अंदर कहीं भी आ जा सकता हूं और मुझे कोविड निगेटिव सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।
अभी WHO से अनुमति नहीं
फिलहाल भारत से विदेश जाने वालों को कोवैक्सीन टीका लग जाना भले ही समस्या हो लेकिन राहुल जैसे करोड़ों लोग इसे लगवाना चाहते हैं, क्योंकि यह कोवीशील्ड की अपेक्षा ज्यादा आसानी से उपलब्ध है। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक और आईसीएमआर (ICMR) ने मिलकर बनाया है। इसे जनवरी में ही भारतीय ड्रग कंट्रोलर (DCGI) ने इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी। तबसे अब तक भारत में कोवैक्सीन की करीब 6 करोड़ डोज लगाई जा चुकी हैं।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अमेरिकी ड्रग कंट्रोलर (USFDA) से इसे इस्तेमाल के लिए अनुमति नहीं मिली है। भारत बायोटेक की अमेरिकी सहयोगी ऑक्युजेन ने इसे अमेरिका में इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने की मांग की थी, जिसे USFDA ने नकार दिया था। दोनों ही जगहों पर वैक्सीन को अनुमति न दिए जाने की वजह कंपनी की ओर से तीसरे चरण के ट्रॉयल से जुड़ी पर्याप्त जानकारियां न देना बताया गया था।
हालांकि इसके बावजूद ऐसे कई देश हैं, जिनकी ड्रग कंट्रोलर एंजेंसियों ने कोवैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। भारत के अलावा अब तक गुयाना, ईरान, मॉरीशस, मेक्सिको, नेपाल, पैराग्वे, फिलीपींस, जिम्बाब्वे और एस्टोनिया में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत के प्रधानमंत्री सहित केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों ने कोवैक्सीन की ही डोज ली है। इसने भी इस वैक्सीन के प्रति लोगों के विश्वास में बढ़ोतरी की है।
कंपनी को जल्द अनुमति की आशा
WHO की इमरजेंसी यूज लिस्टिंग (EUL) एक ऐसी कैटेगरी है, जिसमें नई वैक्सीन को महामारी जैसी पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के दौरान इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है। इसके तहत WHO अब तक फाइजर, एस्ट्राजेनेका, जानसेन, मॉडर्ना और साइनोफार्म को अनुमति दे चुका है।
किसी वैक्सीन को WHO से अनुमति मिलने के चार चरण होते हैं। पहला चरण निर्माता के 'अनुमति के रुचिपत्र' (EOI) को स्वीकार करना होता है। फिर WHO और निर्माता के बीच वैक्सीन से जुड़ी फाइल जमा करने से पहले एक बैठक होती है। इसके बाद WHO रिव्यू के लिए फाइल को स्वीकार करता है। फिर अनुमति को लेकर अंतिम निर्णय किया जाता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत बायोटेक अभी इस प्रक्रिया के शुरुआती चरण में ही है। हालांकि कंपनी की जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर सुचित्रा एल्ला की ओर से कहा गया है कि WHO में कोवैक्सीन अंतिम निर्णय की ओर बढ़ रही है। वहीं एक मीडिया रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने बताया है कि कोवैक्सीन को WHO की अनुमति मिलने पर फैसला अगस्त के दूसरे हफ्ते में किया जाना है।
'अनुमति का खतरे से संबंध नहीं'
जानकार बताते हैं कि किसी वैक्सीन को अलग-अलग देशों या संगठनों में अनुमति पाने के लिए उनके बनाए पैमानों के हिसाब से वैक्सीन ट्रॉयल के आंकड़े उपलब्ध कराने होते हैं। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि अगर कोवैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुमति नहीं मिली है तो इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें कोई खतरे की बात है। महामारी विशेषज्ञ डॉ चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि WHO और अमेरिकी अनुमति के अलग मायने हैं। ध्यान रखने वाली बात यह है कि भारतीय ड्रग कंट्रोलर ने वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दी हुई है। यह वैक्सीन के प्रभावी होने और इसके दुष्प्रभाव न होने को साबित करने के लिए काफी है। अन्य अथॉरिटी से इसकी अनुमति वैक्सीन के निर्यात आदि से जुड़ी हुई है।
तीसरे चरण के ट्रॉयल के बाद भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन को कोरोना संक्रमण के खिलाफ 78 फीसदी प्रभावी बताया था। कोवैक्सीन ने यह भी बताया था कि फेज 3 के ट्रॉयल में 25,800 लोगों को शामिल किया गया था। इनमें से 2400 लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा थी और 4500 लोग अन्य बीमारियों से पीड़ित थे। हालांकि देश में भी कुछ वैज्ञानिकों ने कंपनी की ओर से उपलब्ध कराए गए वैक्सीन ट्रॉयल के डेटा पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि भारत बायोटेक की ओर से विस्तार से वैक्सीन के प्रभाव और साइड इफेक्ट से जुड़े आंकड़े नहीं जारी किए गए हैं।