रूस और यूक्रेन के बीच 50 दिन से युद्ध चल रहा है। दुनिया साफ़-साफ़ खेमों में बंटी हुई नज़र आ रही है। दुनिया के देश या तो अमेरिका (यूक्रेन) के साथ हैं या तो रूस के साथ हैं। लेकिन भारत का रुख़ अब भी तटस्थ है। और तटस्थ ऐसा कि ना तो रूस की सुनने को तैयार है और ना ही अमेरिका की।
यही वजह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ बातचीत में पीएम मोदी ने रूस का नाम लिए बिना बूचा में मारे गए लोगों का जिक्र भी किया।
तो दूसरी तरफ़ रूस से तेल ख़रीदने के सवाल पर अमेरिका को तुंरत ही आइना भी दिखा दिया। भारत के विदेश मंत्री ने साफ़ शब्दों में कहा, "यूरोप जितना एक दिन में तेल रूस से ख़रीदता है, उतना भारत एक महीने में ख़रीदता है।"
उसी तरह से अमेरिका द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के सवाल पर भी जयशंकर ने दो टूक शब्दों में कहा, "लोग हमारे बारे में अपना विचार रखने का हक़ रखते हैं। लेकिन उसी तरह हमें भी उनके बारे में अपना विचार रखने का हक़ है। हम इस मामले में चुप नहीं रहेंगे। दूसरों के मानवाधिकारों को लेकर भी हमारी राय है।"
सच तो ये भी है कि युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (डिप्टी एनएसए) दलीप सिंह भी भारत के दौरे पर आए और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ भी। मोदी लावरोफ़ से मिले लेकिन दलीप सिंह से नहीं।
हालांकि भारत का ये तटस्थ रवैया ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों को सीधे तौर पर रास नहीं आ रहा।
जैसे ही ख़बरें आईं कि जर्मनी इस साल जून में होने वाली G7 की बैठक में भारत को आमंत्रित नहीं करने वाला है। वैसे ही ये भी खबरें चली कि जर्मनी जल्द ही भारत को ये न्योता भेज देगा। हालांकि जर्मनी की तरफ़ से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
ऑस्ट्रेलिया ने भी शुरुआत में भारत के रुख को लेकर असहजता ज़रूर दिखाई, लेकिन ये भी सच है कि भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल ही में ऐतिहासिक व्यापारिक समझौता भी हुआ, जो बीते दस साल से अटका पड़ा था।
यही वजह है कि विपक्षी दल के कुछ नेता अब विदेश मंत्री के बयानों की तारीफ़ भी करने लगे हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तो ख़ुले आम भारत की विदेश नीति की तारीफ़ तक की थी।
क्या इसका मतलब ये कि क्या भारत अपनी विदेश नीति में पहले से ज़्यादा दृढ़ दिख रहा है?
इस युद्ध के दौरान भारत की जो भी विदेश नीति रही है वो भारत के हितों को ध्यान में रख कर ही बनी है, इसमें जीत हार या बदलाव जैसी बात नहीं है। भले ही कहा जा रहा हो कि आज की दुनिया मल्टी पोलर हो गई है। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ।
जिन अलग अलग ध्रुवों की बात मल्टी पोलर वर्ल्ड में हो रही है उनमें आपस में कोई मेल नहीं है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था 25-26 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था 13-14 ट्रिलियन डॉलर की है। वहीं रूस की इकोनॉमी 1।5 ट्रिलियन डॉलर की है। आज के ज़माने में एक मज़बूत ध्रुव बनने के लिए देश की सामरिक शक्ति के साथ आर्थिक शक्ति का भी महत्वपूर्ण होना जरूरी है।
इस वजह से मैं नहीं मानता कि आज की दुनिया मल्टी पोलर है। ज़्यादा से ज़्यादा हम कह सकते हैं कि बाइपोलर वर्ल्ड की तरफ़ दुनिया बढ़ रही है।
इस बाइपोलर वर्ल्ड में एक ध्रुव अमेरिका है और दूसरा ध्रुव चीन बन सकता है। चीन की तरफ़ जाना, भारत के हक़ में कभी नहीं है। इससे पहले जब भारत गुटनिरपेक्षता की रणनीति पर था, उस समय रूस और अमेरिका दोनों भारत के दुश्मन नहीं थे। तब हम तटस्थता की रणनीति अपना सकते थे।
लेकिन आज के संदर्भ में देखें तो भारत के हित, चीन के बजाए अमेरिका और पश्चिमी देशों वाले ध्रुव से ज़्यादा करीब दिखते हैं। रूस के साथ रिश्ते रखना भारत के लिए कुछ हद तक मजबूरी है। रूस अगर चीन के पाले में पूरी तरह से चला जाता है, तो रिश्ते बनाना भारत के लिए और मुश्किल हो जाएगा।
अभी तक भारत ने बीच का जो रास्ता अपनाया हुआ है, उसके लिए फिलहाल तो भारत के पास स्पेस है। लेकिन आज से छह महीने बाद अगर यूरोप रूस से पूरी तरह तेल ख़रीदने से मना कर देता है और अमेरिका अपने सहयोगियों को रूस पर प्रतिबंध लगाने की बात करता है, तो क्या तब भी भारत इसी रास्ते पर चल सकता है?
मोदी की विदेश नीति, नेहरू की विदेश नीति से इस मायने में अलग है कि पहले भारत सरकार दुनिया के हितों के बारे में ज्यादा सोचती थी और अपने घर के बारे में कम। अब भारत अपने हितों पर ज़्यादा ज़ोर दे रहा है, बजाए इसके कि दुनिया का भला हो।"
हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत की चुप्पी की कुछ जानकार आलोचना भी कर रहे हैं। इनमें से एक पूर्व राजनयिक केसी सिंह हैं।
बूचा में मारे गए लोगों के बारे में उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "भारत के लिए बूचा में मारे गए लोगों के लिए जाँच की माँग निराशाजनक है। इसके पीछे रूस है, ये साफ़ लग रहा है। किसी का आँख बद कर लेना वास्तविक राजनीति नहीं है, ये नैतिक कमी है।"
On @CNN now story on slaughter in #Bucha. Forensic reports & evidence show torture & killing. For India to keep mouthing Russian demand for enquiry is pathetic. Russian hand seems clear. To shut ones eye isnt realpolitik. Its moral deficiency.
"जयशंकर के बयान को विदेश नीति से जोड़ना सही नहीं है। अमेरिका में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर जयशंकर का बयान निश्चित रूप से हमारी विदेश नीति का एक नया पहलू है जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत को अनुचित रूप से निशाना बनाने के ख़िलाफ़ भारत का जवाब है।
बात अगर रूस यूक्रेन युद्ध में भारत के रुख़ की करें, तो भले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वोटिंग में भारत के ग़ैर हाज़िर रहने की नीति पर काफ़ी कुछ कहा गया हो। उसमें ये देखना ज़रूरी है कि ग़ैर हाज़िर रहने के पीछे भारत ने दलील क्या दी।
हर वोटिंग में ग़ैर हाज़िर रहने के बाद भारत ने बयान जारी किया। शुरुआत में भारत ने बातचीत और कूटनीति से मामले को सुलझाने की बात कही, आगे चल कर भारत ने अपने बयान में इस मुद्दे को यूक्रेन की संप्रभुता और अखंडता से जोड़ा और यूएनएचसीआर में वोटिंग के दौरान भी भारत ने कहा कि हिंसा तुरंत ख़त्म होनी चाहिए। खून बहाकर और मासूमों की जान की कीमत पर इसका समाधान नहीं हो सकता।
हालांकि UNHCR में वोटिंग से पहले रूस ने स्पष्ट कहा था कि वोटिंग से ग़ैर हाज़िर रहने को वो अपने ख़िलाफ़ वोट मानेगा। फिर भी वोटिंग में भारत ने ग़ैर हाजिरी के रास्ते को ही चुना।
फिलहाल भारत पल पल की संकट का अपने हितों को ध्यान में रख कर जवाब देने की नीति पर काम करता दिख रहा है।
रूस के साथ फिलहाल हमारे हित उतने नहीं जुड़े हैं। रूस ने अपनी हरकतों से भारत के लिए स्थिति मुश्किल बना दी है। तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए भारत रूस से तेल फिलहाल ख़रीद रहा है। भारत की नीति गुटनिरपेक्षता की नहीं है, क्योंकि दो गुट है ही नहीं। रूस कोई गुट नहीं है।
चाहे ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ ताज़ा व्यापार समझौता हो या बाइडन के साथ बातचीत में बूचा में हुई मौतों का ज़िक्र या फिर रूस से तेल की ख़रीद या फिर अमेरिका को मानवाधिकार उल्लंघन पर जयशंकर की खरी-खरी - ये तमाम उदाहरण, भारत की विदेश नीति की जीत के नहीं है।
बल्कि मैं ये कहूंगी कि भारत उस स्थिति से निकल कर आगे बढ़ा है, जहाँ पहले भारत अंततराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का टारगेट हुआ करता था, लेकिन अब भारत अपने पार्टनर मुल्कों को ये समझाने में कामयाब रहा है कि भारत के हित क्या हैं और हम कहाँ से आते हैं।"