सिर्फ रिट्वीट कर रहे हैं केजरीवाल, खुद क्यों ख़ामोश हैं?

मंगलवार, 16 मई 2017 (11:38 IST)
- प्रमोद जोशी 
दिल्ली सरकार से हटाए गए कपिल मिश्रा आम आदमी पार्टी के गले की हड्डी साबित हो रहे हैं। पिछले दसेक दिनों में वह पार्टी और व्यक्तिगत रूप से अरविंद केजरीवाल पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं। और केजरीवाल उन्हें सुन रहे हैं।
 
आश्चर्य इन आरोपों पर नहीं है। आरोप लगाने से केजरीवाल बेईमान साबित नहीं हो जाते हैं। सवाल है कि केजरीवाल खामोश क्यों हैं?
 
क्या वह इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कपिल मिश्रा का सारा गोला-बारूद खत्म हो जाए? या उन्हें राजनीति में किसी नए मोड़ का इंतजार है? इतना तय है कि खामोशी से केजरीवाल की साख कम हो रही है। वह आरोपों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? खामोश रहना उनकी प्रकृति नहीं है। ऐसी तो उनकी राजनीति नहीं थी। वे तो छोटी-छोटी बात पर धरना-प्रदर्शन वाले नेता है।
 
कपिल की झोली में और भी हथियार हैं क्या?
आश्चर्य इस बात पर भी है कि कपिल मिश्रा के पास आम आदमी पार्टी के घोटालों की इतनी लम्बी जानकारी थी, फिर भी वे इतने लम्बे अरसे तक विश्वसनीय मंत्री बने रहे। और इस बात पर भी है कि उनके बीजेपी के एजेंट होने की जानकारी पार्टी को इतनी देर से मिली।
 
केजरीवाल कब तक इस मामले पर मौन रहेंगे कहना मुश्किल है, क्योंकि लगता नहीं कि मिश्रा मौन होंगे। उनके आरोपों की सफाई में केजरीवाल को सामने आना चाहिए। उन्हें जो भी कहना है उसे अपने प्रतिनिधियों से कहलाने के बजाय खुद कहना चाहिए और जनता के बीच जाकर कहना चाहिए।
 
कपिल मिश्रा ने औपचारिक रूप से उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करा दी है। कुछ में अब वह कराएंगे। सरकारी एजेंसियाँ अगले कुछ दिनों में कोई न कोई कार्रवाई करेंगी। सवाल यह भी है कि कपिल मिश्रा की झोली में कोई और हथियार अभी बाकी है क्या?
आरोप लगाने भर से कोई बात साबित नहीं होती। हाँ, जब सरकारी एजेंसियों के दस्तावेजों में आरोप आएंगे तो उनका स्पष्टीकरण भी देना होगा। पर जनता के सामने जाना या स्पष्टीकरण देना राजनीतिक गतिविधि है, प्रशासनिक नहीं।
 
पहले दिन जब कपिल मिश्रा ने सत्येन्द्र जैन से रुपए लेने का आरोप लगाया था, जवाब देने मनीष सिसौदिया आए थे। उन्होंने भी आरोपों का जवाब नहीं दिया, बल्कि कहा था कि ये आरोप जवाब देने लायक नहीं हैं। पर उसके बाद से कपिल मिश्रा के स्वर तीखे होते जा रहे हैं।
 
ऐसा भी नहीं कि पार्टी कपिल की बातों की पूरी तरह उपेक्षा कर रही हो। संजय सिंह ने उन्हें बीजेपी का एजेंट घोषित किया है। इधर सोमवार को अरविंद केजरीवाल की पत्नी और कपिल मिश्रा के बीच ट्विटर पर कुछ देर के लिए व्यंग्य बाण भी चले। पर उन बातों का राजनीति से कोई गहरा मतलब नहीं निकाला जा सकता।
 
सिर्फ रिट्वीट कर रहे हैं केजरीवाल, ख़ुद चुप हैं
केजरीवाल छोटी-छोटी बात पर ट्वीट करते हैं। हाल के उनके ट्वीट और रिट्वीट देखें तो उन्होंने अपने वकील राम जेठमलानी की तस्वीर पर राघव चड्ढा के ट्वीट पर रिट्वीट मारा, टीवी के एंकरों तक पर नाराजगी दिखाते हुए किसी के ट्वीट को रिट्वीट किया और बोत्सवाना में ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर उठे सवाल पर किसी के ट्वीट को रिट्वीट किया।
 
आशीष खेतान को मारने की धमकी पर ट्वीट किया और डेंगू-चिकुनगुनिया की बैठक पर ट्वीट किया। पर कपिल मिश्रा के आरोपों की क्या उन्हें खबर नहीं है? इसका मतलब क्या माना जाए? क्या इसलिए कि ये आरोप मरियल हैं। ऐसा है तो उनकी पार्टी लगातार जवाब क्यों दे रही है।
 
अभी तक केजरीवाल ने सीधे-सीधे इस मामले में कुछ भी नहीं कहा है। इसके पहले जब कुमार विश्वास ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी, तब ऐसा नहीं हुआ था। तब केजरीवाल सार्वजनिक रूप से सामने आए थे।
 
इधर कपिल मिश्रा की शब्दावली में भी बदलाव आया है। पहले रोज उनका निशाना केजरीवाल से ज्यादा सत्येन्द्र जैन नजर आते थे। अब वे केजरीवाल के प्रति ज्यादा तीखे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
कपिल मिश्रा ने अब कुछ दस्तावेज मीडिया के सामने रखकर केजरीवाल और आप पार्टी को मिले चंदे की गलत जानकारी देने के आरोप लगाए हैं। पांच दिन से वे आप नेताओं के विदेशी दौरों को सार्वजनिक किए जाने की मांग को लेकर अनशन पर बैठे थे।
 
फिर वे सबूतों की जानकारी देते हुए अचेत हो गए। उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया। अब उन्होंने कहा है कि अस्पताल से छुट्टी पाते ही सबूतों के साथ सीबीआई और सीबीडीटी में शिकायत दर्ज कराऊंगा। दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) में वे बयान दर्ज करा ही चुके हैं।
 
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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