"ये ऐसा शहर है जहां गूगल भी नहीं बता पाता कि आपको कहीं पहुंचने में कितना समय लगेगा।" बेंगलुरू के एक स्टार्टअप के फ़ाउंडर ने फ़ोन पर ये बात मज़ाक में कही थीं, लेकिन हमें जल्द ही अहसास हो गया कि ये सच है। रविवार को हम रमन्ना से एचएसआर लेआउट के ऑफ़िस (क़रीब आठ किलोमीटर) लगभग 20 मिनट पहुंचे। अगले दिन यानी सोमवार ये फ़ासला तय करने में 50 मिनट लग गए।
सोमवार को हमने देखा कि उन सड़कों पर जहां पैर रखने भर की जगह नहीं थी, हज़ारों लोग अपनी गाड़ियों और मोटरसाइकिल पर सवार जैसे रेंगते हुए काम पर जा रहे थे। तेज़ धूप और हॉर्न की ची-पों के बीच सिल्क बोर्ड चौराहे पर खड़ा होना मुश्किल हो रहा था।
शहर के लाखों लोग हर दिन इसी ट्रैफ़िक में घंटो फंसने के बाद अपने दफ़्तर पहुंचते हैं और किसी जगह पर पहुंचने का सटीक समय तो इस शहर में कोई नहीं बता सकता। पिछले कई सालों से ट्रैफ़िक बेंगलुरू की सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है।
रमना जो कि एक स्टार्ट-अप के को-फ़ाउंडर हैं, कहते हैं, "हम जब भी दोस्तों के साथ बैठते हैं, एक बात कॉमन होती है कि यहां कितना ट्रैफ़िक है।" वो हंसते हुए बताते हैं, "एक दिन तो हमने सोचा कि पैसे मिलाकर एयरपोर्ट के उस पार एक छोटा सा स्टार्ट अप विलेज बना लेते हैं, कम से कम ट्रैफ़िक से तो बचेंगे।"
'ट्रैफ़िक में फंसा'सिलिकॉन वैली का सपना
कर्नाटक की आर्थिक सफलता बैंगलुरू पर निर्भर है। शहर से राज्य के राजस्व का 60% से अधिक आता है। यह 13,000 से अधिक स्टार्ट-अप का घर है। भारत के 100 यूनिकॉर्न्स में से लगभग 40% यहां हैं।
भारत की सिलिकॉन वैली का सपना देखने वाले इस शहर में हर साल हज़ारों लोग 'एकतरफ़ा टिकट' लेकर आते हैं। पिछले 15 सालों में यहां की आबादी तेज़ी से बढ़ी है।
अब यहां लगभग 1.25 करोड़ लोग रहते हैं। सड़कों पर एक करोड़ से अधिक वाहन है। इसकी संख्या कितनी तेज़ी से बढ़ रही है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने बयान दिया था कि साल 2027 शहर में वाहनों की संख्या यहां की आबादी से ज़्यादा होगी।
लेकिन लोगों का कहना है कि शहर इनका भार उठाने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है। मेट्रो बनाने का काम पूरे शहर में चल रहा है, जिसने हालात और ख़राब कर दिए हैं।
रमना कहते हैं, "यहां पर कुछ पिलर बने थे, वो सालों से बन ही रहे हैं, एसएसआर आने वाली सड़क, क्या आप विश्वास करेंगे, दो सालों से बंद है। मेट्रो का कन्सट्रक्शन सालों से चल ही रहा है, आप कुछ बना रहें हैं तो कम से कम रोड का ख़्याल तो रखेंगे।"
रमन्ना कहते हैं, "बेंगलुरू यक़ीनन सिलिकॉन वैली है, लेकिन अगर इसी तरह चलता रहा है, तो स्टार्टअप यहां से बाहर चले जाएंगे।"
रविचंद्रन वी पिछले 50 सालों से बेंगलुरू में रह रहे हैं और शहर से जुड़े कई प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। उनका कहना है कि बेंगलुरू में पिछले कुछ सालों में आबादी तेज़ी से बढ़ी है और यही ट्रैफ़िक समेत दूसरी समस्याओं की जड़ है।
ज़्यादातर लोग आईटी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों में काम करने आए हैं। शहर की सुविधाएं आबादी के मुताबिक नहीं बढ़ी है।
बेंगलुरू की आबादी
साल 2001- 56 लाख
साल 2011- 87 लाख
साल 2023- लगभग 1.25 करोड़
बेंगलुरू मेट्रो:
2007 में शुरु हुआ काम
बहुत धीमी रफ़्तार से चल रहा है काम
अबतक सिर्फ़ 63 स्टेशन बने
कुल लंबाई- 70 किलोमीटर
सालाना 16 लाख से भी कम लोग सफ़र करते हैं
समस्याएं और भी हैं...
पिछले साल बेंगलुरू बाढ़ की चपेट में आ गया। दो बार आई बाढ़ ने निचले इलाकों में किए गए अवैध कंस्ट्रक्शन की पोल खोलकर रख दी। सात हज़ार से अधिक घरों में पानी घुस गया। सैकड़ों करोड़ की संपत्ति को नुकसान हुआ, कई कंपनियों के कामकाज पर बुरा असर पड़ा।
रमना कहते हैं, "ऐसे हालात के बारे में हमने कल्पना भी नहीं की थी। पॉश इलाकों में रहने वालों के घरों में पानी घुस गया था, गाड़ियां डूब चुकी थीं।"
रविचंद्रन वी कहते हैं, "पिछले साल बेंगलुरु में दो बार बाढ़ आई। मेरे हिसाब से बाढ़ बेंगलुरु के अस्तित्व के लिए ख़तरा बन सकती है। मॉनसून में बेंगलुरु में कभी भी भीषण बाढ़ आ सकती है।"
बाढ़ के मुख्य कारण-
स्टॉर्म लाइन्स की कमी
नालों का भरा होना
तालाबों और नालों का भरना
अतिक्रमण
गैर-कानूनी निर्माण
खुले इलाकों का न होना
नालों, पाइपलाइन के रख रखाव में कमी
बाढ़, सूखा और बढ़ते किराए का बोझ
हैरानी की बात ये है बाढ़ से जूझ चुके इस शहर मे पानी की क़िल्लत भी हो जाती है। पानी की कमी के कारण जोवियन नाम का स्टार्टअप चलाने वाले आकाश को महंगे घर मे शिफ़्ट होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वो कहते हैं, "जिस घर में हम रहते थे, वहां पानी की बहुत दिक्क़त होती थी, पानी का टैंकर कभी आता था कभी नहीं आता था, पानी की काफ़ी दिक्क़त होती थी। इसका पर्सनल लाइफ़ और बिज़नेस दोनों पर असर पड़ता था, क्योंकि घर ही ऑफ़िस था, फिर हमें ऐसी जगह पर जाना पड़ा जहां मकान मालिक इन दिक्कतों का समाधान कर देता है, लेकिन इस कारण रेंट बढ़ जाता है। ख़र्चे बढ़ जाते है।"
क्यों हो रही है पानी की कमी?
पानी से स्रोतों में 79 प्रतिशत की कमी
1973 में 8 प्रतिशत की तुलना में अब 77 प्रतिशत इलाकों में कन्सट्रक्शन
40 प्रतिशत आबादी ग्राउंड वॉटर पर निर्भर
सभी इलाक़ों में नहीं पहुंच पाई है पाईपलाइन
शहर को 650 एमएलडी पानी कम मिल रहा है
वॉटर टेबल 1997 में 10-12 मीटर था, अब 70 मीटर से अधिक
आकाश का कहना है कि उनके बढ़ते ख़र्चे का असर सीधा बिज़नेस पर होता है। इसके अलावा अच्छे मौसम के लिए मशहूर बेंगलूरू दूसरे शहरों की तरह गरम होता जा रहा है। महामारी के बाद, लोगों की शिकायत है कि शहर के मकानों के किराए में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है। इसलिए लोग अधिक सैलेरी मांग रहे हैं। छोटी कंपनियों के लिए अधिक पैसे देना एक चैलेंज होता है।
जानकार मानते हैं कि शहर को नए सिरे से एक बेहतर प्लानिंग की ज़रूरत है, उसके बिना स्थिति नहीं सुधरेगी। रविचंद्रन वी कहते हैं, "जो हम अभी करते हैं, वो बैंडेड सॉल्यूशन है, बीते हुए कल की दिक्क़तों के लिए। कहीं बाढ़ आ गई, तो वहां ठीक करने चले जाते हैं, कहीं सड़क पर गड्ढे की ख़बर छप गई, तो उसे ठीक करने लगते हैं। दिक्कत सिस्टम की है, गवर्नेंस की है, उसे ठीक करना ज़रूरी है।"
भ्रष्टाचार की मार झेल रहा बेंगलुरू?
बेंगलुरू में दो साल से निकाय चुनाव नहीं हुए हैं, राज्य सरकार की ओर से नामित किए गए अधिकारी ही शहर का काम देख रहे हैं। इसलिए हमने शहर के हालात पर बीजेपी का पक्ष जानने की कोशिश की।
बेंगलुरू के पूर्व पुलिस कमिश्नर भास्कर राव इस बार बेंगलुरू की चमराजपेट सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वो कहते हैं कि उनकी सरकार ने लगातार शहर को बेहतर बनाने के लिए काम किया है।
उनके मुताबिक़ हाल के दिनों में मेट्रो के काम के कारण ट्रैफ़िक की स्थिति ख़राब हुई है, जिससे जल्द ही निपट लिया जाएगा। उनका कहना है कि बेंगलुरू की मिट्टी उत्तर के शहरों से अलग है, इसलिए मेट्रो का काम धीरे चल रहा है।
कई लोगों का कहना है कि शहर में इंफ्रास्ट्रक्चर के ख़राब होने के पीछे भ्रष्टाचार है। शहर की सड़कों पर पिछले पांच सालों में 20,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए लेकिन हालात नहीं सुधरे। ड्रेनेज सिसस्टम को बेहतर बनाने के लिए काम नहीं किए गए और निचले इलाकों में अवैध निर्माण नहीं रोके गए, इसलिए बाढ की स्थिति बनती है।
हालांकि राव भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार करते हैं। वो कहते हैं, "भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने चाहिए, सिर्फ़ आरोप लगाने से कुछ नहीं होगा।"
वो कहते हैं, "सिर्फ़ सड़क और पानी इन्फ्रास्टक्चर नहीं है, यहां की कानून व्यवस्था, शिक्षा, सरकार द्वारा बनाए गए अच्छे क़ानून, ये सब भी इन्फ्रास्टक्चर है, पानी, बिजली, ट्रैफ़िक की समस्या का समाधान निकाला जा सकता है, लेकिन ये उससे महत्वपूर्ण चीज़ें है। अगर आप कहते हैं कि इन्फ्रास्टक्चर ख़राब है, तो लोग क्यों आते हैं यहां, बिहार या यूपी क्यों नहीं जाते?"
पीएम ने कहा- पिछली सरकारों ने नहीं किया काम
कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरू में मेट्रो रेल की एक लाइन का उद्घाटन किया। इसे 4250 करोड़ की लागत से बनाया गया है। कुछ इलाकों में मेट्रो के आने से हालात सुधरे भी हैं, लेकिन अभी प्रोजेक्ट को पूरा होने में कुछ साल और लगेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बेंगलुरू के विकास और यहां के लोगों के सपनों को पूरा करने के लिए "डबल इंजन की सरकार" लगातार काम कर रही है। उन्होंने शहर की ख़राब हालत के लिए पिछली सरकारों के रवैये को ज़िम्मेदार ठहराया।
सरकार के दावों पर एक नज़र-
सड़कों पर 5 साल में खर्च किए गए 20 हज़ार करोड़
पानी की समस्या से निपटने के लिए 67 तालाबों के लिए 200 करोड़ देने का प्रावधान
बाढ़ से बचने के लिए नया मास्टर प्लान बनाने का एलान
स्टार्म वॉटर ड्रेन के लिए 300 करोड़ देने का एलान
बाढ़ प्रभावित सड़कों के लिए 300 करोड़ देने का एलान
मेट्रो के लिए 13 हज़ार करोड़ रूपए दिए
सैटेलाइट टाउन के लिए 15 हज़ार करोड़ दिए
लोगों को हैं बहुत उम्मीदें...
राजनीतिक आरोपों और शहर के बिगड़ते हालात के बीच, एक चीज़ है जो अभी ख़त्म नहीं हुई है - उम्मीद।
इसी शहर में पली बढ़ीं तेजस्विनी राज एक स्टार्टअप चलाती हैं, उनका कहना है कि बेंगलुरू से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं, शायद इसीलिए यहां की परेशानियां ज़्यादा ख़बरें बनाती हैं।
वो कहती है, "किसी भी दूसरे शहर की तरह ही यहां मकानों की दिक्क़त हैं, या ट्रैफ़िक है, लेकिन इस शहर में एक अलग एनर्जी है। मौसम अभी भी बहुत अच्छा है और ये देश के सबसे अच्छे शहरों में से एक है।"
वो कहती हैं, "सिलिकॉन वैली बनने का इस शहर का सपना तो पूरा होकर रहेगा।"
आकाश और रमना जैसे लोग भी जो शहर के मौजूदा हाल से ख़फ़ा हैं, उनका भी कहना है कि अगर थोड़ा अधिक ध्यान दिया जाए तो बेंगलुरू को सिलिकॉन वैली बनने से कोई नहीं रोक सकता।
अकाश कहते हैं, "यहां का एक्साइटमेंट, पॉज़िटिविटी, एनर्जी बहुत गज़ब की है।"
रमना कहते हैं, "हमें थोड़ी सी कोशिश करनी है, बेसिक पर काम करना है, जीरो से सौ नहीं वन पर जाना है, हालात बेहतर होने लगेंगे।"
10 मई को होगा मतदान
पूरे कर्नाटक में 10 मई को वोट डाले जाएंगे। बेंगलुरू के लिए अगला चुनाव इसलिए भी अहम है, क्योंकि जिन लोगों से हमने बात की, उनमें से कई लोगों का मानना है कि अगर अगले पांच साल में शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर सही और जल्द फ़ैसले नहीं लिए गए, तो इसका सिलिकॉन वैली बनने का सपना चूर हो सकता है।
तीन दिन बेंगलुरू में रहने के बाद कुर्ग की तरफ़ बढ़ते हुए हम जैसे ही शहर से बाहर निकले, तो हाइवे की चौड़ी चिकनी सड़कों पर हमारी गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली।
कुर्ग तक पहुंचने तक हमें सिर्फ़ पुलिस नाकों पर ट्रैफ़िक मिला और हर चेकपाइंट पर सामान की चेकिंग के दौरान एक ही सवाल पूछा गया, "गाड़ी में कैश तो नहीं है?"