#UnseenKashmir: 'तुम पर फ़ायरिंग होती तो तुम पत्थर नहीं मारती?'

बुधवार, 7 जून 2017 (10:38 IST)
प्रिय सौम्या
कैसी हो तुम? मैं अच्छी हूं और अल्लाह की दुआ से मेरा परिवार भी अच्छा है, बल्कि मस्त है! तुम्हारा परिवार कैसा है? और समर्थ?
 
सच बताऊं तो मुझे तुमसे जलन हो रही है कि तुम्हारे कुछ रिश्तेदार गांव में रहते हैं जहां तुम छुट्टियां बिताने जा सकती हो, कुछ नया सीख सकती हो (मैंने सुना है कि गांव की ज़िंदगी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है)। मेरा तो सारा परिवार श्रीनगर से ही है। हमारा पुश्तैनी घर डल झील के पास बुख़वान बुलेवार्ड में है। और नानी की तरफ़ से रैनावाड़ी नाम की जगह पर है। तो मुझे गांव की ज़िंदगी अनुभव करने का मौका ही नहीं मिला।
 
अपनी चिट्ठी में तुमने पत्थरबाज़ लड़कियों के बारे में पूछा था। बाहर के लोगों को ऐसा लग सकता है कि ये लड़कियां बिना बात के पत्थर फेंक रही हैं। पर इसके पीछे एक कहानी है। वो कहानी बताने से पहले मैं तुमसे पूछना चाहती हूं कि तुम्हारे यहां क्या लड़कियां पेपर स्प्रे या वैसा ही कुछ जो खुद को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, रखती हैं?
 
मुझे यक़ीन है कि दिल्ली की लड़कियां अपने बैग में ऐसा कुछ रखती होंगी। पर इन लड़कियों ने ऐसा कुछ नहीं रखा था।
 
अब कहानी सुनो...
एक जानीमानी फ़ुटब़ॉल कोच ग्राउंड पर कुछ लड़कियों को सिखा रही थीं। पहले दिन सब आराम से चल रहा था, कुछ नहीं हुआ। पर दूसरे दिन जब वो प्रैक्टिस कर रही थीं, पता नहीं किस वजह से अचानक सेना ने उन पर फ़ायरिंग शुरू कर दी।
ज़ाहिर है लड़कियां घबरा गईं और भागकर छिपने की कोशिश करने लगीं। जान बचाने के लिए वो जो भी कर सकती थीं।
 
फिर कोच ने दिमाग लड़ाया और पास पड़े पत्थर उठाकर मारने शुरू कर दिए। जल्दी ही लड़कियां भी साथ हो लीं। ये है पत्थरबाज़ लड़कियों की कहानी। अब अगर तुम कहानी समझ गई हो तो ये भी समझोगी कि पत्थर फेंकना सिर्फ़ खुद को बचाने के लिए था। अगर तुम ऐसे हालात में फंस जाती तो क्या करती? प्लीज़ मेरे सवाल का जवाब देना। मैं जानना चाहती हूं।
 
तुमने स्कूल-कॉलेज के बंद होने और इंटरनेट पर रोक लगाए जाने के बारे में भी पूछा था। जब स्कूल बंद हो जाते हैं, तो हम स्टूडेंट्स को पूरा कोर्स खुद ख़त्म करना पड़ता है। और अगर स्कूलों के बंद किए जाने के व़क्त ही इंटरनेट पर रोक लग जाए तो ये बहुत बड़ा सरदर्द बना जाता है।
 
क्या तुम सोच सकती है, घर की चारदीवारी में बिना इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सऐप, इन्स्टाग्राम वगैरह के रहना। इंटरनेट पर रोक होने की वजह से हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल ही नहीं कर पाते। इस व़क्त तो सारे सोशल मीडिया पर बैन है। पर लोग फिर भी उनका थोड़ा इस्तेमाल कर पा रहे हैं वीपीएन के ज़रिए। पर दोस्तों से संपर्क में रहना बहुत मुश्किल है। हम सिर्फ़ उनसे फ़ोन पर बात कर सकते हैं। और कई बार तो वो भी नहीं क्योंकि फोन सेवाएं पर भी रोक लगा दी जाती है।
 
वैसे तो हम सब इंटरनेट के दौर में, 21वीं सदी में रह रहे हैं पर कई बार मुझे लगता है कि मैं 17वीं सदी में रह रही हूं।
ये सब बुनियादी चीज़ों पर जब रोक लगती है तो मुझे बहुत गुस्सा आता है, क्योंकि हर इंसान को जानकारी रखने का हक़ है और जब इंटरनेट बंद किया जाता है तो हमसे वो हक़ छीन लिया जाता है।
 
ख़ैर, मैं जानना चाहती हूं कि दिल्ली की ज़िंदगी कैसी है? क्यो वो बोरिंग है, बिज़ी है या मस्त?
तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में।
अगली बार तक
तुम्हारी दोस्त
दुआ
 
पी.एस. - मैं प्रेज़ेनटेशन कॉनवेंट में पढ़ती हूं, जो यहां का लड़कियों का हायर सेकेंड्री स्कूल है। इसलिए लड़कों से ज़्यादा मिलना-जुलना नहीं होता। ऐसा नहीं है कि लड़कियां और लड़के यहां अलग रहते हैं। वादी में कई को-एजुकेश्नल स्कूल-कॉलेज हैं। मेरा स्कूल भी था - क़रीब 40 साल पहले तक। फिर वो लड़कियों का स्कूल बन गया और हमारा ही एक और स्कूल - बर्न हॉल - सिर्फ़ लड़कों के लिए बनाया गया।
 
क्या आपने कभी सोचा है कि दशकों से तनाव और हिंसा का केंद्र रही कश्मीर घाटी में बड़ी हो रहीं लड़कियों और बाक़ि भारत में रहने वाली लड़कियों की ज़िंदगी कितनी एक जैसी और कितनी अलग होगी? यही समझने के लिए हमने वादी में रह रही दुआ और दिल्ली में रह रही सौम्या को एक दूसरे से ख़त लिखने को कहा।
 
सौम्या और दुआ कभी एक दूसरे से नहीं मिले। उन्होंने एक-दूसरे की ज़िंदगी को पिछले डेढ़ महीने में इन ख़तों से ही जाना। आप श्रीनगर से दुआ का पहला ख़त , उसपर सौम्या का जवाब, दुआ का दूसरा ख़त और उस पर सौम्या का जवाब पढ़ चुके हैं, ये श्रीनगर से दुआ का तीसरा ख़त था।
 
(रिपोर्टर/प्रोड्यूसर - बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य)

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