ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में जानिए 10 बातें

Webdunia
बुधवार, 11 मार्च 2020 (07:24 IST)
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
कांग्रेस पार्टी महासचिव और युवा नेताओं में एक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ठीक होली के दिन पहले पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया, जिसके बाद वहां की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरा गए हैं। उनके साथ कांग्रेस के क़रीब 19 विधायकों ने भी अपने इस्तीफ़े दे दिए हैं।
 
इधर कांग्रेस ने तुरंत प्रभाव से ज्योतिरादित्य को पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया है। इसके बाद अब उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज़ हो गई हैं। इससे पहले मंगलवार को ज्योतिरादित्य ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की थी।
 
ज्योतिरादित्य बीते 18 सालों से कांग्रेस के साथ रहे हैं। उनके पिता माधवराव सिंधिया भी पार्टी के आला नेताओं में शुमार किए जाते थे। पढ़िए ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में 10 बातें
 
1- पारिवारिक विरासत
30 सितंबर 2001 को ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की उत्तर प्रदेश में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। वे मध्य प्रदेश की गुना सीट से सांसद थे। 1971 के बाद होने वाला कोई भी चुनाव वो नहीं हारे। वे गुना से नौ बार सांसद चुने गए।
 
1971 में उन्होंने जन संघ के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इसके बाद इमर्जेंसी के बाद साल 1977 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। उनकी मां किरण राज्य लक्ष्मी देवी नेपाल राजपरिवार की सदस्य थीं। ज्योतिरादित्य की शादी मराठा वंश के गायकवाड़ घराने में हुई है।
 
2- राजनीति में शुरुआत
2001 में पिता माधवराव के निधन के तीन महीने बाद ज्योतिरादित्य कांग्रेस में शामिल हो गए और इसके अगले साल उन्होंने गुना से चुनाव लड़ा जहाँ की सीट उनके पिता के निधन से ख़ाली हो गई थी। वो भारी बहुमत से जीते। 2002 की जीत के बाद वो 2004, 2009 और 2014 में भी सांसद निर्वाचित हुए।
 
मगर 2019 के चुनाव में वे अपने ही एक पूर्व निजी सचिव केपीएस यादव से हार गए। केपीएस यादव ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस हार से वो काफ़ी व्यथित हुए।
 
3- अमीर राजनेता
 
सिंधिया परिवार मध्य प्रदेश के शाही ग्वालियर घराने से आता है और उनके दादा जीवाजी राव सिंधिया इस राजघराने के अंतिम राजा थे।
 
ज्योतिरादित्य केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों (2004-2014) में मंत्री रहे। 2007 में उन्हें संचार और सूचना तकनीक मामलों का मंत्री बनाया गया, 2009 में वे वाणिज्य व उद्योग मामलों के राज्य मंत्री बने और 2014 में वे ऊर्जा मंत्री बने। उनकी छवि एक ऐसे मंत्री की थी जो सख़्त फ़ैसले लेता था। वे यूपीए सरकार में एक युवा चेहरा भी थे।
 
सिंधिया देश के सबसे अमीर राजनेताओं में गिने जाते हैं जिनकी संपत्ति 25,000 करोड़ रुपए आंकी जाती है जो उन्हें विरासत में मिली। उन्होंने इस संपत्ति का स्रोत क़ानूनी उत्तराधिकार बताया है जिसे उनके परिवार के दूसरे सदस्यों ने अदालत में चुनौती दी है।
 
4- विवाद
 
2012 में सिंधिया एक विवाद में फँसे जब वो ऊर्जा राज्य मंत्री थे। उस साल पावर ग्रिड ठप्प हो जाने से देश भर में बिजली की अभूतपूर्व क़िल्लत हो गई।
 
इसके अलावा उनके मंत्रालय में कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ, मगर पूरे देश में बिजली व्यवस्था के चरमराने से यूपीए की सहयोगी पार्टियों ने उनकी आलोचना की और अंतरराष्ट्रीय जगत में भी भारत की स्थिति को लेकर चिंता जताई जाने लगी।
 
5- क्रिकेट प्रेमी
 
क्रिकेट के शौक़ीन ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं। वे देश के क्रिकेट संघों के संचालन को लेकर नाख़ुश रहे हैं और ख़ास तौर से स्पॉट फ़िक्सिंग मामलों को लेकर उन्होंने अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी। उनकी आपत्तियों के बाद संजय जगदले को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सचिव पद से हटना पड़ा था।
 
6- लोक सभा चुनाव में हार
साल 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर की चर्चा हो रही थी उस वक्त कांग्रेस के कुछ ही नेता लोकसभा चुनाव जीते थे। उनमें से एक थे ज्योतिरादित्य सिंधिया थे जो गुना की सीट से जीते थे।
 
लेकिन लगातार चुनाव प्रचार के बाद भी 2019 लोकसभा चुनाव में वो इस सीट से हार गए। उनके मुक़ाबले में बीजेपी के टिकट पर कृष्णपाल सिंह यादव खड़े थे जो पहले उनके निजी सचिव रह चुके थे।
 
मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव के दौरान हुई रैलियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राहुल गांधी और कमल नाथ का भी साथ मिला था। जहां राहुल गांधी ने कमलनाथ को 'अनुभवी नेता' बताया था वहीं उन्होंने ज्योतिरादित्य को 'भविष्य का नेता' बताया था।
 
जानकार मानते हैं कि चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे थे लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा बड़ी थी और वो प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे।
 
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस आला कमान ने उनकी बात मान ली थी और उन्हें आधे से अधिक विधायकों का समर्थन साबित करने को कहा था। वो केवल 23 विधायकों का समर्थन ही साबित कर सके जिसके बाद प्रदेश का मुख्यमंत्री कमलनाथ को बनाया गया।
 
7- गांधी परिवार से नज़दीकी और उम्मीदों पर फिरा पानी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ ज्योतिरादित्य की नज़दीकी कई मौक़ों पर साफ़ दिखाई दी। 2014 के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद भी दोनों नेता कई बर साथ दिखे।
 
लेकिन मध्य प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उनके रिश्ते उतने मधुर नहीं रहे। वो पहले भी राज्य में सरकार के काम काज से नाराज़गी जता चुके हैं।
 
राजधानी भोपाल में मौजूद कांग्रेस पर नज़र रखने वाले एक जानकर बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए पार्टी आला कमान उनके नाम पर विचार कर रही थी। लेकिन पार्टी के भीतर कुछ वरिष्ठ नेता इससे सहमत नहीं हैं क्योंकि ज्योतिरादित्य का अधिक प्रभाव केवल चंबल इलाक़े में है, न कि पूरे राज्य में।
 
पार्टी के भीतर ये भी चर्चा रही है कि ज्योतिरादित्य चाहते थे कि मध्य प्रदेश से पार्टी उन्हें सांसद बना कर राज्यसभा में भेजे, लेकिन मध्यप्रदेश से दिग्विजय सिंह के बाद एक बार फिर उन्हीं को या फिर प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्यसभा के लिए नामित करने की बात होने लगी जिससे ज्योतिरादित्य की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
 
8- अपनी सरकार के ख़िलाफ़ उठाई आवाज़
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के ख़िलाफ़ ज्योतिरादित्य कई मुद्दों को लेकर लगातार बोलते रहे हैं।
 
फ़रवरी 13 को टीकमगढ़ में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था "2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपने मेनिफेस्टो में किसान क़र्ज़माफ़ी और किए गए दूसरे वादे अगर कांग्रेस पूरे नहीं करती है तो वो इसके ख़िलाफ़ सड़को पर उतरेंगे।" इसका उत्तर कमलनाथ ने ये कहते हुए दिया था कि "तो वो उतर जाएं..." लेकिन प्रदेश में पार्टी के नेताओं के बीच क्या कुछ चल रहा है इसे कांग्रेस आला कमान ने नज़रअंदाज़ किया।
 
9- इस्तीफ़ा
बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 9 मार्च को ही अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया था लेकिन ये इस्तीफ़ा मार्च 10 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से उनकी मुलाक़ात के बाद ही सार्वजनिक किया गया है। इनसे इस्तीफ़े पर भी 9 मार्च की तारीख़ लिखी हुई है।
 
ज्योतिरादित्य यही दावा करते रहे कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक ठाक है और बातचीत से मामला सुलझा लिया जाएगा लेकिन उनके क़रीबी महेंद्र सिंह सिसोदिया के बयान ने साफ़ कर दिया था कि पार्टी के भीतर कलह की जड़ें गहरी हैं।
 
सिसोदिया ने हाल में कहा था, "सरकार गिराई नहीं जाएगी लेकिन जिस दिन हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को नज़रअंदाज़ किया गया उस दिन ये सरकार बड़ी मुसीबत में फंस जाएगी।"
 
सिंधिया के इस्तीफ़ा देने से पहले उनके क़रीबी माने जाने वाले पार्टी के कम से कम 17 विधायकों को बेंगलुरु या गुरुग्राम ले जाया गया। इस घटना ने कमलनाथ सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा दीं।
 
10- राजनीतिक ड्रामा
इसके बीद अटकलें लगाई जाने लगीं कि कमलनाथ की सरकार में विधायकों के भीतर फूट पड़ गई है। मार्च की 9 तारीख़ को कमलनाथ ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाक़ात की लेकिन मध्य प्रदेश में सियासी हलचल तेज़ होने की ख़बर मिलने के बाद उन्हें आननफानन में प्रदेश लौटना पड़ा।
 
मार्च की 9 तारीख़ को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के आला नेताओं से मुलाक़ात की और प्रदेश में हो रही सियासी गतिविधियों की जानकारी दी।
 
इसके बाद कांग्रेस के प्रवक्ता केसी वेणुगोपाल ने बयान जारी कर कहा, "पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निकाल दिया गया है।" इसके बाद अब एक तरह से ज्योतिरादित्य के लिए बीजेपी का दामन थामने के रास्ते खुल गए हैं।
 
मीडिया में आ रही ख़बरों के अनुसार बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाने और कैबिनेट में भी अहम पद देने का वादा किया है। हालांकि बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सिंधिया के बारे में फ़ैसला पार्टी की संसदीय समिति और विधायकों की समिति की बैठक के बाद ही लिया जाएगा।

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