नेहरू-एडविना की नज़दीकी से जलने वाली महिला कौन थीं?

BBC Hindi

गुरुवार, 14 नवंबर 2019 (11:26 IST)
रेहान फ़ज़ल (बीबीसी संवाददाता)
 
जब नेहरू ने 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार में शामिल होने का फ़ैसला किया, तो उन्हें 17 यॉर्क रोड पर 4 बेडरूम का एक बंगला एलॉट किया गया, यॉर्क रोड को अब मोतीलाल नेहरू मार्ग के नाम से जाना जाता है।

वे उस घर से काफ़ी खुश थे लेकिन जब गांधी की हत्या हुई तो नेहरू की सुरक्षा बढ़ा दी गई और उनके घर के बाहर पुलिस के तंबू लगा दिए गए। हर तरफ़ से मांग उठने लगी कि नेहरू को किसी और घर में रहना चाहिए, जहां सुरक्षा व्यवस्था में कोई सेंध न लगा सके। लॉर्ड माउंटबेटन ने सलाह दी कि नेहरू को कमांडर-इन-चीफ़ के निवास पर शिफ़्ट कर जाना चाहिए। नेहरू इसके प्रति कोई ख़ास उत्साहित नहीं थे।
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सरदार पटेल ने उनसे कहा कि वो अभी तक इस दुख से नहीं उबर पाए हैं कि वो गांधी की सुरक्षा नहीं कर पाए। माउंटबेटन की पहल पर मंत्रिमंडल ने नेहरू के कमांडर-इन-चीफ़ के निवास में जाने पर मुहर लगा दी। नेहरू इस कदम से बहुत खुश नहीं थे। नेहरू के असिस्टेंट रहे एमओ मथाई अपनी किताब 'रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ नेहरू एज' में लिखते हैं, 'जब नेहरू इस घर में आए तो उन्होंने प्रधानमंत्री को मिलने वाला इंटरटेनमेंट 500 रुपए महीने का भत्ता लेने से इंकार कर दिया।'
 
'कुछ मंत्रियों ने जिसमें गोपालास्वामी अयंगार प्रमुख थे, सलाह दी कि प्रधानमंत्री का वेतन दूसरे मंत्रियों की तुलना में दोगुना होना चाहिए लेकिन नेहरू ने उसे स्वीकार नहीं किया।' 'आज़ादी के समय प्रधानमंत्री का वेतन 3000 रुपए प्रतिमाह तय किया गया था लेकिन नेहरू उसे पहले 2250 और फिर 2000 रुपए प्रतिमाह पर ले आए।'
नेहरू की दरियादिली
 
1946 के बाद से नेहरू अपनी जेब में हमेशा 200 रुपए रखते थे लेकिन जल्द ही ये पैसे समाप्त हो जाते थे, क्योंकि वो परेशानी में पड़े लोगों को पैसे बांट देते थे। मथाई कहते हैं कि मैंने नेहरू की जेब में 200 रुपए रखने पर रोक लगा दी लेकिन तब नेहरू ने उन्हें धमकी दी कि वो लोगों से उधार लेकर ज़रूरतमंद लोगों को पैसे देंगे।
 
मथाई लिखते हैं, 'मैंने आदेश जारी करवाया कि कोई भी अधिकारी नेहरू को दिन में 10 रुपए से अधिक उधार न दे। फिर मैंने नेहरू के सचिव के पास प्रधानमंत्री सहायता कोष से कुछ पैसे रखवाने शुरू कर दिए। नेहरू अपने ऊपर बहुत कम धन कर्च करते थे। यहां तक कि उन्हें 'कंजूस' भी कहा जा सकता था। लेकिन सैस ब्रूनर की गांधीजी पर बनाई गई एक पेंटिंग को ख़रीदने के लिए उन्होंने 5,000 रुपए ख़र्च करने में 1 सेकंड का भी समय नहीं लिया था।'
 
वे लिखते हैं, 'जब 27 मई, 1964 को नेहरू का निधन हुआ तो उनके पास उनका पुश्तैनी घर आनंद भवन था और उनके बैंक अकाउंट में सिर्फ़ उतने
पैसे थे कि वो हाउस टैक्स चुका पाएं।'
 
एडविना माउंटबेटन से नेहरू की नज़दीकी
 
लोग कहते हैं कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना पर नेहरू का दिल आ गया था लेकिन एडविना से पहले वायसराय वॉवेल की पत्नी लेडी यूगिनी वॉवेल भी नेहरू को दिलो-जान से चाहती थीं। वो चूंकि उम्र में बड़ी थी और शारीरिक रूप से उतनी आकर्षक नहीं थीं, इसलिए नेहरू और उनके बारे में उतनी अफ़वाहें नहीं फैलीं।
 
नेहरू वॉवेल के ज़माने में भी गवर्नमेंट हाउज़ के स्वीमिंग पूल में तैरने जाते थे लेकिन तब इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। लोगों का ध्यान इस तरफ़ तब गया, जब एडविना माउंटबेटन भी इस स्वीमिंग पूल में नेहरू के साथ तैरती देखी गईं।
 
नेहरू की एडविना के साथ क़रीबी तब शुरू हुई, जब माउंटबेटन दंपति भारत से इंग्लैंड वापस जाने की तैयारी कर रहे थे। माउंटबेटन के जीवनीकार फ़िलीप ज़ीगलर और 'फ़्रीडम एट मिडनाइट' के लेखक लैरी कोलिंस और डोमीनिक लापेयर ने इस बारे में खुलकर लिखा है।
 
नेहरू की जीवनी लिखने वाले एमजे अकबर लिखते हैं, इस बारे में सबसे सशक्त प्रमाण टाटा स्टील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहे रूसी मोदी ने उन्हें दिया था। 1949 से 1952 के बीच रूसी के पिता सर होमी मोदी उत्तरप्रदेश के राज्यपाल हुआ करते थे। नेहरू नैनीताल आए हुए थे और राज्यपाल मोदी के साथ ठहरे हुए थे।
 
जब रात के 8 बजे तो सर मोदी ने अपने बेटे से कहा कि वो नेहरू के शयन कक्ष में जाकर उन्हें बताएं कि मेज़ पर खाना लग चुका है और सबको आपका इंतज़ार है। अकबर लिखते हैं, 'जब रूसी मोदी ने नेहरू के शयन कक्ष का दरवाज़ा खोला तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एडविना को अपनी बाहों में भरा हुआ था। नेहरू की आंखें मोदी से मिलीं और उन्होंने अजीब-सा मुंह बनाया। मोदी ने झटपट दरवाज़ा बंद किया और बाहर आ गए। थोड़ी देर बाद पहले नेहरू खाने की मेज़ पर पहुंचे और उनके पीछे-पीछे एडविना भी वहां पहुंच गईं।'
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एडविना के 'जवाहा'
 
नेहरू के एक और जीवनीकार स्टैनली वॉलपर्ट लिखते हैं कि उन्होंने एक बार नेहरू और एडविना को ललित कला अकादमी के उद्घाटन समारोह में देखा था। वॉल्पर्ट लिखते हैं, 'मुझे ये देखकर आश्चर्य हुआ था कि नेहरू को सबके सामने एडविना को छूने, उनका हाथ पकड़ने और उनके कान में फुसफुसाने से कोई परहेज़ नहीं था।
 
माउंटबेटन के नाती लॉर्ड रेम्सी ने एक बार मुझसे कहा था कि उन दोनों के बीच महज़ अच्छी दोस्ती थी, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन खुद लॉर्ड माउंटबेटन एडविना को लिखी नेहरू की चिट्ठियों को 'प्रेमपत्र' कहा करते थे। उनसे ज़्यादा किसी को ये अंदाज़ा नहीं था कि एडविना किस हद तक अपने 'जवाहा' को चाहती थीं।'
 
आख़िरी समय भी नेहरू के पत्र साथ थे एडविना के
 
21 मार्च, 1949 को जब जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए तो हीथ्रो हवाई अड्डे पर उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने उनका स्वागत किया और अपनी रोल्स रोइस में बैठाकर एडविना माउंटबेटन के घर ले गए। ओपी रल्हन अपनी किताब 'जवाहरलाल नेहरू एब्रॉड -अ क्रोनोलॉजिकल स्टडी' में लिखते हैं, 'अगले दिन नेहरू ने जॉर्ज पंचम के साथ दिन का भोजन किया और दोपहर बाद प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली से मिले। फिर एडविना उन्हें अपनी कार में बैठाकर अपने घर 'ब्रॉडलैंड्स' ले गईं, जहां उन्होंने सप्ताहांत बिताया।'
 
नेहरू के असिस्टेंट मथाई को भी इस बारे में चिंता होने लगी, जब उन्होंने ग़लती से एडविना माउंटबेटन का अपने 'डार्लिंग जवाहा' को लिखा एक पत्र पढ़ लिया। एडविना माउंटबेटन की जीवनी 'एडविना माउंटबेटन अ लाइफ़ ऑफ़ हर ओन' लिखने वाली जेनेट मॉर्गन लिखती हैं, '5 फ़रवरी, 1960 को एडविना का बोर्नियो में गहरी नींद में ही निधन हो गया। सोने से पहले वो नेहरू के पत्रों को दोबारा पढ़ रही थीं, जो उनके हाथ से छिटककर ज़मीन पर गिरे पाए गए थे।'
 
मृदुला साराभाई से नेहरू की क़रीबी
 
1936 में उनकी पत्नी कमला नेहरू के देहांत के बाद नेहरू कई महिलाओं के संपर्क में आए। उनमें से एक थीं अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की बहन मृदुला साराभाई। 1911 में जन्मीं मृदुला साराभाई अपनी आत्मकथा 'द वॉएस ऑफ़ द हार्ट' में लिखती है कि उनकी नेहरू से पहली मुलाक़ात चेन्नई में हुई थी, जब वो उनके घर खाना खाने आए थे।
 
मृदुला ने अपने बाल कटवा दिए थे। वो न तो कोई मेकअप इस्तेमाल करती थीं और न ही कोई ज़ेवर पहनती थीं। 1946 में नेहरू ने उन्हें कांग्रेस का महासचिव बनाया था। उनका नेहरू 'फ़िक्सेशन' इस हद तक था कि जब भी नेहरू राज्यों के दौरों पर जाते थे, वो मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर उनके सुरक्षा इंतज़ामों के बारे में निर्देश दिया करती थीं।
 
पद्मजा नायडू से भी अंतरंग संबंध थे नेहरू के
 
भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू से भी नेहरू की नज़दीकी रही थी। उनका जन्म वर्ष 1900 में हुआ था। 2 मार्च, 1938 को पद्मजा को लखनऊ से लिखे एक पत्र में नेहरू ने लिखा था, 'तुमको देखकर अच्छा लगा। और कमसिन होती जाओ ताकि जो लोग जो बूढ़े हो रहे हों, उनकी भरपाई कर सको।'
 
पद्मजा को भेजे एक टेलीग्राम के उत्तर में नेहरू ने लिखा, 'तुम्हारा टेलीग्राम मिला। कितना बेवकूफ़ीभरा और बिलकुल औरतों जैसा! शायद ये सुभाष के साथ प्यार करने का प्रायश्चित है' (सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू वॉल्यूम 13)। मशहूर पत्रकार एमजे अकबर नेहरू की जीवनी में लिखते हैं, 'भारतीय आज़ादी के दो प्रौढ़ हीरो राजनीति के अलावा दूसरी चीज़ों में भी प्रतिद्वंद्विता कर रहे थे।'
पद्मजा की एडविना से जलन
 
18 नवंबर, 1937 को लिखे एक और पत्र में नेहरू ने पद्मजा से पूछा था 'तुम्हारी उम्र क्या है? 20? शायद नेहरू मज़ाक कर रहे थे, क्योंकि पद्मजा सन् 1900 में पैदा हुई थीं और उस समय उनकी उम्र 37 साल की थी। उन्होंने एक और पत्र में पद्मजा को सलाह दी थी कि वो उनको लिखे गए पत्र के लिफ़ाफ़े पर गोपनीय लिख दिया करें ताकि उनके सचिव उन पत्रों को न खोलें।
 
नेहरू के सचिव एमओ मथाई अपनी किताब 'रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ द नेहरू एज़' में लिखते हैं, 'पद्मजा जब भी नेहरू के इलाहाबाद वाले घर आनंद भवन या दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में आती थी तो नेहरू के बग़ल वाले कमरे में ठहरने के लिए ज़ोर देती थीं।'
 
वे लिखते हैं, 'वो हमेशा लो कट ब्लाउज़ पहनती थीं। एक बार जब उन्होंने नेहरू के शयन कक्ष में लेडी माउंटबेटन की दो तस्वीरें देखीं तो वो उसे बर्दाश्त नहीं कर पाईं। उन्होंने भी उस कमरे के फ़ायर प्लेस के ऊपर उस जगह पर अपनी पेंटिंग लगवा दी, जहां हर समय लेटे हुए नेहरू की नज़र उस पर पड़ती रहे। लेकिन जैसे ही पद्मजा गईं, नेहरू ने वो पेंटिंग उतरवाकर स्टोर में रखवा दी।'
 
मथाई एक और घटना का ज़िक्र करते हैं, जब एक बार नेहरू एडविना को लेकर उनकी मां सरोजिनी नायडू के लखनऊ निवास पहुंच गए थे। उस समय नायडू उत्तरप्रदेश की राज्यपाल थीं और लखनऊ के राजभवन में रह रही थीं। मथाई अपनी किताब रेमिनेंसेज़ ऑफ़ नेहरू एज में लिखते हैं, 'पद्मजा को इससे इतनी जलन हुई कि उन्होंने अपने-आपको एक कमरे में बंद कर लिया और एडविना से मिलने से साफ़ इंकार कर दिया। बाद में नेहरू ने पद्मजा को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया, जहां एक दशक से अधिक समय तक वो इस पद पर रहीं।'
 
श्रद्धा माता और नेहरू
 
मथाई ने अपनी किताब में वाराणसी की एक और सुंदर महिला का ज़िक्र किया, जो अपने आपको संन्यासिन और श्रद्धा माता कहती थीं। मथाई का आरोप है कि इस महिला ने 1948 में नेहरू को लुभाया।
 
1979 में मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह को 'न्यू डेल्ही' पत्रिका के लिए दिए गए इंटरव्यू में श्रद्धा माता ने नेहरू के साथ किसी भी तरह के यौन संबंधों का ज़ोरदार खंडन किया लेकिन ये ज़रूर स्वीकार किया कि नेहरू से उसकी मुलाक़ातें होती रही थीं और वो उनसे बहुत प्रभावित भी थे।
 
उन्होंने ये भी माना कि अगर नेहरू के मन में कभी भी पुनर्विवाह की बात आई होती तो उन्होंने उनसे शादी कर ली होती।
 
एयरकंडीशनर्स से चिढ़
 
नेहरू को एयरकंडीशनर्स से बहुत चिढ़ थी। वो न तो उसे अपने शयन कक्ष में इस्तेमाल करते थे और न ही अपने दफ़्तर में। गर्मी के दौरान वो रात में बरामदे में सोना पसंद करते थे। वजह थी कि उनको मिट्टी की सुगंध पसंद थी। गर्मियों में ज़रूर नेहरू की स्टडी में एयरकंडीशनर का इस्तेमाल होता था, जहां वो देर रात तक काम किया करते थे।
 
मथाई लिखते हैं कि, 'एक बार जब वो विदेश गए तो मैंने उनके शयन कक्ष में एयरकंडीशनर लगवा दिया लेकिन उन्होंने खुद उसका कभी इस्तेमाल नहीं किया।' वे लिखते हैं, 'दोपहर में उनके घर खाना खाने आने से 2 घंटे पहले हम एयरकंडीशनर चलवा देते थे। जैसे ही उनकी कार गेट पर पहुंचती थी, एयरकंडीशनर बंद कर दिया जाता था। दिन के भोजन के बाद वो कुछ देर तक अपने शयन कक्ष में आराम करते थे लेकिन इस दौरान एयर कंडीशनर हमेशा बंद रहता था।'
 
हाथी दांत के टिप वाला डंडा
 
नेहरू को अक्सर हाथी के दांत के टिप वाला चंदन की लकड़ी का एक डंडा अपने हाथ में लिए हुए देखा जाता था। एक बार जब उनसे इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं अपनी 'नर्वसनेस' पर नियंत्रण करने के लिए इस डंडे का इस्तेमाल करता हूं। उनको काम करते हुए हमेशा किसी चीज़ को पकड़ने की आदत थी। एक बार उन्होंने कहा भी था कि अगर उनके पास डंडा नहीं होगा तो वो रूमाल को रोलकर उसे अपनी मुट्ठी में ज़ोर से पकड़ लेंगे।
 
उनका किसी शख़्स से स्नेह दिखाने का तरीका हुआ करता कि वो उसे अपनी इस्तेमाल की हुई कोई चीज़ दे दिया करते थे। उन्होंने कितने ही लोगों को अपनी इस्तेमाल की हुई टोपी, कमीज़, चप्पलें और जूते भेंट किए। लाल बहादुर शास्त्री को एक बार उन्होंने अपना इस्तेमाल किया हुआ गर्म ओवरकोट दिया था। ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ां से मुलाकात के समय शास्त्री ने वही ओवरकोट पहना हुआ था।
 
दिलों के बादशाह
 
नेहरू के पुराने दर्ज़ी उमर ने एक बार उनसे फरमाइश की कि वो उन्हें एक सर्टिफ़िकेट दे दें। नेहरू जानते थे कि उमर ने ईरान के शाह और सऊदी अरब के बादशाह के कपड़े सिले थे। इन शाहों ने भी उन्हें प्रशंसा पत्र दिए थे।
 
मोहम्मद यूनुस अपनी किताब 'पर्सन्स, पैशंस एंड पॉलिटिक्स' में लिखते हैं, नेहरू ने अपने दर्ज़ी से मज़ाक किया, 'आपको मेरे सर्टिफ़िकेट की क्या ज़रूरत? आपको तो बादशाहों से सर्टिफ़िकेट मिल चुके हैं।'
 
दर्ज़ी ने कहा 'लेकिन आप भी तो बादशाह हैं।'
 
नेहरू बोले 'मुझे बादशाह मत कहिए। बादशाह वो लोग होते हैं, जो लोगों के सिर कटवा देते हैं।'
 
उमर ने तब एक ज़बरदस्त पंचलाइन बोली, 'वो तो तख़्त पर बैठने वाले बादशाह हैं। आप तो दिलों के बादशाह हैं। आपका उनसे क्या मुक़ाबला!'

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