लोकसभा चुनाव 2019: मोदी सरकार की नोटबंदी से फायदा या नुकसान

Webdunia
मंगलवार, 5 मार्च 2019 (11:04 IST)
शादाब नजमी
नवंबर, 2016 में भारत सरकार ने 85 फीसदी मूल्य के नोटों को चलन से हटाने का फ़ैसला रातोंरात लिया। 500 और 1000 रुपए के नोटों को अवैध करार कर दिया गया।
 
भारत सरकार की ओर से कहा गया कि इस फैसले से लोगों की अघोषित संपत्ति सामने आएगी और इससे जाली नोटों का चलन भी रुकेगा। ये भी कहा गया कि इस फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी पर निर्भरता कम होगी। इस फैसले के नतीजे मिले जुले साबित हुए।
 
नोटबंदी से अघोषित संपत्तियों के सामने आने के सबूत नहीं के बराबर मिले हैं हालांकि इस कदम से टैक्स संग्रह की स्थिति बेहतर होने में मदद मिली है। नोटबंदी से डिजिटल लेनदेन भी बढ़ा है लेकिन लोगों के पास नकद रिकार्ड स्तर तक पहुंच गया है।
 
नोटबंदी का फैसला चौंकाने वाला था और जब इसे लागू किया गया तो काफी भ्रम की स्थिति भी देखने को मिली थी। जब ये फैसला लिया गया तब सीमित अवधि तक प्रत्येक शख्स को 4000 रुपए तक के प्रतिबंधित नोटों को बैंकों में बदलने की सुविधा थी।
 
नोटबंदी के आलोचकों के मुताबिक इस फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। नकदी पर निर्भर रहने वाले गरीब और ग्रामीण लोगों का जन-जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ।
 
सरकार ने कहा था कि वह अर्थव्यवस्था से बाहर गैर कानूनी ढंग से रखे धन को निशाना बना रही थी क्योंकि इस धन से भ्रष्टाचार और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ती हैं। टैक्स बचाने के लिए ही लोग इस पैसे की जानकारी छुपाते थे। अनुमान ये था कि जिनके पास बड़ी संख्या में गैरकानूनी ढंग से जुटाए गए नकदी हैं उनके लिए इसे कानूनी तौर पर बदलवा पाना संभव नहीं होगा।
 
भारतीय रिजर्व बैंक की अगस्त, 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बैन किए नोटों का 99 फ़ीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया है। इस रिपोर्ट पर लोग चौंके भी और इसके बाद नोटबंदी की आलोचना भी तेज हुई।
 
इससे ये संकेत मिला कि लोगों के पास जिस गैर कानूनी संपत्ति की बात कही जा रही थी, वो सच नहीं था और अगर सच था तो लोगों ने अपनी गैरकानूनी संपत्ति को कानूनी बनाने का रास्ता निकाल लिया।
 
क्या ज्यादा टैक्स संग्रह किया गया : बीते साल की एक आधिकारिक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के फैसले के बाद टैक्स संग्रह की स्थिति बेहतर हुई है क्योंकि टैक्स जमा कराने वालों की संख्या बढ़ी है।
 
वास्तविकता यह है कि नोटबंदी के फैसले से दो साल पहले कर संग्रह की वृद्धि दर ईकाई अंकों में थी। लेकिन 2016-17 में प्रत्यक्ष कर संग्रह में पिछले साल की तुलना में 14.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
 
इसके अगले साल कर संग्रह में 18 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। भारतीय आयकर विभाग ने प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि की वजह नोटबंदी को बताया है। इस फैसले के चलते अधिकारी कर चुकाने लायक संपत्तिधारकों की पहचान कर सके और उन्हें कर भुगतान के दायरे में लाने में कामयाब हुए।
 
हालांकि 2008-09 और 2010-11 के दौरान भी प्रत्यक्ष कर संग्रह में इसी तरह की वृद्धि देखने को मिली थी, तब कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी।
 
ऐसे में कुछ विश्लेषणों से ज़ाहिर होता है कि सरकार की कुछ दूसरी नीतियों- मसलन 2016 में आयकर माफी और इसके अगले साल नई गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू करना भी नोटबंदी की तरह कर संग्रह वृद्धि में सहायक साबित हुआ।
 
जाली नोटों पर असर : एक सवाल ये भी है कि नोटबंदी से जाली नोटों पर अंकुश लग पाया?
 
भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक ऐसा नहीं हुआ है। नोटबंदी के फ़ैसले के बाद तब के पिछले साल की तुलना में 500 और 1000 रुपए के जाली नोट कहीं ज्यादा संख्या में बरामद हुए।
 
पहले भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से कहा गया था कि बाज़ार में पांच सौ और दो हज़ार रुपये के नए नोट जारी किए गए हैं, उनकी नकल कर पाना मुश्किल होगा, लेकिन भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इन नोटों का भी नकल संभव है और नए नोटों की नकल किए गए जाली नोट बरामद भी हुए हैं।
 
कैशलेस हुई अर्थव्यवस्था? : नोटबंदी के फैसले के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था डिजिटल होने की ओर ज़रूर अग्रसर हुई लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़े इस बात की ठोस तस्दीक नहीं करते।
 
लंबे समय से कैशलेस पेमेंट में धीरे धीरे बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही थी, लेकिन 2016 के अंत में जब नोटबंदी का फ़ैसला लिया गया था तब इसमें एक उछाल देखने को मिला था। लेकिन इसके बाद फिर ये ट्रेंड अपने पुरानी रफ्तार में लौट आया। इतना ही नहीं, समय के साथ कैशलेस पेमेंट में बढ़ोत्तरी की वजह नोटबंदी कम है और आधुनिक तकनीक और कैशलेस पेमेंट की बेहतर होती सुविधा ज्यादा है।
 
इसके अलावा, नोटबंदी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी नोटों का मूल्य कम हो गया था। इसका असर भारतीय मुद्रा और जीडीपी के अनुपात पर भी देखने को मिला।
 
यह एक तरह से चलन में रहने वाली मुद्राओं के कुल मूल्य और पूरी अर्थव्यवस्था का अनुपात होता है। जब 500 और 1000 रुपए के नोट हटाए गए थे तब ये अनुपात तेजी से कम हो गया था लेकिन एक साल के अंदर ही चलन में आई मुद्राओं के चलते 2016 से पहले का अनुपातिक स्तर हासिल हो गया।
 
बहरहाल, नकदी का इस्तेमाल कम नहीं हुआ है और तेजी से बढ़ रही दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में आज भी भारत में सबसे ज़्यादा नकदी का इस्तेमाल हो रहा है।
 

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