महाराष्ट्र: अनिल देशमुख बने उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल

BBC Hindi

रविवार, 21 मार्च 2021 (08:27 IST)
रोहन नामजोशी, बीबीसी संवाददाता
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के विस्फोटक पत्र के बाद राजनीतिक विश्लेषकों को महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख का राजनीतिक करियर ख़तरे में लगने लगा है। परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि गृह मंत्री अनिल देशमुख ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हर महीने सौ करोड़ रुपए की उगाही का टार्गेट दिया था।
 
70 साल के अनिल देशमुख महाराष्ट्र की राजनीति के ऐसे चुनिंदा नेताओं में से हैं जिन्होंने हर पार्टी की सरकार में अपनी जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बनी पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के पाँच साल के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो देशमुख 1995 के बाद से लगातार मंत्री रहे हैं।
 
अनिल देशमुख महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से आते हैं। वो नागपुर ज़िले के कटोल के पास वाडविहिरा गाँव के हैं। उन्होंने साल 1995 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर विधायकी का चुनाव लड़ा और जीता। तब उन्होंने शिवसेना बीजेपी सरकार का समर्थन किया और बदले में मंत्रीपद लिया। बाद में अपना रास्ता अलग कर वो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ हो लिए।
 
उद्धव सरकार में अनिल देशमुख गृह मंत्री कैसे बने
अनिल देशमुख राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार के क़रीबी माने जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी बताते है, "अनिल देशमुख शरद पवार से बिना पूछे कोई भी निर्णय नही लेते हैं। इसी के चलते गृह मंत्रालय पर शरद पवार का वर्चस्व बना रहा।"

जब कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ महागठबंधन कर उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाई तो कई मंत्री पद पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं के हिस्से चले गए। अनिल देशमुख विदर्भ से आते है। विश्लेषक मानते हैं कि इस इलाक़े में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विस्तार के मक़सद से ही उन्हें गृह मंत्री का पद दिलवाया गया।
 
अनिल देशमुख कौन हैं?
महाराष्ट्र के नागपुर में पले बढ़े अनिल देशमुख ने 1970 के दशक में ही राजनीति में क़दम रख दिया था। पहली बार 1992 में ज़िला परिषद के चुनाव से उन्होंने चुनावी राजनीति में क़दम रखा। वो ज़िला परिषद का चुनाव जीत गए थे। यहीं से उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी।
 
अपनी बढ़ती लोकप्रियता के दम पर उन्होंने साल 1995 में कांग्रेस पार्टी से टिकट मांगा लेकिन जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते भी। शिवसेना बीजेपी की गठबंधन सरकार का समर्थन कर 1995 में वो स्कूली शिक्षा विभाग और सांस्कृतिक विभाग के मंत्री बन गए।
 
1999 में शरद पवार ने जब कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया तो महाराष्ट्र के कई बड़े नेताओं के साथ अनिल देशमुख भी पार्टी से जुड़ गए। 1999 में वो एनसीपी के टिकट फिर एक बार चुनाव जीते। साल 2004 में तीसरी बार काटोल से जीतकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगा दी।
 
अनिल देशमुख साल 2014-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना सरकार को छोड़कर 1995 के बाद से महाराष्ट्र की हर सरकार में मंत्री रहे हैं। उन्होंने स्कूली शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, आबकारी विभाग और गृह मंत्रालय तक संभाले हैं।
 
अनिल देशमुख के कई निर्णयों की चर्चा हुई। सिनेमाघरों में राष्ट्रगीत के प्रसारण का फ़ैसला उन्होंने ही लिया था। उन्होंने महाराष्ट्र में गुटखा खाने पर पाबंदी भी लगाई थी। जब वो पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तब बांद्रा-वरली सीलिंक बनकर पूरा हुआ था।
 
विवादों में भी घिरे रहे देशमुख
मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के क़रीब मिली विस्फोटकों से भरी कार की जांच के विवाद में अब गृहमंत्री अनिल देशमुख भी फंस गए हैं। विपक्ष ने सदन में इस मुद्दे पर हंगामा करते हुए बार-बार गृह मंत्री पर निशाना साधा है।
 
विधानसभा में बहस के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कार कारोबारी मनसुख हीरेन की मौत का मुद्दा उठाते हुए उसे पुलिस अधिकारी सचिन वाझे से जोड़ दिया था। वाझे इस मामले में अब एनआईए की हिरासत में हैं। फडणवीस ने विधानसभा में मनसुख के आख़िरी लोकेशन के बारे में भी जानकारी दी थी।
 
वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी बताते है, "मनसुख हिरेन और सचिन वाझे की बात के कॉल डिटेल रिकार्ड्स फडणवीस के पास थे। पर अनिल देशमुख के पास ये जानकारी नही थी।''
 
विश्लेषकों के मुताबिक गृह मंत्रालय जैसे संवेदनशील मंत्रालाय संभालने के लिए अनुभवी मंत्री की ज़रूरत होती है। देशमुख को अभी तक कोई हाई प्रोफ़ाइल मामला संभालने में सफलता नहीं मिली है।
 
जब विधानसभा में मनसुख हीरेन की मौत और एंटीलिया के पास विस्फोटक मिलने का मुद्दा गूंज रहा था तब अनिल देशमुख की मदद करने के लिए सत्तापक्ष का कोई नेता सामने नहीं आया। गृह राज्यमंत्री भी इस मामले पर चुप्पी ही साधे रहे।
 
मुंबई के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के अलावा महाराष्ट्र के सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजय पांडे ने भी अनिल देशमुख और उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिख कर अपनी नाराज़गी जताई। पांडे ने आरोप लगाया कि पोस्ट दिए जाने के मामले में उन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता रहा। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि इस समय तक उन्हें राज्य का पुलिस प्रमुख होना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
 
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब किसी वरिष्ठ अधिकारी ने देशमुख पर निशाना साधा है। अप्रैल 2020 में महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेट्री कमिशन के चेयरमैन आनंद कुलकर्णी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए देशमुख के ख़िलाफ़ पोस्ट लिखी थी।
 
अपनी पोस्ट में उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने देशमुख के पिछले कामों पर होमवर्क किया है और वो सही समय पर जुटाई गई जानकारियों को सार्वजनिक करेंगे।
 
अनिल देशमुख अपने बयानों से भी चर्चा में रहे। जब गोवा के आर्किटेक्ट अन्वय नाइक की मौत के मामले में टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी घिर रहे थे तब उन्होंने विधानसभा में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने कार्यकाल के दौरान इस मामले को दबा दिया था।

अनिल देशमुख ने गृह मंत्री पद संभालने के बाद दस डीसीपी रैंक के अफसरों का तबादला किया था। स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक ये तबादले करने से पहले उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कोई राय-मशविरा नहीं किया। उद्धव ठाकरे ने इसी वजह से ये तबादले रोक भी दिए थे। इस घटनाक्रम के बाद से ही अनिल देशमुख महाराष्ट्र के मीडिया में सुर्ख़ियों में बने रहे हैं।
 
जब महाराष्ट्र कोरोना महामारी में घिरा तो अनिल देशमुख ने पुलिसकर्मियों को अपनी लाठियों में तेल लगाने की सलाह दे दी। उनके इस बयान पर भी ख़ूब विवाद हुआ।

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