मां ने बेटे को किया 'पुनर्जीवित', क्या ऐसा संभव है?
शनिवार, 17 फ़रवरी 2018 (12:09 IST)
- सागर कासार (पुणे से)
दो साल पहले कैंसर की वजह से अपने बेटे को खोने वाली एक मां ने अपनी कोशिशों से उसे 'पुनर्जीवित' कर दिया है। पुणे की रहने वाली 49 वर्षीय टीचर राजश्री पाटिल ने एक सरोगेट मदर की मदद से अपने अन-ब्याहे बेटे प्रथमेश के जुड़वा बच्चों को जन्म दिलाया है।
ये सब कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान का कमाल है, जिसने एक मां के रुहांसे चेहरे को फिर से मुस्कुराना सिखा दिया। प्रथमेश के जुड़वा बच्चों का जन्म उनके शुक्राणुओं की मदद से हुआ है, जिन्हें उनकी मौत से पहले सुरक्षित रख लिया गया था।
'मेरा प्रथमेश मुझे वापस मिल गया'
पुणे के सिंघड कॉलेज से आगे की पढ़ाई के लिए राजश्री के बेटे प्रथमेश साल 2010 में जर्मनी चले गए थे। साल 2013 में पता चला कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया है, जो कि खतरनाक स्तर पर है। उस दौरान उनके वीर्य को संरक्षित कर लिया गया था। इस वीर्य का सरोगेसी में इस्तेमाल किया गया और 35 वर्षीय सरोगेट मदर ने एक बच्ची और एक बच्चे को जन्म दिया।
राजश्री पाटिल ने बीबीसी को बताया, "मुझे मेरा प्रथमेश वापस मिल गया है। मैं अपने बेटे के बहुत करीब थी। वो पढ़ने में बहुत तेज़ था और जर्मनी से इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री के लिए पढ़ाई कर रहा था। उसी दौरान उसे चौथी स्टेज का कैंसर होने का पता चला। डॉक्टरों ने प्रथमेश को कीमोथेरेपी का इलाज शुरू करने से पहले वीर्य संरक्षित करने को कहा।"
प्रथमेश ने अपनी मां और बहन को अपनी मौत के बाद अपने वीर्य का नमूना इस्तेमाल करने के लिए नामित किया था। राजश्री को तब इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि इसकी मदद से वो 'अपने बेटे को वापस पा' सकती हैं। मृत बेटे के संरक्षित वीर्य को एक गैर-पारिवारिक दाता के अंडाणुओं से मेल कराया गया। मेल कराने के बाद इसे एक करीबी रिश्तेदार के गर्भ में डाल दिया गया।
27 साल के जवान बेटे की मौत पर राजश्री रोई नहीं। बल्कि अपने बेटे के संरक्षित वीर्य का इस्तेमाल सरोगेट प्रेग्नेंसी में किया। प्रथमेश के बच्चों ने 12 फरवरी को जन्म लिया। दादी राजश्री ने बच्चों को भगवान का आशीर्वाद बताते हुए पोते का नाम बेटे प्रथमेश के नाम पर रखा और बेटी का नाम प्रीशा रखा।
जर्मनी तक का सफर
अपने बेटे को 'वापस पाने के लिए' राजश्री ने जर्मनी तक का सफर तय किया। उन्होंने जर्मनी जाकर बेटे का वीर्य हासिल करने के लिए सारी औपचारिकताएं पूरी कीं। वापस आकर उन्होंने पुणे के सह्याद्रि अस्पताल में आईवीएफ का सहारा लिया।
अस्पताल की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. सुप्रिया पुराणिक कहती हैं, "आईवीएफ प्रक्रिया हमारे लिए रोज़ाना का काम है। लेकिन ये मामला अनोखा था। इससे एक ऐसी मां की भवनाएं जुड़ी थीं, जो किसी भी कीमत पर अपने बेटे को वापस पाना चाहती थी। पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान राजश्री का रवैया बहुत सकारात्मक रहा।"