एक मुस्लिम पुरातत्वविद जिन्होंने बचाए 200 मंदिर

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017 (18:46 IST)
अनंत प्रकाश
 
साल 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस से उठी सांप्रदायिक हिंसा की आग ने हिन्दू-मुसलमान की खाई को चौड़ा कर दिया था, लेकिन यह कहानी एक ऐसे मुसलमान पुरातत्व विज्ञानी की है जिसने 8वीं शताब्दी के प्राचीन हिन्दू मंदिर को बचाने के लिए मध्यप्रदेश के खनन माफिया से लोहा लिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी मदद मांगी। चंबल के डाकुओं से मदद से भी मदद मांगी।
बात साल 2005 की है। पुरातत्व विज्ञानी केके मोहम्मद ने ग्वालियर से 40 किलोमीटर दूर बटेश्वर स्थित 200 मंदिरों के जीर्णोद्धार का जिम्मा संभाला। 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बने यह मंदिर पूरी तरह जमींदोज हो चुके थे। ये क्षेत्र भी डाकुओं और खनन माफियाओं से प्रभावित था, लेकिन केके मोहम्मद इस काम को करने का मन बना चुके थे।
 
डाकुओं ने की मोहम्मद की मदद : बटेश्वर के जमींदोज़ हो चुके 200 प्राचीन मंदिरों को फिर से ज़िंदा करना अपने आप में एक भागीरथ प्रयास था। केके मोहम्मद बताते हैं कि ग्वालियर पहुंचने पर लोगों ने बटेश्वर के प्राचीन मंदिर के बारे में बताया। इसके साथ बताया कि ये डाकुओं का इलाका है, काम करना बहुत मुश्किल है। और कुछ भी करने से पहले डाकुओं से इजाज़त लेनी होती है। डाकुओं को पता चला कि कोई मुसलमान है, वो भी जिनके नाम में 'मोहम्मद' है। एक मुसलमान क्यों मंदिर को ठीक करेंगे।
 
ये वो दौर था जब चंबल के बीहड़ में राम बाबू, निर्भय गुर्जर और पप्पू गुर्जर के आतंक का बोलबाला था। केके मोहम्मद ने डाकुओं से बात करते हुए उन्हें वह बताया जिसे सुनकर डाकू सहर्ष मदद करने को तैयार हो गए। केके मोहम्मद बताते हैं कि इस क्षेत्र में राम बाबू गुर्जर और निर्भय गुर्जर का बोलबाला था। ऐसे में जब डाकुओं को बताया गया कि मंदिरों को गुर्जर प्रतिहार राजाओं द्वारा बनवाया गया था और गुर्जर समुदाय के डाकू उस वंश के राजकुमार की तरह हैं। इसके बाद उन्होंने मंदिर के जीर्णोद्धार को अपना कर्तव्य मानते हुए मदद करना शुरू कर दिया।
 
वैदिक मंत्रों की मदद से खड़ा हुआ टुकड़ों में बिखरा मंदिर : मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण में कई समस्याएं थीं। सबसे बड़ी समस्या ये थी कि मंदिर के अवशेष एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए थे। मंदिर के हिस्सों को ढूंढना और उनको एक दूसरे के साथ जोड़ना अपने आप में एक चुनौती थी। केके मोहम्मद ने इसके बाद वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए मंदिर परिसर के नक्शे को समझना शुरू किया।
 
केके मोहम्मद बताते हैं, "मंदिरों के अंदर कोई मूर्ति नहीं थी। लेकिन ये किसका मंदिर है, इसके बारे में सोचा तो एक आयताकार जगह दिखी। इसे देखते ही मुझे लगा कि ये नंदिस्तान होना चाहिए क्योंकि विष्णु मंदिर की स्थिति में ये जगह चौकोर होनी चाहिए थी। क्योंकि, विष्णु मंदिर के बाहर गरुड़ स्तंभ होना चाहिए।"
 
"वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम् ।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः ।।
 
मोहम्मद ने इस मंत्र का जाप करते हुए नंदी के अवशेष को इस आयताकार जगह पर ऱखा। दरअसल, इसी मंत्र में शिव के मंदिर और उनके साथ रहने वाले नंदी का वर्णन था जिसकी वजह से उन्हें पता चला कि ये शिव मंदिर था।
 
डाकुओं का हुआ खात्मा तो मांगी संघ से मदद : मोहम्मद बताते हैं कि चंबल में डाकुओं के गिरोह के खात्मे के साथ ही खनन माफिया ने मंदिर के नज़दीक खनन का कार्य शुरू कर दिया। वे कहते हैं, "खनन की वजह से मंदिर के जीर्णोद्धार की प्रक्रिया वापस वहीं पहुंचने लगी जहां से शुरू हुई थी। कई प्रशासकों को फोन किया लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद संघ चीफ सुदर्शन जी को पत्र लिखकर उनसे मदद मांगी तब जाकर मंदिर के नज़दीक खनन होना रुका।
 
पूर्व संघ प्रमुख सुदर्शन ने केके मोहम्मद का पत्र मिलने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा। इसके बाद कांग्रेस मंत्री अंबिका सोनी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा। इसके बाद प्रदेश सरकार के हरकत में आई और केके मोहम्मद ज़मीन से दोबारा खड़े हुए मंदिर को बचाने में सफल हो सके।

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