नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश के अधिकतर हिस्सों में लोग सड़कों पर हैं। उत्तरप्रदेश, बिहार, कर्नाटक और दिल्ली समेत कई राज्यों में इसको लेकर हिंसा साफ़ देखी जा चुकी है।
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, सीलमपुर के बाद शुक्रवार को दिल्ली गेट पर विरोध प्रदर्शन हुए। इसमें प्रदर्शनकारियों ने कार को आग के हवाले कर दिया। वहीं, उत्तरप्रदेश में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 5 लोग मारे गए हैं।
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर केंद्र सरकार मुस्लिम समाज को भरोसा दिलाती रही है कि इसका भारत के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन मुसलमानों के एक बड़े तबके को डर है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के बाद केंद्र सरकार एनआरसी लाएगी और फिर उनको देश से बाहर कर दिया जाएगा।
हालांकि, केंद्र सरकार विज्ञापन जारी करके कह चुकी है कि कोई भी इन अफ़वाहों पर ध्यान न दे और नागरिकता संशोधन क़ानून केवल पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों को नागरिकता देगा न कि किसी की नागरिकता छीनेगा।
लगभग पूरे देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन किसी एक दिशा में जाते नहीं दिख रहे हैं और न ही कोई बड़ा संगठन या नाम इसका नेतृत्व करता दिख रहा है। हालांकि, मुस्लिम समुदाय समेत हर तबके के लोग हिंसा की आलोचना कर रहे हैं।
जामा मस्जिद के शाही इमाम क्या बोले
दिल्ली की जामा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ के बाद लोगों ने विरोध मार्च निकाला। इस प्रदर्शन में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद भी शामिल हुए थे हालांकि पुलिस उन्हें हिरासत में नहीं ले सकी। इसके बाद प्रदर्शनकारियों की भीड़ आईटीओ की ओर बढ़ने लगी और यह दिल्ली गेट पर हिंसक हो गई।
जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी मंगलवार को ही कह चुके हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून का हिंदुस्तान के मुसलमान से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रदर्शन करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है और कोई विरोध प्रदर्शन करने से नहीं रोक सकता है।
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए बयान में उन्होंने कहा था कि प्रदर्शन करना भारत के लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है, कोई भी हमें यह करने से रोक नहीं सकता है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम इसे नियंत्रण में रहकर करें और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखकर ये करें।' उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) में अंतर है। शाही इमाम ने कहा कि CAA क़ानून बन चुका है जबकि NRC की केवल घोषणा हुई है, ये अभी क़ानून नहीं बना है।'
'मुसलमानों का सब्र ख़त्म हो रहा है'
जामा मस्जिद से कुछ ही दूरी पर मौजूद दूसरी शाही मस्जिद फ़तेहपुरी के इमाम मुफ़्ती मुकर्रम अहमद भी CAA और प्रदर्शनों में हिंसा के ख़िलाफ़ हैं। वे कहते हैं कि इन प्रदर्शनों से दो समुदायों के बीच में कोई तनाव नहीं पैदा होना चाहिए।
साथ ही इमाम मुफ़्ती मुकर्रम बीबीसी से कहते हैं कि हिन्दुस्तानी मुसलमान का सब्र अब ख़त्म होता जा रहा है, अपने हक़ की जो आवाज़ उठा रहे हैं, उन्हें दबाया नहीं जा सकता है।
वो कहते हैं, 'CAA हमारे संविधान के ख़िलाफ़ है। संविधान में हर व्यक्ति को न्याय, स्वतंत्रता, गरिमा का अधिकार दिया गया है। ये हिंदू-मुसलमान में नफ़रत फैलाने के लिए लाया गया है। कुछ लोग हिन्दुस्तान की नीति बदलना चाहते हैं। कुछ ऐसे नीति निर्माता भारत सरकार में घुस गए हैं जिन्होंने यह अफ़रा-तफ़री फैला रखी है। हमें प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट से कोई शिकायत नहीं है, मगर कुछ लोग नीतियां बदल रहे हैं और देश को बांटना चाहते हैं, हम उनके ख़िलाफ़ हैं।'
केंद्र सरकार के मंत्री लगातार कह रहे हैं कि CAA मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं है। इस पर इमाम मुफ़्ती मुकर्रम कहते हैं कि अगर ये मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं है तो इसमें मुसलमानों को क्यों शामिल नहीं किया गया।
वो कहते हैं, 'हमारी मांग है कि जब सरकार को मुसलमानों से नफ़रत नहीं है तो वो CAA में मुसलमानों को शामिल करे। NRC को लाने की सरकार की योजना है। NRC के दौरान देश में हिंदू, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई सब लाइन में लगेंगे। सरकार अगर इस पर कार्रवाई नहीं करती है तो हम इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाएंगे और सरकारी की नीतियों के बारे में सबको बताएंगे।'
राजस्थान के अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। इस दरगाह पर सूफ़ी परंपरा को मानने वाले मुसलमानों समेत हर धर्म के लोग जाते हैं।
दरगाह के सज्जादनशीं सैयद ज़ैनुल आबेदीन अली ख़ान कहते हैं, 'ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ (हज़रत मोईनुद्दीन चिश्ती) ने हर मज़हब के व्यक्ति को गले लगाया उन्होंने किसी से कोई भेदभाव नहीं किया, इसीलिए हमारा संदेश है कि सरकार भी किसी का मज़हब देखकर उसे गले न लगाए।'
वो कहते हैं, 'हम नहीं कहते कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को भी CAA में शामिल किया जाए। हमारी मांग है कि हिंदुस्तान और असम में रह रहे मुसलमानों का क्या होगा। भावनाओं में कोई फ़ैसला न लिया जाए और देश के सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखकर फ़ैसला लिया जाए।'
'इस पर हाई लेवल कमेटी बनाई जानी चाहिए जो पूरे देश में सबके विचारों को सुने, मुसलमानों के ख़ौफ़ पर उनसे बात करे। उसके बाद इस रिपोर्ट को संसद में रखकर सबके संदेह पर बात की जाए और उसके बाद कोई फ़ैसला लिया जाए।'
'मुसलमानों की बेइज़्ज़ती की गई'
सैयद ज़ैनुल आबेदीन CAA पर तुरंत रोक लगाने की मांग करते हैं। वो कहते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों से मांग करते हैं कि शांति बनाई रखनी चाहिए और किसी के साथ नाइंसाफ़ी नहीं होनी चाहिए।
वहीं, लखनऊ की ऐशबाग़ ईदगाह के इमाम और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना ख़ालिद राशिद फ़िरंगी महली भी इस क़ानून का विरोध करते हैं। वो कहते हैं कि इसमें मुसलमानों का नाम शामिल नहीं किया जाना, मुसलमानों की बेइज़्ज़ती कराने के बराबर है। फ़िरंगी महली कहते हैं कि इसमें मुसलमानों को शामिल किया जाना चाहिए।
वो कहते हैं कि प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन इसमें जिन लोगों ने हिंसा की है उसकी जगह कहीं नहीं है। एक तरफ़ हम क़ानून बनाने की बात कर रहे हैं, वहीं हम क़ानून हाथ में ले रहे हैं तो ये स्वीकार नहीं किया जाएगा।'
'जितने बड़े पैमाने पर ये प्रदर्शन हो रहे हैं। इसमें सकारात्मक बात ये है कि इन प्रदर्शनों में सभी समुदाय के लोग शामिल हैं। सरकार को चाहिए कि वो प्रदर्शनकारियों के साथ बात शुरू करे। मुसलमानों का क्या कसूर है जो उन्हें इस क़ानून में शामिल नहीं किया गया।'
इन प्रदर्शनों में एक-दो घटनाओं को छोड़कर कोई बड़ा नाम शामिल नहीं रहा है। ख़ालिद राशिद फ़िरगी महली से पूछा गया कि क्या वो आगे होने वाले प्रदर्शनों में शामिल होंगे तो उन्होंने कहा कि वो आज ही भारत लौटे हैं और जल्द ही इस मुद्दे पर समाज के दूसरे लोगों से बात करके प्रदर्शन में शामिल होंगे।