नासा के क्यूरियॉसिटी रोवर पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने मंगल ग्रह के गेल क्षेत्र में उस हिस्से पर विशाल पर्वत होने की पहेली को सुलझा लिया है जहां ये रोबोट उतरा।
उनका मानना है कि ये पर्वत करोड़ों वर्षों की अवधि के दौरान एक के बाद एक बनी झीलों के रेत और अन्य तलछट के अवशेषों का बना हो सकता है। बाद में आसपास के मैदान में मिट्टी हवा के जरिए उड़ गई और इस तरह पांच किलोमीटर ऊंची चोटी अस्तित्व में आई जो आज हमें दिखती है।
अगर ये बात सच निकलती है तो ये मंगल ग्रह की प्राचीन जलवायु को लेकर एक बड़ी जानकारी होगी। इसका मतलब ये होगा कि दुनिया पहले दो अरब सालों के दौरान उससे कहीं ज्यादा गर्म और नम रही होगी जितना कि पहले माना जाता था।
क्यूरियॉसिटी की टीम का कहना है कि प्राचीन मंगल पर इस तरह की नम परिस्थितियों को बरकरार रखने के लिए खूब बारिश और बर्फबारी होती होगी।
'बढ़ेगी दिलचस्पी' : इससे जुड़ी एक रोचक संभावना ये भी नजर आती है कि मंगल के धरातल पर कहीं कोई सागर भी रहा होगा।
क्यूरियॉसिटी अभियान से डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. अश्विन वासावादा का कहना है, 'अगर वहां करोड़ों सालों तक झील रही है, तो पर्यावरणीय नमी के लिए सागर जैसे पानी के स्थायी भंडार का होना जरूरी है।'
दशकों से शोधकर्ता अटकलें लगाते रहे हैं कि मंगल ग्रह के शुरुआती इतिहास में उत्तरी मैदानी इलाकों में एक बड़ा सागर अस्तित्व में रहा होगा।
रोवर की तरफ से दी गई ताजा जानकारी के बाद इस विषय में दिलचस्पी और जिज्ञासा बढ़ना तय है।