लोकसभा का मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू हुआ है और दोनों ही सदनों में मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग को लेकर लगातार गतिरोध चलता चला आ रहा है। मानसून सत्र के शुरू होने से ठीक पहले मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हुई भयावह बदसलूकी का वीडियो सामने आया। मानसून सत्र के शुरू होने से ठीक पहले 20 जुलाई को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस घटना पर बोले लेकिन विपक्ष ने उनसे संसद में बयान देने की मांग की।
मणिपुर में 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद से 142 लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 से अधिक लोग बेघर हो गए। राज्य सरकार के मुताबिक़ इस हिंसा में 5000 आगज़नी की घटनाएं हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर हिंसा पर कई याचिकाएं दायर की गईं। सरकार की तरफ़ इस मामले की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि राज्य में 6000 से ज़्यादा एफ़आईआर दर्ज की गईं और 6,745 लोगों को हिरासत में लिया गया।
विपक्ष ने केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ 25 जुलाई की सुबह अविश्वास प्रस्ताव लाने का फ़ैसला किया। विपक्षी नेताओं ने कई अन्य विकल्पों पर चर्चा के बाद यह फ़ैसला लिया कि अविश्वास प्रस्ताव ही वो तरीक़ा है जिससे केंद्र सरकार को मणिपुर के मसले पर संसद में बहस के लिए मजबूर किया जा सकता है।
26 जुलाई को विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस यानी इंडिया की तरफ़ से सदन के नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
1 अगस्त को लोकसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमिटी की बैठक में फ़ैसला लिया गया कि अविश्वास प्रस्ताव पर 8 से 10 अगस्त तक बहस होगी। 3 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने 'मोदी सरनेम' मामले में राहुल गांधी की सज़ा पर रोक लगा दी तो कयास लगाए जाने लगे कि उनकी सदस्यता भी उतनी ही तेज़ी से बहाल कर दी जाएगी जितनी तेज़ी से रद्द की गई थी।
अविश्वास प्रस्ताव और राहुल गांधी
राहुल गांधी की सदस्यता अब तक बहाल नहीं हुई है। हालांकि उम्मीद है कि इस पर सोमवार को कोई फ़ैसला आएगा लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखतीं। वह कहती हैं, 'जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे ऐसा नहीं लगता कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से पहले राहुल गांधी की सदस्यता बहाल की जाएगी, क्योंकि उन्होंने कहा कि पहले इसे लेकर स्टडी करनी होगी।'
'राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की जो पूरी प्रक्रिया चली और जिस तरह जल्दबाज़ी में उनकी सदस्यता रद्द की गई उसके पीछे एक बड़ा कारण ये ही था कि वो कहीं न कहीं सत्ता पक्ष को असहज कर रहे थे।' राहुल गांधी की सदस्यता 23 मार्च 2023 से रद्द कर दी गई और सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला चार अगस्त 2023 को आया।
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर अभय दुबे कहते हैं, 'जिस तरह बीजेपी प्रवक्ता उनकी सदस्यता ख़ारिज़ किए जाने पर तर्क देते थे वैसे ही स्वतः ही सदस्यता मिल भी जानी चाहिए लेकिन वो अब तक नहीं मिली है। बीजेपी पूरी कोशिश करेगी कि उसे अधिक से अधिक समय के लिए टाला जाए, क्योंकि उसका मक़सद ये है कि विपक्ष के प्रभावी प्रवक्ताओं को अविश्वास प्रस्ताव की बहस से दूर रखा जाए।'
'राज्यसभा में विपक्ष की एक महत्वपूर्ण आवाज़ संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए बाहर कर रखा है, इधर लोकसभा में राहुल गांधी की सदस्यता छीन ली गई थी। तो उनकी कोशिश होगी कि अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद ही वो वापस लौटें।'
राधिका रामाषेशन कहती हैं, 'राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बीच के महीनों में मणिपुर और नूंह जैसी बड़ी घटनाएं हुई हैं। निश्चित रूप से विपक्ष इन मुद्दों को सदन में उठाएगा।'
वे कहती हैं, 'राहुल गांधी के सदन में होने पर कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को बहुत आक्रामकता के साथ उठाएगी। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के पास वक़्ता नहीं हैं।'
राधिका रामाषेशन कहती हैं, 'राहुल गांधी निश्चित रूप से बड़े नेता के रूप में उभर कर आ रहे हैं लेकिन विपक्षी गठबंधन इंडिया में कई बड़े क्षेत्रीय नेता मौजूद हैं। उनका प्रदर्शन भी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिखाई देगा।' वो ये भी कहती हैं कि बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए आसानी से इस अविश्वास प्रस्ताव को गिरा देगा।
उन्होंने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं कि संख्या बल साथ होने के कारण बीजेपी इस अविश्वास प्रस्ताव को आसानी से नाकाम कर देगी लेकिन राहुल गांधी कहीं न कहीं बीजेपी के लिए असहज साबित हो गए हैं इसमें कोई दो राय नहीं है।'
वहीं राहुल गांधी की लोकसभा में वापसी पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, 'लोकसभा की सदस्यता वापस होने की स्थिति में राहुल गांधी फिर केंद्रीय भूमिका में होंगे, क्योंकि सवाल उन पर और उनसे पूछे जाएंगे। बीजेपी उनको फिर ख़ारिज करेगी, उन पर हमला करेगी। तो कांग्रेस उनका समर्थन करेगी। ऐसी स्थिति में वो केंद्र बिंदु तो बनेंगे ही।'
साथ ही वे ये भी कहती हैं, 'अब अगर अविश्वास प्रस्ताव से पहले राहुल गांधी संसद में वापस आए तो उसी आक्रामकता के साथ वो अपनी बातें रखेंगे, क्योंकि वो मणिपुर हो कर आए हैं। वहां की स्थिति को देख कर आए हैं।'
केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती
विपक्ष केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर के मुद्दे पर ले कर आया है तो निश्चित रूप से यह इस पर बहस के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा होगा।
राधिका रामाषेशन कहती हैं, 'अविश्वास प्रस्ताव का सबसे अहम मुद्दा मणिपुर ही रहेगा। ये आज भी जल रहा है। वहां केंद्रीय बल और राज्य पुलिस के बीच झगड़ा हो रहा है। मुझे नहीं याद आता कि देश में कभी ऐसी स्थिति भी आई थी जहां राज्य की पुलिस केंद्रीय बल को चुनौती दे रही है और केंद्रीय बल कुछ नहीं कर पा रहा हो और केंद्रीय गृहमंत्री चुप हैं।'
'इसके अलावा भी कई बड़े मुद्दे हैं। मणिपुर, नूंह, महंगाई, बेरोज़गारी और अन्य मुद्दों के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक भी है जिसे अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कराने के बाद पारित किया गया।'
राधिका रामाषेशन कहती हैं, 'आज देश में महंगाई हम सभी पर असर डाल रही है, देश में बेरोज़गारी का मुद्दा तो लगातार बना ही हुआ है और लघु और मध्यम उद्योग की हालत किसी से छुपी नहीं है, क़ानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक मुद्दों के अलावा विपक्ष के पास ये भी मुद्दे हैं। अब किस हद तक वो सरकार को घेरने में कामयाब होगी ये देखना पड़ेगा।'
हालांकि उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के न होने से कुछ खामियां भी हो सकती हैं लेकिन तृणमूल जैसे दल आक्रामक हैं और वो सरकार को बखूबी घेरेंगे।
वे कहती हैं, 'डीएमके हिंदी भाषा वाला मुद्दा उठा सकती है तो संघीय व्यवस्था के मुद्दे भी उठाए जाएंगे। राज्य के अधिकारों पर चोट पहुंच रही है, वो भी एक अहम मुद्दा होगा।' अभय दुबे कहते हैं कि अगर राहुल गांधी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन में बोलें तो वो सरकार को कई मुद्दों पर घेरेंगे।
दुबे कहते हैं, 'मानसून सत्र से पहले मणिपुर की महिलाओं का जो वीडियो उससे कहीं पहले राहुल गांधी चुराचांदपुर हो कर आए हैं। उनको वहां जाने से रोकने की कोशिश की गई थी फिर भी वो वहां गए। विपक्ष के सांसदों का दल तो अभी गया है। तो राहुल गांधी न केवल मणिपुर बल्कि अन्य मुद्दों को भी उठाएंगे। इससे बीजेपी की सरकार पर मणिपुर के रूप में राजनीतिक निकम्मेपन का आरोप लगेगा। राहुल बोलेंगे तो विपक्ष के नेता भी उस पर बोलेंगे, इससे बहस आक्रामक रुख़ अख़्तियार कर लेगी। इसके दायरे में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री की राजनीतिक कुशलता भी आएगी।'
वहीं अभय कुमार दुबे कहते हैं, 'महंगाई, बेरोज़गारी, नूंह और मणिपुर समेत कई मुद्दे अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उठेंगे ही। हो सकता है कि बृज भूषण शरण सिंह का मुद्दा भी उठे। अडाणी का मुद्दा भी आएगा, जो प्रश्न अब तक दबे हुए थे वो फिर से खुल कर सामने आ सकता है।'
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2013 का बीजेपी का एक ट्वीट शेयर किया था। लेकिन बीते गुरुवार को दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा में पारित कर दिया गया। अब राज्यसभा में आज ही इसे पेश किया जाएगा।
हालांकि लोकसभा में इस बिल को पारित किए जाने पर यह भी सवाल उठा कि जब अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की स्वीकृति मिल चुकी हो तो क्या सरकार इस दौरान सदन में कोई बिल पारित कर सकती है?
अभय कुमार दुबे कहते हैं, 'कांग्रेस के कई नेता इस सवाल को पहले भी उठाते रहे हैं कि एक बार जब अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और उस पर बहस भी तय हो गई तो उस दौरान कोई नया बिल लोकसभा को तब तक नहीं बनाना चाहिए जब तक कि सरकार विश्वास प्राप्त न कर ले। लेकिन सरकार ने इस मर्यादा की तरफ़ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और बीच के समय ही ये बिल ले आए। तो निश्चित रूप से इस पर भी सवाल उठेंगे।'
अविश्वास प्रस्ताव का किसे फ़ायदा?
अगर नंबर की बात करें तो अविश्वास प्रस्ताव का लोकसभा में नाकाम होना तय दिखता है फिर विपक्ष इसे क्यों लेकर आई?
इस पर अभय कुमार दुबे कहते हैं, 'आज़ाद भारत में 27 अविश्वास प्रस्ताव आए हैं, एक को छोड़ कर कोई कामयाब नहीं हुआ। पहला अविश्वास प्रस्ताव नेहरू के ख़िलाफ़ लाया गया था और गिरा भी था। तब नेहरू ने कहा था कि इसके कामयाब होने का कोई मौक़ा नहीं है लेकिन इसके बावजूद मैं इसका स्वागत करता हू्ं, क्योंकि इस तरह के अविश्वास प्रस्तावों से सरकार सक्रिय होती है।'
वे कहते हैं, 'तब कांग्रेस की साख पूरे देश में थी। अखिल भारत में उसे मत प्राप्त होते थे लेकिन बीजेपी को दक्षिण भारत में वोट न के बराबर मिलते हैं, उसका वहां अस्तित्व न के बराबर है। मैं मानता हूं कि अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस होगी उसे न केवल देश का प्रबुद्ध वर्ग बल्कि सामान्य जन मानस भी सुनेंगे और उस पर अपनी राय बनाएंगे।'
अविश्वास प्रस्ताव पर बहस से किस गठबंधन को फ़ायदा होगा इस पर अभय दुबे कहते हैं कि अभी यह ठोस रूप से कहना सही नहीं होगा कि इस बहस का कोई फ़ायदा होगा।
हालांकि वो ये ज़रूर कहते हैं, 'कई दल इस मौक़े पर अपना रुख़ साफ़ करेंगे कि वो एनडीए की तरफ़ हैं या इंडिया की ओर। इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी को क्या विपक्ष अपने नेताओं के वक्तव्यों के ज़रिए स्वर दे सकेगा या नहीं।' 2024 में किस तरह का राजनीतिक स्वरूप उभर कर आएगा, इस बहस के दौरान इसकी शुरुआती झलक इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान देखने को मिलेगी।'
साथ ही वो ये भी कहते हैं कि, 'देश के मतदाता इस बहस के माध्यम से दोनों गठबंधनों का आकलन करेंगे और अंदाजा लेंगे कि कौन सी शक्ति किसके ख़िलाफ़ काम करेगी और वो संघर्ष किस किस्म का होगा। यह अविश्वास प्रस्ताव एक किस्म का पैमाना पेश करेगा कि आगे क्या होने वाला है।'
अभय कुमार दुबे कहते हैं, 'अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर के मुद्दे पर संसद में बोलने के लिए विवश हुए तो ये विपक्ष का सबसे बड़ा फ़ायदा होगा। सबसे अहम ये है कि इस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' को लेकर एक धारणा तैयार होगी कि उसमें सरकार के ख़िलाफ़ नैरेटिव बनाने की कितनी क्षमता है।'
कौन दल किसके साथ?
इस बीच कुछ दलों ने अपना रुख़ स्पष्ट करना शुरू कर दिया है। लोकसभा में 9 सदस्यों वाली के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने 26 जुलाई को बताया था कि उसने भी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है।
बीआरएस बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की उस बैठक का हिस्सा नहीं थी, जहां इस गठबंधन का नाम 'इंडिया' तय किया गया था। वहीं 22 लोकसभा सांसदों वाली वाईएसआर कांग्रेस ने संसद में मोदी सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया है। पार्टी ने तय किया है कि वो लोकसभा में विपक्ष के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ और सरकार के पक्ष में वोट डालेगी।
वाईएसआर कांग्रेस संसदीय के प्रमुख विजयसाई रेड्डी ने कहा, 'इस वक़्त मिलकर काम करने की ज़रूरत है। वाईएसआर कांग्रेस सरकार का समर्थन करेगी और अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट देगी।'
12 सांसदों वाली बीजू जनता दल ने अविश्वास प्रस्ताव को लेकर अपना रुख़ अभी स्पष्ट नहीं किया है। ऐसा ही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ है जो 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं। हालांकि बीएसपी ने दिल्ली सर्विस बिल पर केंद्र सरकार के विरूद्ध केजरीवाल का समर्थन किया है।
क्या प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव पर बोलेंगे?
विपक्ष लगातार यह कहता आ रहा है कि प्रधानमंत्री संसद में मणिपुर पर बयान दें लेकिन क्या अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनका बोलना ज़रूरी है? वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, 'अविश्वास प्रस्ताव लाने के पीछे अहम कारण ही यही है। विपक्ष चाहता है कि प्रधानमंत्री मणिपुर पर सदन में बयान दें।'
वे कहते हैं, 'विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया लेकिन नियम ये कहीं नहीं कहते कि प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलना ही पड़ेगा। हो सकता है कि वो किसी को अपना प्रतिनिधि बना कर कहें कि सरकार की तरफ़ से वो (प्रतिनिधि) जवाब देंगे। लेकिन इस बात की उम्मीद बहुत कम है।, क्योंकि ऐसे में माना जाएगा कि प्रधानमंत्री संसद से बच रहे हैं, संसद के सामने उत्तरदायी नहीं बनना चाहते, संसद को उत्तर नहीं देना चाहते।'
साथ ही वे यह भी कहते हैं, 'मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के पास बहुत सक्षम जवाब है। बार बार सत्ता पक्ष या उनके प्रवक्ता कह रहे हैं ड्रग माफ़िया पर कार्रवाई की वजह से ये शुरू हुआ है। जातीय हिंसा जो हो रही है उसकी एक बड़ी वजह म्यांमार से होने वाली घुसपैठ है। घुसपैठियों को पहचान करने की कोशिश की जा रही है।'
जब संख्याबल नहीं है तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाई है?
इस पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, 'अविश्वास प्रस्ताव का मुख्य मक़सद ये नहीं होता कि सरकार को गिरा ही दिया जाए। यह सरकार की नीतियों की आलोचना करने का सबसे बड़ा अवसर होता है। राजनीति में विपक्ष का एक अहम काम सरकार का विरोध करना और उसकी कमियों को उजागर करना भी होता है।' वे कहते हैं, 'अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए विपक्ष जनता को यह बताता है कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही।'(फोटो सौजन्य : बीबीसी)