मणिपुर के मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को सदन में अपनी बातें रखीं और इस दौरान उन्होंने विपक्ष को निशाने पर लिया।
पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान 'विपक्ष की कमज़ोरी' का ज़िक्र किया और यह भी बोले कि पहले जब अविश्वास प्रस्ताव आते थे तब कोई न कोई बड़ा नेता उसे लीड करता था जिसकी कमी इस बार दिखी।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन में सोनिया गांधी भी मौजूद थीं लेकिन वो नहीं बोलीं शायद प्रधानमंत्री का इशारा उस ओर था। हालांकि विपक्ष की ओर से अन्य नेताओं के साथ राहुल गांधी और गौरव गोगोई ने अपनी बातें रखीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को भगवान का आशीर्वाद बताया और बोले कि वो बहुत दयालु हैं जिन्होंने विपक्ष को ये सुझाया और वो अविश्वास प्रस्ताव ले कर आए।
उन्होंने कहा, "2018 में भी ये ईश्वर का ही आदेश था जब विपक्ष के साथी अविश्वास प्रस्ताव ले कर आए थे। तब भी मैंने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव हमारी सरकार का फ़्लोर टेस्ट नहीं है और हुआ भी वहीं, जब मतदान हुआ तब विपक्ष के पास जितने वोट थे उतने भी वो जमा नहीं कर पाए थे। इतना ही नहीं जब हम सब जनता के पास गए तब जनता ने भी पूरी ताक़त के साथ इनके लिए नो कॉन्फिडेंस घोषित कर दिया और चुनाव में एनडीए और भाजपा दोनों को ज़्यादा सीटें मिलीं। तो एक तरह से विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव हमारे लिए शुभ होता है।"
इस दौरान उन्होंने सदन नहीं चलने देने को लेकर भी विपक्ष को घेरा और बोले, "कई ऐसे बिल थे जो गांव, ग़रीब, आदिवासियों, युवाओं, मछुआरों से जुड़े हुए थे लेकिन इसमें विपक्ष को कोई रुचि नहीं थी।"
प्रधानमंत्री ने विपक्ष से पूछा, "क्या आपने एक दिन सदन चलने भी दिया? आप यहां जुटे तो किस काम के लिए।।। आप अविश्वास प्रस्ताव पर जुटे। और अपने कट्टर भ्रष्ट साथी, उनकी शर्त पर मजबूर होकर और इस अविश्वास प्रस्ताव पर भी आपने कैसी चर्चा की। सोशल मीडिया पर देख रहा हूं कि आपके दरबारी भी काफ़ी दुखी हैं। इस चर्चा पर फील्डिंग विपक्ष ने तय की लेकिन चौके, छक्के तो यहां से लग रहे हैं नो कॉन्फिडेंस पर।"
उन्होंने विपक्ष से पूछा कि "आप तैयारी कर के क्यों नहीं आते जी... मैंने 2018 में कहा था कि 2023 में तैयारी कर के आना लेकिन आप आज भी तैयारी करके नहीं आए।"
इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल नॉर्थ ईस्ट में अपने सरकार की योजनाओं का ज़िक्र किया बल्कि देश को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने जैसे मुद्दे पर भी बोले और अंत में जब विपक्ष ने सदन से वॉकआउट किया उसके बाद मणिपुर पर भी बोले।
राजनीतिक जानकार क्या कहते हैं?
क्या प्रधानमंत्री ने उन सवालों के जवाब दिए जो विपक्ष ने उठाए थे? पढ़िए प्रधानमंत्री के इस भाषण पर राजनीतिक जानकार क्या कहते हैं?
गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के पहले दिन ही तीन सीधे सवाल पूछे।
मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद तीन महीने बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए, वहां राहुल गांधी गए, विपक्ष गया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी गए लेकिन प्रधानमंत्री क्यों नहीं गए?
मणिपुर पर बोलने के लिए प्रधानमंत्री जी को 80 दिन क्यों लगे?
प्रधानमंत्री ने मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया?
वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े कहते हैं, "विपक्ष को ये पता था कि अविश्वास प्रस्ताव गिरने वाला है। तो सरकार को गिराने के लिए ये प्रस्ताव नहीं था बल्कि मणिपुर पर सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए इसे लाया गया था। तीन मई से लेकर अब तक यदि मणिपुर जल रहा है और सरकार बिना किसी गंभीरता के ये कहती है कि आप जबरदस्ती सरकार को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं, लोगों के विश्वास को तोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं।"
वे कहते हैं, "देश के गृह मंत्री सदन के अंदर ग़लतबयानी करते हैं। वो संविधान के अनुच्छेद 356 को ग़लत बताते हैं। वो कहते हैं कि अगर मुख्यमंत्री सहयोग कर रहा है तो फिर सरकार को बर्खास्त करने या उसे बदलने का काम नहीं है।"
"आर्टिकल 356 मुख्यमंत्री की बात ही नहीं करता। वो कहता है कि यदि राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्य स्रोत से राष्ट्रपति को ये पता चलता है कि अमुक राज्य में क़ानून-व्यवस्था इतनी ख़राब हो गई है कि राज्य मशीनरी फेल हो गई है, संवैधानिक विफलता हो गई है तो ऐसे में वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।"
"सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि मणिपुर में संवैधानिक विफलता हुई है। कैबिनेट मंत्री मणिपुर से लौट कर कहते हैं कि वहां क़ानून-व्यवस्था नहीं है। वहां के विधायक चाहे कुकी हों या मैतेई।।। वो लगातार सरकार के पास आते हैं, वहां की राज्यपाल अनुसुइया उइके सरकार को रिपोर्ट देती हैं। राज्य में इंटरनेट बंद है। तो क्या कारण है कि मणिपुर जल रहा है और सरकार मौन है।"
नॉर्थ ईस्ट पर प्रधानमंत्री मोदी क्या बोले?
नरेंद्र मोदी अपने भाषण में नॉर्थ ईस्ट पर बहुत कुछ बोले। उन्होंने वहां की नाकामियों के लिए कांग्रेस को तो घेरा ही लेकिन अपने सरकार की उपलब्धियों को बताने से नहीं चूके।
पीएम नरेंद्र मोदी बोले, "एक वक़्त था जब आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की सैलरी का एक हिस्सा उग्रवादियों को देना पड़ता था तब जा कर वहां वो रह पाते थे। तब वहां कांग्रेस की सरकार थी। मणिपुर में आए दिन ब्लॉकेड और बंद होता था लेकिन अब वो बीते दिनों की बात हो चुकी है। वहां शांति के प्रयास चल रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे। तो इसे राजनीति से जितनी दूर रखेंगे यह प्रयास उतना ही सार्थक होगा।"
उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के विकास की बात की और बोले, "जिस प्रकार से साउथ ईस्ट देशों का विकास हो रहा है, वो दिन दूर नहीं जब नॉर्थ ईस्ट सेंटर पॉइंट बनेगा। विश्व संरचना करवट ले रही है। इसलिए हमारी सरकार ने नॉर्थ ईस्ट को पहली प्राथमिकता दी है। आज आधुनिका हाइवे, रेलवे, एयरपोर्ट नॉर्थ ईस्ट की पहचान बन रहे हैं।"
पीएम मोदी बोले- नागालैंड से पहली महिला सांसद बनीं, पद्म पुरस्कार से सम्मानित लोगों की संख्या बढ़ी।
इस पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े कहते हैं, "प्रधानमंत्री जी ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ये बताया कि उनकी सरकार ने नॉर्थ ईस्ट पर कितना खर्च किया, उनके मंत्री वहां कितनी बार गए ये भी बताए। उन्होंने कहा नॉर्थ ईस्ट मेरे लिए नारा नहीं है। संकल्प है। यदि आप ये कहते हैं कि आसियान देश एक राइज़िंग स्टार है और नॉर्थ ईस्ट एक सेंट्रल फोकल पॉइंट होगा। ये सारी बातें आपको पता है तो फिर इसी नॉर्थ ईस्ट का एक राज्य तीन महीने से जल रहा है तो आप उसे क्यों जलने दे रहे हैं।"
"विपक्ष के संसद में कम नंबर होने का मज़ाक उड़ाया जाता है। विपक्ष अपना काम करेगा। विपक्ष इस प्रस्ताव से पहले तो ये कह रहा था कि प्रधानमंत्री सदन में मणिपुर पर वक़्तव्य दें। सवाल विपक्ष के जवाब मांगने का या आपके जवाब देने का नहीं है। सवाल एक राज्य का तीन महीने से जलने का था। डेढ़ सौ से अधिक लोगों की मौत का था। करोड़ों की प्रॉपर्टी के जलने का था, थानों से हथियारों के लूटे जाने का था। वहां गृह युद्ध छिड़ चुका था। सर्वोच्च न्यायालय तक उसका संज्ञान ले चुकी है। आप क्यों संज्ञान नहीं ले रहे हैं, ये सवाल है।"
"प्रधानमंत्री बता रहे हैं कि कांग्रेस के समय क्या हुआ। कांग्रेस ने हो सकता है बहुत ग़लत किया इसलिए तो आपको सत्ता मिली। लेकिन आपके सत्ता में बैठने के बाद भी मणिपुर जल ही रहा है तो फिर आपकी जवाबदेही बनती है कि आप इसका जवाब दें। वो कहते हैं कि मणिपुर में पांच साल से आपकी सरकार थी, डबल इंजन की सरकार है। आप जिसे पिछली सरकार का तथाकथित कुकर्म बता रहे हैं और उसे आप भी ठीक न कर पाए तो ये आपकी विफलता है।"
विपक्ष का वॉक आउट करना ग़लत रणनीति
नॉर्थ ईस्ट की जितनी भी समस्याएं हैं, जितनी भी चुनौतियां हैं उसके लिए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को दोषी और ज़िम्मेवार ठहराया। लेकिन चुनावी दृष्टि से बीजेपी के लिए अहमियत रखने वाली महिलाओं के मुद्दे पर क्या विपक्ष सरकार को घेरने में कामयाब हुआ?
इस पर नीरजा चौधरी कहती हैं, "बीजेपी की राजनीति की दृष्टि से महिलाएं बहुत महत्व रखती हैं लेकिन विपक्ष ने उस पर सरकार को घेरने में चूक की।"
क्या विपक्ष को वॉकआउट करना चाहिए था?
नीरजा चौधरी कहती हैं, "प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के शुरुआती डेढ़ घंटे के दौरान मणिपुर का ज़िक्र नहीं किया और विपक्ष पर ज़ोरदार पलटवार किया और जब विपक्ष ने वॉकआउट किया, जो मुझे लगता है करना नहीं चाहिए था, तब प्रधानमंत्री ने नॉर्थ ईस्ट को अपने जिगर का टुकड़ा बताया और वहां महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा पर बोले कि उसके दोषियों को सज़ा ज़रूर मिलेगी। उन्होंने कहा कि वहां हिंसा नहीं होनी चाहिए, सरकार शांति लाने के प्रयास में लगी हुई है। और यह आश्वसत किया कि वहां बहुत ज़ल्दी शांति होगी। साथ ही शांति के लिए अपील भी किए।"
आखिर विपक्ष ने वॉकआउट करके क्या चूक की?
नीरजा चौधरी कहती हैं, "अविश्वास प्रस्ताव की शुरुआत गौरव गोगोई ने की थी लेकिन वॉकआउट करने की वजह से उन्होंने अपने 'राइट टू रिप्लाई' के अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया। वो इस अधिकार का उपयोग करते तो उन आरोपों का खंडन करते जो प्रधानमंत्री जी ने लगाए थे कि कैसे मिज़ोरम एकॉर्ड लेकर आई थी। राइट टू रिप्लाई के ज़रिए कांग्रेस उनके हर एक पॉइंट का जवाब दे सकती थी। आगे क्या हो सकता है इस पर चर्चा हो सकती थी। क्या वहां सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल जा सकता है। क्या ऐसा होने की स्थिति में बीजेपी उसका हिस्सा बनेगी। क्या महिलाओं का प्रतिनिधि मंडल वहां जा सकता है। उन्होंने ये अवसर हाथ से गंवा दिया।"
नीरजा चौधरी प्रधानमंत्री की इस बात से भी सहमत हैं कि विपक्ष को और अधिक तैयारी के साथ सदन में आना चाहिए था।
वे कहती हैं, "विपक्ष को इसकी ज़्यादा तैयारी करनी चाहिए थी। पीएम ने बोला कि उन्होंने उतनी अच्छी तैयारी नहीं की है और मुझे भी उसमें दम दिखा। राहुल गांधी की बातों में ठोस चीज़ें नहीं थीं। तर्क, साक्ष्य, मणिपुर, राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के लिए नॉर्थ ईस्ट की क्या अहमियत है वो उतनी अच्छी तरह से नहीं हुआ।"
वे कहती हैं कि कुल मिलाकर वॉकआउट करना विपक्ष की ख़राब रणनीति थी।
"विपक्ष की संवेदना सेलेक्टिव है"
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की पीड़ी को सेलेक्टिव बताया और कहे कि वो (कांग्रेस) देश की कठिनाइयों के बारे में नहीं सोचते।
विपक्ष की संवेदना सेलेक्टिव है- इस बयान पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े कहते हैं, "महिलाओं पर अत्याचार अन्य राज्यों में भी है लेकिन मणिपुर में जो हुआ उसे अन्य राज्यों की घटनाओं की श्रेणी में नहीं ला सकते। जहां पुलिस ने स्वयं महिलाओं को उठा कर दंगाइयों के सामने परोस दिया हो। खुद मुख्यमंत्री कहते हैं कि ऐसे कई मामले हुए हैं। इतने बड़े स्तर पर व्यभिचार किस राज्य में हुआ? लोहिया की बात करते हैं, आज़ादी के पहले की बात करते हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस के डीएनए में है सौतेला व्यवहार करना। वे नॉर्थ ईस्ट को जिगर का टुकड़ा कहते हैं लेकिन उसके जलने की पीड़ा तब हुई जब सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया।"
"वे कहते हैं कि मणिपुर की समस्या को ग़लत प्रस्तुत किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय, आपके मंत्री, विधायक भी यही कह रहे हैं। वहां लाशें अब भी मॉर्चरी में पड़ी है, पुलिस, सेना सभी असहाय दिख रहे हैं।"
"प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले वहां उग्रवाद था और तब कांग्रेस सत्ता में थी। लेकिन कांग्रेस सत्ता से जा चुकी है और आज आपकी सरकार है। तो फिर कांग्रेस और आपमें फर्क क्या है?"
"कुल मिलाकर सारी दुनिया की बात की। देश की जनता पर विश्वास की बात की। उन्होंने अखंड विश्वासी समाज की बात की लेकिन यदि उन पर अखंड विश्वास होता तो कर्नाटक, हिमाचल, दिल्ली में नहीं हारते, बजरंगबली का नाम नहीं लेना पड़ता।"
"एक तरफ कहते हैं कि विपक्ष में ताक़त नहीं है, कमज़ोर है, तैयारी नहीं करते, इनोवेटिव बातें नहीं करते।"
"देश का विश्वास प्रधानमंत्री जी आप तोड़ रहे हैं। लोग भयभीत हैं। क्यों वहां लोग अपने लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं?"
"कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का भाषण उन्हीं उम्मीदों के अनुरूप था कि वो मणिपुर पर उठाए गए सवालों के जवाब नहीं देंगे। वो इतिहास में जाएंगे और वर्तमान की बात नहीं करेंगे और सवर्ण भविष्य का लॉलीपॉप देंगे।"
अशोक वानखेड़े कहते हैं कि इसी संसद में कभी सुषमा स्वराज तो कभी नेहरू और कलाम ने मशहूर शायर शहाब जाफ़री की शेर से अपनी बातें रखी थीं।
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा
मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है
(यहां रहजनों का मतलब डाकू है और रहबरी का मतलब नेतृत्व है)
वे कहते हैं, "प्रधानमंत्री के वक़्तव्य पर यही सवाल उठता है। तो यहां बात इधर-उधर की हो रही है, भूत और भविष्य की हो रही है, वर्तमान में जो हो रहा है उसकी बात नहीं हो रही है। मणिपुर में महिलाओं का जो उत्पीड़न हुआ उसकी एफ़आईआर तीन महीने तक दर्ज क्यों नहीं हुई, ये क्यों नहीं बता पाते। सड़कों की बात करते हैं लेकिन मणिपुर में ज़िंदा जलाई जा रहीं महिलाओं की बात नहीं करते, उसे अनदेखा करते हैं।"
वो मुद्दे जिन पर नहीं बोले प्रधानमंत्री
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि प्रधानमंत्री महंगाई, बेरोज़गारी, नूंह जैसे मामले पर कुछ नहीं बोले।
राशिद किदवई कहते हैं, "प्रधानमंत्री भाषण के दौरान अपनी वाकपटुता से बाज़ी मारने की कोशिश करते हैं। उन्होंने एलआईसी का उदाहरण दिया। एलआईसी का आईपीओ आया था। गिरावट के साथ उसकी शुरुआत हुई थी जो आज भी कायम है। लेकिन उन्होंने एलआईसी को ऐसे बताया जैसे जिन लोगों ने शेयर बाज़ार में पैसे लगाए उन्हें फ़ायदा हो रहा है।"
"वे टमाटर के बढ़ते दाम, महंगाई, बेरोज़गारी, रेलवे के जवान वाली घटना, नूंह की हिंसा, जैसे विषयों को छूते भी नहीं हैं। यदि मैं मणिपुर का रहने वाला व्यक्ति हूं तो आज मेरे हाथ क्या लगा। 100 दिन हो गए और केवल कोरे आश्वासन मिले। वहां आज भी वही मुख्यमंत्री हैं। "
साथ ही उन्होंने यह आश्चर्य भी जताया कि मणिपुर के कुकी और मैतेई सांसदों को बोलने का मौक़ा क्यों नहीं दिया गया।
वे कहते हैं, "अविश्वास प्रस्ताव पर तीन दिनों तक चर्चा हुई कितने ही दलों और सांसदों ने अपनी बातें रखीं लेकिन मणिपुर से दो सांसद हैं, एक कुकी और दूसरे मैतेई, लेकिन इस दौरान दोनों ही नहीं बोले। वो अगर वहां बोलते तो एक दूसरे समुदायों के प्रति उनके विचार सामने आते। उन्हें वहां बोलने से वंचित क्यों रखा गया?"
"ये अर्धसत्य है"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान 5 मार्च 1966 के एक प्रसंग का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा, "5 मार्च 1966- इस दिन कांग्रेस ने मिज़ोरम में असहाय नागरिकों पर अपनी वायुसेना के माध्यम से हमला करवाया था। बड़ा गंभीर विवाद हुआ था। मिज़ोरम के लोग मेरे देश के नागिरक नहीं थे। उनकी सुरक्षा देश की ज़िम्मेदार थी या नहीं। निर्दोष नागरिकों पर हमला करवाया गया। आज भी 5 मार्च को पूरा मिज़ोरम शोक मनाता है। कभी इन लोगों ने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की है।"
वे बोले, "कांग्रेस ने इस सत्य को देश से छिपाया, अपने ही देश में वायुसेना से हमला करवाया। उस समय प्रधानमंत्री कौन था- इंदिरा गांधी।"
पीएम मोदी ने अकाल तख्त पर हमले की बात भी कही और कहा कि वो भी हमारी स्मृति में है।
दरअसल 5 मार्च 1966 की सुबह साढ़े 11 बजे भारतीय वायुसेना के चार तूफ़ानी और हंटर विमानों ने आइज़ोल पर बमबारी की थी लेकिन इसके पहले के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए सेना और वायुसेना की सहमति से यह फ़ैसला लिया गया था।
राशिद किदवई कहते हैं कि उन्होंने उसे अर्धसत्य रूप में पेश किया, वो सेना और वायुसेना के समर्थन से देशहित में काम किया गया था।
वे बताते हैं, "1965 की लड़ाई में इंदिरा गांधी ने सेना और वायु सेना के समर्थन से वो काम किया था और वो राष्ट्र हित में किया गया था। इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार किया था तो क्या सिख अलगाववादी को स्वर्ण मंदिर से निकालने का काम ग़लत था?"
वे कहते हैं, "इंदिरा गांधी की आलोचना ज़रूर होनी चाहिए क्योंकि पंजाब का मुद्दा इतना तूल पकड़ा और उसे लेकर इतनी सारी समस्याएं हुईं लेकिन ये कहना कि ऑपरेशन ब्लू स्टार ग़लत है, ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से कोई नहीं कहेगा। वो उस समय ज़रूरी हो गया था। हर चीज़ का एक कॉन्टेक्स्ट होता है। उस समय मिज़ोरम में अलगाववाद ऐसी चरम स्थिति में आ गया था कि वो उसे भारत का अंग ही नहीं मानते थे। वहां के इलाके ऐसे थे कि सेना जा नहीं सकती थी तो वायु सेना का इस्तेमाल हुआ था।"
प्रधानमंत्री ने नॉर्थ ईस्ट के विकास की बात की। इस पर राशिद किदवई कहते हैं कि वहां के विकास में यूपीए का योगदान भी है। मणिपुर की घटना को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है। उन्होंने वहां के विकास की बात तो की लेकिन महिलाओं की सुरक्षा की बात कहां है? मुख्यमंत्री को क्यों नहीं हटाया गया, राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाया गया?
अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते वक़्त ये सवाल गौरव गोगोई ने उठाया था लेकिन इसका जवाब न तो गृह मंत्री अमित शाह और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया।
'घमंडिया' गठबंधन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन को अपने भाषण के दौरान कई बार घमंडिया गठबंधन कह कर संबोधित किया।
इस पर अशोक वानखेड़े पूछते हैं कि यदि विपक्ष एक हो गया तो इसमें घमंड किस बात का? वे कहते हैं, "घमंड तो उसमें है जो सर्वोच्च न्यायालय के जजों की खंडपीठ के निर्णय को विधेयक लाकर बदलने की ताक़त रखता है। आपके पास समर्थन है कि आप विधेयक लाकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट देंगे। ये घमंड है। तीन महीने तक मणिपुर जल रहा है लेकिन मैं बात नहीं करूंगा, ये घमंड है। घमंडिया कौन है ये लोग देखते हैं। इंडिया है तो घमंडिया बोल दिया, तुकबंदी कर दिए।
विपक्ष आपका वक़्तव्य मांग रहा था। इस्तीफ़ा नहीं मांग रहा था। आप सदन में बोलने के लिए तैयार नहीं हो ये घमंड है। आप किसी राजनीतिक दल को सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स की बदौलत तोड़ना चाहते हैं ये घमंड है।"
वहीं राशिद किदवई कहते हैं, "आज प्रधानमंत्री के भाषण में नई बातें नहीं थीं, घमंडिया के बारे में जो बातें उन्होंने कही वो ख़ुद प्रधानमंत्री के बारे में कही जा सकती है।"
राशिद किदवई कहते हैं, "भाषण पूर्ण रूप से राजनीतिक था, ऐसा लगा कि वो संसद में नहीं बल्कि किसी चुनावी रैली में बोल रहे हैं। उन्होंने विपक्ष पर बहुत जबरदस्त हमले किए। उनका फ़ोकस पूरी तरह से विपक्ष पर हमलावर रहा। तो ये संदेश भी गया कि कहीं प्रधानमंत्री ख़ुद 'इंडिया' गठबंधन से ख़तरा तो महसूस नहीं कर रहे? कहीं उन्हें बदलाव की आहट तो नहीं आ गई जो उन्होंने पुरज़ोर तरीक़े से उसका विरोध किया।"