'जल्दी फांसी दो, हूरें इंतजार कर रही हैं'

शनिवार, 8 अगस्त 2015 (13:12 IST)
पिछले साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने फांसी पर सात साल से जारी रोक को खत्म करने की घोषणा की थी। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में इस समय फांसी की सजा पाए लोगों की संख्या आठ हजार है जबकि 200 से अधिक कैदियों को पिछले आठ महीने के दौरान फांसी दी जा चुकी है। 
 
साबिर मसीह ने इनमें से करीब एक एक चौथाई लोगों को फांसी के तख़्ते पर चढ़ाया है। उन्होंने बीबीसी की पाकिस्तान संवाददाता शाइमा खलील को बताया कि वो इस पेशे में पीढ़ियों से हैं। साबिर महीस बताते हैं कि यह हमारा खानदानी पेशा है।  हमारे पिता, दादा और परदादा भी अंग्रेजों के जमाने से यही काम करते आए थे। यह पेशा हमारे परिवार का हिस्सा रहा है।
साल 2008 से 2014 के बीच सात साल तक फांसी पर पाकिस्तान की सरकार ने रोक लगा रखी थी। साबिर बताते हैं कि इन सात सालों में वो लगभग घर पर ही रहे। वो हर रोज हाजिरी लगाने के लिए जेल जाते थे और फिर लौट आते थे। 
 
पहली फांसी के बारे में वो बताते हैं कि मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ, वहां मैं अकेला नहीं था। वहां जेल के करीब 50 अधिकारी मौजूद थे, उससे पहले मैं केवल एक बार अपने पिता को फांसी लगाते हुए देखा था। उन्होंने मुझे घर पर ही सिखाया था कि गांठ कैसे बांधते हैं। 
 
वो कहते हैं कि जब मैंने पहली फांसी लगाई तो जेल सुपरिटेंडेट ने मुझसे कहा कि चिंता करने या घबराने की कोई बात नहीं है और जब उसने इशारा किया तो मैंने लीवर खींच दिया। 'मैंने इसके बाद तभी उस ओर देखा जब कैदी फांसी पर लटका हुआ था। यह महज कुछ सेकंड्‍स की बात थी।
 
'तीन मिनट में काम खत्म' : जब किसी की फांसी की तारीख तय हो जाती है तो तैयारी के नाम वो क्या करते हैं? साबिर कहते हैं कि मुझे केवल समय पर जेल पहुंच जाना होता है। जेल अधिकारी मुझे नोटिस भेजते हैं कि फलां जेल
या शहर में मेरी ज़रूरत है।
 
फांसी का फंदा तैयार होता है, लेकिन मैं उस कैदी से इसके बारे में बात नहीं करता। जब किसी के चेहरे पर काला कपड़ा पहनाते हैं या उसकी गर्दन में फांसी का फंदा लगाते हैं तो कैसा लगता है?

इस पर वो कहते हैं कि उस समय मेरे दिमाग में कुछ नहीं चलता है, सिवाय इसके कि तीन मिनट में काम खत्म करना है। फिर तो कैदी को मौत के घाट उतारना होता है।
 
वो बताते हैं कि आम तौर पर फांसी से पहले वो कैदी बहुत शांत दिखते हैं जिन्होंने अपराध किया होता है लेकिन जो निर्दोष होते हैं वो बहुत बेचैन रहते हैं। वो अंत तक माफी की गुहार लगाते रहते हैं। 'मैंने उनके चेहरे को देखा है और मैं उनके भावों को पढ़ सकता हूं। जिन्होंने अपराध नहीं किया होता है उनका चेहरा ही बता देता है कि वो निर्दोष हैं।
 
'हूरें इंतजार कर रही हैं' : कोई फांसी जिसके बारे में अभी भी आपको कोई बात यादगार लगती हो?

 
वो बताते हैं कि एक बात दो सज़ायाफ़्ता चरमपंथियों को एक साथ सज़ा दी जानी थी। वो दोनों फांसी के तख़्ते पर जाने से पहले गले मिले। 
 
'बड़ी उम्र के कैदी ने दूसरे से कहा कि मैं यहीं से जन्नत देख सकता हूं। उसने कहा कि हमें जल्द फांसी दो, हूरें हमारा इंतजार कर रही हैं। उनकी अभी से खुशबू आ रही है। कुछ लोग इस नौकरी को क्रूरता के रूप में देखते हैं जबकि बाकी लोग इसे एक ड्यूटी मानते हैं।
 
लेकिन साबिर अपने पेशे बारे में कहते हैं यह मेरे लिए केवल एक ड्यूटी है।  जो लोग जेल में हैं उन्हें कानून के मुताबिक सजा हुई है। वो वहां सालों से हैं और पूरी प्रक्रिया से होकर गुजरे हैं। इनको फांसी पर लटकाना हमारी मजबूरी है।
 
वो कहते हैं कि फांसी देने के बाद जब मैं घर जाता हूं तो मैं उन लोगों के बारे में बिलकुल भी नहीं सोचता जिनको मैंने फांसी लगाई थी। इसमें सोचने जैसी कोई बात नहीं है। 'मुझे लड़ाई वाले मुर्गे पालने का शौक है और उसी में मैं व्यस्त रहता हूं।' 

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