पैसा लो और स्वीडन से जाओ, प्रवासियों को दिए जाएंगे 34000 डॉलर

राम यादव

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025 (18:42 IST)
स्वीडन की वर्तमान सरकार अपने यहां रहने वाले विदेशी प्रवासियों से छुटकारा पाना चाहती है। चाहती है कि वे अपने देशों में लौट जाएं। उनकी स्वदेश वापसी को रसीला बनाने के लिए उन्हें अच्छा-ख़ासा पैसा मिलेगा। स्वीडन का पड़ोसी डेनमार्क बहुत पहले से ही ऐसा कर रहा है।

स्वीडन अब तक एक ऐसा देश रहा है, जो अपनी उदारवादी नीतियों के कारण दुनियाभर के लोगों को आकर्षित करने वाली मानवीयता की महाश्क्ति के रूप में प्रसिद्ध हो गया। 1960 वाले दशक के उत्तरार्ध में, बहुसंस्कृतिवाद की विचारधारा ने यानी अन्य देशों से आए लोगों तथा उनकी संस्कृतियों के साथ घुलमिलकर रहने की सोच-समझ ने यूरोप के इस अनोखे देश की राजनीतिक मुख्यधारा में सबसे पहले स्थान पाया था।
 
राज्य प्रायोजित बहुरंगी संस्कृति : 14 मई, 1975 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे की सोशल डेमोक्रेटिक सरकार के नेतृत्व में स्वीडिश संसद ने सर्वसम्मति से एक नई आप्रवासन और अल्पसंख्यक नीति के पक्ष में मतदान किया। प्रधानमंत्री पाल्मे अपने देश में अलग-अलग देशों के लोगों और उनकी संस्कृतियों का स्वागत होते देखना चाहते थे।
 
राज्य प्रायोजित बहुरंगी संस्कृति की पक्षधर इस नई नीति ने ही उस पिछली नीति का स्थान लिया, जो स्वीडन को उसकी मूल जनता वाली एकरूपीय सांस्कृतिक पहचान का देश बनाए रखने पर आधारित थी। किंतु नई नीति समय के साथ अब स्वीडन में इस्लाम और इस्लामी कट्टरपंथियों के बोलबाले तथा कई अन्य सिरदर्दों का मुख्य कारण बन गई है। 
 
स्वीडन इस बला से अब छुटकारा पाना चाहता है। उसकी इस समय की अनुमानित जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 60 लाख है। 25 प्रतिशत निवासी किसी दूसरे देश से आए हैं और 33 प्रतिशत के माता-पिता में से कोई एक विदेशी है। यूरोप में 2015 के शरणार्थी संकट के दौरान (उस समय लगभग सभी शरणार्थी इस्लामी देशों से आए थे) स्वीडन ने यूरोप के किसी भी अन्य देश के साथ आनुपातिक तुलना में अधिक शरणार्थियों को शरण दी। उसके बाद से तो दंगों-फ़सादों और अपराधों की बाढ़-सी आ गई है। हत्या, बलात्कार और सड़कों पर 'गैंगवार' आम बातें बन गई हैं। 
 
सामाजिक एकात्मता बनी भूल-भुलैया : 18 अक्टूबर, 2022 से स्वीडन में तीन पार्टियों की एक मिलीजुली सरकार है। इस नई सरकार के दक्षिणपंथी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि विशेषकर ग़ैर यूरोपीय विदेशियों को रसा-बसाकर उन्हें मूल स्वीडिश समाज के साथ एकात्म कर सकना एक भूल-भुलैया है। वे तो स्थानीय समाज के साथ एकात्म होने के बदले उस पर अपनी ही शर्तें और मान्यताएं थोपना चाहते हैं। तीन पार्टियों का नया गठबंधन इस आधार पर बना था कि आप्रवासन (विदेशियों के आगमन) को रोका और उत्प्रवासन (विदेशियों के निर्गमन) को बढ़ावा दिया जाएगा। 
 
अतः अब तय हुआ है कि उत्प्रवासन को प्रोत्साहन देने और आकर्षक बनाने के लिए स्वीडन में रहने वाले ऐसे आप्रवासियों को 2026 से 3,50,000 तक स्वीडिश क्रोनर (34,000 डॉलर) दिए जाएंगे, जो स्वीडन छोड़कर जाने के लिए तैयार हैं। स्वीडन छोड़कर स्वदेश या कहीं भी जाने के लिए आप्रवासियों को पहले भी एक अनुग्रह राशि मिलती थी और इस समय भी मिल रही है, पर वह बहुत आकर्षक नहीं है। उसका प्रभाव लगभग नहीं के बराबर है।
 
विकल्प की तलाश : विकल्प के तौर पर स्वीडन की सरकार ने केवल 60 लाख की जनसंख्या वाले अपने दक्षिणी पड़ोसी देश डेनमार्क की तरफ देखा। डेनमार्क भी शरणार्थियों और आप्रवासियों से परेशान है। वह अपने यहां रहने वाले विदेशी मूल के लोगों के स्वैच्छिक प्रस्थान के लिए कहीं ऊंची धनराशि का भुगतान करता है। इससे वहां उत्प्रवासन में वृद्धि हुई है। प्रति वर्ष 100 से 200 लोगों की वृद्धि हुई है, लेकिन यह संख्या भी इतनी बड़ी नहीं है कि स्वीडन का इससे काम बन जाए।
 
स्वीडन की सरकार यह तो चाहती है कि वहां रहने वाले विदेशी शरणार्थी और आप्रवासी वहां से जाएं, पर इस दुविधा में भी है कि ऐसा भी न लगे कि उन्हें निशाना बनाकर निकाला जा रहा है या उनकी ज़ेब इसलिए गरम की जा रही है कि वे कोई शोर न मचाएं। प्रवासियों संबंधी मामलों के स्वीडिश मंत्री योहान फ़ोरसेल ने मीडिया से कहा कि हम अपनी प्रवासन नीति के प्रतिमान इस समय बदल रहे हैं।    
 
40 साल से है अनुदान नियम : फ़ोरसेल ने बताया कि स्वीडन से जाने के लिए तैयार हर वयस्क प्रवासी को इस समय 10,000 क्रोनर (1डॉलर=11क्रोनर) तक और अवयस्क या बच्चों को 5,000 क्रोनर तक दिए जाते हैं। यदि वयस्कों और बच्चों वाला कोई पूरा परिवर जाने को तैयार हो, तो उसे 40,000 क्रोनर तक मिल सकते हैं। स्वीडन से जाने के लिए कुछ न कुछ अनुदान देने की व्यवस्था वास्तव में 1984 से ही है, पर इसे बहुत कम ही लोग जानते थे और अनुदान राशि भी बहुत कम होती थी। 
 
प्रवासी मामलों के मंत्री फ़ोरसेल को आशा है कि पहले की अपेक्षा कहीं अधिक अनुदान धनराशि उन लाखों विदेशी आप्रवासियों और शरणार्थियों को सबसे अधिक लुभाएगी, जो स्वीडन में या तो लंबे समय से बेरोज़गार हैं या जिनकी आय इतनी कम है कि उन्हें सरकारी निर्वाह-भत्ता लेना पड़ता है।
 
दूसरी ओर स्वीडन की सरकार द्वारा ही करवाए गए एक आकलन के अनुसार, पिछले दिसंबर में सरकार को सलाह दी गई कि स्वीडन छोड़कर जाने के लिए दी जाने वाली भावी अनुदान धनराशि बहुत अधिक भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि तब इस योजना पर होने वाला संभावित खर्च, योजना की उपयोगिता से कहीं अधिक सिद्ध हो सकता है। दुनिया को यह भी आभास नहीं होना चाहिए कि स्वीडन विदेशी आप्रवासियों को पैसे देकर भगा रहा है।
 
कब और कितना लाभ : प्रश्न यह भी है कि स्वीडन अपने यहां रहने वाले विदेशी आप्रवासियों से पिंड छुड़ाने के लिए जो धनराशि खर्च करने वाला है, उसका लाभ कब और कितना दिखाई पड़ेगा? सरकार द्वारा करवाए गए आकलन के अनुसार, अनुमानतः हर साल क़रीब 700 विदेशी प्रवासी स्वीडन छोड़कर जाएंगे यानी हर दिन मुश्किल से औसतन केवल दो प्रवासी। 15 साल बाद ही पता चल पाएगा कि यह प्रलोभन योजना उचित थी या नहीं, और यदि वह सफल रही, तो 25 साल बाद कहा जा सकेगा कि उससे प्रतिवर्ष 20 करोड़ क्रोनोर की बचत हुई।
 
स्वीडन, यूरोप का अकेला ऐसा देश नहीं है, जो विदेशी आप्रवासियों से राहत पाने के लिए प्रयत्नशील है। पड़ोसी देश डेनमार्क, हर जाने वाले प्रवासी को कम से कम 15,000 डॉलर, फ्रांस 2,800 डॉलर, जर्मनी 2,000 डॉलर और नॉर्वे क़रीब 1,800 डॉलर देता है।

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