जब कोई आपको आकर ये कहता है कि तुम्हारे लिए एक बुरी ख़बर है तो, आप अक्सर उस वक़्त को टालना चाहते हैं। लेकिन, ये भी चाहते हैं कि वो बुरी ख़बर आपको मालूम हो जाए। ताकि आप उससे निपटने की तैयारी कर सकें।
अगर आपको ये कहें कि कुछ परिंदे और जानवर भी ऐसा ही करते हैं, तो आप शायद ही यक़ीन करें। मगर है ये बिल्कुल सच। बहुत से जानवर और परिंदे, बुरी ख़बर सुनने के लिए खाने को भी क़ुर्बान कर देते हैं। उनके लिए वो बुरी ख़बर जानना ज़रूरी होता है। भले ही उससे उनके प्राण क्यों न चले जाएं।
इस मामले में कबूतर सबसे आगे हैं। अगर उन्हें खाने और बुरी ख़बर के बीच चुनना होता है तो वो बुरी ख़बर जानने को अहमियत देते हैं। ये एक तजुर्बे से मालूम हुआ है। अब आप ये न समझिए कि वैज्ञानिक कबूतरों के पास गए और अख़बार से चुनकर बुरी ख़बरें सुनाने लगे।
असल में कबूतरों पर पुर्तगाल की एक वैज्ञानिक इनेस फोर्टे और उनके साथियों ने एक तजुर्बा किया। उन्होंने मिन्हो यूनिवर्सिटी में ये रिसर्च की। जिसमें छह कबूतरों को चुना गया। इन कबूतरों को इस तरह से ट्रेनिंग दी गई कि वो अपनी चोंच से प्लास्टिक के दो कटोरों पर टक्कर मारें। एक कटोरे पर चोंच मारने से लाल रंग की बत्ती जलती थी।
जिसके जलने पर कबूतरों को खाना मिलता था। वहीं दूसरे कटोरे पर चोंच मारने से हरे रंग की लाइट जलती थी। जिससे कबूतरों को खाना नहीं मिलता था। बाईं ओर के कटोरे पर चोंच मारने पर लाल या हरी दोनों में से कोई भी बत्ती जल सकती थी। जिसके दस सेकेंड बाद कबूतरों को खाना दिया जाता था। इस दौरान केवल 20 फ़ीसद मौक़ों पर ऐसा होता था कि लाल लाइट जलती थी।
जिससे कबूतरों को खाना मिलने की उम्मीद जगे। वहीं अस्सी फ़ीसद मौक़ों पर हरी बत्ती ही जलती थी। जिसका मतलब था कि उन्हें खाना नहीं मिलेगा। मतलब ये कि कबूतर अगर लगातार बाईं ओर के कटोरे पर चोंच मारते। तो, उन्हें 13 मिनट बाद ही खाने का मौक़ा मिलना था।
वहीं अगर वो दाहिनी तरफ़ के कटोरे पर चोंच मारते तो इसमें पीली या नीली बत्ती जलती थी। इसका मतलब ये होता था कि उन्हें खाना मिल भी सकता था। या नहीं भी मिल सकता था। पर ये साफ़ था कि अगर कबूतर दाहिनी तरफ़ के कटोरे पर चोंच मारते तो उनके खाना पाने की उम्मीद ज़्यादा थी।
मगर वैज्ञानिकों ने देखा कि कबूतर ज़्यादातर बाईं ओर के कटोरे पर ही चोंच मार रहे थे। वैज्ञानिकों ने इसका ये मतलब निकाला कि कबूतरों को पता था कि बाएं कटोरे पर चोंच मारने से उन्हें खाना मिलने की उम्मीद कम है। फिर भी उन्होंने ऐसा ही किया।
साफ़ है कि जानवर हमेशा उस नज़रिए से ज़िंदगी को नहीं देखते हैं, जिससे हम लोग देखते हैं। उन्हें भी जानकारी चाहिए होती है। चाहे इसके लिए जान की बाज़ी ही क्यों न लगानी पड़े। इस तजुर्बे के नतीजे जर्नल ऑफ एक्सपेरीमेंटल साइकोलॉजी में छपे थे। इसमें बताया गया था कि कबूतर कम खाना भी खाने को तैयार थे। अगर इसके बदले में उन्हें कोई नई जानकारी मिले।
इसमें शामिल वैज्ञानिक मार्को वास्कॉनसेलोस ने कहा कि उन्होंने रिसर्च के दौरान कबूतरों पर किसी ख़ास विकल्प को चुनने का दबाव नहीं बनाया। जब ट्रेनिंग से उन्हें पता चल गया कि किस रंग की लाइट जलने का क्या मतलब होता है। तो वो कोई भी विकल्प चुनने के लिए आज़ाद थे। फिर भी उन्होंने उसी कटोरी पर चोंच मारी, जहां पर खाना कम मिलने की उम्मीद थी।
मतलब साफ़ है कि जब परिंदे खाना तलाशते हैं तो वो कुछ संकेत खोजते हैं जिनसे पता लगे कि खाना कहां मिलेगा। जहां खाना मिलने की उम्मीद ज़्यादा रहती है। वहां वो तलाश रोक देते हैं। और जहां खाना मिलने की उम्मीद कम रहती है, वहां खाने की तलाश जारी रहती है।
कबूतरों पर हुए इस तजुर्बे से साफ़ है कि उन्हें जानकारी चाहिए होती है। इसी के आधार पर वो फ़ैसले लेते हैं। ख़बर बुरी हो तो भी वो उसके लिए तैयार होते हैं।