कम उम्र में लड़कियों की शादी के चलन को कैसे रोकें?
बुधवार, 29 नवंबर 2017 (12:08 IST)
- डेविड रेड (इनोवेटर्स, भारत)
जब तक आप ख़ुद से देख नहीं लेते हैं आपके लिए यकीन करना मुश्किल होगा कि राजस्थान में एक लड़की को स्कूल जाने से पहले घर का कितना काम करना पड़ता है। उनके लिए घर का काम पहली प्राथमिकता है और स्कूल सबसे आखिरी। लेकिन शिक्षा से जुड़े एक संगठन एजुकेट गर्ल ने तीस लाख लड़कियों को पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है और उन्हें दिखाया है कि कैसे पढ़ाई-लिखाई से उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल सकती है।
भगवंती लैसीराम हर रोज़ सुबह-सुबह रोटी बनाने के साथ अपने दिन की शुरुआत करती हैं। इसके बाद वो मुर्गियों को दाना डालती हैं और फिर बर्तन धोती हैं। हमेशा उनके पिता उन्हें अगला काम घर का क्या करना है, यह याद दिलाते रहते हैं। उनके पिता आवाज़ देते हैं, "बकरियों को चराने के लिए खेत में ले जाना ज़रूरी है। वो ज़्यादा देर अब इंतज़ार नहीं कर सकते।"
आखिरकार घर के सारे काम ख़त्म कर के भगवंती स्कूल जाने के लिए तैयार होती हैं और स्कूल बैग पीठ पर डालकर स्कूल के लिए निकल पड़ती हैं जो कि उनके घर से चार किलोमीटर दूर है।
वो बताती हैं, "कई लड़कियां हमारे गांव में इसलिए स्कूल नहीं जातीं क्योंकि स्कूल बहुत दूर है। अगर हमारे गांव में 15 साल के उम्र के बच्चों के लिए स्कूल खुल जाए तो फिर बहुत सारी लड़कियां पढ़ पाएंगी।" वो आगे कहती हैं, "लड़कियां स्कूल जाने से डरती हैं क्योंकि उन्हें स्कूल जाने के लिए हाइवे पार कर के जाना होता है जहां कई ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं।"
लापता स्कूली छात्राएं
एजुकेट गर्ल्स के पास वॉलंटियर्स की एक टीम है जो कि गांवों में घर-घर पर जाकर यह देखती है कि कोई लड़की ऐसी तो नहीं जो स्कूल नहीं जा रही हो। ऐसी लड़की मिलने पर इस टीम के सदस्य उस परिवार के सदस्यों को समझाते हैं कि क्यों लड़कियों को स्कूल भेजना ज़रूरी है और फिर समाज के लोगों के साथ मिलकर उन लड़कियों के स्कूल में दाखिला कराने की योजना बनाते हैं।
वॉलंटियर्स स्कूल के साथ मिलकर लड़कियों की सुविधाओं का ख़्याल रखते हैं कि स्कूल में शौचालय है कि नहीं। वे इन लड़कियों को अंग्रेज़ी, गणित और हिंदी पढ़ाने में मदद भी करते हैं।
अब तक उन लोगों ने लाखों बच्चों की मदद की है और डेढ़ लाख बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया है। एजुकेट गर्ल्स की एक सदस्या मीना भाटी मुझे एक ऐसे परिवार में ले गईं जहां चार लड़कियों की शादी पहले ही कम उम्र में हो चुकी थी और अब पांचवीं लड़की को भी 14 साल की उम्र में शादी होने की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ा था।
मीना बताती हैं, "यहां मां-बाप को लगता है कि लड़कियों को पढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। उन्हें तो सिर्फ घर का काम करना है और जब घर पर कोई ना हो तो मवेशियों और बच्चों की देखभाल करनी है। लड़कियों को पढ़ाना तो समय की बर्बादी है।" एजुकेट गर्ल्स की स्थापना करने वाली सफ़ीना हुसैन का मानना है कि वो जो कुछ भी ज़िंदगी में कर सकी हैं वो सिर्फ पढ़ाई-लिखाई की बदौलत ही कर पाई हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 10 से 14 साल की उम्र की तीस लाख लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं।
बाल वधू
लड़कियों के स्कूल नहीं जाने की एक बड़ी वजह कम उम्र में उनकी शादी हो जाना भी है। सफ़ीना बताती हैं, "राजस्थान में 50-60 फ़ीसदी लड़कियां 18 साल से कम उम्र की शादीशुदा हैं तो वहीं 10-15 फ़ीसदी लड़कियां 10 साल से कम उम्र की शादीशुदा हैं।"
यूनिसेफ़ के मुताबिक भारत में किसी भी और देश से अधिक बाल वधुएं हैं। शादीशुदा महिलाओं में से क़रीब आधी महिलाएँ 18 से कम उम्र की हैं। एजुकेट गर्ल्स टीम की सदस्या नीलम वैष्णव इस बात की उदाहरण हैं कि लड़कियों को शादी के लिए कितने दबाव झेलने पड़ते हैं।
उनकी शादी 14 साल की उम्र में उनकी भाभी के भाई से कर दी गई थी। परंपरा के मुताबिक उन्हें अपना घर छोड़ अपने पति के घर जाना पड़ा, लेकिन उनके ससुराल वालों ने कहा था कि वो स्कूल जाना जारी रख सकती हैं। जब उनके ससुराल वाले अपनी बात से मुकर गए तो नीलम ने शादी तोड़ने का फ़ैसला लिया।
वो बताती हैं, "जब मैंने तलाक़ लेने का फ़ैसला लिया तो मुझे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। गांव के लोगों ने खूब ताने मारे। मुझे कई तरह के नाम दिए गए। वे अब तक ऐसा ही करते हैं। मेरे ससुराल वालों ने मुझे चरित्रहीन और बेशर्म कहा।"
बड़ी धरोहर
तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए स्कूल जाने वाली भगवंती अपने भविष्य के बारे में बात करती हैं। वो कहती हैं, "मैं पढ़ाई खत्म करने के बाद स्कूल में शिक्षिका बनना चाहती हूँ और दूसरी लड़कियों को पढ़ाना चाहती हूँ। जब आप शिक्षित होइएगा तो आपके अंदर हिम्मत होगी।"
वो कहती हैं, "अगर मैं कामयाब होकर नौकरी पा सकूंगी तो अपने परिवार को आर्थिक तौर पर मदद दे पाऊंगी।" सफ़ीना के लिए यह सुनना एक सुखद एहसास है क्योंकि उनका मानना है कि औरतें परिवार में बहुत अहम भूमिका अदा करती हैं और लड़कियों को शिक्षित कर भारत की कई अहम समस्याओं को ठीक किया जा सकता है।
यूनेस्को के मुताबिक मां की पढ़ाई का हर एक अतिरिक्त साल नवजात की मृत्यु दर में 5 से 10 फ़ीसदी दर की गिरावट लाता है और उसकी जीवन भर की कमाई में 20 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी करता है। सफ़ीना कहती हैं, "आप विकास के किसी भी मापदंड को उठा लीजिए, आप पाइएगा कि लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर इसमें सुधार लाया जा सकता है। इसलिए लड़कियां हमारी सबसे बड़ी धरोहर हैं।"