ये किसी उत्पाद के दाम नहीं बल्कि उन लड़कियों की हक़ीक़त है जिन्हें दलालों ने देह व्यापारियों को बेच दिया था। आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाक़े के अनंतपुर और कुडप्पा ज़िले सूखे से बुरी तरह प्रभावित रहे हैं। इन ज़िलों से लड़कियों की दिल्ली, मुंबई और पुणे जैसे शहरों के लिए तस्करी होती रही है।
ग़ैर सरकारी संगठनों का दावा है कि तस्करी का जाल सऊदी अरब जैसे देशों तक फैला हुआ है। लेकिन पुलिस का कहना है कि अब हालात ऐसे नहीं है। बीबीसी ने अनंतपुर ज़िले की तीन महिलाओं से बात की जिन्हें जिस्मफ़रोशी के धंधे से आज़ाद कराया गया है।
ये लड़कियां लंबे समय तक शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा झेलने के बाद लौटी हैं। पढ़िए, इन महिलाओं की आपबीती, इन्हीं की ज़ुबानी।
रमा देवी : मेरा नाम रमा देवी है। मेरी शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी। ससुराल में मेरा शोषण किया गया। एक बेटी को जन्म देने के बाद भी ये शोषण चलता रहा। जब मुझसे तनाव सहा नहीं गया तो मैं लौटकर अपने मायके आ गई।
वहां मेरी मुलाक़ात पुष्पा से हुई। वो विकलांग थी और एक होटल में काम करती थी। एक महिला रोज़ाना हमारा हालचाल पूछती थी। एक दिन वो हमें फ़िल्म दिखाने ले गई। मैं अपनी बेटी को मां के पास छोड़कर फ़िल्म देखने गई थी।
जब हमें होश आया तो हमने देखा कि हम अनजान जगह पर हैं। वहां लोग हिंदी में बात कर रहे थे जो हमारी समझ से बाहर थी। तीन दिन गुज़र गए। हमें बाद में पता चला कि उस महिला ने मुझे और पुष्पा को अस्सी हज़ार रुपए में महाराष्ट्र के भिवंडी में बेच दिया है।
हमने बहुत गुहार लगाई लेकिन किसी को हम पर दया नहीं आई। उस समय मेरी बेटी सिर्फ़ छह साल की थी।
उन्होंने मेरे ज़ेवर उतार लिए, जिसमें मेरा मंगलसूत्र और पैरों के बिछुए भी थे। उन्होंने पुष्पा को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने हमसे वहां आने वाले आदमियों का मन बहलाने को कहा।
छह महीने बीत गए। मैं अपनी बेटी के बारे में सोचकर बहुत रोती थी। मैंने एक बार भागने की कोशिश की लेकिन पकड़ ली गई। उन्होंने मेरे हाथ पैर बांध दिए। वो मेरी आंखों में मिर्ची डाल देते। ये पीड़ा असहनीय थी। उन्होंने कभी हमें भरपेट खाना नहीं खिलाया। एक साल तक बिना पूरी नींद और खाने के मैं उन हालात में रही।
एक साल बाद मेरे विद्रोही स्वभाव की वजह से वो मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गए। लेकिन पुष्पा को तब भी नहीं छोड़ रहे थे। पुष्पा के लिए भी मुझे लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्होंने हमें दो हज़ार रुपए दिए और कहा कि ये तुम्हारी एक साल की कमाई है। जब मैं लौटकर घर पहुंची तो मेरे परिवार ने कहा कि उन्हें लगता था कि मैं मर गई हूं।
मेरे परिजन बेहद ग़रीबी में रह रहे थे और उनके पास मेरा और मेरी बेटी का पेट भरने का ज़रिया नहीं था। मैंने जब अपनी बेटी को गोद में लिया और उससे पूछा कि उसकी मां कहां है तो उसने कहा कि वो मर गई है। उस समय मैं अपनी भावनाओं पर क़ाबू नहीं कर पाई।
अपनी बेटी की बात सुनने के बाद मेरे मन में आत्महत्या का विचार आया। लेकिन फिर मुझे अहसास हुआ कि मेरी तरह कितनी ही और लड़कियां हैं जो भिवंडी के वेश्यालयों में यह दर्द झेल रही हैं। मैंने उनका जीवन बचाने का फ़ैसला किया। हमने अब तक भिवंडी से कुल तीस महिलाओं को बचा लिया है।
रमा देवी का कहना है कि उन सब लोगों को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए जिन्होंने उनसे इज़्ज़त की ज़िंदगी छीन ली। रमा देवी अब अपने पति के साथ रह रही हैं और दोनों मज़दूरी करते हैं।
रमा उस नरक से साल 2010 में निकलकर आई थीं। हालांकि उन्हें सरकारी सहायता मिलने में दो और साल लग गए। साल 2012 में उन्हें 10,000 रुपए की आर्थिक मदद दी गई।
वो वेश्यालय से तो बाहर आ गई हैं लेकिन उनके जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। उन्हें अब तक कमाई का कोई ज़रिया नहीं मिला।
पार्वती : मेरा नाम पार्वती है और मेरे दो बच्चे हैं। मेरे पति को लकवा मार गया था। घर चलाने के लिए मैं नौकरानी का काम करने सऊदी अरब चली गई। मैंने सोचा था कि कुछ पैसे कमाऊंगी तो मेरा घर चल जाएगा।
लेकिन एक दलाल ने मुझे रोज़गार देने के नाम पर सऊदी अरब के एक परिवार को बेच दिया। शुरू में एक सप्ताह तक मुझे एक घर में रखा गया था। लेकिन इसके बाद जिस जगह मुझे भेजा गया वो एक नर्क था।
उस घर में कई आदमी रहते थे। एक 90 साल के व्यक्ति ने मेरा बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन मैं उसके चंगुल से बच गई। अगले दिन घर के मालिक के बेटे ने मेरा बलात्कार करने की कोशिश की। उन्होंने मेरे बदन को सिगरेट से दाग दिया था। उन्होंने मुझे मजबूर किया कि मैं घर में रहने वाले लोगों की बात सुनूं।
मुझे ऐसे लड़के के साथ सोना पड़ा जो मेरे बेटे की उम्र का था। उस लड़के ने जब मेरा बलात्कार किया तब उसका बाप मोबाइल पर पोर्न वीडियो दिखा रहा था। उन्होंने एक सप्ताह तक मुझे खाना नहीं खिलाया और मुझे बाथरूम की टंकी से पानी पीना पड़ा।
मैंने सोचा कि हर दिन इस अत्याचार से गुज़रने के बजाए ज़हर खा लूं और जान दे दूं। वो पीरियड के दौरान भी मुझे नहीं छोड़ते थे। घर में जो मेहमान आते थे वो भी मेरा शोषण करते थे।
वो दिन में मुझसे घर की नौकरानी का काम कराते और रात को मेरे जिस्म का शोषण करते। जब मैंने ये बात अपने ब्रोकर को बताई तो उसने कहा कि तुम्हें पांच लाख रुपए में बेचा गया है।
मैंने उस घर से बाहर निकलने और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का फ़ैसला कर लिया। आख़िरकार उन्होंने मुझे छोड़ दिया और मैं पुलिस की मदद से भारत पहुंच सकी। अब हम सिर्फ़ बाजरे का ख़मीर खाकर जी रहे हैं।
मैंने और मेरे पति ने केरल जाकर मज़दूरी करने का फ़ैसला किया। मैंने सुना है कि केरल में 500 रुपए की मज़दूरी मिलती है। अगर काम मिल गया तो मैं वहां जाऊंगी। अगर नहीं तो मैं भीख मांगकर अपना पेट भरूंगी। मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा है।
पार्वती को साल 2016 में सऊदी अरब से आज़ाद कराया गया था। साल 2017 में उन्हें 20,000 रुपए की सरकारी मदद दी गई थी।
लक्ष्मी : वेश्यावृत्ति के ऐसे ही जाल में फंसी एक और महिला हैं लक्ष्मी। लक्ष्मी ने अपने ही मामा के साथ विवाह किया था। दक्षिण भारत के कई ज़िलों में ऐसी शादियों की परंपरा है।
लक्ष्मी कहती हैं कि उनके पति भले ही उनके मामा थे लेकिन वो हमेशा उन्हें शक़ की निग़ाह से देखते और उनका शोषण किया करते। एक दिन उन्होंने मेरे बदन पर केरोसीन डाल दिया। वो मुझे आग लगाते इससे पहले ही मैं घर से बाहर भाग गई।
उन्होंने फिर भी मुझे नहीं छोड़ा। बीच सड़क पर मुझे नंगा कर दिया। एक महिला ने मेरी हालत देख ली थी। उसने मुझे हैदराबाद में काम दिलाने का वादा किया। वो मुझे समझाया करती थी कि अगर मैं अपने पति को छोड़कर हैदराबाद चली जाऊं तो 10,000 रुपए महीना तक कमा सकती हूं।
वो मुझे बार-बार ये समझाती कि मैं अपने माता पिता पर बोझ बनती जा रही हूं। धीरे-धीरे ये बात मेरे मन में बैठ गई। मैं बिना घर में बताए हैदराबाद काम करने चली गई। मैंने कभी हैदराबाद नहीं देखा था और मैं उस महिला के साथ चली आई थी।
हम बस से कादिरी होते हुए धर्मावरम पहुंचे जहां उसने मेरी मुलाक़ात दो लोगों से कराई। उन्होंने मुझसे बुर्का पहनने के लिए कहा। जब मैंने वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि अगर किसी ने मुझे देख लिया तो वो मुझे अपने साथ ले जाएंगे।
वहां से हमने ट्रेन से सफ़र किया। मुझे अहसास हुआ कि मैं हैदराबाद के बजाय दिल्ली पहुंच गई हूं। ट्रेन से उतरने के बाद एक और महिला हमें अपने घर ले गई। उसके घर क़रीब 40 और लड़कियां थीं। सभी ने जींस और मिनी स्कर्ट पहन रखी थी और लिपस्टिक लगा रखी थी।
वो दिल्ली का जीबी रोड इलाक़ा था। एक शाम वो मुझे ब्यूटी पार्लर लेकर गई। जब मैंने सवाल किया तो मुझे बताया कि वो मुझे भी उन लड़कियों जैसा बना देंगी।
मेरे साथ जो हो रहा था मैंने उसका एक महीने तक विरोध किया। मुझे भूखा रखा गया। उन्होंने मुझे एक कुर्सी पर बिठाकर मेरे हाथ-पैर बांध दिए। मेरी आंखों में मिर्च डाल दी जाती थी और ज़बरदस्ती मेरे मुंह में मिर्ची पाउडर ठूंस दिया। मेरा मुंह जल गया और मैं एक महीने तक ठीक से खा नहीं पाई।
आख़िरकार मैं हार गई। जान बचाने के लिए मुझे उनकी बात माननी पड़ी। जब मुझे ग्राहकों के पास भेजा गया तो ये किसी नर्क से कम नहीं था।
वो सिगरेट से मेरा बदन दाग दिया करते। अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए वो मुझे इशारों पर नचाया करते। जो लड़कियां बात नहीं मानतीं उन्हें सेक्स इच्छा जगाने के इंजेक्शन दिए जाते। ऐसा मेरे साथ भी किया गया।
घर की रखवाली करने वाले गार्ड ने एक दिन 1,000 रुपए देकर मुझे भगा दिया। तनाव और शोषण के इस अंतराल के बाद जब मैं एक बार फिर अपने मामा के घर लौटी तो कोई भी मुझे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था।
मैं कुछ दिन तक अकेले रही और फिर जिसने मेरा सौदा किया था उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज करवा दिया। लेकिन पुलिस ने उसे कुछ समय बाद ही छोड़ दिया। हमें रोज़गार के बहाने धोखा दिया गया था।
बहुत सी औरतें अभी भी ऐसी जगहों पर उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। अगर सूखा न पड़ा होता तो शायद हमें ऐसे हालात में न धकेला जाता। हमारा जीवन थोड़ा बेहतर होता।
लक्ष्मी उस नर्क से 2009 में बाहर आईं थीं। लेकिन सरकारी मदद मिलने में लंबा वक़्त लगा। साल 2017 में ही उन्हें 20,000 रुपये की आर्थिक मदद मिल सकी। वो आजकल अकेले रहती हैं और मज़दूरी करती हैं।
सूखे और ग़रीबी का फ़ायदा उठा रहे हैं दलाल : देश के कई हिस्सों में महिलाओं की तस्करी जारी है। रेड्स संस्था से जुड़ी भानुजा कहती हैं कि रायलसीमा इलाक़े से जो तस्करी हो रही है उसके पीछे ख़ास कारण हैं। उनकी संस्था बीस साल से तस्करी की शिकार महिलाओं की मदद के लिए काम कर रही है।
"रायलसीमा में बारिश की कमी की वजह से भीषण सूखे के हालात रहे हैं। लगातार पड़ रहे सूखे की वजह से बेरोज़गारी है, जो महिलाओं को दलालों के चंगुल में पहुंचा देती है।" भानुजा बताती हैं कि "अब तक उनकी संस्था 318 महिलाओं को भिवंडी, दिल्ली और मुंबई के वेश्यालयों से बचा चुकी है।" वो पुलिस और जांच एजेंसियों की मदद से ऐसा कर पाती हैं।
वेश्यालयों से बचाई गई महिलाओं को सरकार 20,000 रुपए की आर्थिक मदद देती है। भानुजा के मुताबिक़ ये मदद दिलवाने में दो से तीन साल तक लग जाते हैं, जो ठीक नहीं है। उनका कहना है कि पुलिस भी इस तरह की गतिविधियों को रोकने में नाकाम रही है। जेल से छूटने के बाद दलाल फिर से सक्रिय हो जाते हैं।
भानुजा का कहना है कि कुछ पुलिसकर्मी तस्करी की पीड़ित महिलाओं पर ही मुक़दमे वापस लेने का दबाव बनाते हैं ताकि तस्कर जेल से बाहर आ सकें। भानुजा कहती हैं कि "साल 2015 में उनके घर में आग लगा दी गई थी।" सौभाग्य से उस वक़्त घर के भीतर कोई नहीं था। बाद में कुछ संदिग्धों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज करवाया गया। भानुजा का दावा है कि "बाद में एक व्यक्ति उनके पास आया और मुक़दमा वापस लेने के बदले दस लाख रुपए की पेशकश की।"
अनंतपुर ज़िले के पुलिस अधीक्षक जीवीजी अशोक यह तो मानते हैं कि यहां से पहले तस्करी होती रही है लेकिन ये भी कहते हैं कि अब हालात ऐसे नहीं हैं। अशोक का दावा है कि "पुलिस ने इस मुद्दे पर बहुत ध्यान दिया है और अब तस्करी को ख़त्म कर दिया है।" वो कहते हैं कि "अब महिलाओं की खाड़ी देशों में तस्करी किए जाने की कोई शिक़ायत सामने नहीं आती है।"
जीवीजी अशोक बताते हैं कि "तस्करी रोकने के लिए ही एक विशेष अधिकारी को कादिरी कस्बे में तैनात किया है। अनंतपुर ज़िले के सभी कस्बों में महिला वॉर्डन भी तैनात की गई हैं जो तस्करी पर नज़र रखती हैं। यही नहीं पूरे ज़िले में 1500 स्वयंसेवक भी तैनात की गई हैं जिन्हें हर महीने 1,000 रुपए की पगार दी जाती है। पीड़ित महिलाएं मदद के लिए इनसे संपर्क कर सकती हैं।" साथ ही जिन लोगों का तस्करी का रिकॉर्ड है, उनकी गतिविधियों पर भी नज़र रखी जा रही है।