ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड इतने ताक़तवर क्यों?

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017 (11:10 IST)
साल 1979 की ईरानी क्रांति के बाद मुल्क में रिवॉल्यूशनरी गार्ड का गठन किया गया था। ये ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खुमैनी का फैसला था। रिवॉल्यूशनरी गार्ड का मक़सद नई हुकूमत की हिफाज़त और आर्मी के साथ सत्ता संतुलन बनाना था।
 
ईरान में शाह के पतन के बाद हुकूमत में आई सरकार को ये लगा कि उन्हें एक ऐसी फौज की जरूरत है जो नए निजाम और क्रांति के मक़सद की हिफाज़त कर सके। ईरान के मौलवियों ने एक नए क़ानून का मसौदा तैयार किया जिसमें रेगुलर आर्मी को देश की सरहद और आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा दिया गया और रीवॉल्यूशनरी गार्ड को निज़ाम की हिफाज़त का काम दिया गया।
 
रिवॉल्यूशनरी गार्ड
लेकिन जमीन पर दोनों सेनाएं एक दूसरे के रास्ते में आती रही हैं। उदाहरण के लिए रिवॉल्यूशनरी गार्ड कानून और व्यवस्था लागू करने में भी मदद करती हैं और आर्मी, नौसेना और वायुसेना को लगातार उसका सहारा लगातार मिलता रहा है। वक्त के साथ-साथ रिवॉल्यूशनरी गार्ड ईरान की फौजी, सियासी और आर्थिक ताकत बन गई।
 
रिवॉल्यूशनरी गार्ड के मौजूदा कमांडर-इन-चीफ़ मोहम्मद अली जाफरी ने हर उस काम को बखूबी अंजाम दिया है जो ईरानी के सुप्रीम लीडर ने उन्हें सौंपा। ईरान की वॉलंटियर आर्मी बासिज फोर्स के रीवॉल्यूशनरी गार्ड से विलय के बाद मोहम्मद अली जाफरी कहते हैं, सुप्रीम लीडर के हुक्म पर रिवॉल्यूशनरी गार्ड की रणनीति में कुछ बदलाव किए गए हैं। अब हमारा काम घर में मौजूद दुश्मनों के ख़तरों से निपटना और बाहरी चुनौतियों से मुकाबले में सेना की मदद करना है।
 
बासिज फोर्स
माना जाता है कि रिवॉल्यूशनरी गार्ड में फिलहाल सवा लाख जवान हैं। इनमें ज़मीनी जंग लड़ने वाले सैनिक, नौसैना, हवाई दस्ते हैं और ईरान के रणनीतिक हथियारों की निगरानी का काम भी इन्हीं के जिम्मे हैं।
 
इसके इतर बासिज एक वॉलंटियर फोर्स है जिसमें करीब 90 हज़ार मर्द और औरतें शामिल हैं। इतना ही नहीं बासिज फोर्स जरूरत पड़ने पर दस लाख वॉलंटियर्स को इकट्ठा करने का माद्दा भी रखती है। बासिज का पहला काम ये है कि देश के भीतर सरकार विरोधी गतिविधियों से निपटना है।
 
साल 2009 में जब अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति चुनाव जीतने की ख़बर आई तो सड़कों पर विरोध भड़क उठा था। बासिज फोर्स ने दूसरे उम्मीदवार मीर हसन मुसावी के समर्थकों को दबाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। बासिज फोर्स कानून लागू करने का भी काम करता है और अपने कैडर को भी तैयार रखता है।
 
क़ुड्स फोर्स
ये रिवॉल्यूशनरी गार्ड की स्पेशल आर्मी है। क़ुड्स फोर्स विदेशी ज़मीन पर संवेदनशील मिशन को अंजाम देता है। हिज़बुल्ला और इराक़ के शिया लड़ाकों जैसे ईरान के करीबी सशस्त्र गुटों हथियार और ट्रेनिंग देने का काम भी क़ुड्स फोर्स का ही है।
 
क़ुड्स फोर्स के कमांडर जनरल क़सीम सुलेमानी को ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामनेई ने 'अमर शहीद' का खिताब दिया है। जनरल क़सीम सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया तक और इराक़ से लेकर दूसरे मुल्कों तक रिश्तों का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया है ताकि इन देशों में ईरान का असर बढ़ाया जा सके। सीरिया में शिया लड़ाकों ने मोर्चा खोल रखा है तो इराक़ में वे इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ रहे हैं।
 
जबरदस्त असर
रिवॉल्यूशनरी गार्ड की कमान ईरान के सुप्रीम लीडर के हाथ में है। सुप्रीम लीडर देश के सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर भी हैं। वे इसके अहम पदों पर अपने पुराने सियासी साथियों की नियुक्ति करते हैं ताकि रिवॉल्यूशनरी गार्ड पर उनकी कमान मजबूत बनी रहे। माना जाता है कि रिवॉल्यूशनरी गार्ड ईरान की अर्थव्यवस्था के एक तिहाई हिस्से को नियंत्रित करता है।
 
अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही कई चैरिटी संस्थानों और कंपनियों पर उसका नियंत्रण है। ईरानी तेल निगम और इमाम रज़ा की दरगाह के बाद रिवॉल्यूशनरी गार्ड मुल्क का तीसरा सबसे धनी संगठन है। इसके दम पर रिवॉल्यूशनरी गार्ड अच्छी सैलरी पर धार्मिक नौजवानों की नियुक्ति की जाती है।
 
बाहरी भूमिका
भले ही रिवॉल्यूशनरी गार्ड में सैनिकों की संख्या नियमित आर्मी से ज्यादा नहीं है लेकिन ईरान की सबसे ताकतवर फौज के तौर पर जाना जाता है। यह देश ही नहीं बल्कि मुल्क के बाहर भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है।
 
सीरिया में लड़ाई के दौरान रिवॉल्यूशनरी गार्ड के कई कमांडर मारे गए। ये भी कहा जाता है कि दुनिया भर में ईरान के दूतावासों में रिवॉल्यूशनरी गार्ड के जवान खुफिया कामों के लिए तैनात किए जाते हैं। ये विदेशों में ईरान के समर्थक सशस्त्र गुटों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराते हैं।

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