रात के साढ़े आठ बजे थे और मोहम्मद यूसुफ़ की पत्नी ने उन्हें खाना परोसना शुरू ही किया था। तभी प्लास्टिक और टीन की छत वाले इस कैंप के बाहर क़रीब 20 लोग जमा हुए और धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गए। रोहिंग्या भाषा बोलने वाले इन हमलावरों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। 42 साल के यूसुफ़ ने वहीं पर दम तोड़ दिया। उनकी पत्नी की जान इसलिए बची क्योंकि गोलियां हाथ में लगी थीं।
'लौटना चाहने वालों की लिस्ट बना रहे थे, गोली क्यों मारी'
घटना जनवरी की है और जगह थी कॉक्स बाज़ार का थाइंगखली रिफ़्यूजी कैंप। म्वांगडो, म्यांमार में दवाई की छोटी दुकान चलाने वाले मोहम्मद यूसुफ़ हिंसा भड़कने पर परिवार के साथ बांग्लादेश भाग आए थे।
हादसे के बाद इलाज करा कर घर लौटीं यूसुफ़ की पत्नी ने तो हमसे बात नहीं की, लेकिन उनके बेटे मोहम्मद शोएब ने बहुत कुछ बताया। उन्होंने कहा, "कैंप लीडर होने के नाते मेरे पिता सिर्फ़ उन शरणार्थियों की लिस्ट बना रहे थे जो म्यांमार वापस जाने के इच्छुक हैं। उनकी जान क्यों ली गई?"
कुछ दिन बाद एक और निर्मम हत्या हुई
कॉक्स बाज़ार इलाके में सात लाख से भी ज़्यादा रोहिंग्या शरणार्थी अलग-अलग कैंपों में रह रहे हैं। किसी कैंप लीडर की इज़्ज़त और ओहदा ज़्यादा इसलिए होता है क्योंकि दुनिया भर से आने वाली मदद तक भी थोड़ी पहुँच बनी रहती है। बहरहाल, बांग्लादेश के इन रोहिंग्या कैंपों में सनसनी तब बढ़ गई जब इस घटना के कुछ दिन बाद एक और निर्मम हत्या हुई।
बालूखली रिफ़्यूजी कैंप में शरणार्थी पिछले पांच महीनों से रह रहे हैं और एक छोटी सी मस्जिद में नमाज़ पढ़ी जाती है। जनवरी की एक सर्द सुबह थी और म्यांमार के कुन्नापाड़ा से भाग कर आए यूसुफ़ जलाल घर से पैदल चल मस्जिद पहुँच चुके थे।
मस्जिद के भीतर लाश पड़ी मिली
ये उनकी रोज की दिनचर्या थी क्योंकि अज़ान वही देते थे। उस रोज़ भी अज़ान हुई। लेकिन कुछ देर में जब लोग नमाज़ पढ़ने पहुंचे तो मस्जिद के भीतर ही यूसुफ़ जलाल की लाश पड़ी मिली। चारों तरफ़ ख़ून फैला हुआ था और चाकू से गोद कर उनकी हत्या कर दी गई थी। उनके बेटे मोहम्मद उस्मान आज भी उस दिन को याद करके भावुक हो उठते हैं।
वो कहते हैं, "मेरे भतीजों की हत्या के बाद ही हम रखाइन से भाग आए थे। साठ साल के मेरे पिता बहुत नम्र स्वभाव के और धार्मिक व्यक्ति थे जिनकी किसी से भी दुश्मनी नहीं थी। वो हमेशा अपने मुल्क वापस जाना चाहते थे। उनकी इस बर्बर हत्या के बाद माँ ने एक शब्द नहीं बोला है और हम सभी की जान को खतरा है।"
आपसी रंजिशें यहाँ भी....
बांग्लादेश से लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजे जाने की मुहिम तो शुरू नहीं हो सकी है, लेकिन शरणार्थी कैंपों में तनाव बढ़ता दिखाई पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि रोहिंग्या कैंपों में म्यांमार के दिनों से चली आ रही आपसी रंजिशें या भेदभाव यहाँ भी शुरू हो गए है। जैसे-जैसे कैंपों का दायरा बढ़ा है लोगों की ज़रूरतें और प्राथमिकताएं भी बढ़ी हैं। बांग्लादेश सरकार भी नई चुनौतियों का सामना कर रही है।
बढ़ रहे हैं आपसी झगड़े
कुतुपालोंग, कॉक्स बाज़ार के प्रशासनिक अधिकारी निक़ारूजम्मा चौधरी को लगता है चौकसी और बढ़ानी पड़ेगी। उन्होंने बताया, "इनके आपसी झगड़े बढ़ रहे हैं। शायद इसलिए क्योंकि ये एक दूसरे के इतने क़रीब रह रहे हैं। महीनों पहले जब ये लोग बांग्लादेश आए थे तब हालत दूसरे थे और ये बहुत डरे-सहमे थे। लेकिन समय के साथ इनकी हालत सुधरी है। इन्हें राहत देते रहने के अलावा हमने कैंपों के बीच पांच पुलिस स्टेशन भी बना दिए हैं।"
आखिर क्यों हुई ये दो हत्याएं?
जिन दो रोहिंग्या लोगों की हत्या हुई वे म्यांमार वापस लौटने के पक्ष में थे। हालांकि ये साफ़ नहीं कि इनकी हत्या सिर्फ़ उसी वजह से ही की गई। बावजूद इसके कि बर्मा सरकार ने शुरुआत में कुछ इरादा दिखाया था, सच यही है कि इन शरणार्थियों के वापस लौटने का समझौता अभी तक टला हुआ है। जो यहाँ एक पराए देश में रह रहे हैं उनमें भी वहां लौटने की जल्दी नहीं दिखाई देती। लेकिन यहाँ भी उनकी सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं।