ग्राउंड रिपोर्ट: क्यों है बौद्धों और मुस्लिमों में इतनी तनातनी?

सोमवार, 27 नवंबर 2017 (11:55 IST)
- नितिन श्रीवास्तव, (म्यांमार से)
पीपल जैसे एक बड़े पेड़ के नीचे कुछ पोस्टर लगे हैं जिनमें एक बौद्ध भिक्षु गुस्से से अगल-बगल चिपकी, विचलित कर देने वाली तस्वीरों को घूर रहा है। तस्वीरों में 'मुस्लिमों के हाथों जलाए हुए और बर्बरता का शिकार' बताए गए बौद्ध लोग हैं। स्टील की चमचमाती बेंचों पर तीन युवा बौद्ध छात्र अंतरराष्ट्रीय अखबार और मैगज़ीनों में रोहिंग्या संकट से जुड़ी खबरें पढ़ रहे हैं। म्यांमार के मांडले शहर में ये कट्टरवादी बौद्ध भिक्षु अशिन विराथु के मठ का आँगन है।
 
दो दिन में मेरा यहाँ का सातवां चक्कर है, लेकिन उनके 'सिपहसालारों' ने निराश ही किया है। "आप बीबीसी से हों या कहीं से। आप से बात नहीं करेंगे वो", यही जवाब मिलता रहा है महँगी सिगरेट पीने वाले उनके स्टॉफ़ से। ये वही विराथू हैं जिन्हें टाइम मैगज़ीन ने 'फ़ेस ऑफ़ बुद्धिस्ट टेरर' बताया था और म्यांमार सरकार ने उनके बौद्ध संगठन पर पाबंदी लगा दी है। वजह है विराथू के 'म्यांमार में रहने वाले मुस्लिमों को देश निकाला देने' की धमकियाँ।
 
अशिन विराथु जैसों की आग उगलती बातों ने दाव चिन चीन यी जैसों को डरा रखा है जो उनके मठ से ज़्यादा दूर नहीं रहतीं। इनकी तीन पीढ़ियां मांडले में रहती आई हैं और एक लेखक और कवि होने के अलावा ये अल्पसंख्यक मुस्लिम भी हैं। चिय यी ने कहा, "पहले यहाँ धार्मिक तालमेल था मगर अब सब एक-दूसरे पर शक़ करने लगे हैं।
बढ़ती दूरियां और धर्म के आधार पर बँटे लोगों को देखकर अफ़सोस होता है। मुझे लगता है कि ज़्यादातर बौद्ध धर्मवक्ता अच्छे हैं। लेकिन कुछ बहुत ज़्यादा आक्रामक बातें करते हैं। उम्मीद करती हूँ ये सब यहीं रुक जाए।" चाहे बर्मा में एक शासक हो या ब्रिटिश राज का दौर हो, इस आलीशान शहर में सभी धर्म आकर मिलते रहे हैं।
 
हिंसा से हालात बदले
अब हालात बदल चुके हैं। वजह थी 2014 में हुई हिंसा जिसमें बौद्ध और मुस्लिम दोनों हताहत हुए। मांडले में जानकार बताते हैं कि हिंसा भड़कने के बाद कथित बौद्ध युवकों ने मुस्लिम इलाकों पर हमला किया था। नतीजा ये हुआ है कि मुस्लिम समुदाय अपने लोगों के बीच सिमटता जा रहा है।
 
मुस्लिम मोहल्लों ने अपनी गलियों के मुहाने पर बड़े कटीले तार और लोहे के ऊंचे गेट लगवा दिए हैं जो रात को बंद रहते हैं। एक शाम मैं मांडले की सर्वोच्च बौद्ध कमिटी के ताक़तवर भिक्षुओं से मिलने पहुंचा। हाल ही में रखाइन प्रांत से लौटे कमिटी के वरिष्ठ सदस्य यू ईयन दसाका के मुताबिक़ वहां 'हालात ठीक' हैं।
 
ईयन दसाका ने कहा, "हम लोग कट्टरवादी बातें नहीं करते। हमारे देश में सभी धर्मों को अपनी बात रखने की आज़ादी है। लेकिन इस्लाम धर्म म्यांमार की सबसे बड़ी दिक़्क़त है। ये ऐसा धर्म नहीं है जो दूसरे धर्मों के साथ मिल-जुल कर रह सके।"
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने म्यांमार की सेना पर 'जातीय जनसंहार' का आरोप लगाया है और मेरी लाख कोशिशों के बावजूद मुझे रखाइन के हिंसाग्रस्त इलाकों में नहीं जाने दिया गया। हक़ीक़त ये भी है कि बौद्ध धर्म का पालन करने वाले देश की फ़ौज भी मांडले जैसे बौद्ध धार्मिक केंद्रों से प्रभावित रही है।
 
इस्लाम के प्रति बढ़ती कट्टरवादिता
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बौद्ध राष्ट्रवाद के बढ़ते क़द के पीछे इस्लाम के प्रति बढ़ती कट्टरवादिता को भी एक वजह बताया जाता है।

लेकिन बहुसंख्यक बौद्ध धर्म मानने वालों के अलावा राजनीतिक दल भी इस बात को ख़ारिज करते हैं। सबसे ज़्यादा तनावग्रस्त इलाके रखाइन प्रांत में अराकान नेशनल पार्टी सबसे मज़बूत है और उसके महासचिव और पूर्व सांसद तुन औंग च्या ने कहा 'ये अंतरराष्ट्रीय मीडिया की उपज है।'
उन्होंने कहा, "कट्टर राष्ट्रवाद की उपज...नहीं सर, ये ग़लत बात है। इस देश में लोग अपने-अपने धर्मों का स्वेच्छा से पालन करने के लिए आज़ाद हैं, वैसे बौद्ध यहाँ बहुसंख्यक हैं। हाँ, रोहिंग्या मुस्लिमों का मक़सद एक अलग इस्लामिक राष्ट्र स्थापित करना है और उन्हें कुछ देशों का समर्थन भी मिल रहा है।"
 
एक दोपहर मुझे म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून में इस तरह की सोच के समर्थन में हज़ारों लोग सड़कों पर एक बड़ी रैली निकालते दिखे। ये लोग रखाइन प्रांत में जारी फ़ौजी कार्रवाई के समर्थन में उतरे थे।
 
मैं यंगून के पुराने इलाकों में भी गया जहाँ बर्मीज़ मुसलमान कई सौ वर्षों से रह रहे हैं। एक पुरानी मस्जिद की तस्वीर भर खींच रहा था कि दो गार्ड आकर बोले, "अंदर चलो। इमाम साहब से मिलना पड़ेगा"। भीतर जाने पर इमाम साहब के कमरे में तीन लोग, थोड़ा सहमे और सशंकित से, जानना चाहते थे कि तस्वीर से उनकी मस्जिद को या कौम को कोई नुक़सान तो नहीं हो जाएगा।" उधर, कुछ इस बात पर ज़्यादा चिंतिंत हैं कि छह लाख से ज़्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों के पलायन पर म्यांमार के लोकतंत्र समर्थक ख़ामोश क्यों हैं।
 
खिन ज़ौ विन राजनीतिक मामलों के जानकार हैं और तंपादा थिंकटैंक के निदेशक भी। ज़ौ विन के मुताबिक़, "राष्ट्रवादिता या कट्टर राष्ट्रवाद बहुत छोटा शब्द लगता है। ब्रिटिश काल में इसकी बहुत अहमियत थी, लेकिन अब ये एक भय का रूप ले रहा है। एक तरह से इस्लाम का भय जो दिन पर दिन मज़बूत हो रहा है। ज़्यादा अफ़सोस ये है कि राजनीतिक दल और बर्मा की फ़ौज भी ऐसी ताक़तों को हवा दे रही हैं।"
 
हक़ीक़त यही है कि म्यांमार में सौ से भी ज़्यादा जातीय समूह लंबे अरसे से साथ रहते आए हैं। लेकिन अब वो बात नहीं दिखती। बौद्ध धर्म मानने वालों और अल्पसंख्यक मुस्लिमों के बीच तनाव गहराता जा रहा है। वजह है राष्ट्रवाद की बढ़ती गूँज।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी