मार्च महीने के पहले हफ़्ते में रूस के रुख़ को लेकर भारतीय महकमे में निराशा का माहौल था। अफ़ग़ानिस्तान में शांति वार्ता को लेकर रूस ने एक कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया था। इसमें अमेरिका, पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भारत को नहीं बुलाया गया। इस सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान की सरकार और तालिबान के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
ये वार्ता 'ट्रॉइक' की पहल के ज़रिए हो रही है, जिसमें रूस, चीन और अमेरिका अलग-अलग पक्षों से बात कर रहे हैं। इसकी शुरुआत दो साल पहले हुई थी। इसे लेकर भारत में काफ़ी चर्चा हुई थी। तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर टिप्पणी से इनकार कर दिया था।
नई दिल्ली स्थित रूसी दूतावास के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर बताया गया है कि ''रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोफ़ ने हाल ही में ताशकंद में कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान पर जारी ट्रॉइक प्रारूप में भारत और ईरान को भी शामिल किया जा सकता है, ताकि इस वार्ता को और विस्तार दिया जा सके।''
दिमित्री ने अपने ट्वीट में लिखा है, ''अफ़ग़ानिस्तान में ख़राब होते हालात पर काबू पाने के लिए ज़रूरी है कि क्षेत्रीय सहमति बने और वार्ता किसी समाधान तक पहुँचे। रूस और भारत अफ़ग़ानिस्तान को लेकर कई तरह के मंचों पर गहराई से जुड़े हुए हैं। इनमें एससीओ अफ़ग़ानिस्तान कॉन्टैक्ट ग्रुप और द मॉस्को फॉर्मैट भी हैं। ये बहुत प्रभावी मंच हैं और नतीजे को लेकर प्रतिबद्ध हैं। रूस अफ़ग़ान मुद्दे पर भारत के साथ सहयोग को लेकर काफ़ी समर्पित है।''