यहां पेशाब करना मना है

बुधवार, 16 सितम्बर 2015 (12:24 IST)
- मधु पाल (मुंबई से) 
 
नमक बनाने का तरीका वैसे तो ज्यादा मुश्किल नहीं है क्योंकि ये प्राकृतिक रूप में मिल जाता है, लेकिन इसे छानने और सुखाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। खुले मैदान में, तपते सूरज में नमक छानते मजदूरों को मेहनत और गर्मी के कारण प्यास तो लगती है लेकिन वो ज्यादा पानी नहीं पीते।
पानी न पीने की वजह थोड़ी अमानवीय लग सकती है क्योंकि नमक बनाने का काम करने वाले यह मजदूर पेशाब करने के लिए नहीं जाना चाहते।
 
मजबूरी : तमिलनाडु के वेदरनयम गांव में नमक बनाने वाले मजदूरों को आठ से नौ घंटे की मजदूरी के दौरान पेशाब करने की इजाजत नहीं मिलती क्योंकि पेशाब के नमक में मिल जाने का खतरा रहता है।
जरूरत पड़ने पर मजदूरों को तीन से चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, जो पुरुषों के लिए तो कठिन है ही, महिलाओं के लिए तो लगभग असंभव हो जाता है। नमक की मजदूरी करने वाली शकुंतला का कहना है, 'यहां पर कई मर्द भी काम करते है। मर्द 3 किलोमीटर चलकर खुले में पेशाब कर लेते हैं, लेकिन हम औरतों के लिए खुले में पेशाब करना मुश्किल हैं।' वो बताती हैं, 'हममें से अधिकतर 10 घंटे तक पेशाब रोके रहती हैं और फिर घर पहुंचने के बाद ही पेशाब कर पातीं हैं।'
 
रोगों की चपेट में : पाबंदी के चलते कामगार पानी नहीं पीते या कम पीते हैं, जिसकी वजह से वो किडनी, गुर्दे और खून संबंधी रोगों से पीड़ित हो जाते हैं। लेकिन मुंबई की 24 वर्षीया सोनम दुम्ब्रे ने इन मजदूरों के लिए इस समस्या का इलाज ढूंढ लिया जिसका नाम है 'जीरो लिक्विड डिस्चार्ज यूरिनल'।
 
पर्यावरण विज्ञान की छात्रा की खोज से करीब 120 एकड़ में फैले वेदरनयम नमक क्षेत्र के मजदूर किसी भी समय पेशाब के लिए जा सकते हैं। सोनम कहती हैं, 'नमक बनाने वाले मजदूर लगभग 50 डिग्री तापमान में घंटो काम करते हैं, लेकिन पेशाब न लगे, इसलिए पानी नहीं पीते हैं।'
 
वो बताती हैं, 'इसके चलते उन्हें त्वचा, लीवर और किडनी संबंधी बीमारियां हो जाती हैं, लेकिन मजबूरी के चलते वो पानी से दूर ही रहते हैं।'
 
जीरो लिक्विड डिस्चार्ज यूरिनल : सोनम बताती हैं, '30,000 रुपए की लागत से बने इस टॉयलेट की निकासी पाईप को कुछ दूर बनी एक मिट्टी की क्यारी में खोला गया है जहां कुछ विशेष पोधै लगाए गए हैं।' 'समुद्री कुल्फा' और 'सेसबान झाड़ी' नाम के यह पौधे नमक और यूरिया को सोखने की क्षमता रखते हैं और गर्मी का सामना करने में भी समर्थ हैं।
 
ऐसे में पेशाब में मौजूद यूरिया से इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचता और पौधों के बड़े होने पर उन्हें काट कर जानवरों के लिए भूसे के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
 
बड़ी राहत : इस अनोखे शौचालय के यहां आ जाने से मजदूरों और खासतौर पर महिला मजदूरों को राहत मिली है। मजदूर वलरमती कहती हैं, 'कड़ी धूप में घंटो काम करने और कम पानी पीने से शरीर में कमज़ोरी हमेशा रहती थी लेकिन इस पेशाबघर के आने की वजह से हम औरतों को बड़ी राहत मिली है।"
 
वहीं मुत्तुलक्ष्मी का कहना है, 'मालिकों से लाख शिकायत पर भी किसी ने हमारी सुध नहीं ली लेकिन अब खुशी है कि जो तकलीफ हमने सही हैं वो अब हमारे बच्चे नहीं सहेंगे।' फिलहाल अपनी तरह का यह अकेला ही पेशाबघर है और सोनम की कोशिश है कि सरकारी सहायता से ऐसे शौचालय देशभर में नमक की खेती करने वाले राज्यों में लगाएं जाएं।

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