काम की जगह पर साथ काम करने वाले मर्द और औरतों के बीच में अक़्सर दोस्ताना रिश्ते बन जाते हैं। ये यौन उत्पीड़न से अलग है लेकिन उसका रूप ले सकता है। इस बारीक फ़र्क के बारे में कई बार पूरी तरह समझ नहीं होती है और दफ़्तरों में ये अक़्सर मज़ाक का रूप ले लेता है।
हाल में 'द वायरल फ़ीवर' नाम की ऑनलाइन मनोरंजन कंपनी में काम कर चुकीं कई औरतों ने कंपनी के सीईओ के ख़िलाफ़ उनका यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। कंपनी इन शिकायतों की जाँच कर रही है। अलग-अलग बयानों में सीईओ ने आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उनके यहां काम कर रहीं औरतों से उनका व्यवहार हमेशा सही रहा है।
आखिर कैसा बर्ताव सही है?
एक दफ़्तर में काम कर रहे मर्द और औरत के बीच मर्ज़ी से बना हर संबंध, चाहे वो दोस्ताना हो या फिर 'सेक्शुअल', वो उत्पीड़न नहीं है। यहां सबसे ज़रूरी बात है 'मर्ज़ी' या सहमति। सहमति से किया मज़ाक, तारीफ़ या उसमें इस्तेमाल की गई 'सेक्शुअल' भाषा में कोई परेशानी नहीं है।
किसी से कस कर हाथ मिलाना, कंधे पर हाथ रख देना, बधाई देते हुए गले लगाना, दफ़्तर के बाहर चाय-कॉफ़ी या शराब पीना, ये सब अगर सहमति से हो तो इसमें ग़लत कुछ भी नहीं है।
कैसा बर्ताव यौन उत्पीड़न होता है?
किसी भी काम की जगह पर एक मर्द का औरत की तरफ़ आकर्षित हो जाना सहज है। ऐसा होने पर वो मर्द अपनी सहकर्मी, उस औरत को ये साफ़ तौर पर कहकर या इशारों से बताने की कोशिश करेगा।
अगर वो औरत उस बात या 'सेक्शुअल' तरीके से छुए जाने पर आपत्ति जताए, 'ना' कहने के बावजूद मर्द अपना बर्ताव ना बदले तो ये यौन उत्पीड़न है। अगर ये मर्द उस औरत का बॉस है, या उससे ऊंचे पद पर है, तब औरत के लिए नौकरी पर बुरा असर पड़ने के डर से 'ना' कहना और मुश्किल हो जाता है। इसके बावजूद अगर वो 'ना' कहती है यानी उसकी सहमति नहीं है और मर्द फिर भी अपने बर्ताव से उसके नज़दीक आने की कोशिश करे तो ये यौन उत्पीड़न है।
क़ानून क्या कहता है?
साल 2013 में काम की जगह पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए क़ानून पारित हुआ जिसमें साफ़ तौर पर बताया गया कि कैसा बर्ताव यौन उत्पीड़न माना जाएग।
क़ानून के तहत, 'काम की जगह पर किसी के मना करने के बावजूद उसे छूना, छूने की कोशिश करना, यौन संबंध बनाने की मांग करना, सेक्शुअल भाषा वाली टिप्पणी करना, पोर्नोग्राफ़ी दिखाना या कहे-अनकहे तरीके से बिना सहमति का सेक्शुअल बर्ताव करना', यौन उत्पीड़न माना जाएगा।
यहां काम की जगह सिर्फ़ दफ़्तर ही नहीं बल्कि दफ़्तर के काम से कहीं जाना, रास्ते का सफ़र, मीटिंग की जगह या घर पर साथ काम करना, ये सब शामिल है। क़ानून सरकारी, निजी और असंगठित सभी क्षेत्रों पर लागू है।
कौन तय करेगा कि यौन उत्पीड़न हुआ?
क़ानून के मुताबिक दस से ज़्यादा कर्मचारियों वाले हर संस्थान के लिए एक 'इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी' बनाना अनिवार्य है जिसकी अध्यक्षता एक सीनीयर औरत करें, कुल सदस्यों में कम से कम आधी औरतें हों और एक सदस्य औरतों के लिए काम कर रही ग़ैर-सरकारी संस्था से हो।
उन संस्थानों के लिए जहां दस से कम कर्मचारी काम करते हैं या शिकायत सीधा मालिक के ख़िलाफ़ है, वहां शिकायत ज़िला स्तर पर बनाई जानेवाली 'लोकल कम्प्लेंट्स कमेटी' को दी जाती है।
शिकायत जिस भी कमेटी के पास जाए, वो दोनों पक्ष की बात सुनकर और जांच कर ये तय करेगी कि शिकायत सही है या नहीं। सही पाए जाने पर नौकरी से ससपेंड करने, निकालने और शिकायतकर्ता को मुआवज़ा देने की सज़ा दी जा सकती है। औरत चाहे और मामला इतना गंभीर लगे तो पुलिस में शिकायत किए जाने का फ़ैसला भी किया जा सकता है। अगर शिकायत ग़लत पाई जाए तो संस्थान के नियम-क़ायदों के मुताबिक उन्हें उपयुक्त सज़ा दी जा सकती है।