रक्षा मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिंह क्या कहते हैं इस घटना पर?
इससे पहले शायद ही कभी भारतीय सेना या सरकार ने हमले में साफ़-साफ़ पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर एक्शन टीम का नाम लिया हो। आमतौर पर ऐसे हमलों के लिए पाकिस्तानी सेना समर्थित लड़ाके या चरमपंथी शब्द इस्तेमाल होता है।
पहली बार साफ़ तौर पर कहा गया कि पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर एक्शन टीम ने नियंत्रण रेखा पार की और भारत प्रशासित कश्मीर में आई और वहां एक जेसीओ और बीएसएफ़ के एक हेड कॉन्स्टेबल को मारा और उनकी लाशों को बुरी तरह क्षत-विक्षत किया। हालांकि पाकिस्तान ने भारत के दावे से इनकार किया है और कहा है कि वो सेना के जवानों के साथ ऐसा नहीं करते भले ही वो भारत के ही क्यों न हों।
वैसे सीमा पर दोनों तरफ़ से ऐसी हरक़तें होती रहती हैं। लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात है कि ऐसी घटनाएं उस समय में हो रही हैं जबकि दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही है और ना ही कोई सूचनाओं का आदान प्रदान हो रहा है। इसलिए तनाव बढ़ने का ख़तरा है। हो सकता है कि भारत पिछली बार की तरह सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कोई कार्रवाई करे, तब ऐसी स्थिति में पाकिस्तान का अगला क़दम क्या होगा, कहना मुश्किल है।
समस्या का समाधान दोनों देशों के शीर्ष राजनेताओं और प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत ही है, जिसकी निकट भविष्य में बहुत कम संभावना दिखती है। अभी भारतीय सेना और रक्षा मंत्री अरुण जेटली का जो बयान आया है, उससे तो समस्या बढ़ती ही नज़र आ रही है। इन सब के बीच भारतीय सरकार पर राजनीतिक दबाव भी बढ़ा है।
पिछली बार 'सर्जिकल स्ट्राइक' का श्रेय लेकर सरकार ने खुद ही एक ऐसा मानक तय किया है कि उससे कम कार्रवाई को वो खुद सही नहीं ठहरा पाएगी। इसके अलावा सेना के बयान में कहा गया है कि वो पाकिस्तान को मुंहतोड़ जबाव देगी। यह भी सरकार पर एक राजनीतिक दबाव पैदा करता है क्योंकि इसका संदेश ये भी है कि सेना तो तैयार है।