ईरान ने मंगलवार को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सुन्नी चरमपंथियों के ठिकानों पर हमला किया था। इसके एक दिन बाद पाकिस्तान ने ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत के पंजगुर इलाक़े में उसी तरह का हमला किया है।
पाकिस्तान ने कहा कि इस हमले में चरमपंथी संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के ठिकानों को निशाना बनाया गया। पाकिस्तानी सेना का कहना है कि खुफिया सूचना के आधार पर किए गए इस हमले में किलर ड्रोन, रॉकेट और अन्य हथियारों का इस्तेमाल किया गया।
इस हमले से कुछ घंटे पहले ही ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दोल्लाहियन ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष से फोन पर बात की थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने आपसी सहयोग और निकट संपर्क बनाए रखने पर ज़ोर दिया था। ईरानी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को एक मित्र और भाईचारा वाला देश बताया था।
कैसा है पाकिस्तान का अपने पड़ोसियों से रिश्ता?
पाकिस्तान के उसके पूर्वी और पश्चिमी पड़ोसियों भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की सेना पहले से ही देश के अंदर ही कई चरमपंथी और विद्रोही आतंकवादी समूहों से लड़ रही है। इस हालात में ईरान से हमले ने पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र पर दबाव और बढ़ा दिया है।
इस्लामाबाद स्थित दी इंस्टीट्यूट ऑफ रीजनल स्टडीज विदेश नीति का एक थिंक टैंक है। इसके ईरान मामलों के जानकार फ़राज़ नक़वी के मुताबिक़ ईरान के साथ पाकिस्तान के संबंधों की प्रकृति भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंधों से अलग है।
उनका कहना है कि ईरान और पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ प्रयासों में समन्वय कर रहे हैं। इस वजह से ईरान का हमला पाकिस्तान के लिए एक झटके के रूप में सामने आया।
फ़राज़ कहते हैं कि ताजा घटनाक्रम से विश्वास की कमी पैदा हुई है। यह हमला तब हुआ जब पाकिस्तान नौसेना का एक प्रतिनिधिमंडल हुरमुज जलडमरूमध्य में एक संयुक्त अभ्यास के लिए ईरान में था। पाकिस्तान का व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल चाबहार में था और ईरान के सुरक्षा सलाहकार पाकिस्तान के दौरे पर थे। ऐस समय में हुए हमले पाकिस्तान और वहाँ के लोगों के लिए बहुत निराशाजनक और चौंकाने वाले थे।
फ़राज़ कहते हैं कि पाकिस्तान भी अपने बचाव में जवाबी हमला करने से नहीं बच सका। अब जब उसने जवाब दे दिया है तो हालात को शांतिपूर्ण और नाज़ुक ढंग से संभालने चाहिए। उनका कहना है कि संबंधों को उस रास्ते पर वापस लाने में, जिस पर वो हमले से पहले थे, कुछ समय लगेगा।
ईरान के हमले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
विदेश मामलों के जानकार सलमान जावेद ने भी पाकिस्तान के नज़रिए की सराहना करते हुए कहा कि उसने संकट को समझदारी से संभाला है।
वो कहते हैं, ''पाकिस्तान ने खुलकर जवाब नहीं दिया है, उसने नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है। 32 घंटे का एक विंडो था, जिसमें जवाबी हमले का फ़ैसला पूरी तरह से सोच-समझ कर लिया गया था। इसमें मित्र देशों और सभी पक्षों को शामिल किया गया। यहाँ तक कि ईरान को भी बता दिया गया कि पाकिस्तान अपने हवाई क्षेत्र के अकारण उल्लंघन पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार सुरक्षित रखता है।''
सलमान ने कहा कि पाकिस्तान ने आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल दूसरे देश में चरमपंथी ठिकानों पर हमला करने के लिए किया है।
यह एक अंतरराष्ट्रीय परंपरा है। लेकिन अब अन्य अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी इसमें शामिल हो गई हैं। चीन, सऊदी अरब, तुर्की और अमेरिका जैसे मित्र देशों ने तनाव कम करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। उम्मीद है कि समझदारी दिखाई जाएगी।
चीन पहले ही ईरान और पाकिस्तान को ऐसी किसी कार्रवाई से बचने की सलाह दे चुका है, जिससे तनाव बढ़े। वहीं अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान में ईरान के मिसाइल हमलों की निंदा की है जबकि तुर्की ने शांति बनाए रखने की अपील की है। तुर्की के विदेश मंत्री दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं।
लेकिन क्या पाकिस्तान-ईरान संबंधों में हालिया घटनाक्रम ने पाकिस्तान को और अधिक असुरक्षित बना दिया है?
राजनीतिक विश्लेषक मुशर्रफ जैदी एक बहुत ख़तरनाक और अप्रत्याशित स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
ईरान और भारत की नज़दीकी
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखी एक पोस्ट में वे कहते हैं, ''ईरान ने सालों से पाकिस्तान को निशाना बनाने वाले चरमपंथियों को तैयार किया है। सबसे ग़लत बात यह है कि ईरान पाकिस्तानी सुरक्षा को कमज़ोर करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करता है। पाकिस्तान की ओर से इन समूहों को निशाना बनाना पूरी तरह से बचाव योग्य क़दम है।''
वो कहते हैं, ''ईरान को जहाँ भी लड़ाई मिल जाए, वह लड़ाई चाहता है, क्योंकि एक क्रांतिकारी शासन लड़े बिना ज़िंदा नहीं रह सकता है। इस तरह वह लोगों को अपने नज़रिए के मुताबिक संगठित करता है। युद्ध की एक सतत स्थिति के लिए।''
जैदी के मुताबिक़ अब जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई कर दी है तो ईरान की ओर से और अधिक शत्रुता का ख़तरा बढ़ गया है।
पाकिस्तान में कई टिप्पणीकारों का कहना है कि पंजगुर में हमले ईरानी रिवॉल्युशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) की करतूत थी। वे मध्य-पूर्व में अशांति से भी जुड़े हुए हैं।
टीवी चैनल अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ''आईआरजीसी कमांडर ब्रिगेडियर जनरल कादर रहीमजादेह ने पाकिस्तान के नज़दीक ईरान की दक्षिण-पूर्वी सीमा पर बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करने की घोषणा की है।''
''जनरल के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अभ्यास ईरानी क्षेत्र के अंदर अबादान और चाबहार के बीच 400 किलोमीटर की दूरी को कवर करेगा। इसमें दर्जनों मानवयुक्त और मानवरहित विमान और मिसाइल रक्षा प्रणालियां शामिल होंगी।
क्या भविष्य में किसी भी ईरानी आक्रमण को विफल करने के लिए पाकिस्तान के पास समान सैन्य ताक़त है? फ़राज़ नक़वी कहते हैं कि पाकिस्तान के पास बेहतर मारक क्षमता और हथियार हैं, हालांकि, ईरान को इसका फ़ायदा भी है।
परमाणु शक्ति संपन्न देश है पाकिस्तान
वो कहते हैं, ''पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न है। यही उसकी प्रतिरोधक क्षमता और रणनीतिक बढ़त है। हमारे सैन्य शस्त्रागार ईरान की तुलना में कहीं अधिक उन्नत हैं। हालाँकि, ईरान के प्रॉक्सी उसकी सबसे बड़ी सैन्य ताक़त हैं।''
''उसके कई प्रॉक्सी मध्य-पूर्व और अफ़ग़ानिस्तान में फैले हुए हैं। ऐसे में यह हथियार से हथियार की तुलना नहीं है, यह क्षमता के बारे में है। यदि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति संपन्न है तो ईरान के पास दुनिया में सबसे अच्छे प्रॉक्सी हैं।''
पाकिस्तान की ईरान से लगती क़रीब 900 किलोमीटर लंबी सीमा है। सलमान जावेद को लगता है कि अब पाकिस्तान को अपनी दक्षिण-पश्चिमी सीमा की अधिक मुस्तैदी से सुरक्षा करनी होगी।
वो कहते हैं, ''पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली हमेशा भारत केंद्रित रही है। साल 2011 में ओसामा बिन लादेन के ख़िलाफ़ अमेरिकी मरीन के ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा पर एक वायु रक्षा प्रणाली तैनात की थी। ईरान के साथ दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में अभी ऐसा नहीं है, हमलों के बाद शायद यह अब बदल जाएगा।''
सलमान का कहना है कि इस इलाक़े के अन्य देशों में ईरान की जटिल सैन्य भागीदारी, अमेरिका और कई दूसरे पश्चिमी देशों के साथ उसके शत्रुतापूर्ण संबंधों के बाद भी 1980 के दशक के ईरान-इराक़ युद्ध के बाद से किसी अन्य देश ने ईरानी के अंदर हमला नहीं किया। लेकिन पाकिस्तान के जवाबी हमलों ने इस हालात को बदल दिया है।''
वो कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि दोनों देश अब तनाव कम करेंगे और छद्म युद्ध का सहारा नहीं लेंगे, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो यह इस इलाक़े के लिए विनाशकारी होगा।"
पाकिस्तान ने अतीत में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ प्रॉक्सी का इस्तेमाल किया है। अमेरिकी विदेश नीति थिंक टैंक विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया निदेशक माइकल कुगेलमैन को उम्मीद है कि अब जब दोनों पक्ष बराबरी पर हैं, तो स्थिति और नहीं बिगड़ेगी।
कुगैलमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ''ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई ईरान के हमले के समानुपाती थी। खासतौर पर इसने केवल चरमपंथियों को निशाना बनाया न कि ईरानी सुरक्षा बलों को। यदि ठंडे दिमाग़ से काम लिया जाए तो यह दोनों पक्षों को तनाव कम करने का एक अवसर देता है। लेकिन यह बहुत बड़ी बात है।''