हर साल हज़ारों श्रद्धालु काली लुंगी पहनकर भगवान अयप्पा का नाम जपते हुए सबरीमला की यात्रा पर निकलते हैं। सबरीमला मंदिर इन दिनों चर्चा में है क्योंकि अदालत ने इस मंदिर को महिलाओं के लिए खोलने का आदेश दिया है और केरल का समाज दो हिस्सों में बंट गया है।
यह एक लंबी और कठिन यात्रा है जिसमें श्रद्धालु बहुत संयत खान-पान करते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और काफ़ी दूर तक पैदल चलते हैं। 41 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में वे कई नियमों का पालन करते हैं।
सबरीमला के रास्ते में एक छोटा सा कस्बा है इरुमलै, यह स्वामी अयप्पा के मंदिर से करीब 60 किलोमीटर पहले है। यहां रुकना सबरीमला की तीर्थयात्रा का एक नियम है।
मंदिर जाने से पहले मस्जिद जाते हैं श्रद्धालु
वे बहुत श्रद्धा के साथ एक सफ़ेद भव्य मस्जिद में घुसते हैं, इसे वावर मस्जिद कहा जाता है। वे भगवान अयप्पा और 'वावरस्वामी' की जयकार करते हैं। वे मस्जिद की परिक्रमा करते हैं और वहां से विभूति और काली मिर्च का प्रसाद लेकर ही यात्रा में आगे बढ़ते हैं।
अयप्पा मंदिर के तीर्थयात्री अपने रीति-रिवाज के अनुरूप पूजा-पाठ करते हैं जबकि वहीं नमाज़ भी जारी रहती है। मस्जिद की परिक्रमा करने की परंपरा पिछले 500 साल से भी अधिक समय से चल रही है। विशेष रूप से सजाए गए हाथी के साथ जुलूस पहले मस्जिद पहुंचता है, उसके बाद पास के दो हिंदू मंदिरों में जाता है।
मस्जिद कमेटी हर साल सबरीमला मंदिर से अपने रिश्ते का उत्सव मनाती है, इस उत्सव को चंदनकुकुड़म (चंदन-कुमकुम) कहा जाता है। इरुमलै में काफ़ी मुसलमान आबादी है और पहाड़ी की चढ़ाई चढ़कर थके तीर्थयात्री अक्सर आराम करने के लिए किसी मुसलमान के घर रुक जाते हैं।
वावर स्वामी की कहानी
वावर एक सूफ़ी संत थे जो भगवान अयप्पा में गहरी श्रद्धा रखते थे। उनकी अयप्पा भक्ति इतनी मशहूर हुई कि सदियों से चली आ रही सबरीमला यात्रा में उनका ठिकाना एक पड़ाव बन गया।
वावर के बारे में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं जिनकी ऐतिहासिक दृष्टि से पुष्टि नहीं हो पाई है। कुछ लोग उन्हें अरब सागर के रास्ते इस्लाम का प्रचार करने आए सूफ़ी की तरह देखते हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि मस्जिद में उनकी तलवार रखी है। इस तलवार की वजह से कहा जाता है कि वे योद्धा रहे होंगे।
इस पर कोई मतभेद नहीं है कि वे एक मुसलमान थे और भगवान अयप्पा के भक्त थे। केरल टूरिज़्म ने इसे शीर्ष धार्मिक और पर्यटक आकर्षण के केंद्रों में रखा है। सबरीमला की तीर्थयात्रा बहुत पुरानी है। सबरीमला मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में पंडालम राजवंश के युवराज मणिकंदन ने कराया था।