वीगन आहार का प्रचलन पूरी दुनिया में तेज़ी से बढ़ रहा है। दूसरी तरफ़ मांस की खपत भी तेज़ी से बढ़ी है। क्या इंसान को अपने आहार पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है?
वीगन आहार का मतलब है- बिना मांस, पोल्ट्री, मछली, डेयरी, अंडा और शहद के खाना। इसमें लोग सभी तरह के डेयरी उत्पाद यानी दूध, दही, मक्खन, घी और छाछ भी छोड़ देते हैं। वीगन इसके साथ ही चमड़े, ऊन और यहां तक कि मोतियों का इस्तेमाल भी नहीं करते।
इन दिनों पौधों पर आधारित आहार भी ऑनलाइन ट्रेंड कर रहे हैं। इन्हें सोशल मीडिया पर वीगन आहार की तेज़ी से पसरती आकर्षक तस्वीरों से बल मिल रहा है। दुनिया भर में एक नवंबर को विश्व वीगन दिवस मनाया जाता है। यानी यह वीगन सप्ताह है। ऐसे में चलिए इस मूवमेंट के बारे में जानते हैं ये पांच बातें।
वीगन का इतिहास
वीगन सोसाइटी की स्थापना ब्रिटेन में डोनल्ड वॉटसन ने 1944 में की थी, उन्होंने 'वीगन' शब्द का इस्तेमाल उन 'ग़ैर डेयरी शाकाहारियों' के लिए किया जो अंडा भी नहीं खाते। वाटसन, डेयरी उद्योग में जानवरों पर हो रहे अत्याचार से बेहद दुखी थे। लेकिन उन्होंने कट्टर शाकाहार की शुरुआत नहीं की।
बगैर मांस का खाना प्राचीन भारत और पूर्वी भूमध्य सागर की सोसाइटी में ढाई हज़ार साल पहले से प्रचलित था। कॉलिन स्पेंसर की 'वेजिटेरियनिज़्मः ए हिस्ट्री' के अनुसार भारत में शाकाहार की परंपरा रही है। यहां इसकी हिंदू धर्म के रूप में स्वीकार्यता है और अपरिहार्य रूप से इसे पवित्र गाय और मौत के बाद आत्माओं के एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश से जोड़ा गया है।
बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म के अनुयायी भी शाकाहार की वकालत करते हैं, उनका मानना है कि मनुष्यों को अन्य जानवरों के दर्द का कारण नहीं बनना चाहिए। 500 ईसा पूर्व, यूरोप में यूनानी दार्शनिक और गणितज्ञ पाइथागोरस सभी प्राणियों के प्रति परोपकार की वकालत करने वालों में से थे।
उनका मानना था कि इंसान के मांस खाने में बहुत बुराई है, एक जीव को मार कर जीवित को तृप्त करने से यानी दूसरे के शरीर को अपने शरीर में मिलाने से इंसान के अंदर लालच बढ़ता है। वास्तव में, शाकाहारी शब्द के चलन में आने से पहले, जो लोग मांस नहीं खाते थे उन्हें 'पाइथागोरियन आहार' लेने वाला कहा जाता था।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
ब्रिटेन में हुए ताज़ा सर्वे के अनुसार, मांस की खपत पर कटौती में दिलचस्पी रखने वालों में से 49% लोगों ने कहा कि वो हेल्थ की वजह से ऐसा करना पसंद करेंगे। कुछ शोध से पता चला है कि रेड मीट (बीफ़) और प्रोसेस्ड मीट (सॉसेजेस) खाने से आंत का कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
2015 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कार्सिनोजेंस की सूची में प्रोसेस्ड मीट को जोड़ते हुए कहा कि स्वस्थ आहार का मतलब है वो खाना जिसमें फ़ाइबर की मात्रा अधिक हो। बहुत सारे फल और सब्जियों को अपने आहार में शामिल करने से कैंसर के ख़तरे को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
वीगन बनने का असर
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ओमनीवोरस के साथ शाकाहारी और वीगन्स के स्वास्थ्य की तुलना करने से पता चलता है कि- शाकाहारी और वीगन होने का नाता स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकलता कि आप लंबे वक़्त के लिए जीवित रहेंगे।
अब यह भी जान लें कि डोनल्ड वॉटसन की मौत 95 साल में हुई थी, लेकिन शाकाहारी आहार को स्वास्थ्य के लाभ से जोड़ने में संदेह बरकरार रहा है।
इसके पीछे तथ्य यह है कि वीगन लोगों को विटामिन डी- जो मानव शरीर में हड्डियों के लिए ज़रूरी है, विटामिन बी12- जो स्वस्थ्य ख़ून और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्सटम) के लिए आवश्यक है, और आयोडीन- जो मस्तिष्क और थायरॉइड फंक्शन के लिए ज़रूरी है, के न मिल पाने का ख़तरा होता है।
इसकी पूर्ति के लिए, वीगन्स को मजबूत खुराक पर निर्भरता और विटामिन सप्लीमेंट्स की आवश्यकता पड़ सकती है।
पर्यावरण के अनुकूल
विडंबना यह है कि जहां एक ओर लोगों में वीगन बनने के प्रति रुचि बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ़ मांस की खपत में भी बढ़ोतरी हुई है। चीन और भारत जैसे देश पहले से अधिक समृद्ध हुए हैं और यहां की आबादी तेज़ी से मांसाहार की ओर बढ़ रही है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट- धरती के प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या वृद्धि के बढ़ते दबाव की स्टडी में यह नतीजा निकला है कि 2050 तक के लिए अभी की तुलना में 70 फ़ीसदी अधिक भोजन की ज़रूरत होगी, अन्यथा खाने का संकट पैदा हो जाएगा।
इस अध्ययन में यह दर्शाया गया है कि बढ़ती मांस की पैदावार से ग्रीनहाउस गैस में वृद्धि हुई है क्योंकि मवेशी मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने रिपोर्ट दिया कि 14।5% ग्रीनहाउस गैस मवेशियों की वजह से पैदा होते हैं- यह दुनिया में मौजूद प्रत्येक कार, ट्रेन, जहाज और हवाई जहाज से निकले ग्रीनहाउस गैसों के बराबर है।
मांस उत्पादन के लिए अधिक संसाधनों की ज़रूरत पड़ती है। जॉन रॉबिन्सन की किताब द फूड रिवॉल्यूशन में बताया गया है कि एक पौंड लेटिस की पैदावार के लिए जहां 104 लीटर पानी की आवश्यकता होती है वहीं इतनी ही मात्रा में बीफ़ के लिए 23,700 लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ विश्व की वर्तमान आबादी 7 अरब है और उम्मीद है कि 2050 तक यह 9।2 अरब तक पहुंच जाएगी। दुनिया भर में कितने वीगन्स हैं इसका कोई सटीक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन दुनिया भर में शाकाहारी संघों से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या 55.0 करोड़ से 95.0 करोड़ तक अनुमानित है।
आलोचक वीगन को एक नए आहार की सनक बता कर ख़ारिज करते हैं, लेकिन वीगन कहते हैं कि यह एक अधिक समझदार और ज़िम्मेदार लाइफस्टाइल है।
उभरता व्यवसाय
ग्लोबल डेटा रिपोर्ट के मुताबिक अकेले अमरीका में पिछले तीन साल के दौरान वीगन आबादी में 600 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि ब्रिटेन में पिछले दशक के दौरान वीगन आबादी 400 फ़ीसदी बढ़ी है।
एक ग्लोबल इंडस्ट्री के रूप में, इसका प्रभाव समान रूप से नाटकीय रहा है- 2017 में मांस-रहित खाने की मांग में 1000% का इजाफा हुआ है और 2018 के लिए वीगन फूड को सबसे बड़ा ट्रेंड माना गया था।
इंस्टाग्राम जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म- जहां स्वस्थ दिखने वाले मुस्कुराते, चमकते लोग आपको नए स्वादिष्ट खाने को चखने के लिए लुभाने का प्रयास करते हैं- वीगन खाने से जुड़े गुरुओं और व्यवसायों के लिए आदर्श लॉन्च प्लेटफॉर्म बन गए हैं। वीगन से जुड़े पोस्ट्स की संख्या 9.2 करोड़ से भी अधिक है और लगातार बढ़ रही है।
खाद्य व्यवसाय से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस पर ध्यान दे रही हैं- दुनिया की सबसे बड़ी फूड कंपनियों में से एक नेस्ले ने पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों की मांग को देखते हुए इसकी लगातार उपज पर ध्यान दिया है, उनका मानना है कि यह ट्रेंड अभी बरकरार रहेगा।
वीगन फूड ने टेक-अवे सेक्टर पर भी अपना खासा प्रभाव छोड़ा है। अंतरराष्ट्रीय डिलिवरी सर्विस जस्ट इट के मुताबिक़ वीगन 2018 का टॉप कंज्यूमर ट्रेंड है।
दूरदृष्टि रखने वाले उद्यमी इसकी संभावना को देखते हुए जहां कहीं भी मौक़ा मिल रहा है इस व्यवसाय में क़दम रख रहे हैं और उनको इसका लाभ मिलना शुरू भी हो गया है- वीगन चीज़ इंडस्ट्री के 2020 तक 4 अरब डॉलर के हो जाने की संभावना है।
वीगन का नकारात्मक पहलू
वीगन जानवरों के प्रति प्यार और उनका ख्याल रखने को लेकर शुरू हुआ, लेकिन हाल के वर्षों में यह विवादों में घिरा, इसकी आलोचना भी हुई। इस कट्टर पशु कल्याण कार्यकर्ताओं की वजह से कुछ किसानों और कसाइयों को भुगतना पड़ा है। मांस के दुकानों पर हमले हुए हैं और कई लोगों ने इस हिंसक रणनीति की आलोचना की है।
ब्रिटेन के नॉर्थम्बरलैंड के एक ट्रेनी किसान एलिसन वॉ ने बीबीसी को बताया कि उन्हें अपने काम की वजह से धमकी मिली है। वो कहती हैं कि किसानों में इसे लेकर डर है। उन्होंने कहा, "लोग मांस बाज़ार में आ धमकते हैं, चारों ओर दीवारों पर कलाकृतियां बनाते हैं...यह ठीक नहीं है। आपको अपनी गाय की चिंता होती है कि वो रात भर सुरक्षित भी रहेगी या नहीं।"
सेव मूवमेंट नामक एक संस्था ने कहा कि वो अपने प्रचार के लिए अहिंसक मार्ग अपनाती है। उसके ब्रिटेन में 42 और दुनिया भर में 100 से भी अधिक समूह हैं। इसके कार्यकर्ता बूचड़खानों के बाहर नज़र रख रहे हैं और साथ ही दुनिया को वीगन फूड की तरफ़ मोड़ने के लिए सोशल मीडिया पर मवेशियों के साथ हो रहे बर्ताव वाली तस्वीरें शेयर करते हैं।
एक अन्य धड़ा है जो एवोकाडो, बादाम और ब्रोकली खाने के कारण वीगन को ढोंगी बुलाता है क्योंकि ये वीगन के जानवरों के शोषण के नियमों को तोड़ते हैं। ये पौधे परागण (पोलीनेशन) के लिए मधुमक्खियों पर निर्भर करते हैं- यदि ये इच्छा से करती हैं तो यह उनके लिए ठीक है।
लेकिन जिन जगहों पर मधुमक्खियों की कमी है, व्यावसायिक खेती के लिए मधुमक्खी के छत्ते को मौसम के मुताबिक बादाम, एवोकाडो और सूरजमुखी के खेतों में रोटेशन के आधार पर एक बड़े ट्रक में एक खेत से दूसरे खेत ले जाया जा सकता है।