इमारत में प्रवेश करते ही बड़े से हॉल में राहुल गांधी की फ़ोटो वाले कटआउट जगह-जगह रखे थे। बहुत से लोग वहाँ खड़े होकर ख़ुशी-ख़ुशी फोटो खिंचवा रहे थे। इनमें से कई लोग परिवार समेत भी आए थे, जिनमें छोटे बच्चे भी स्कार्फ़ पहने और झंडे थामे थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका का दौरा करके क्या हासिल करना चाहते थे?
न्यूयॉर्क के जैकब जेविट्स सेंटर में राहुल गांधी की सभा में क़रीब चार हज़ार लोगों ने शिरकत की। स्थानीय समयानुसार दो बजे सभा शुरू होनी थी लेकिन चार बजे के क़रीब कार्यक्रम शुरू हुआ। इस बीच लोगों की भीड़ उत्साह के साथ हॉल में प्रवेश करती रही।
इनमें से बहुत से लोग स्कार्फ़ गले में डाले थे, जिन पर राहुल गांधी की फोटो छपी थी और हाथों में लोग अमेरिका और भारत के झंडे भी थामे थे। अधिकतर लोगों में राहुल गांधी को सुनने की उत्सुकता नज़र आ रही थी। सभागार भर गया था।
मुंबई के रहने वाले त्रुशार पाडवेकर अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग में मास्टर्स कर रहे हैं। वह भी उत्साहित क़दमों से इमारत में प्रवेश कर रहे थे।
राहुल गांधी से क्या उम्मीद?
लेकिन पाडवेकर क्या उम्मीद लेके आए हैं? इस सवाल पर उन्होंने कहा, "अब देश में इतनी महंगाई हो गई है कि हमारे माता-पिता के लिए भी हम जैसे छात्रों को पढ़ाई के लिए पैसे भेजना बहुत मुश्किल हो गया है। अब नफ़रत की राजनीति से देश नहीं चल सकता। अब तो राहुल गांधी को हम प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं"
राहुल गांधी ने इस दौरे में हर मंच पर पीएम मोदी और उनकी सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र ख़तरे में है। उन्होंने अल्पसंख्यकों,दलितों और अन्य लोगों पर कथित हमलों का भी ज़िक्र किया।
एक मौक़े पर रूस नीति के मामले में बोलते हुए कहा राहुल गांधी ने मोदी सरकार का समर्थन किया। उन्होंने न्यूयॉर्क में फिर एक बार कहा कि सभी को मिलकर भारत में लोकतंत्र बचाना होगा। सैम पित्रोदा की देखरेख में इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस ने राहुल गांधी के इस दौरे का आयोजन किया था।
राहुल गांधी ने जैकब जेविट्स सेंटर में क़रीब चार हज़ार भारतीय मूल के लोगों और अप्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए बीजेपी और आरएसएस की कड़ी आलोचना की। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा,"अब भारत में गांधी और गोडसे के विचारों के बीच संघर्ष हो रहा है।"
भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी जीत के बाद इस दौरे में राहुल गांधी की ओर लोगों में पहले से अधिक गर्मजोशी दिखी।
इस दौरे से कितना चुनावी फ़ायदा?
डेलवेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान राहुल गांधी से हडसन इंस्टिट्यूट की बैठक में मिल चुके हैं। उनके मुताबिक़, "डायस्पोरा ने तो उनके भाषणों को सुना और उनकी सभाओं में लोग पहुंचे। भारत जोड़ो यात्रा के बारे में वह बातें करते रहे। उससे उनको आत्मविश्वास मिला है और गहराई आई है। वह अब बेहतर तरीक़े से जुड़ पा रहे हैं।"
लेकिन प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान मानते हैं कि इस दौरे से राहुल गांधी को 2024 में कोई ख़ास चुनावी फ़ायदा नहीं होगा क्योंकि उन चुनावों में अभी कई महीने बाक़ी हैं और सियासत में एक हफ़्ता भी बहुत लंबा वक़्त हो सकता है।
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वह बेबाक अंदाज़ में अहम मुद्दों को उजागर करने के लिए जोखिम भी ले रहे हैं।
अब राहुल गांधी के इस दौरे की भारत के प्रधानमंत्री मोदी के पिछले दौरों से तुलना की जा रही है। मोदी के 2014 के न्यूयॉर्क दौरे में हुई सभा में 20 हज़ार तो "हाउडी मोदी" में 50 हज़ार लोग आए। लेकिन राहुल गांधी तो अभी सांसद भी नहीं हैं।
राहुल गांधी की सभा में आए कुछ लोगों ने कहा कि वह पहले मोदी को समर्थन देते थे। उनमें से एक हैं वसंत कुमार जो तमिलनाडु के रहने वाले हैं।
उन्होंने बताया, "2014 में मैंने मोदी को समर्थन दिया था। लेकिन नोटबंदी के बाद से लगा कि सरकार अब सही काम नहीं कर पा रही है। लोकतंत्र में मज़बूती लाने के लिए एक मज़बूत विपक्ष भी ज़रूरी है।"
भारतीय मूल के गिरि अमेरिका में फ़ार्मेसी की पढ़ाई करने के बाद अब फ़ार्मासिस्ट हैं। वो कहते हैं कि उनके कई दोस्त अब भारत में तथाकथित नफ़रत की राजनीति से ऊब गए हैं। वह मानते हैं कि देश को नुक़सान हो रहा है।
क्या राहुल के पास है कोई फॉर्मूला?
राहुल की सभा में प्रवेश के लिए इंतज़ार करते हुए रश्मि नाम की महिला पैर में चोट के कारण सहारे के लिए छड़ी लेकर आई थीं। वह एक कुर्सी पर बैठ गईं तो मैंने पूछा आप इस तकलीफ़ के बावजूद आई हैं? रश्मि ने कहा कि जो हाल भारत का हो रहा है, ऐसे में आवाज़ उठाना ज़रूरी है और वह घर में नहीं बैठी रह सकती थीं।
शहज़ाद हाशिम न्यूजर्सी से अपने परिवार समेत राहुल गांधी का भाषण सुनने आए थे। वह कहते हैं, "मैं यह सुनना चाहता हूं कि राहुल गांधी के पास क्या ठोस नीति है, जिससे वह हालात बेहतर कर सकते हैं।"
लेकिन प्रवासी भारतीय जो भारत में वोट तक नहीं दे सकते वह भारत से आने वाले नेताओं में क्यों इतनी रूचि लेते हैं?-
भारतीय मूल के न्यूयॉर्क के रिहाइशी असलम मोहम्मद कहते हैं, "मैं तो महाराष्ट्र के नांदेड में पैदा हुआ था और भारत मेरे दिल में बसता है। मेरे छोटे बच्चे हैं, मैं चाहता हूं कि उनका भी नाता रहे भारत से। मैं चाहता हूं कि मैं अपनी जड़ों से जुड़ा रहूं।"
इसी महीने 22 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की दावत पर पीएम मोदी अमेरिका में राजकीय दौरे पर जा रहे हैं। पीएम मोदी अमेरिकी संसद के दोंनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित भी करेंगे