प्रशांत किशोर अब आगे क्या करेंगे?

Webdunia
मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020 (23:52 IST)
नीरज प्रियदर्शी, पटना से, बीबीसी हिंदी के लिए
एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के मुद्दे पर केंद्र सरकार का लगातार विरोध करने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को झूठा तक कह देने के बाद बिहार में सत्ताधारी नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल-यू से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद पहली बार प्रशांत किशोर मंगलवार को पटना पहुंचे। पटना में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अपनी आगे की रणनीति का थोड़ा बहुत ख़ुलासा किया।
 
ऐसे में अब बिहार में ये सवाल उठने लगा है कि क्या वो अपनी पार्टी बनाकर आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जद-यू के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ेंगे? या फिर वे जदयू-भाजपा-लोजपा की गठबंधन वाली एनडीए सरकार को हराने के लिए किसी विपक्षी पार्टी के साथ जुड़ जाएंगे?
 
इसके पहले प्रशांत किशोर पटना आते थे तब पत्रकारों या अपने समर्थकों को मिलने के लिए मुख्यमंत्री आवास में बुलाते थे। लेकिन, मंगलवार को उन्होंने अपनी कंपनी आई-पैक के दफ्तर में प्रेस वार्ता की।
 
आई-पैक दफ्तर के एक छोटे से हॉल में जब प्रशांत किशोर मीडिया को संबोधित कर रहे थे तब वहां खचाखच भीड़ थी। लोकल मीडिया से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया तक के कैमरे लगे थे।
 
प्रेस वार्ता में "बात बिहार की" नाम की अपनी एक प्रस्तावित यात्रा के बारे में चर्चा करने के बाद वे जैसे ही रुके, पत्रकारों ने धड़ाधड़ सवाल पूछने शुरू कर दिए। इतनी सारी आवाज़ें थीं कि किसी एक सवाल को पूरा सुन पाना भी मुश्किल था।
 
लेकिन, इतना ज़रूर समझ में आया कि सारे सवाल सिर्फ़ इस बात से जुड़े थे कि प्रशांत किशोर का अगला राजनीतिक क़दम क्या होगा?
 
सबको शांत कराने के बाद किशोर जवाब देते हैं, "मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि फ़िलहाल न तो मैं कोई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहा हूं और न ही किसी पार्टी के साथ जुड़ने जा रहा हूं।" पत्रकारों ने सवाल किया कि फिर आगे राजनीति कैसे करेंगे?
 
वे जवाब देते हैं, "जिस तरह पिछले डेढ़ सालों से (जब से जद-यू ज्वाइन किया था) एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट के तौर पर काम कर रहा हूं, वैसे ही आगे भी काम करता रहूंगा।"
 
सवाल फिर से वैसा ही था, "बिना पार्टी के पॉलिटिक्स कैसे होगी? आख़िर किस तरह का पॉलिटिकल एक्टिविज्म करना चाहते हैं?"
 
प्रशांत कहते हैं, "वैसी ही होगी जैसी जद-यू से निकाले जाने के बाद हो रही है। हम बिहार के ऐसे नए युवाओं का एक संगठन तैयार कर रहे हैं जिनका सपना है कि बिहार आने वाले 10 सालों में हर सूचकांक पर देश के टॉप टेन राज्यों में शामिल हो जाए।"
 
वे आगे बताते हैं, "अभी तक ऐसे दो लाख 93 हज़ार युवाओं को अपने साथ जोड़ा भी है। अगले तीन महीनों में हमारा लक्ष्य एक करोड़ युवाओं को अपने साथ जोड़ना है। और ये काम मैं आज से नहीं कर रहा हूं, तभी से कर रहा जब जद-यू में था। दरअसल, पार्टी में मुझे यही काम ही दिया गया था। उसी दौरान क़रीब डेढ़ लाख युवा हमारे साथ जुड़ चुके थे। लेकिन आप ये मत सोच लीजिएगा कि वे पार्टी में रहने के कारण मुझसे जुड़े थे, क्योंकि उनके अलावा भी हमारे साथ क़रीब 30 फीसदी ऐसे युवा जुड़े हैं जो भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं।"
 
लेकिन ये युवा प्रशांत किशोर से जुड़कर करेंगे क्या? बिना पार्टी और झंडे के इनका नेता कौन होगा? ये हमारा सवाल था।
 
प्रशांत इसका जवाब कुछ यूं देते हैं, "सब नेता बनेंगे। इसकी शुरुआत हम पंचायत स्तर से कर रहे हैं। ये युवा पहले मुखिया, सरपंच और ज़िला पार्षद बनेंगे फिर अपने आप सांसद, विधायक मंत्री बन जाएंगे। अगर बिहार के सभी पंचायतों से चुन के कम से कम 10 हज़ार मुखिया हम बना दें तो हमारा मक़सद पूरा हो जाएगा।"
 
हमें ख़याल आ गया प्रशांत किशोर की पुरानी बातों का जब वे चुनावी रणनीतिकार की हैसियत से हर बात में कहा करते थे, "हम ही तो सांसद और विधायक बनाते हैं।"
 
लेकिन अब प्रशांत किशोर युवाओं को मुखिया बनाएंगे। इससे एक बात स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में किशोर की राजनीतिक भूमिका बदलने वाली है। ऐसा लगता है कि वे अब चुनावी रणनीतिकार के पेशे को छोड़ कर ज़मीन की राजनीति करना चाहते हैं।
 
तो क्या प्रशांत किशोर आने वाले दिनों में चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में नहीं दिखेंगे? किसी पार्टी के लिए पॉलिटिकल कैंपेनिंग का काम नहीं करेंगे?
 
ख़ुद को आंकने की कोशिश
उन्होंने कहा, "बिल्कुल नहीं। अगले तीन महीने तक हमारा सारा फ़ोकस इसी बात पर रहेगा कि कम से कम एक करोड़ युवाओं को अपने साथ जोड़ लें। पूरे बिहार में यात्रा करनी है। और फिर तीन महीने के बाद हम ख़ुद आकर इसकी घोषणा करेंगे कि कहां तक सफल हुए।"
 
तो क्या इन तीन महीनों में वे ख़ुद को आंकना चाहते हैं कि कितने लोगों का साथ मिल पाता है और फिर उसके बाद पार्टी बनाने या नहीं बनाने की घोषणा करेंगे! पत्रकारों ने ऐसे सवाल भी किए।
 
प्रशांत कहते हैं, "आपको जो कहना है कह लीजिए। लेकिन हम इसपर अब जो भी कहेंगे तीन महीने के बाद ही कहेंगे। "
 
प्रशांत किशोर से नीतीश कुमार को लेकर भी बहुत तरह के सवाल पूछे गए। मसलन, जद-यू में आने की वजह क्या वही थी जैसा नीतीश ने कहा था, क्या अब वे नीतीश को हराने के लिए काम करेंगे?
 
सबका स्वागत है
 
प्रशांत किशोर नीतीश को लेकर हमलावर तो हुए मगर जब भी बोले तो उन्हें भाजपा के साथ जोड़कर बोले।
 
नीतीश कुमार की बात आयी तो प्रशांत किशोर कहते हैं, "उन्होंने हमें छोड़ा। हमनें उन्हें नहीं छोड़ा। इसलिए उनसे जाकर पूछिए कि क्यों छोड़ा। हम तो कह रहे हैं कि "बिहार की बात" के ज़रिए जैसा बिहार हम बनाना चाहते हैं, अगर वैसा बिहार वो भी बनाना चाहते हैं तो आएं हमारे साथ। हमें लीड करें। अगर सुशील मोदी भी चाहें तो वो भी आएं। उनका भी स्वागत होगा।"
 
ऐसे में सवाल होने लगा कि अगर विपक्ष की तरफ़ से तेजस्वी यादव भी उनके साथ आएं तो क्या वे उनको लीड करने देंगे?
 
प्रशांत किशोर कहते हैं, "मैं ऐसे लोगों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करता जिनसे आजतक मिला भी नहीं, जिनके साथ काम नहीं किया। तेजस्वी यादव के साथ ऐसा ही है। इसलिए उनके बारे में मेरी कोई राय नहीं है।"
 
पत्रकारों ने प्रशांत किशोर से कन्हैया कुमार और कांग्रेस का साथ देने को लेकर भी सवाल किए। लेकिन उन्होंने बार-बार वही जवाब दिया। "हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं करंगे। किसी के साथ भी नहीं होंगे। अगर लोग हमारे साथ आएं तो सबका स्वागत रहेगा।"
 
प्रशांत किशोर की प्रेस वार्ता क़रीब दो घंटे तक चली। लेकिन पत्रकारों की संख्या और उनके सवाल इतने ज्यादा थे कि फिर भी जब प्रशांत किशोर थैंक्यू बोलकर उठे तो पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया, जवाब ना देने की शिकायत करने लगे।
 
आई-पैक के दफ्तर में ही उपरी तल्ले पर एक कमरे में ले जाकर वे अलग से पत्रकारों से बात करने लगे। क़रीब डेढ़ दर्जन पत्रकारों ने बातचीत करने के लिए लाइन लगा दी। सब लोग अपने-अपने चैनल, संस्थान के लिए अलग से इंटरव्यू करना चाहते थे।
 
अलग कमरे में भी क़रीब दो घंटे तक किशोर का पत्रकारों से बातचीत का सिलसिला चलता रहा। सैकडों समर्थक और कार्यकर्ता भी इस मौक़े पर आई-पैक के दफ्तर में मौजूद थे। पत्रकारों से बातचीत के दौरान ही सूचना आयी कि समर्थकों और कार्यकर्ताओं को संबोधित करने का समय आ गया है। नीचे हॉल में वे सब इंतज़ार कर रहे हैं।
 
पत्रकारों की नाराज़गी
प्रशांत किशोर बातचीत को वहीं ख़त्म कर जाने लगे। कई टीवी चैनलों के पत्रकार जो अब तक इंटरव्यू नहीं कर पाए थे, उनसे थोड़ी देर रुकने का आग्रह करने लगे। लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी। अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच चले गए।
 
इसी बात पर कुछ पत्रकार नाराज़ हो गए। आई-पैक के लोगों पर भड़क गए। एक पत्रकार ने धमकी भरे अंदाज़ में आई-पैक की टीम के एक सदस्य से कहा, "अपने सर को बोल दीजिएगा, उन्होंने जो किया अच्छा नहीं किया। अगर यही करना था तो बुलाया ही क्यों था। जब कोई ख़बर प्लांट करानी होती है, कोई जानकारी चाहते हैं तो आपके सर हमको ही दिन भर में दस बार फ़ोन और मैसेज करते हैं। और आज हम बोलते रह गए तो वो देह झाड़ कर चल दिए। बोल दीजिएगा, उन्होंने अच्छा नहीं किया।"
 
हम वहां थोड़ी देर ठहरे। आई-पैक के सदस्यों से ये जानने की कोशिश करने लगे कि मुखिया बनाने का कार्यक्रम क्या है?
 
उन्होंने बताया, "कुछ नहीं करना है। जो लोग चाहते हैं मुखिया बनना या प्रशांत किशोर सर से जुड़ना, वे बस हमारी वेबसाइट पर एक फॉर्म भरकर रजिस्ट्रेशन कर दें। फिर हम उन्हें ख़ुद कॉल करके बुला लेंगे। उनका टेस्ट होगा। जैसी जिसकी क्षमता होगी या रुचि होगी, उसको वैसा बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी।"
 
कितना पड़ेगा प्रभाव
प्रेस वार्ता से लौटकर हमनें वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर से बात की। पूछा कि प्रशांत किशोर की घोषणा को वे किस तरह देखते हैं?
 
उन्होंने बताया, "दो तरह की बातें हैं। अगर आप ये समझते हैं कि प्रशांत किशोर की वजह से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा तो आप ग़लत हैं। और अगर ये समझते हैं कि प्रशांत किशोर कुछ अद्भुत कर देंगे या बिहार की राजनीति में क्रांति जैसा कुछ ला देंगे, तो यह भी ग़लत है।"
 
मणिकांत ठाकुर आगे कहते हैं, "वे आजकल आदर्श की बात कर रहे हैं। लेकिन वे इन्हीं आदर्शों की बात तब नहीं किया करते थे जब नीतीश कुमार के साथ थे। इससे एक बात तो साफ़ है कि वे दूसरों से अलग नहीं हैं और वक़्त की नज़ाकत को समझ रहे हैं। वो ये देख रहे हैं कि बिहार के लोग नीतीश कुमार को टक्कर देने वाला चेहरा तलाश रहे हैं।"
 
लेकिन क्या मुखिया बनाने से बिहार की राजनीति बदलेगी? मणिकांत ठाकुर जवाब देते हुए मुस्कुराने लगते हैं। कहते हैं, "राजनीति बदले न बदले लेकिन इससे ज़मीनी स्तर तक पहुंच ज़रूर बनायी जा सकती है। सगंठन ज़रूर खड़ा किया जा सकता है। नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को यही काम दिया था। इसलिए वो जानते हैं कि इसकी अहमियत क्या है और नीतीश कुमार के पास यही नहीं है।"

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