पाकिस्तान में चुनाव बिना इमरान ख़ान के हो रहा है। इमरान ख़ान पाकिस्तान के लोकप्रिय नेता हैं लेकिन अभी वह जेल में हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। पाकिस्तान में 2018 का चुनाव बिना नवाज़ शरीफ़ के हुआ था। इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का कहना है कि उसने अब भी उस विश्वास का दामन नहीं छोड़ा है।
पीटीआई को लगता है कि इमरान ख़ान को राजनीति से प्रेरित मामलों में जेल में डाल दिया गया है। उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है। पीटीआई का लक्ष्य सोशल मीडिया और नए उम्मीदवारों की मदद से अधिकारियों की सख्ती पर काबू पाना है।
निर्दलीय क्यों माने जा रहे हैं पीटीआई के उम्मीदवार?
क़रीब 70 साल की रेहाना डार सियालकोट की सड़कों पर घूम-घूमकर प्रचार कर रही हैं। पंजाब प्रांत के इस शहर की गलियों में उनके पोस्टर लगे हुए हैं। ढोल की थाप की आवाज़ से उनका रास्ता साफ़ हो जाता है। उनके ऊपर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाई जाती हैं।
वो कहती हैं, 'मैं इमरान ख़ान के साथ हूं और इमरान ख़ान के साथ रहूंगी। अगर मुझे जनता के बीच अकेला छोड़ दिया जाए तो भी मैं इमरान ख़ान का झंडा लेकर सड़कों पर उतरूंगी।'
डार के साथ जो कुछ लोग हैं वो इमरान ख़ान की तस्वीरें लिए हुए हैं और पीटीआई के झंडे लहरा रहे हैं।
इसके बाद भी वो पीटीआई की अधिकृत उम्मीदवार नहीं हैं। वो तकनीकी तौर पर एक निर्दलीय उम्मीदवार हैं, क्योंकि चुनाव आयोग ने पीटीआई से उसका चुनाव चिह्न बैट ज़ब्त कर लिया है।
देखने में यह एक छोटा सा फ़ैसला लग सकता है, लेकिन 58 फीसद निरक्षरता दर वाले पाकिस्तान में मतपत्र पर उम्मीदवारों के एक पहचानने लायक चुनाव चिह्न का होना महत्वपूर्ण है।
अब हर उम्मीदवार के पास अलग-अलग चुनाव चिह्न हैं, डार के पास बच्चे का पालना है तो दूसरे उम्मीदवारों के पास केतली से लेकर अलग-अलग चुनाव चिह्न हैं।
पीटीआई का कहना है कि चुनाव चिह्न ज़ब्त कर लेना उन असंख्य बाधाओं में से एक है, जो 8 फ़रवरी को होने वाले आम चुनाव के दौरान उसके रास्ते में खड़े किए गए।
लेकिन उसकी लड़ाई जारी है। चाहे वह रेहाना डार की तरह सड़कों पर उतरने वाले उम्मीदवार हों, या वह तकनीक, जो किसी नेता को जेल की कोठरी से रैली तक में पहुंचाती हो। यह साबित करता है कि पीटीआई इस लड़ाई में अपना सब कुछ झोंकने के लिए तैयार है।
पीटीआई के नेताओं की गिरफ़्तारी और सज़ा
पिछले चुनाव में डार के बेटे उस्मान सियालकोट में पीटीआई का नेतृत्व कर रहे थे। वह पीटीआई के वरिष्ठ नेता थे। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सरकार में वो युवा मामलों के विशेष सलाहकार थे।
उनके परिवार के मुताबिक़ अक्टूबर की शुरुआत में वो तीन हफ्ते तक ग़ायब रहे। बाद में जब वो टीवी पर नज़र आए तो उन्होंने 9 मई के दंगों का मास्टरमाइंड इमरान ख़ान को बताया था।
पिछले साल इमरान ख़ान की गिरफ्तारी के बाद देश भर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था। इनमें से कुछ हिंसक हो गए थे। लाहौर में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के आवास समेत सेना की दूसरी इमारतों पर हमले के आरोप में इमरान ख़ान के सैकड़ों समर्थकों को गिरफ्तार किया गया था।
बाद में ख़ान को रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी पार्टी पर कार्रवाई जारी रही।
विरोध-प्रदर्शनों के बाद के हफ्तों और महीनों में पीटीआई के राजनेताओं ने पार्टी से इस्तीफ़े या राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की।
इनमें पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। इस पर अधिकारियों ने कहा कि यह इस बात का संकेत था कि इमरान ख़ान के पुराने समर्थक उस पार्टी से जुड़े नहीं रहना चाहते थे, जो अशांति के लिए ज़िम्मेदार थी।
इस पर पीटीआई ने कहा कि नेताओं से जबरन इस्तीफ़ा दिलवाया गया।
हालांकि सच जो भी हो रेहाना डार इससे प्रभावित नहीं हुईं।
वो कहती हैं, 'जब उस्मान डार ने अपना बयान दिया तो मैं उससे सहमत नहीं थी। मैंने उनसे कहा कि अगर मेरा बेटा मरा हुआ लौटता तो अच्छा होता। आपने ग़लत बयान दिया है।'
कैसे प्रचार कर रहे हैं पीटीआई समर्थित उम्मीदवार?
डार जिस तरह से अपना चुनाव प्रचार कर रही हैं, वैसा पीटीआई के सभी उम्मीदवारों के लिए संभव नहीं है।
कुछ उम्मीदवार जेल में रहते हुए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। ये वो उम्मीदवार हैं जिन्हें किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है। ऐसे उम्मीदवार जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं।
वहीं उसके अन्य उम्मीदवार ख़ुद को पुलिस से बचाते हुए छिपकर अपना प्रचार अभियान चला रहे हैं।
आतिफ़ ख़ान ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार में मंत्री थे। अब चुनाव प्रचार के दौरान वो तीन-मीटर के स्क्रीन पर वीडियो में नज़र आते हैं। उनकी टीम ने पीटीआई समर्थकों को संबोधित करने के लिए स्क्रीन लगी गाड़ियों को शहर के चौराहों पर खड़ा किया है।
उनका कहना है कि मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने का यही एकमात्र तरीक़ा है, क्योंकि वह मई से ही छुपे हुए हैं। अधिकारी उन्हें एक वांछित व्यक्ति बताते हैं। उनका मानना है कि उनकी सुनवाई निष्पक्ष नहीं होगी।
उन्होंने बीबीसी से कहा, 'यह बिल्कुल अलग अनुभव है, भीड़ के बीच नहीं हूं, मंच पर नहीं हूं, लोगों के बीच नहीं हूं। लेकिन हम इसे संभालने की कोशिश कर रहे हैं।'
वो कहते हैं, 'पीटीआई का सबसे बड़ा समर्थन युवा मतदाताओं में हैं। युवा डिज़िटल मीडिया, मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, इसलिए हमे लगा कि इस तरह से हम उनसे जुड़ सकते हैं। यही एकमात्र चीज़ है जो हम कर सकते हैं, हम डिज़िटल मीडिया से चुनाव प्रचार कर सकते हैं।'
सोशल मीडिया पर पीटीआई की मौजूदगी
पीटीआई के चुनाव प्रचार में तकनीक का इस्तेमाल महत्वपूर्ण है।
पार्टी के आधिकारिक एक्स, इंस्टाग्राम और टिकटॉक पेज पर हरेक के कई मिलियन फॉलोअर्स हैं।
सोशल मीडिया पर दो अन्य मुख्य पार्टियों पीपीपी और पीएमएल-एन को जितने लोग फॉलों करते हैं, उससे कहीं अधिक फॉलोवर्स पीटीआई के हैं।
इमरान ख़ान तीनों दलों के एकमात्र नेता हैं जिनका उन तीनों प्लेटफार्मों पर एक पर्सनल अकाउंट भी है। इसका मतलब यह हुआ कि उनका संदेश लोगों तक सीधे पहुंच रहा है।
पीटीआई समर्थित उम्मीदवार कौन हैं, मतदाताओं को यह बताने के लिए भी तकनीक का उपयोग का प्रयास किया गया है।
पीटीआई ने एक वेबसाइट बनाई है, जहां मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्र के पीटीआई समर्थित उम्मीदवार का चुनाव चिह्न खोज सकते हैं। इस बेवसाइट पर पार्टी का चुनाव चिह्न बैट-बॉल नहीं दिया गया है।
क्रिकेट के मैदान से राजनीति के मैदान में आए इमरान ख़ान पाकिस्तान के उन नेताओं में हैं जिनकी रैलियों में हज़ारों लोग शामिल होते हैं।
लेकिन वो पिछले साल अगस्त से जेल में बंद हैं। इस हफ्ते सुनाई गई दो-तीन सजाओं के बाद अगले 14 सालों तक उनके जेल में ही रहने की आशंका है।
पीटीआई का कहना है कि उसे रैलियां आयोजित करने में भी दिक्क़त आ रही है। जनवरी के अंत में कराची में सैकड़ों पीटीआई समर्थकों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। अधिकारियों का कहना था कि कार्यकर्ताओं के पास वहां जमा होने की इजाज़त नहीं थी।
पीटीआई का कहना है कि यह इस बात का ताजा उदाहरण है कि उन्हें किस तरह से चुनाव प्रचार से रोका गया है। बीबीसी ने जितने उम्मीदवारों की प्रचार टीम से बात की, उन सबने कहा कि उनके समर्थकों को डराया-धमकाया गया है। पीटीआई का आरोप है कि उसे चुनाव लड़ने से रोकने के लिए उसके उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न, अपहरण, जेल भेजने, और हिंसा का सहारा लिया गया।
पीटीआई के आरोपों पर सरकार का तर्क
कार्यवाहक सरकार के सूचना मंत्री मुर्तजा सोलांगी ने बीबीसी से कहा, 'ये आरोप हमें निराधार और बेतुके लगते हैं। कुछ लोगों को गिरफ्तार तो किया गया है, लेकिन उनमें से कुछ गिरफ्तारियां 9 मई की घटनाओं से जुड़ी थीं और कुछ अन्य लोग आपराधिक मामलों में शामिल थे।'
वो कहते हैं, 'हालांकि वे (पीटीआई) विरोध जताने और आरोप लगाने के लिए स्वतंत्र हैं, भले ही वे निराधार हों। मीडिया उन्हें प्रसारित करता है। इसके साथ ही उनके पास देश की सबसे बड़ी अदालतों समेत अन्य क़ानूनी विकल्प भी उपलब्ध हैं।'
पीटीआई के सोशल मीडिया विंग के प्रमुख जिब्रान इलियास अमेरिका के शिकागो में रहते हैं। उन्होंने फोन पर बीबीसी को बताया, 'यह सस्ता, सुरक्षित और तेज है। शायद यह चुनावी रैलियों से थोड़ा कम प्रभावी हो, लेकिन लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने की हम कोशिश कर रहे थे।'
इलियास कहते हैं, ' हमने इमरान के बिना पहले कभी कोई राजनीतिक रैली नहीं की है।' क्या इमरान के बिना किसी का काम चलेगा? इस सवाल पर वे बहुत आश्वस्त नज़र नहीं आते हैं।
वो कहते हैं, समस्या यह है कि लोग इमरान ख़ान के संदेश के लिए तरस रहे हैं। तो जनता तक संदेश कैसे पहुंचाया जाए?
पिछले साल दिसंबर में एक ऑनलाइन रैली का भाषण तैयार करने के लिए उन्होंने आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस (एआई) का इस्तेमाल किया।
इंटरनेट पर निगरानी रखने वाले समूह नेटब्लॉक्स' के मुताबिक पाकिस्तान में कई मौक़ों पर विभिन्न प्लेटफार्मों पर व्यवधान पैदा हुआ, जो पीटीआई की रैलियों में से कुछ के साथ मेल खाता था।
पीटीआई नेताओं की उम्मीदें क्या हैं?
माइकल कुगलमैन अमेरिकी थिंक टैंक विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया संस्थान के निदेशक हैं।
वो कहते हैं, 'पाकिस्तान की केवल 30 फ़ीसदी आबादी ही सक्रिय तौर पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती है। इससे पता चलता है कि पीटीआई एक तरफ़ जहां सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने में जितनी सक्षम है, वहीं उसके ऑनलाइन अभियान के पहुंच की सीमाएं भी हैं।'
ऐसा पहले भी देखा जा चुका है, ख़ासकर पिछले चुनाव में जब नवाज शरीफ़ जेल में थे।
कुगलमैन अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों की तरह इस बदलाव के पीछे पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना का हाथ देखते हैं। वही सेना जिसेके सहयोग से इमरान ख़ान सत्ता तक पहुंचे थे।
वो कहते हैं, 'व्यापक स्तर पर दमन किया गया और चालाकी की गई। पीएमएल-एन के सदस्यों की गिरफ्तारियां हुईं, चुनाव के क़रीब आने पर जेल की सज़ा सुनाई गई, इसमें नवाज़ शरीफ़ को 10 साल की जेल की सज़ा भी शामिल थी।'
पीटीआई ने इमरान ख़ान या अपने चुनाव अभियान पर हर हमले का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की कोशिश की है, लेकिन क्या यह काम करेगा?
पाकिस्तान के टीवी चैनल पीएमएल-एन के नवाज़ शरीफ़ और पीपीपी के बिलावल भुट्टो की चुनावी रैलियों के कवरेज से भरे हुए हैं।
कुगेलमैन का कहना है कि कई मतदाताओं को लग सकता है कि मतदान करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि पीटीआई के जीतने का कोई रास्ता नहीं है।
वो कहते हैं, 'पीटीआई नेतृत्व के सामने सवाल यह है कि ख़ान के साथ जो कुछ हो रहा है, उसके बाद भी अपने समर्थकों बाहर आने और मतदान के लिए प्रेरित कैसे किया जाए।पीटीआई में कुछ लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि अगर वे मतदाताओं को बाहर ला पाए और मतदान का फीसद पर्याप्त रूप से बढ़ जाता है तो चमत्कार हो सकता है और वे जीत सकते हैं।'