किसान ट्रैक्टर रैली जब हिंसक हुई, उस समय कहां थे आंदोलन के नेता?

BBC Hindi

गुरुवार, 28 जनवरी 2021 (10:12 IST)
सरोज सिंह (बीबीसी संवाददाता, दिल्ली)
 
गणतंत्र दिवस के दिन किसान नेताओं ने शांतिपूर्ण ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाज़त दिल्ली पुलिस से मांगी थी। लेकिन परेड शुरू होने के कुछ घंटों के अंदर अलग-अलग बॉर्डर से हिंसक तस्वीरें सामने आईं। आरोप ये है कि किसान गणतंत्र दिवस के दिन जिस गण यानी जनता या समूह की आवाज़ तंत्र यानी सिस्टम या सरकार में बैठे लोगों तक पहुंचाना चाहते थे, वो आवाज़ कहीं दब गई और भीड़तंत्र हावी हो गया।
 
हिंसा की ख़बरें जैसे ही मीडिया में आनी शुरू हुई, किसान नेताओं की एक के बाद एक अपील आनी शुरू हो गई। पहले योगेंद्र यादव ने ट्विटर पर अपनी वीडियो अपील डाली, फिर भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत का बयान सामने आया। शाम को संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ़ से बयान जारी कर ट्रैक्टर परेड को तत्काल प्रभाव से बंद करने का फ़रमान आया और प्रतिभागियों से तुरंत अपने धरना स्थलों पर वापस लौटने की अपील की गई। किसान एकता मोर्चा ट्विटर हैंडल की तरफ़ से ट्वीट कर पूरे घटना की क्रोनोलॉजी भी समझाई गई।
 
क्या था प्रस्तावित रूट और किसान कहां से निकले?
 
दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ सारा बवाल तब शुरू हुआ, जब किसानों ने तय रूट पर ट्रैक्टर परेड निकालने से मना कर दिया और नए रूट पर परेड निकालने लगे। दिल्ली की अलग-अलग सीमा पर तैनात बीबीसी संवाददातों ने भी मौक़े से भेजी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है। बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ग़ाज़ीपुर में मौजूद थे, जब किसान बैरिकेड तोड़ते हुए अक्षरधाम की ओर निकल रहे थे।
 
ट्रैक्टर रैली प्रस्तावित रूट से अलग रूट पर कैसे निकली?
 
टिकरी बॉर्डर पर तैनात बीबीसी हिंदी के सहयोगी पत्रकार समीरात्मज मिश्र ने बताया कि जब किसान नांगलोई पहुंचे तो कुछ किसान सीधे पीरागढ़ी की ओर जाना चाहते थे लेकिन दिल्ली पुलिस उन्हें तय रास्ते पर ही जाने को कह रही थी। बाद में कुछ किसान तय रूट पर निकले तो कुछ पीरागढ़ी की ओर। किसान नेता योगेंद्र यादव ने भी फ़ेसबुक पर पोस्ट किए संदेश में ये बात स्वीकार की है।
 
उन्होंने कहा कि ट्रैक्टर परेड को अभूतपूर्व रेस्पॉन्स मिला। लेकिन पुलिस के साथ संयुक्त किसान मोर्चा के समझौते के विपरीत कुछ किसान रूट तोड़ कर अलग मार्ग पर चले गए जिस वजह से आंदोलन में गड़बड़ी हुई। सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर कुछ किसानों ने पुलिस के साथ हुए समझौते को नहीं माना। वे सिंघु बॉर्डर पर संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से आगे निकल गए। टिकरी बॉर्डर पर पीरागढ़ी की तरफ़ जाने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन कुछ किसानों ने पुलिस की बात नहीं मानी थी। वैसे ही ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से अक्षरधाम और आईटीओ की तरफ़ जाना प्रस्तावित रूट का हिस्सा नहीं था। पुलिस पर हमला हुआ। किसान और जवान आमने-सामने थे।
 
किस बॉर्डर पर किस किसान नेता की ड्यूटी थी
 
ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ कि किसानों ने अपने नेताओं की बात नहीं सुनी। क्या किसान नेता मौक़े पर ट्रैक्टर परेड की अगुवाई करने के लिए मौजूद नहीं थे? यही सवाल बीबीसी ने किसान नेता योगेंद्र यादव से किया। उन्होंने जवाब में कहा कि मेरी ख़ुद की ड्यूटी शाहजहांपुर बॉर्डर पर थी। मैं वहां ड्यूटी पर तैनात था और वहां सब कुछ शांतिपूर्ण रहा।
 
बाक़ी बॉर्डर पर किसान नेताओं की तैनाती पर उन्होंने कहा कि सिंघु बॉर्डर पर सब प्रमुख नेताओं को रहना था। क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉक्टर दर्शनपाल, भारतीय किसान यूनियन डकौंदा के जगमोहन सिंह, भारतीय किसान यूनियन के बलबीर सिंह राजेवाल को सिंघु बॉर्डर पर परेड को लीड करना था।
 
टिकरी बॉर्डर पर किसान नेताओं को 2 हिस्सों में ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। एक टीम की ज़िम्मेदारी भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के नेता जोगिंदर सिंह उगराहां को दी गई थी और दूसरे हिस्से की ज़िम्मेदारी भारतीय किसान यूनियन डकौंदा के अध्यक्ष बूटा सिंह बर्जगिल को दी गई थी। उनके साथ हरियाणा के किसान साथियों को भी वहां मौजूद रहना था।
 
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को रहना था। उनके साथ उत्तराखंड तराई किसान यूनियन के नेता तेजेन्द्र बिष्ट को रहना था। पलवल बॉर्डर पर किसान नेता शिव कुमार कक्काजी को रहना था।
 
...तो फिर चूक कहां हुई?
 
योगेंद्र यादव की सूचना के हिसाब से टिकरी बॉर्डर पर जिन किसान नेताओं की ड्यूटी थी, वो वहां मौजूद थे। लेकिन दिक़्क़त सिंघु बॉर्डर पर हुई। उनको मिली सूचना के हिसाब से सिंघु बॉर्डर का मार्च शुरू ही नहीं हो पाया था। शुरू होने से 2 घंटा पहले किसान मज़दूर संघर्ष समिति ने पूरे मार्च को कैप्चर कर लिया और सबसे आगे होने की वजह से उन्होंने ही पुलिस बैरिकेड तोड़ दिए। किसान मज़दूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू हैं।
 
बीबीसी से बातचीत में योगेंद्र यादव ने कहा कि तय कार्यक्रम के मुताबिक़ पहले किसान नेताओं को बारी-बारी मंच पर जाकर अपनी बात रखनी थी। फिर एक गाड़ी, जिसमें सारे नेता होते वो गाड़ी परेड के आगे-आगे चलनी थी। लेकिन ये सारा कार्यक्रम शुरू ही नहीं हो पाया उसके पहले ही तोड़-फोड़ और गड़बड़ी शुरू हो गई थी।
 
योगेंद्र यादव की सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसान नेताओं से बात तो नहीं हो पाई, लेकिन दूसरों से मिली सूचना के आधार पर बीबीसी को बताया कि किसान नेता डॉक्टर दर्शनपाल सिंघु बॉर्डर के पास संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर पर तैनात थे। लेकिन किसान मज़दूर संघर्ष समिति के लोग सबसे आगे थे। उन्होंने किसान नेता जगमोहन और दर्शनपाल पर हमला किया, उसके बाद दोनों नेता वहां से हटे। सिंघु बॉर्डर पर मौक़े पर मौजूद बीबीसी संवाददाता अरविंद छाबड़ा ने भी बताया कि किसान नेता डॉक्टर दर्शनपाल और किसान नेता मंजीत सिंह को उन्होंने संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर पर देखा था।
 
ट्रैक्टर परेड में किसान मज़दूर संघर्ष समिति पर उठते सवाल
 
योगेंद्र यादव ने अपने फ़ेसबुक वीडियो संदेश में इस समिति पर गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया है। सिंघु बॉर्डर पर किसान मज़दूर संघर्ष समिति का मोर्चा पिछले 2 महीने से लगा हुआ है। ये पंजाब का किसान संगठन है। किसान मज़दूर संघर्ष समिति, संयुक्त किसान मोर्चा के 32 किसान संगठनों का हिस्सा नहीं है। किसान मज़दूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू हैं और महासचिव सरवन सिंह पंधेर हैं।
 
सिंघु बॉर्डर पर बाक़ी किसान संगठन ने जिस तरफ़ अपना डेरा जमाया है, उसकी दूसरी तरफ़ किसान मज़दूर संघर्ष समिति का डेरा है। योगेंद्र यादव ने जारी किए एक फेसबुक संदेश में इस समिति के बारे में कहा कि 25 तारीख़ को ही उन्होंने वीडियो जारी करके कह दिया था कि वो संयुक्त किसान मोर्चा की बात को नहीं मानते। हम रिंग रोड में जाएंगे। परेड निकलने समय ये सबसे आगे रहे क्योंकि वो दिल्ली की तरफ़ थे। इसका फ़ायदा उठा कर पूरी गड़बड़ी फैलाई गई। हुड़दंग करने वाले लोग पहले से पहचाने जा सकते थे, उनके बारे में पहले से पता था।
 
योगेंद्र यादव जैसी ही बात दीप सिद्धू ने अपने फ़ेसबुक लाइव में भी कही है। दीप सिद्धू पर ही लाल क़िले पर किसानों को भड़काने के आरोप लग रहे हैं। अपने फ़ेसबुक पर उसी आरोप की सफ़ाई में उन्होंने वीडियो जारी किया है। किसान मज़दूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हैं।
 
एनडीटीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने क्या तय किया और क्या किया, इसके लिए वो ज़िम्मेदार हैं। जो किसानों को संदेश गया था, जो हमें पता था दिल्ली के आउटर रिंग रोड पर आना है। हमने संयुक्त मोर्चे की बात का पालन किया है। हमारे लोग लाल क़िले नहीं गए थे। जो लोग लाल क़िले पर गए, वो ग़ैर-सामाजिक तत्व हैं। सरकार की साज़िश है। दीप सिद्धू सरकार का आदमी है। उसकी जांच होनी चाहिए। हिंसा के ज़िम्मेदार हम नहीं, सरकार है, जिसने उसको नहीं रोका।
 
25 जनवरी की रात के वीडियो पर क्या हुआ?
 
ऐसे में सवाल उठता है कि जब सब किसान नेताओं की अलग-अलग बॉर्डर पर ड्यूटी लगी थी तो फिर गड़बड़ी क्यों और कैसे हुई? 25 जनवरी की रात को किसान मज़दूर संघर्ष समिति ने पुलिस और संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रस्तावित रूट ना मानने की बात कही तो किसान नेताओं ने क्या क़दम उठाए?
 
इस सवाल के जवाब में योगेंद्र यादव ने कहा कि हमने कई लोगों को इनके पास भेजा, इनके हाथ पैर जोड़े। हमने कहा कि आप हमारा अनुशासन नहीं मानते तो कम से कम किसान होने की ख़ातिर एक दिन के लिए ये बात मान जाओ। ये बात पुलिस को पता थी। प्रशासन को पता थी।
 
टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर का हाल
 
सिंघु बॉर्डर के अलावा किसानों और पुलिस के बीच झड़पें ग़ाज़ीपुर और टिकरी बॉर्डर पर भी हुईं। 26 जनवरी को दिन भर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर तैनात रहे बीबीसी संवाददाता सलमान रावी के मुताबिक़ उन्होंने किसी बड़े किसान नेता को ट्रैक्टर रैली की अगुवाई करते नहीं देखा। हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने बीबीसी से बातचीत में ग़ाज़ीपुर पर मौजूद रहने की बात स्वीकार की है और कहा कि पुलिस ने उन रास्तों पर भी बैरिकैडिंग की, जिन पर ट्रैक्टर रैली की सहमति बनी थी।
 
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि ट्रैक्टर परेड में कुछ लोग ऐसे ज़रूर थे, जो कभी आंदोलन का हिस्सा नहीं थे और तय करके आए थे कि आगे ही जाना था। हम उनको चिन्हित करेंगे। जो एक दिन के लिए आए थे, वो बिगाड़ा करते हैं। लाल क़िले पर जो हुआ वो ग़लत हुआ।
 
टिकरी बॉर्डर पर बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा बताया कि उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के महासचिव शिंगारा सिंह मान नज़र आए। लेकिन जहां हिंसा हो रही थी उससे वो काफ़ी दूर थे। दरअसल कई किसान नेता मीडिया के सामने आए थे। कई सामने नहीं दिखाई दिए।
 
गड़बड़ी के ख़िलाफ़ बयान और ज़िम्मेदारी ख़त्म
 
किसान नेताओं ने अलग-अलग बयान जारी कर कहा कि जो हुआ कि ग़लत हुआ'। किसी ने कहा दु:खद घटना है, तो किसी नेता ने अराजक तत्व शामिल होने की बात की। किसी ने इसे राजनैतिक दलों का काम बताया तो किसी ने आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश।
 
संयुक्त किसान मोर्चा आज कह रहा है कि ना तो किसान मज़दूर संघर्ष समिति से कोई नाता है और ना ही दीप सिद्धू से। लेकिन किसान नेता हर बॉर्डर पर खड़े थे। लेकिन ये तथ्य है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने ही ट्रैक्टर परेड का ऐलान किया था और इसी कारण संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं और उनकी ज़िम्मेदारी को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं।

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