दक्षिण कोरिया की महिलाओं के मां बनने से इनकार के पीछे क्या पुरुष हैं बड़ी वजह

जीन मैकेंजी, बीबीसी संवाददाता, सोल
बरसात की एक दोपहर में येजिन अपने अपार्टमेंट में अपने दोस्तों के लिए लंच पका रही हैं। उनका ये फ्लैट राजधानी सोल के बाहरी इलाक़े में है, जहाँ वो अकेले ही ख़ुशी ख़ुशी रहती हैं।
 
जब येजिन और उनके दोस्त खाना खा रहे थे, तो उनमें से एक ने येजिन के फोन पर एक बुज़ुर्ग डायनासोर के मीम को लेकर उन्हें चिढ़ाते हुआ कहा, ये डायनासोर कह रहा है कि 'ज़रा सावधान रहना। कहीं तुम भी मेरी तरह विलुप्त न हो जाओ।'
 
महफ़िल में जमा सारी महिलाएं इस बात पर खिलखिलाकर हँस पड़ी थीं। 30 बरस की टीवी प्रोड्यूसर येजिन कहती हैं, ''ये मज़ाक़ ज़रूर था, मगर ये एक स्याह हक़ीक़त भी है। क्योंकि हमको पता है कि हम ख़ुद अपने विलुप्त होने की वजह बन रहे हैं।''
 
न तो येजिन और न ही उनकी कोई सहेली अभी बच्चे पैदा करने की योजना बना रही हैं। वो दक्षिण कोरिया की उन महिलाओं की बढ़ती तादाद का हिस्सा हैं, जो बच्चों की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद ज़िंदगी अपना रही हैं।
 
दक्षिण कोरिया, दुनिया में सबसे कम जन्म दर वाले देशों में से एक है और यहाँ की जन्म दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। साल दर साल दक्षिण कोरिया ख़ुद ही इस मामले में अपना पुराना रिकॉर्ड तोड़ता जा रहा है।
 
बुधवार को जो आँकड़े जारी किए गए, उनसे पता चला की 2023 में दक्षिण कोरिया की जन्म दर में आठ फ़ीसद की और गिरावट आई और अब ये घटकर 0.7 हो गई है।
 
ये बच्चों की वो तादाद है, जो दक्षिण कोरिया की हर महिला अपने पूरे जीवनकाल में पैदा करती है। किसी भी देश की आबादी को स्थिर बनाए रखने के लिए ये आँकड़ा 2.1 होना चाहिए।
 
अब अगर यही रफ़्तार बनी रहती है, तो साल 2100 के आते आते दक्षिण कोरिया की आबादी के आधी रह जाने की आशंका है।
 
एक राष्ट्रीय आपातकाल
दुनिया के तमाम विकसित देशों में जन्म दर में लगातार गिरावट देखी जा रही है। लेकिन, किसी और देश में इतने बुरे हालात नहीं हैं, जैसे दक्षिण कोरिया में हैं।
 
आने वाले समय में इसकी आबादी के पूर्वानुमान तो और भी भयावाह हैं। अगले 50 वर्षों में दक्षिण कोरिया में काम कर सकने की उम्र वाले नागरिकों की संख्या घटकर आधी रह जाएगी।
 
देश की अनिवार्य सैन्य सेवा में भाग लेने के योग्य लोगों की तादाद में 58 प्रतिशत की कमी आ जाएगी और देश की लगभग आधी आबादी की उम्र 65 बरस से ज़्यादा होगी।
 
ये आंकड़े दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था, उसके पेंशन फंड और सुरक्षा के लिए इतने बड़े ख़तरे की घंटी हैं कि देश के राजनेताओं ने इसे एक ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ का नाम दिया है।
 
पिछले लगभग 20 वर्षों से दक्षिण कोरिया की तमाम सरकारों ने इस समस्या से निपटने में काफ़ी रक़म ख़र्च कर डाली है- लगभग 379 ख़रब कोरियाई वोन या फिर 226 अरब डॉलर।
 
जिन जोड़ों के बच्चे होते हैं, उन पर दक्षिण कोरिया की सरकार नक़दी की बरसात कर देती है।
 
उन्हें हर महीने कुछ रक़म तो दी ही जाती है। इसके अलावा रियायती दरों पर मकान और मुफ़्त में टैक्सी की सेवाएं भी दी जाती हैं।
 
बच्चों वाले जोड़ों को दी जाने वाली दूसरी रियायतों में अस्पताल के बिल और यहां तक कि आईवीएफ के इलाज में मदद भी शामिल है। हालांकि, ये रक़म सिर्फ़ शादी-शुदा जोड़ों को दी जाती है।
 
पर, ऐसे वित्तीय प्रोत्साहन कारगर नहीं साबित हुए हैं। इसके चलते देश के राजनेता, घटती जन्म दर की चुनौती से निपटने के लिए सिर जोड़कर बैठते रहे हैं, ताकि कोई ‘रचनात्मक’ समाधान निकाल सकें।
 
जैसे कि दक्षिणी पूर्वी एशिया से आयाओं को किराए पर लाना और उन्हें न्यूनतम मज़दूरी से कम तनख़्वाह देना और 30 साल की उम्र से पहले तीन बच्चे पैदा कर लेने वाले मर्दों को अनिवार्य सैन्य सेवा में शामिल होने से छूट देना, वग़ैरह…
 
अब इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि नीति निर्माताओं पर इल्ज़ाम लग रहे हैं कि वो नौजवानों और ख़ास तौर से महिलाओं से उनकी ज़रूरतों के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं करते।
 
और इसीलिए, पिछले एक साल से हम पूरे दक्षिण कोरिया में घूम रहे हैं। हमने बहुत सी महिलाओं से बात की, ताकि ये जान सकें कि बच्चे नहीं पैदा करने के पीछे उनकी क्या सोच है।
 
जब येजिन ने उम्र के तीसरे दशक में अकेले रहने का फ़ैसला किया, तो उनका ये क़दम दक्षिण कोरिया के सामाजिक नियम क़ायदों को धता बताने वाला था। कोरिया में अकेले रहने को ज़िंदगी का एक अस्थायी दौर माना जाता है।
 
उसके बाद, पांच बरस पहले येजिन ने तय किया कि वो शादी नहीं करेंगी और इस तरह वो बच्चे भी पैदा नहीं करेंगी।
 
उन्होंने मुझे बताया कि, ‘दक्षिण कोरिया में डेट करने लायक़ मर्द तलाश पाना बहुत मुश्किल है। यानी ऐसे युवा जो घर के काम करने और बच्चों की देख-रेख में बराबरी से हाथ बटाएं।’ वो कहती हैं कि, ‘ और, जो महिलाएं बच्चे पैदा करती हैं, उनको लेकर लोगों की राय अच्छी नहीं होती’
 
2022 में दक्षिण कोरिया में केवल दो प्रतिशत बच्चे ग़ैर शादी-शुदा जोड़ों से पैदा हुए थे।
 
काम करने का कभी न रुकने वाला चक्र’
शादी करके घर बसाने के बजाय, येजिन ने टीवी में अपने करियर पर ध्यान देने का फ़ैसला किया। उनका तर्क है कि ये ऐसी नौकरी है, जिसमें उनके पास किसी बच्चे को पालने-पोसने के लिए पर्याप्त वक़्त ही नहीं मिलता। काम करने के लंबे घंटों को लेकर कोरिया पहले से ही बहुत बदनाम है।
 
येजिन, परंपरागत 9 से 6 की (अन्य देशों की 9 से 5 जैसी) नौकरी करती हैं। लेकिन, वो कहती हैं कि आम तौर पर वो रात आठ बजे से पहले दफ़्तर से नहीं निकल पाती हैं। और, जब वो घर पहुँचती हैं तो उनके पास घर साफ़ करने या फिर थोड़ी बहुत वर्ज़िश करने के सिवा किसी और काम के लिए वक़्त नहीं रहता।
 
वो कहती हैं कि, ‘मुझे अपने काम से मुहब्बत है, क्योंकि इससे मुझे ज़िंदगी में बहुत तसल्ली हासिल होती है। लेकिन, दक्षिण कोरिया में काम करना बेहद मुश्किल है। आप लगातार काम करने के चक्र में फँसे रहते हैं।’
 
येजिन कहती हैं कि अपने ख़ाली वक़्त में उनके ऊपर पढ़ाई करने का भी दबाव रहता है, ताकि वो इससे बेहतर नौकरी हासिल कर सकें।
 
वो बताती हैं कि, ‘कोरियाई लोगों की ये मानसकिता होती है कि अगर आप लगातार ख़ुद को बेहतर बनाने पर मेहनत नहीं कर रहे होते, तो आप ज़िंदगी की दौड़ में पीछे रह जाएंगे और नाकाम साबित होंगे। ये ख़ौफ़ हमें दोगुनी ताक़त से काम करने को मजबूर कर देता है।’
 
येजिन बताती हैं कि, ‘कई बार तो हफ़्ते के आख़िर में मैं इतनी थक जाती हूँ कि मुझे अस्पताल जाकर ग्लूकोज़ चढ़वाना पड़ता है, ताकि मैं सोमवार को तरो-ताज़ा होकर फिर काम पर जा सकूं।’
 
वो इस बात को इतने आराम से बताती हैं, मानो ये हर हफ़्ते किये जाने वाले दूसरे कामों की तरह ही आम बात है।
 
अपने देश की दूसरी महिलाओं की तरह येजिन को भी इसी बात का ख़ौफ़ है कि अगर उन्होंने बच्चा पैदा करने के लिए नौकरी से छुट्टी ली, तो शायद वो दोबारा काम पर न लौट सकें।
 
वो बताती हैं कि, ‘कंपनियों की तरफ़ से एक अनकहा दबाव रहता है कि जब हम बच्चे पैदा करें, तो हम अपनी नौकरियां छोड़कर चले जाएं।’ येजिन ने अपनी बहन और अपनी दो पसंदीदा एंकरों के साथ ऐसा होते देखा है।
 
‘मुझे कुछ ज़्यादा ही पता है’
एचआर सेक्टर में काम करने वाली एक 28 बरस की युवती ने कहा कि उन्होंने ऐसे बहुत से लोगों को देखा है, जिनको मैटरनिटी लीव लेने के बाद नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया या फिर उन्हें प्रमोशन नहीं दिया गया। इन मिसालों को देखने के बाद ही उन्होंने फ़ैसला किया कि वो कभी बच्चे नहीं पैदा करेंगी।
 
अपने बच्चों के पहले आठ सालों के दौरान, हर मर्द और औरत को एक साल की छुट्टी लेने का हक़ है। लेकिन, 2022 में पिता बनने वाले केवल सात प्रतिशत मर्दों ने अपनी इस छुट्टी में से कुछ का इस्तेमाल किया था। उनकी तुलना में 70 प्रतिशत नई माओं ने ये छुट्टी ली थी।
 
अगर हम आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देशों की बात करें, तो उनमें दक्षिण कोरिया की महिलाएं सबसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी होती हैं।
 
इसके बावजूद, कोरिया में पुरुषों और महिलाओं की तनख़्वाह में अंतर सबसे ज़्यादा है और पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा महिलाओं को काम नहीं मिलता है।
 
रिसर्चर कहते हैं कि इससे साबित होता है कि महिलाओं के सामने दो विकल्प रखे जाते हैं- या तो वो करियर चुन लें या फिर अपना परिवार बसा लें। ऐसे में अपने करियर को तरज़ीह देने वाली महिलाओं की तादाद देश में बढ़ती जा रही है।
 
मैं स्कूल के बाद चलने वाले एक क्लब में स्टेला शिन से मिली। स्टेला वहीं पांच बरस के बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ाती हैं।
 
वो कहती हैं कि, ‘आप इन बच्चों को देखिए, कितने मासूम हैं।’ पर, 39 बरस की स्टेला का अपना कोई बच्चा नहीं है। वो कहती हैं कि ये कोई अपनी पसंद का फ़ैसला नहीं था।
 
स्टेला पिछले छह बरस से शादी-शुदा ज़िंदगी जी रही हैं। वो और उनके पति, दोनों ही एक बच्चा चाहते थे। लेकिन, दोनों ही अपने काम में इस क़दर मसरूफ़ थे, अपनी कामकाजी ज़िंदगी को इस तरह एन्जॉय कर रहे थे कि बच्चा पैदा करने का वक़्त ही हाथ से निकल गया।
 
अब स्टेला ने ये स्वीकार कर लिया है कि उनके रहन-सहन में बच्चा पैदा करके पालना-पोसना ‘नामुमकिन’ है।
 
उन्होंने मुझसे कहा कि, ‘माओं को बच्चों के पहले दो साल में अपना काम छोड़कर पूरी तरह उनकी देख-भाल में जुटना पड़ता है और ये ख़याल ही मुझे बहुत डरावना लगता था। मैं अपना करियर और अपनी देख-भाल करना ज़्यादा पसंद करती हूं।’
 
अपने ख़ाली वक़्त में स्टेला कुछ दूसरी उम्र-दराज़ औरतों के साथ के-पॉप की डांस क्लास में जाती हैं।
 
महिलाओं से ये उम्मीद लगाना आम है कि जब वो बच्चे पैदा करें, तो वो अपने काम से दो या तीन साल की छुट्टी लेकर घर बैठ जाएं। जब मैंने स्टेला से पूछा कि क्या वो बच्चे पालने के लिए अपने पति के साथ छुट्टियां साझा कर सकती थीं, तो उन्होंने मुझे ख़ारिज कर देने वाली नज़र से देखा।
 
उन्होंने कहा कि, ‘ये तो ऐसा ही होगा जैसे कि जब मैं उनको बर्तन धोने के लिए कहती हूं, तो वो कुछ न कुछ छोड़ देते हैं। फिर मैं इस काम में उन पर भरोसा कैसे कर सकती हूं।’
 
अगर स्टेला काम छोड़ना भी चाहतीं, या फिर परिवार और करियर के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश करतीं, तो भी उनके लिए ये ज़िम्मेदारी उठा पाना आसान नहीं होता। क्योंकि दक्षिण कोरिया में मकान बहुत महंगे हैं।
 
देश की आधी से ज़्यादा आबादी राजधानी सोल में या फिर इसके आस-पास रहती है। क्योंकि करियर के सबसे अच्छे अवसर यहीं पर हैं।
 
इससे अपार्टमेंट और दूसरे संसाधनों पर आबादी का दबाव बहुत बढ़ गया है। स्टेला और उनके पति को मजबूरन राजधानी सोल से दूर, और दूर जाकर पड़ोस के सूबों में बसना पड़ा है। और, वो अब तक ख़ुद का घर नहीं ख़रीद सके हैं।
 
सोल की जन्म दर तो 0.59 प्रतिशत तक गिर गई है, जो देश में सबसे कम है।
 
मकान की क़िल्लत एक तरफ़, प्राइवेट एजुकेशन भी बहुत महंगी है। चार साल की उम्र से बच्चों को, स्कूल के अलावा पढ़ाने वाले बेहद महंगे संस्थानों में भेजा जाता है। जहां वो गणित और अंग्रेज़ी पढ़ते हैं। संगीत और ताइक्वांडो सीखते हैं।
 
ये चलन इतना आम है कि ऐसा न करने वालों के बारे में राय क़ायम हो जाती है कि वो अपने बच्चों को ज़िंदगी में नाकाम होने के लिए तैयार कर रहे हैं।
 
इस वजह से दक्षिण कोरिया, बच्चे पालने के मामले में दुनिया का सबसे महंगा देश बन गया है। 2022 की एक स्टडी में पाया गया था कि देश के केवल दो प्रतिशत मां-बाप ही निजी ट्यूशन पर पैसे नहीं ख़र्च करते हैं।
 
वहीं, 94 फ़ीसद ने कहा कि ये उनके ऊपर वित्तीय बोझ है। ऐसे भीड़ भरे स्कूलों में से एक में पढ़ाने वाली स्टेला इस बोझ को भी बख़ूबी समझती हैं।
 
वो देखती हैं कि बच्चों के मां-बाप प्राइवेट ट्यूशन के लिए हर बच्चे पर हर महीने लगभग 890 डॉलर (या लगभग 74 हज़ार रुपए) ख़र्च करते हैं और उनमें से कई ये बोझ उठा पाने की हैसियत में भी नहीं होते हैं।
 
लेकिन, स्टेला कहती हैं कि, ‘इन निजी कक्षाओं के बग़ैर, बच्चे पीछे रह जाते हैं। जब मैं इन बच्चों के बीच होती हूं, तो मेरा मन होता है कि मेरा भी अपना बच्चा हो। लेकिन, मुझे इसकी क़ीमत के बारे में कुछ ज़्यादा ही अंदाज़ा है।’
 
कुछ लोगों के लिए बेहद महंगे ये प्राइवेट ट्यूशन लागत से कहीं ज़्यादा भारी पड़ते हैं।
 
‘मिंजी’ अपनी ज़िंदगी का तजुर्बा हमसे साझा तो करना चाहती थीं, मगर सबकी नज़रों से बचकर। वो अपने मां-बाप को ये पता नहीं लगने देना चाहतीं कि वो बच्चे पैदा करने का इरादा नहीं रखतीं।
 
वो कहती हैं कि, ‘मेरे मां-बाप को ये सुनकर बहुत सदमा लगेगा, उन्हें बहुत दु:ख होगा।’ मिंजी, दक्षिण कोरिया के समुद्र तट पर बसे बुसान शहर में अपने पति के साथ रहती हैं।
 
मिंजी ने मुझसे ये राज़ साझा कि उनके उम्र का दूसरा दशक और बचपन बहुत नाख़ुशी भरा रहा था।
 
उन्होंने कहा कि, ‘मैंने अपनी सारी ज़िंदगी पढ़ते हुए बिता दी। पहले मैं एक अच्छी यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने के लिए संघर्ष करती रही। फिर सिविल सेवा के इम्तिहान के लिए पढ़ती रही और फिर 28 बरस की उम्र में जाकर मुझे पहली नौकरी मिली।’
 
वो अपने बचपन के दिनों को याद करती हैं कि वो रात-रात तक कक्षाओं में रहकर पढ़ती थीं। गणित के मुश्किल सवाल हल करती रहती थीं, जो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं थी और आती भी नहीं थी। मिंजी तो एक कलाकार बनने का ख़्वाब देखा करती थीं।
 
उन्होंने बताया कि, ‘मैं एक अंतहीन होड़ लगा रही थी। मैं अपने ख़्वाब पूरे करने के लिए संघर्ष नहीं कर रही थी। मैं तो बस एक औसत सी ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद कर रही थी। ये दौड़ बेहद थकाऊ थी।’
 
अब 32 साल की होने के बाद जाकर मिंजी को इस क़ैद से आज़ादी महसूस होती है और वो अपनी ज़िंदगी का लुत्फ़ ले पा रही हैं। उन्हें सफ़र करने में बहुत मज़ा आता है और वो गोते लगाना सीख रही हैं।
 
लेकिन, मिंजी की सबसे बड़ी फ़िक्र ये है कि वो किसी बच्चे को उसी अंतहीन दौड़ की मुसीबत में नहीं झोंकना चाहतीं, जिसकी शिकार वो ख़ुद रही हैं।
 
वो इस नतीजे पर पहुंची हैं कि, ‘दक्षिण कोरिया ऐसी जगह नहीं है, जहां बच्चे ख़ुशी ख़ुशी रह सकें।’
 
मिंजी के पति एक बच्चा चाहते हैं और दोनों के बीच इस मुद्दे पर लगातार झगड़े होते रहते हैं।
 
लेकिन, धीरे-धीरे उनके पति ने उनकी इस इच्छा को स्वीकार कर लिया है। मिंजी मानती हैं कि बीच-बीच में उनका दिल भी डोलने लगता है। लेकिन, फिर उन्हें याद आ जाता है कि ऐसा करना मुमकिन क्यों नहीं है।
 
एक निराश कर देने वाला सामाजिक चलन
दाएजोन शहर में जुंगइयोन चुन ‘अकेले बच्चा पालने वाली शादी’ के चलन में रहती हैं। अपनी सात साल की बेटी और चार साल के बेटे को स्कूल से लेने के बाद, वो पास के खेल के मैदान में जाती हैं और घंटों तब तक यूं ही समय काटती रहती हैं, जब तक उनके पति काम से लौट नहीं आते। वो शायद ही कभी सोने के वक़्त घर आते हों।
 
जुंगइयोन कहती हैं कि, ‘जब मैंने बच्चे पैदा करने का फ़ैसला किया, तब मुझे तब ऐसा नहीं लगा था कि मैं कोई ग़लत क़दम उठाने जा रही हूं। तब मुझे लगा था कि मैं बहुत जल्दी अपने काम पर लौट सकूंगी।’
 
लेकिन, जल्दी ही सामाजिक और वित्तीय दबावों का बोझ आना पड़ा और जुंगइयोन को अकेले घर पर रहकर बच्चों की परवरिश का बोझ उठाने को मजबूर होना पड़ा। उनके पति एक मज़दूर नेता हैं। वो घर के कामों या बच्चों की परवरिश में उनकी मदद नहीं करते।
 
जुंगइयोन बताती हैं कि, ‘मुझे बहुत ग़ुस्सा आता था। मैं अच्छी ख़ासी पढ़ी लिखी थी और मैं दूसरों को सिखाया करती थी कि महिलाएं, मर्दों के बराबर हैं। ऐसे में मैं इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रही थी।’
 
दक्षिण कोरिया की समस्या की असली जड़ यही है। पिछले पचास वर्षों के दौरान दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ रफ़्तार से विकसित हुई है। इस वजह से पढ़ाई लिखाई से लेकर काम-काज तक महिलाओं को भी भरपूर मौक़े मिले हैं।
 
इससे उनकी महत्वाकांक्षाओं में भी इज़ाफ़ा हुआ है। पर, जिस रफ़्तार से तरक़्क़ी हुई है, उसी गति से बीवी और मां के तौर पर महिलाओं की ज़िम्मेदारियों में तब्दीली नहीं आई है।
 
अपनी ज़िंदगी से झीखी जुंगइयोन ने दूसरी माओं की ज़िंदगी की पड़ताल शुरू की। वो कहती हैं कि, ‘मैंने देखा कि मेरी जो दोस्त है, वो भी बच्चे पैदा करके उसकी परवरिश करते हुए उदास है। फिर मुझे लगा कि ओह! ये तो एक सामाजिक चलन है।’
 
इसके बाद जुंगइयोन ने अपने तजुर्बों के आधार पर कैरीकेचर बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू किया। वो कहती हैं कि, ‘कहानियां मेरे ज़हन से उछल-उछलकर बाहर आ रही थीं।’
 
वेब पर उनके कार्टून बेहद कामयाब रहे, क्योंकि पूरे देश की महिलाओं को उनका काम अपनी ज़िंदगी का आईना लग रहा था। अब जुंगइयोन कॉमेडी की तीन किताबों की लेखिका बन चुकी हैं।
 
जुंगइयोन कहती हैं कि अब वो ग़ुस्से और अफ़सोस के दौर से बाहर आ चुकी हैं। वो बताती हैं कि, ‘मैं बस ये चाहती हूं कि मुझे बच्चों की परवरिश की हक़ीक़त का और अंदाज़ा होता और ये पता होता कि माओं से और क्या क्या उम्मीदें लगाई जाती हैं। आज महिलाएं इसीलिए बच्चे नहीं पैदा कर रही हैं क्योंकि उनमें इस बारे में बात करने का हौसला पैदा हो गया है।’
 
लेकिन, जुंगइयोन कहती हैं कि वो इस बात से दु:खी हैं कि महिलाओं को मातृत्व के वरदान से इसलिए महरूम रखा जा रहा है कि ‘फिर उन्हें बेहद त्रासद हालात में रहने को मजबूर किया जाएगा।’
 
लेकिन, मिंजी कहती हैं कि वो इस बात की शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें ख़ुद अपने फ़ैसलों का अख़्तियार है। वो बताती हैं कि, ‘हम पहली पीढ़ी हैं, जिसे चुनाव का अधिकार मिला है। इससे पहले ये हक़ दिया जाता था। हमें बच्चे पैदा करने ही होते थे और अब हमने बच्चा नहीं पैदा करने का विकल्प चुना, क्योंकि अब हम ऐसा कर सकते हैं।’
 
अगर मुमकिन होता तो मैं 10 बच्चे पैदा करती
उधर येजिन के अपार्टमेंट में लंच के बाद उनकी सहेलियों के बीच उनकी किताबों और दूसरी चीज़ें हासिल करने की होड़ लगी है।
 
दक्षिण कोरिया की ज़िंदगी हताश होकर येजिन ने अब न्यूज़ीलैंड में बसने का फ़ैसला कर लिया है। एक सुबह जब वो उठीं तो उनके दिमाग़ में इस ख़याल की बत्ती जली कि उन्हें यहां रहने के लिए कोई मजबूर तो नहीं कर रहा।
 
इसके बाद येजिन ने उन देशों के बारे में पड़ताल की, जो पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का हक़ देने के मामले में सबसे आगे हैं।
 
और इन देशों में न्यूज़ीलैंड अव्वल साबित हुआ। येजिन ने बताया कि, ‘मुझे तो यक़ीन ही नहीं हुआ कि न्यूज़ीलैंड जैसा देश भी इस दुनिया में है, जहां औरतों और मर्दों को बराबर की तनख़्वाह मिलती है। तो मैं वहां जा रही हूं।’
 
मैंने येजिन और उनकी सहेलियों से पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है, जो उन्हें अपने विचार बदलने को मजबूर कर दे।
 
मिनसुंग के जवाब ने मुझे हैरान कर दिया। उन्होंने कहा कि, ‘मैं बच्चे पैदा करना चाहूंगी। अगर हो सके तो दस बच्चे पैदा करूं।’
 
मैंने पूछा कि उनको रोक कौन रहा है? तो इसके जवाब में 27 बरस की मिनसिंग ने बताया कि वो बाईसेक्सुअल हैं और उनकी पार्टनर एक महिला है।
 
दक्षिण कोरिया में समलैंगिक शादियां अवैध हैं और अविवाहित औरतों को दान के स्पर्म से गर्भ धारण करने की इजाज़त आम तौर पर नहीं मिल पाती।
 
मिनसुंग ने कहा कि, ‘उम्मीद है कि एक दिन हालात बदलेंगे और मैं उस शख़्स से शादी करके बच्चे पैदा कर सकूंगी जिससे मैं प्यार करती हूं।’
 
उनकी दोस्त उस विडम्बना की तरफ़ ध्यान दिलाती हैं कि दक्षिण कोरिया की आबादी की स्थिति नाज़ुक है, फिर भी कुछ महिलाएं जो मां बनना चाहती हैं, पर उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी जाती।
 
लेकिन, ऐसा लग रहा है कि देश के राजनेता इस संकट की गहराई और जटिलताओं को धीरे-धीरे समझ रहे हैं।
 
इसी महीने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक इओल ने माना कि इस समस्या को पैसे के दम पर हल करने की कोशिशें ‘कामयाब नहीं हुई हैं’ और दक्षिण कोरिया में ‘हद और ज़रूरत से कहीं ज़्यादा होड़ लगाने वाला माहौल’ है।
 
राष्ट्रपति इओल ने कहा कि उनकी सरकार अब कम जन्म दर को ‘संरचनात्मक समस्या’ के तौर पर देखेगी- हालांकि इससे नीतियों में क्या बदलाव आएगा, ये देखने के लिए हमें इंत़ार करना होगा।
 
इस महीने की शुरुआत में न्यूज़ीलैंड में रह रही येजिन से मेरी फिर बात हुई। वो पिछले तीन महीने से वहां रह रही हैं।
 
वो अपनी नई ज़िंदगी और दोस्तों को लेकर बड़े जोश में थीं। वो एक रेस्टोरेंट के किचन में काम करने को लेकर भी बहुत ख़ुश थीं। उन्होंने मुझसे कहा कि, ‘मेरा कामकाज और ज़िंदगी का संतुलन अब कहीं बेहतर है।’
 
येजिन ने बताया कि वो अब हफ़्ते के बीच में भी अपने दोस्तों से मुलाक़ात करने, दावत करने का इंतज़ाम कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि, ‘मुझे लगता है कि काम में मुझे कहीं ज़्यादा सम्मान मिल रहा है और लोग मुझे लेकर यूं ही कोई राय नहीं क़ायम करते।’
 
‘इससे घर लौटने का मेरा और भी मन नहीं होता।’

ऐसी ही रोचक जानकारियों के लिए हमारी सहयोगी बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर जाएं: https://www.bbc.com/hindi

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी