हमास ने कैसे किया घातक हमले का प्लान और इसराइल को नहीं लगी भनक?

BBC Hindi

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023 (09:10 IST)
-जेरेमी बोवेन (इंटरनेशनल एडिटर, बीबीसी)
 
israel palestine fight: गाजा से जिस पैमाने पर हमास ने हमला किया, उसने इसराइल को चौंका दिया। हमास का हमला था ही इतना व्यापक और अभूतपूर्व। इसराइल पर हज़ारों रॉकेट से हमले के साथ हमास के चरमपंथियों ने ज़मीन से भी धावा बोला। गाजा को इसराइल से अलग करने वाली बाड़ को कई जगहों पर तोड़ते हुए इसराइल में घुस आए। हमास की तरफ़ से ऐसा घातक हमला पूरी पीढ़ी ने नहीं देखा था।
 
इसराइल पर हमास ने ये हमला 50 साल पहले के उस हमले की वर्षगांठ के ठीक एक दिन बाद किया जिसे मिस्र और सीरिया ने संयुक्त रूप से अंजाम दिया था। अक्टूबर 1973 में उस हमले के बाद पूरा मध्य-पूर्व युद्ध की चपेट में आ गया था।
 
बंधक संकट के बीच जवाबी हमला कितना मुश्किल?
 
इधर इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू हमास के ख़िलाफ़ जंग का ऐलान करने के साथ ये भी कह चुके हैं कि उनके दुश्मनों को हमले की भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। हमले की पूरी भयावहता, मृतकों और घायलों की तस्वीरों और वीडियो के साथ सोशल मीडिया में चारों तरफ फैली हुई हैं।
 
ऐसा ही एक वीडियो सामने आया है जिसमें हमास के चरमपंथी, सैनिकों और आम नागरिकों को बंधक बनाते दिख रहे हैं। गाजा का ये वीडियो सामने आने के बाद इसराइल का ग़ुस्सा और भी भड़क उठा। हमास के हमले के कुछ घंटों के भीतर ही इसराइल ने गाजा पर जवाबी हमले शरू कर दिए। इसमें कई फ़िलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई। इसराइली सेना की अगली योजना है, गाजा पर ग्राउंड अटैक का।
 
लेकिन इसराइल के पिछले सैन्य ऑपरेशन की तरह गाजा पर अगला अटैक इतना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि गाजा में हमास ने कई इसराइयली सैनिकों और नागरिकों को बंधक बना रखा है।
 
गहराते तनाव की अनदेखी पड़ी महंगी?
 
पिछले कुछ महीनों से फ़िलिस्तीन के सशस्त्र विद्रोही गुटों और इसराइल के बीच तनाव बढ़ रहा था, उसे किसी बड़े धमाके की आशंका गहरा रही थी। लेकिन जिस पैमाने पर हमास के आर्म्ड विंग ने इसे अंजाम दिया, वो आशंका से भी ज्यादा चौंकाने वाला था। दोनों के बीच बढ़ते तनाव की एक बड़ी वजह है, वेस्ट बैंक। यरुशलम और जॉर्डन बॉर्डर के बीच ये वो इलाक़ा है जिस पर इसराइल और फ़िलिस्तीन दोनों ही नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश में हैं।
 
वेस्ट बैंक पर 1967 से ही इसराइल का कब्ज़ा है। लेकिन फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध के बाद यहाँ पूरे साल हिंसक घटनाएं और झड़पें होती रहती हैं। वेस्ट बैंक के जेनिन और नेबुल्स शहरों से बाहर रहने वाले सशस्त्र फ़िलिस्तीनी नागरिकों ने इसराइली सैनिकों और यहूदी बस्तियों पर हमले किए।
 
इसराइली सेना ने यहां दर्जनों छापे मारे। साथ ही हथियारों से लैस नागरिक फ़िलिस्तीनी गांवों के ख़िलाफ़ ग़ुस्से में गै़र-क़ानूनी कार्रवाइयां करते रहे। दक्षिणपंथी इसराइली सरकार में जो कट्टर राष्ट्रवादी लोग हैं, वो ये दावा बार-बार दोहराते हैं कि उनके कब्ज़े वाला पूरा इलाक़ा यहूदियों का है। ऐसे में किसी को अंदाजा भी नहीं था कि हमास ग़ज़ा से इतने सुनियोजित तरीके से ऐसा बड़ा हमला करेगा।
 
हमास ने क्यों चुना हमले के लिए छुट्टी का दिन?
 
हमले के बाद इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसियों की नाकामी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो चुके हैं। इसराइली लोग मानते हैं कि जासूसों और एजेंट्स के इतने बड़े नेटवर्क और पूरे इलाक़े में हाइटेक सर्विलांस से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित है। लेकिन इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसियों की आंख में धूल झोंकते हुए हमास ने हमले के लिए शबात यानी यहूदियों की धार्मिक छुट्टी का दिन चुना। ये दिन इसराइली लोगों के लिए प्रार्थना और आराम फरमाने का होता है।
 
हमले को लेकर हमास ये बयान जारी कर चुका है कि उसने ये कार्रवाई यरूशलम की मस्जिद पर बढ़ते ख़तरे की वजह से की। पिछले हफ़्ते ही कुछ यहूदियों ने अल-अक्सा मस्जिद परिसर में जाकर प्रार्थना की। ये मस्जिद मुस्लिमों के लिए मक्का और मदीना के बाद तीसरी सबसे पवित्र जगह है।
 
अल-अक्सा मस्जिद का यही परिसर यहूदियों के लिए भी पूजनीय है। यहूदी इसे 'टेंपल माउंट' कहते हैं। हालांकि सुनने में ये अटपटा लगेगा, लेकिन ख़ुद इसराइल ने यहाँ यहूदी प्रार्थना पर पाबंदी लगा रखी है। ऐसा इसलिए क्योंकि फ़िलिस्तीनी इस बात से भड़कते हैं।
 
इसके बावजूद अगर यरूशलम में लगातार चल रहे राष्ट्रवादी और धार्मिक संघर्षों के लिहाज से देखें, तो यहां कोई अभूतपूर्व तनाव नहीं दिख रहा था। हमास के जटिल हमले को देखा जाए, तो भी ये लगता है कि ये यरूशलम में पिछले हफ्ते हुए घटनाओं पर प्रतिक्रिया भर नहीं थी। बल्कि इतने व्यापक हमले को सुनियोजित करने में महीने भर से ज्यादा का वक़्त लगा होगा।
 
तो क्या अब शांति की कोई उम्मीद नहीं बची?
 
आज अगर इसराइल और फ़िलिस्तीन एक बार फिर से आमने सामने की जंग में हैं, तो इसकी वजहें काफ़ी गहरी हैं। भले ही दोनों के बीच गहराते संघर्ष की सुर्खियां अंतरराष्ट्रीय समाचारों में नहीं थी, लेकिन ये लगातार बढ़ रहा था।
 
यहां तक कि इस गहराते संघर्ष को वो देश भी अनदेखा कर रहे थे, जो 'टू नेशन थिअरी' के ज़रिए आज़ाद फ़िलिस्तीन का गठन कर शांति बहाली की बात करते हैं। टू नेशन थअरी, यानी इसराइल और फ़िलिस्तीन के बीच सारे विवादों को ख़त्म कर अलग देश के रूप में मान्यता, शांति की वो उम्मीद थी, जो 1990 के दशक में हुई ओस्लो शांति प्रक्रिया के बाद बरसों तक बंधी हुई थी। लेकिन अब ये खोखले नारे के सिवा कुछ भी नहीं।
 
अगर सीधी बात करें अमेरिका की, तो फ़िलिस्तीन और इसराइल का संघर्ष जो बाइडन सरकार की प्राथमिकताओं में ही नहीं है। अमेरिका तो लगा हुआ है, इसराइल के साथ मेल मिलाप बढ़ाने के बदले सऊदी अरब को सुरक्षा गारंटी के रास्ते खोजने में। इसराइल-फ़िलिस्तीन के बीच शांति समझौते की आख़िरी कोशिश अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हई थी। लेकिन वो भी कामयाब नहीं हुई।
 
इस जटिल समस्या की जड़ में है, भूमध्यसागर और जॉर्डन नदी के बीच की जमीन पर नियंत्रण की कोशिश जिसे लेकर यहूदी और अरबी लोगों के बीच के एक सदी से संघर्ष चल रहा है। ये विवाद आज तक अनसुलझा है। इस बीच जिस तरह से हमले और हिंसा की घटनाएं हो रही है, इससे ये विवाद और गहरा रहा है। इससे एक बात साफ है, किसी भी मुद्दे को लंबे समय तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाए, तो हिंसा और रक्तपात को रोका नहीं जा सकता।(फोटो सौजन्य : ट्विटर)

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