''अगली बार कोई आपको गधा कहे, तो बिलकुल बुरा मत मानिएगा। ये गुजरात का सरताज है। महीनों हो गए नहाए हुए, लेकिन एकदम नीट एंड क्लीन।'' ''ये शहरों का गधा नहीं, जो खड़ा हुआ कुछ सोचता रहता है। ये 70 किलोमीटर की रफ़्तार से भागता है। ऐसा गधा, जो गधों का नाम रोशन कर रहा है।''
''और यहां ऐसे 4500 हैं...तो गधा कोई गाली नहीं, तारीफ़ की थाली है।'' हम किसी गधे की तारीफ़ में कसीदें नहीं पढ़ रहे, बल्कि ये गुजरात पर्यटन के उस विज्ञापन का अंश है, जिसमें अमिताभ बच्चन लोगों से गुजरात में कुछ दिन गुज़ारने को कह रहे हैं।
इस विज्ञापन में वो इस गधे का ब्योरा दे रहे हैं, जिसे वाइल्ड ऐस यानी जंगली गधा कहा जाता है। और इस गधे पर सियासी संग्राम छिड़ गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक चुनावी रैली में इस विज्ञापन का ज़िक्र करते हुए हमला बोला।
उन्होंने सोमवार को एक रैली में कहा, ''एक गधे का विज्ञापना आता है, मैं इस सदी के सबसे बड़े महानायक से कहूंगा कि अब आप गुजरात के गधों का प्रचार मत करिए...अब बताइए गधों का भी विज्ञापन होने लगा है, अंदाज़ा लगा लीजिए कि देश किस दिशा में जा रहा है।''
ये जंगली गधा बड़ा ख़ास है
राजनीतिक बयानबाज़ी को छोड़कर अगर पल भर के लिए सिर्फ़ गधे के बारे में बात की जाए, तो ज़्यादा बेहतर होगा। और नेता के बयान ने कुछ गैर-राजनीतिक लोगों को भी नाराज़ कर दिया है।
अहमदाबाद ज़ू के डायरेक्टर राजेंद्र कुमार साहू इस बात से निराश हैं कि जंगली गधों का मज़ाक बनाया जा रहा है। उन्होंने इस प्रजाति का मूल्य समझने की हिदायत दी। बीबीसी से बातचीत में साहू ने कहा, ''ये जानवर सिर्फ़ कच्छ में पाया जाता है। ये ख़ास है क्योंकि बेहद मज़बूत जानवर है। इसमें गज़ब की वाइल्डरनेस है। कच्छ खारा रेगिस्तान है, इसके बावजूद ये इतना ताक़तवर जानवर है।''
सीमित संसाधनों में भी सरताज
रेगिस्तान में रहने के बावजूद जंगली गधा इतना ताक़तवर कैसे है?
वो बताते हैं, ''एक ख़ास तरह की घास होती है, जो वो खाता है। इसी से उसे ज़रूरी मिनरल-विटामिन मिलते हैं। उसकी हडि्डयां, मांसपेशियां काफ़ी मज़बूत होती हैं और उछलने की क्षमता गज़ब की।'' ये जंगली गधा कंधे पर क़रीब एक मीटर ऊंचा और दो मीटर लंबा होता है। 50 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से भागने की क्षमता रखता है, जो ख़ासियत घोड़े में पाई जाती है।
गुजरात के अभ्यारण्य में ऐसे 3000 गधों होने का दावा किया जाता है।
साहू के मुताबिक जंगली गधी एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है, लेकिन वो दोबारा गर्भवती हो सकती है। साहू ने कहा, ''ये जानवर भारत का गर्व है, क्योंकि ये एशियटिक ऐस पूरे भारत में और कहीं नहीं है। इस बेहद ख़ूबसूरत जानवर को अगर बचाकर नहीं रखा गया, तो भविष्य में सिर्फ़ यहीं कहेंगे के हमारे यहां भी वाइल्ड ऐस होते थे।''
'इसका मज़ाक उड़ाना सही नहीं'
साहू के मुताबिक किसी भी जानवर का मज़ाक नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि नाम पर मत जाइए बल्कि उस प्रजाति की क़ीमत समझने की ज़रूरत है। गुजरात पर्यटन की वेबसाइट के मुताबिक वाइल्ड ऐस सेंचुरी, लिटल रण ऑफ़ कच्छ में 5,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है। और ये इकलौती जगह है, जहां दुर्लभ वाइल्ड ऐस (जंगली गधा) पाया जाता है।
इसे स्थानीय भाषा में गुड़खर कहा जाता है। वाइल्ड ऐस की दो अन्य उप-प्रजातियां तिब्बत के ऊंचे पठारों में रहती हैं। ख़ास बात ये भी है कि ये झुंड में चलते हैं। इसे बलूची वाइल्ड ऐस भी कहा जाता है। साल 2016 में इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंज़रवेशन ऑफ़ नेचर ने इसे 'ख़तरे के क़रीब' क़रार दिया था।
कच्छ आख़िरी उम्मीद कैसे?
साल 2015 में सेंचुरी में और बाहर ऐसे कुल 4800 गधे होने का अनुमान जताया गया था। एक वक़्त था जब जंगली गधे पश्चिमी भारत से दक्षिणी पाकिस्तान (सिंध और बलूचिस्तान) तक पाए जाते थे। लेकिन अब कच्छ, सुरेंद्रनगर, बनासकांठा, मेहसाणा और कच्छ के दूसरे ज़िलों में पाया जाता है।
पर्यावरणविद् कंदर्प काटजू ने कहा, ''एशियाई शेर की तरह कच्छ एशियन वाइल्ड ऐस की भी आख़िरी उम्मीद है। ये जानवर खारे रेगिस्तान में रहता है, जो आम रेगिस्तान से बिलकुल अलग होता है।''
उन्होंने कहा, ''ये बेहद हैंडसम जानवर है। साथ ही इतने कम संसाधनों में ये रहता है और बढ़िया तरह से रहता है, ये बात इन्हें और ख़ास बनाती है। इन रेगिस्तान में वनस्पति सीमित होती है, लेकिन इस जानवर ने ख़ुद को ढाल लिया है।'' काटजू ने बताया कि ये जंगली गधे अब सेंचुरी से बाहर भी निकलने लगे हैं।