रूस जैसी 'महाशक्ति' को यूक्रेन जैसा छोटा देश क्या वाक़ई परास्त कर पाएगा?

मंगलवार, 13 सितम्बर 2022 (08:28 IST)
पवन सिंह अतुल, बीबीसी संवाददाता
बीते दो सौ वर्षों में एक बहुत बड़े और एक बहुत छोटे देशों के बीच युद्ध में छोटे देशों की जीत का प्रतिशत क्या होगा? अगर बड़े देश की आबादी छोटे से 10 गुना अधिक है, तो क्या आपको लगता है कि बड़े मुल्क की जीत पक्की है? हममें से अधिकतर को लगेगा कि बड़े देश की जीत की संभावना 100 है।
 
मशहूर अमेरिका लेखक मैल्कम ग्लैडवेल अपनी किताब डेविड एंड गोलायथ: अंडरडॉग्स, मिसफ़िट्स एंड द आर्ट ऑफ़ बैटलिंग जायंट्स में लिखते हैं, "राजनीतिक शास्त्री इवान एरेंगग्वीन-टॉफ़्ट ने एक अध्ययन में साबित किया कि बड़े देशों की जीत का प्रतिशत 71.5% है। यानी क़रीब एक तिहाई बार जीत छोटे देश की हुई। अगर युद्ध में छोटे देश ने परंपरागत लड़ाई न लड़कर, छापेमारी या गुरिल्ला युद्ध लड़ा, तो छोटे देश की जीत की संभावना 63.6% तक पहुँच गई।"
 
क्या यूक्रेन इतिहास के एक तिहाई मुल्कों की सूची में आ पाएगा, जिन्होंने अपने से कहीं बड़े विरोध को धूल चटाई हो?
 
रूस कम्युनिस्ट सुपरपॉवर सोवियत संघ की ताक़तवर सैन्य शक्ति का उत्तराधिकारी है। 70 साल तक अमेरिका और पश्चिम की आँख में आँख डालकर उसकी फ़ौज ने अपना लोहा मनवाया था।
 
एक ज़माना था, जब मॉस्को में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के पास दुनिया को कई बार तबाह कर सकने वाले परमाणु हथियारों का बटन था। इस दौर को 'शीत युद्ध' कहा गया जो अपना आप एक विरोधाभासी जुमला है।
 
वो फ़ौज, जिसका जलवा सारी दुनिया में था और जिसने हिटलर के नाज़ी प्रशासन को नेस्तानाबूद करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी, उसने 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहली हार का स्वाद चखा।
 
नेटो और यूरोपीय संघ की चेतावनी के बावजूद, रूस ने इस साल 24 फ़रवरी को यूक्रेन में अपनी सेना भेज दी थी। रूस ने अपने क़दम को मिलिट्री कैंपेन बताया था लेकिन यूक्रेन ने इसे हमला क़रार दिया था।
 
शायद रूस को उम्मीद थी कि कमज़ोर यूक्रेन उनकी सैन्य ताक़त के सामने कुछेक दिनों में ढेर हो जाएगा और उनका सैन्य अभियान अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर लेगा।
 
हवा, ज़मीन और पानी के रास्ते रूस ने शुरुआती घंटों में यूक्रेन को असहाय-सा कर दिया। ऐसा लगा कि बस कुछ ही दिनों में यूक्रेन का अस्तित्व ख़तरे में आ जाएगा।
 
पश्चिम देश और अमेरिका रूस की आलोचना कर रहे थे, उसपर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे थे लेकिन शीत-युद्ध के ज़माने से अलिखित नियमों के तहत वो सीधे युद्ध में शामिल नहीं हो रहे थे। क्योंकि नेटो की जंग में शामिल होने से इस युद्ध के आयाम पूरी तरह से बदल जाते।
 
नेटो को किसने रोका?
इसका सरल जवाब है युद्ध के फैलने का डर। पश्चिमी नेताओं के दिमाग़ में ये डर है कि कहीं रूस यूक्रेन में परमाणु हथियार का इस्तेमाल न कर दे या यूक्रेन का संघर्ष बड़े यूरोपीय युद्ध में ना बदल जाए।
 
सीधे युद्ध में शामिल होने के अलावा पश्चिमी देशों के पास एक ही विकल्प था। यूक्रेन की सैन्य मदद। अमेरिका और यूरोप दोनों ने ही नेटो की नियमों के तहत रहते हुए, यूक्रेन को गोला-बारूद और अन्य छोटे हथियार देना शुरू कर दिए।
 
इन्हीं हथियारों में HIMARS यानी M142 हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम भी शामिल था। इस एक क़दम ने युद्ध में एक निर्णायक असर डाला। ये सिस्टम लंबी दूरी तक हमला करने में सक्षम हैं। रूस भी जानता था कि हिमार रॉकेट उसके लिए मुसीबत बन सकता है। इसलिए उसने अमेरिकी क़दम की आलोचना की थी।
 
पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को क्या-क्या दिया है?
 
यूक्रेन का ग़ैर-परंपरागत युद्ध
पश्चिमी देशों से मिलती मदद और बीच-बीच में कई नेताओं के रूसी ख़तरे के बावजूद कीएव (यूक्रेन की राजधानी) के दौरे ने यूक्रेन की हिम्मत बढ़ाए रखी।
 
पश्चिम देश हर अवसर पर यूक्रेन के राष्ट्रपति और पूर्व कॉमेडियन ज़ेलेंस्की को मंच देते रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से लेकर यूरोपीय संसद तक को संबोधित किया।
 
लेकिन इस सबसे इतर यूक्रेन ने युद्ध लड़ने के तरीक़े में अप्रत्याशित परिवर्तन किया। रूसी सेना से खुले मैदान में लड़ने के बजाय युद्ध के शुरूआती दिनों के बाद, यूक्रेन की फौज युद्ध को शहरी इलाक़ों में ले आई।
 
आम लोगों को राइफ़लें और छोटे रॉकेट लॉन्चर बाँटे गए। यूक्रेन के विरोध का केंद्र खुले मैदान न होकर घनी आबादी वाले शहरी इलाक़े बन गए।
 
रूस ने कीएव और खारकीएव जैसे बड़े शहरों पर ताबड़तोड़ हवाई हमले किए और अब भी ऐसे हमले होते रहते हैं, लेकिन रूसी सेना शायद इस युद्ध को शहरों में लड़ने की योजना के साथ नहीं आई थी।
 
रूस के लिए जीत तभी होगी, जब यूक्रेन हार जाएगा, लेकिन यूक्रेन की इस जंग को लंबा खींचने में और रूस जीतने न देने को भी किसी जीत से कम नहीं आंका जा सकता। युद्ध के अंतिम परिणाम के बारे में दोनों पक्षों के अलग उद्देश्य इस युद्ध को अलग बनाते हैं।
 
दूसरी अहम बात आम लोगों का यूक्रेन की सेना से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ना है। रूस को शायद इसकी उम्मीद न थी। फ़रवरी से लेकर अब तक द्विप्रो नदी में काफ़ी पानी बह गया है। यूक्रेन शायद रूस को एक निर्णायक जीत का स्वाद न चखने दे।
 
क्या पलट रही है बाज़ी
बीते कुछ दिनों में यूक्रेन की सेना ने नया ऐलान किया है कि उसने पूर्वी यूक्रेन में रूसी कब्ज़े से 3,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वापस ले लिया है।
 
अगर ये दावा सही साबित होता है तो बीते 48 घंटों में ही यूक्रेन की सेना ने रूस से छुड़वाए गए क्षेत्र को तिगुना कर लिया है। हालांकि बीबीसी यूक्रेन के दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सकता क्योंकि जिन इलाकों को दोबारा जीतने की घोषणा की जा रही है, वहाँ पर पत्रकारों को जाने की अनुमति नहीं है।
 
शनिवार को यूक्रेनी सेना देश के पूर्व में रूसी कब्ज़े वाले लिज़ुम और कुपियांस्क में प्रवेश कर गई थी। इन्हीं शहरों के ज़रिए रूसी सेना तक रसद और हथियार पहुँचते रहे हैं। ये एक ढंग से पूर्वी यूक्रेन में रूसी युद्ध मशीनरी के लिए सप्लाई टाउन है।
 
रूसी रक्षा मंत्रालय ने भी लिज़ुम और कुपियांस्क से पीछे हटने की बात स्वीकारी है। लेकिन मंत्रालय का कहना है कि उसने ऐसा एकबार फिर एकजुट होने के लिए किया है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने बलाक्लिया नाम के एक और शहर से अपनी सेनाएं हटाने का ऐलान किया है। यूक्रेनी सेना शुक्रवार को इस शहर में दाख़िल हो गई थी।
 
यूक्रेन के काउंटर-अटैक की गति से रूसी हैरान लग रहे हैं। यहाँ तक कि पुतिन के घोर समर्थक, चेचेन लीडर रमज़ान कादिरोव पुतिन की रणनीति पर सवाल उठाते दिख रहे हैं। सोशल मीडिया ऐप टेलिग्राम पर पोस्ट किए एक संदेश में कादिरोव ने लिखा है कि अगर युद्ध में रूस कमज़ोर होता है, तो वे देश की लीडरशिप से इसपर सफ़ाई मांग सकते हैं।
 
उधर यूक्रेन ने आरोप लगाया है कि रूस पूर्वी इलाक़ों में बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाकर एक बड़े क्षेत्र को अंधकार में डूबा रहा है।
 
बीबीसी संवाददाता जेरेमी बोवेन 1994-95 में हुए चेचेन युद्ध को कवर कर चुके हैं। उनको लगता है कि रूस को जब कोई विरोध टक्कर देता दिखता है तो वो अपनी बेपनाह फ़ायरपॉवर (हवाई और मिसाइल हमले) का इस्तेमाल करता है। पूर्वी यूक्रेन में भी शायद यही हो रहा है।
 
इससे पहले खारकीएव और कीएव में रूसी हवाई हमले भी यही कर चुके हैं। बहरहाल जो कुछ पूर्वी यूक्रेन में हो रहा है वो काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि राजधानी कीएव से रूसी सेना के पीछे हटने के बाद ये एक बड़ी घटना होगी।
 
तो आख़िर रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया? रूस को ये बात पसंद नहीं कि यूक्रेन यूरोपीय संघ के क़रीब जाए और फिर नेटो के सैन्य गठबंधन का हिस्सा बन जाए।
 
रूस का आकलन है कि यूक्रेन के नेटो और यूरोपीय संघ में जाने से उसकी सुरक्षा को ख़तरा है। अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी सैन्य गठबंधन को अपने दरवाज़े पर देखना रूस को नागवार गुज़रता है।
 
यूक्रेन पर चढ़ाई करके रूस ने साबित कर दिया है कि वो ऐसा न होने देने के लिए कोई भी जोख़िम उठाने को तैयार है।
 
इस युद्ध में यूक्रेन को निर्णायक जीत मिलना लगभग असंभव है। फ़िलहाल जो भी सैन्य बढ़त उसे मिल रही है वो देश के पूर्व में है, जहाँ रूस-समर्थित अलगाववादी सक्रिय हैं। यूक्रेन के बाक़ी हिस्सों में अब भी रह-रह कर जंग जारी है। रूसी सेना को सारे देश से खदेड़ पाना यूक्रेन के लिए एक टेढ़ी खीर है।
 
रूस को निर्णायक जीत दर्ज न करने देना ही शायद एक ढंग यूक्रेन की जीत होगीॉ क्योंकि रूस तो सिर्फ़ एक स्थिति में इसे जीत क़रार दे सकता है और वो है यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को हटाकर, कीएव में अपनी पसंद के व्यक्ति को सत्ता में बिठाया जाए। जैसा कि 90 के दशक में दक्षिण राज्य चेचेन्या में किया था।
 
ऐसा यूक्रेन को मिल रही पश्चिमी देशों की मदद, यूक्रेनी सेना के जज़्बे, ज़ेलेंस्की की लोकप्रियता और थकती-सी दिख रही रूसी वॉर-मशीन की वजह से होता नहीं दिख रहा है।
 
यूक्रेन की चुनौतियाँ
अब तक पश्चिमी हथियारों के सहारे यूक्रेन ने रूस को जड़े नहीं जमाने दी है, लेकिन अगर वो रूस को पूरी तरह खदेड़ना चाहता है तो कुछ 'बड़ा' करना होगा।
 
फ़िलहाल यूक्रेन के अधिकांश नागरिक राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को युद्ध का हीरो मान रहे हैं, लेकिन उन्हें रूसी हमले की तैयारियों के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ रही है।
 
ख़ासतौर पर अमेरिका की ओर से बार-बार चेतावनी के बावजूद ज़ेलेंस्की ने एक्शन लेने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि इससे डर पैदा होगा और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचेगा। यूक्रेन के सामने मौजूद चुनौतियों का एक अन्य उदाहरण 'कीएव इंडिपेंडेंट' के न्यूज़रूम में दिखता है।
 
अंग्रेज़ी भाषा की ये न्यूज़ वेबसाइट ने हमले से कुछ सप्ताह पहले ही काम शुरू किया था। वेबसाइट की एडिटर-इन चीफ़ ओलगा रुदेंको ने कहा, " फ़रवरी (जब युद्ध शुरू हुआ था) में जब चीज़े बहुत अनिश्चित थीं, हमें नहीं पता था कि पूरे देश पर आक्रमण होगा या क्या हम ज़िंदा बचेंगे। आज भी यहाँ रहना, आज़ादी मनाने का मौक़ा मिलने से सब सार्थक लग रहा है।"
 
हाल ही में हुए एक सौदे से यूक्रेन को एक बार फिर काला सागर के रास्ते अनाज का निर्यात करने की मंज़ूरी मिली थी। युद्ध शुरू होने के बाद से इसे कूटनीतिक सफलता माना गया था। कुछ लोग इसे शांति संधि की शुरुआत के तौर पर देख रहे थे। लेकिन पिछले चार-पाँच दिन की लड़ाई में यूक्रेन पलटवार की क्षमता को हाइलाइट किया है।
 
इतना तो तय है कि ख़ुद को आज़ाद बनाए रखने के लिए, यूक्रेन अब भी दूसरे देशों की मदद के भरोसे रहेगा।
 
लेकिन ये भी कहा जा सकता है कि रूस शायद ही उन उद्देश्यों की पूर्ति कर पाए जिनके लिए उसने यूक्रेन में सेना भेजने का जोख़िम लिया था।
 
जीत हिम्मत की या ताक़त की?
बाइबल में डेविड और गोलायथ की कहानी में एक ग़रीब चरवाहा डेविड अपने से कहीं बड़े योद्धा गोलायथ को हरा देता है। गोलायथ के पास ढाल, तलवार, भाला, सैनिक पोशाक और फौजी शानो-शौकत थी। वो एक भीमकाय अनुभवी योद्धा था जिसने कई जंगें लड़ी थीं। डेविड के पास केवल गुलेल और पांच पत्थर थे।
 
जैसा कि हमने ऊपर लिखा है, अमेरिकी लेखक मैल्कम ग्लैडवेल ने डेविड एंड गोलायथ: अंडरडॉग्स, मिसफ़िट्स एंड द आर्ट ऑफ़ बैटलिंग जायंट्स नाम की चर्चित किताब लिखी है।
 
उनका तर्क है, "हम डेविड के हथियार और उनकी काबिलियत पर शक करते हैं पर गोलायथ की कमियों पर नज़र नहीं डालते। बाइबल में लिखा है कि गोयालथ एक सहायक की मदद से युद्ध करने, डेविड के पास पहुँचे थे। बाइबल में ये भी लिखा है कि गोलायथ बहुत धीमे चल रहा था। उसे शायद दूर तक दिखाई भी नहीं देता था।"
 
"जो चीज़ गोलायथ को मज़बूत बनाती थी वही उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी थी। इसी में हमारे लिए एक अहम सबक है। बड़ा दिखने वाले लोग हमेशा उतने मज़बूत और ताक़तवर नहीं होते जितना एक साधारण गुलेल वाला एक चरवाहा।"
 
रूस और यूक्रेन की जंग में बाइबल की इस कहानी से कोई समानता हो या न हो लेकिन एक ताक़तवर यौद्धा के लिए भी, युद्ध में अपने दुश्मन की ताक़त का ग़लत आकलन, ज़िंदगी और मौत का फ़ैसला कर सकता है।

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