- मार्था हेनरीक्स
जलवायु परिवर्तन सारी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। कहीं ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो कहीं जंगलों में आग लग रही है। फ़िलहाल अमेज़न के जंगल आग की चपेट में हैं। जिससे एक बड़े हिस्से के तापमान में अचानक तेज़ी आ गई है। गर्मी से लोग परेशान हैं। लिहाज़ा घर और दफ़्तर ठंडा रखने के लिए बड़े पैमाने पर एयर कंडीशनर लगाए जा रहे हैं। शायद ही कोई घर या दफ़्तर होगा जहां एयर कंडिशनर ना हो। लेकिन ये एयर कंडिशनर अंदर जितना ठंडा करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा बाहर गर्मी बढ़ा देते हैं।
जानकारों के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन में एयर कंडीशनर से निकलने वाली गैसों का बड़ा योगदान है। अब अगर एयर कंडीशनर घाटे का सौदा हैं तो इमारतें ठंडी रखने के और विकल्प क्या हैं? अमेरिका के सैन फ़्रांसिस्को में कैलिफ़ोर्निया एकेडमी ऑफ़ साइंस इसकी मिसाल पेश करता है। इस इमारत की पूरी छत हरियाली से लबरेज़ है, जो बिल्डिंग का तापमान नियंत्रित रखने में मददगार है। साथ ही छत पर खिड़कियां खुली हैं, जहां से ठंडी हवा अंदर तक जाती है। भीषण गर्मी के दिनों में भी यहां बिना एसी के गुज़ारा हो जाता है। इमारतों को इसी तरह डिज़ाइन करने पर आर्किटेक्ट और इंजीनियर काम कर रहे हैं।
इमारतें ठंडी रखने का तरीक़ा
बढ़ते तापमान देखते हुए इसे समय की पहली ज़रूरत भी कहा जा सकता है। रिसर्च कहती है कि 2050 तक दुनियाभर में एयर कंडीशनरों की संख्या मौजूदा समय की तीन गुना हो जाएगी। एसी में तापमान कम करने के लिए जो रेफ़्रिजरेटर लगे होते हैं, वो बहुत बिजली खाते हैं। इन से बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस निकलती हैं। हरेक देश में यही जलवायु परिवर्तन की बड़ी वजह है।
जब हमारे पास बिजली के पंखे, कूलर और एयर कंडिशनर नहीं थे, तब भी तो इमारतें ठंडी रखी जाती थीं। लेकिन तब इमारतें इस ढंग से डिज़ाइन की जाती थीं उनमें वेंटिलेशन की पूरी सुविधा होती थी यानी हवा की आवाजाही को ध्यान में रखकर ही इमारतों को बनाया जाता था। कैलिफ़ोर्निया एकेडमी ऑफ़ साइंस की बिल्डिंग डिज़ाइन करने वाले डिज़ाइनर एलिस्डायर मैक्ग्रीगर कहते हैं कि इस इमारत का डिज़ाइन एक तजुर्बा था। इसके ज़रिए ये जांचने की कोशिश की गई थी कि बिना एयर कंडीशनर किस हद तक गुज़ारा किया जा सकता है।
स्पेन में मटकों का इस्तेमाल
ये तजुर्बा घरों, स्कूलों और छोटे दफ़्तरों तक तो कामयाब है लेकिन जिन बिल्डिंगों में ज़्यादा मशीनें होंगी वहां ये पूरी तरह कारगर नहीं है। मिसाल के लिए अस्पताल में मरीज़ और मशीनें, दोनों को उचित तापमान चाहिए। लिहाज़ा वहां एसी की ज़रूरत होगी ही। फिर भी इमारतों के क्रिएटिव डिज़ाइन के ज़रिए एयर कंडिशनर का इस्तेमाल काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। वाष्पीकरण चीज़ों को ठंडा रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है। जैसे गर्मी में शरीर से निकलने वाला पसीना शरीर को ठंडा रखता है।
ठीक इसी सिद्धांत पर अमल करते हुए स्पेन के कई इलाक़ों में मिट्टी के बड़े-बड़े मटकों में पानी भरकर रखा जाता था, जिन्हें बोतिजो कहते थे। मटके की मिट्टी पानी सोखने के बाद मटका और उसमें रखा पानी या शराब दोनों को ठंडा रखती थे। रोम और मिस्र में वाष्पीकरण के इसी सिद्धांत को आर्किटेक्चर में भी अपनाया जाता था।
अरबी आर्किक्ट में मशराबिया भी एक अच्छी मिसाल है। लकड़ी की बारीक जालियों वाली बड़ी-बड़ी खिड़कियों को मशराबिया कहते हैं। इनके पास मटकों में पानी भरकर रखा जाता है। जालियों से छनकर आने वाली हवा ठंडे मटकों से टकराती है तो पूरा माहौल ठंडा हो जाता है।
मुग़लों के दौर की इमारतें
इसके अलावा घर के खुले हिस्से में छोटा हौज़ या फ़व्वारा लगा लिया जाए और उसके पानी की फीटिंग इस तरह से की जाए कि ज़्यादातर हिस्सों में पानी फैल जाए। जब हवा इस पानी के ऊपर से गुज़रेगी तो ठंडी लगेगी। पानी के ज़रिए इमारतें ठंडी रखने का चलन प्राचीन समय से चला आ रहा है। मुग़लों के दौर की जितनी भी इमारतें हैं उन सभी में बावली, हौज़ और फ़ौव्वारे खूब देखने को मिलते हैं।
इन सभी का मक़सद ना सिर्फ़ पानी संजोना था, बल्कि इमारत का तापमान नियंत्रित कर उसे ठंडा रखना भी था। इसी सिद्धांत का इस्तेमाल आर्किटेक्ट मनित रस्तोगी ने जयपुर शहर में पर्ल एकैडमी ऑफ़ फ़ैशन की इमारत बनाने में किया है। इस बिल्डिंग के सहन में बावली बनाई गई है, जिसमें बारिश का पानी संजोया जाता है।
साथ ही बिल्डिंग में इस्तेमाल के बाद बेकार हुआ पानी ट्रीट करके फिर से इस्तेमाल योग्य बनाया जाता है। इससे बिल्डिंग में भी ठंडक रहती है। इसके अलावा पर्ल एकैडमी की बिल्डिंग के डिज़ाइन में ऐसे तजुर्बे किए गए हैं, जिससे ये इमारत ठंडी रहे। सामने से बिल्डिंग आयताकार है जो कि देखने में तो बहुत सुंदर नहीं है। लेकिन, इसके फ़ायदे बहुत हैं।
तामपान कम करने वाले विंडकैचर
बिल्डिंग के चारों तरफ जालियां हैं बाहरी दीवार से चार फुट की दूरी पर छेद वाले पत्थरों की दीवार है, जो अंदर की दीवारों पर परछाई किए रहते हैं। इससे तापमान नियंत्रित रखने में भी सहायता मिलती है। जब बाहर का तापमान 40 डिग्री होता है, तो बिल्डिंग के अंदर का तापमान 29 डिग्री होता है। अगर इमारत में बड़ा कुआं खोदने भर की जगह ना हो तो ज़मीन के नीचे पाइप लाइन बिछा कर उसमें पंप के ज़रिए पानी गुज़ारा जा सकता है।
इस तरीक़े का इस्तेमाल गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में किया जा सकता है। उत्तरी चीन के बहुत से शहरों में ये तरीक़ा काफ़ी चलन में है भी। ईरान के शहर यज़्द को विंडकैचर सिटी कहा जाता है। विंडकैचर मेहराबदार मीनारें होती हैं, जो इमारत की छत पर हवा के रुख़ की ओर होते हैं। इन मीनारों में ब्लेड फिट होते हैं, जो हवा को गुज़ार कर पूरी इमारत ठंडा रखते हैं।
क़ाज़विन इस्लामिक यज़्द यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर मेहनाज़ महमूदी ज़ारनदी का कहना है कि पूरे मध्य एशिया में कई तरह के विंडकैचर बनाए गए हैं, जो कि तापमान कम करने में काफ़ी मददगार हैं। विंडकैचर आम तौर से बड़ी और ऊंची इमारतों में बनाए जाते हैं। लेकिन छोटे घरों में भी हवा के रुख़ की तरफ़ बड़ी खिड़कियां बनाई जा सकती हैं।
जलमार्ग से 2 डिग्री तामपान कम होगा
विकास और रहन-सहन बेहतर बनाने के नाम पर बड़ी संख्या में शहर आबाद किए जा रहे हैं। लेकिन ये शहर असल में कांक्रीट के जंगल हैं, जहां गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और फ़ैक्ट्रियों में लगने वाली बड़ी मशीनें तापमान बढ़ा रही हैं लेकिन अब शहरों में ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। अमेरिका के कोलंबिया में तो प्रशासन की ओर से पूरे शहर में ग्रीन कॉरिडोर जलमार्ग बनाए जा रहे हैं। प्रशासन के इस प्रयास से तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में सहायता मिली है।
पर्यावरणविद् मोनिका टर्नर का कहना है कि ग्रीन कॉरिडोर बनाकर तापमान पांच डिग्री तक कम किया जा सकता है। अब अन्य शहर भी ऐसे विकल्पों पर ध्यान दे रहे हैं। इटली के मिलान शहर के नगर निगम प्रशासन ने वर्ष 2030 तक तीन लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा है। ऑस्ट्रेलिया के शहर मेलबर्न में भी इसी तरह की कोशिशें की जा रही हैं।
एयर कंडिशनर का इस्तेमाल माहौल ठंडा रखने के लिए किया जाता है लेकिन असल में इसकी ठंडक हमें भट्टी में झोंक रही है। अगर एसी का इस्तेमाल बदस्तूर जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब गर्मी के आलम में एयर कंडिशनर भी दम तोड़ देंगे। लिहाज़ा समय रहते हम सभी को गर्मी से लड़ने के लिए पारंपरिक तरीक़ों पर अमल शुरू कर देना चाहिए।