आरएसएस का 'राष्ट्रोदय', बीजेपी के मिशन 2019 की तैयारी?
सोमवार, 26 फ़रवरी 2018 (11:08 IST)
- वात्सल्य राय (मेरठ)
दृश्य 1-
मेरठ के जागृति विहार से क़रीब 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय स्वयं सेवक की यूनिफ़ॉर्म (जिसे वो गणवेश कहते हैं) पहने क़रीब दस साल का एक बच्चा अपने साथियों के साथ बस में चढ़ने को तैयार है। नाम पूछने पर वो जो कहता है, वो आवाज़ लाउडस्पीकर के शोर में गुम हो जाती है। ये बच्चा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस के मेरठ प्रांत के कार्यक्रम 'राष्ट्रोदय' में हिस्सा लेने आया है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुताबिक रविवार को मेरठ में हुआ ये कार्यक्रम संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा कार्यक्रम था। जब उस बच्चे से 'राष्ट्रोदय' का मतलब पूछा जाता है तो वो मासूमियत से सिर हिलाते हुए ज़ाहिर करता है कि वो इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानता।
दृश्य 2 :
मेरठ के जागृति विहार में सैकड़ों एकड़ इलाके में जुटे स्वयं सेवकों के बीच थोड़ी बड़ी उम्र का एक और बच्चा। नाम राजीव। ज़मीन से साठ फ़ीट ऊंचे और दो सौ गुणा सौ फ़ीट के मंच के बायीं तरफ घोष दल (आरएसएस का बैंड) में सबसे आगे बैठा है।
राष्ट्रोदय क्या है, पूछने पर जवाब देता है, नाम से ही ज़ाहिर है, 'राष्ट्र का उदय'। राष्ट्र उदय के लिए कितने लोग जुटे हैं, इस सवाल पर राजीव कहते हैं, '3 लाख 11 हज़ार'। कैसे पता, ये पूछने पर जवाब आता है, 'रजिस्ट्रेशन हुआ है और अभी मंच से घोषणा की गई है'।
छठी क्लास में पढ़ने वाले राजीव जिस वक्त इस सवाल का जवाब देते हैं, उसी वक्त मुख्य मंच के दाहिने तरफ़ के मंच पर मौजूद माइक संभाले एक स्वयंसेवक एलान करते हैं, 'पत्रकार स्वयंसेवकों से बाइट न लें।' वहां मौजूद बाकी स्वयंसेवक सवालों के जवाब देने से इनकार कर देते हैं और कहते हैं, 'मंच से हो रही घोषणा सुनिए'।
दृश्य-3
भारत माता की पृष्ठभूमि और लिफ्ट सुविधा वाले बड़े आकार के मुख्य मंच से क़रीब ढाई सौ मीटर की दूरी पर सामने की ओर मेरठ और पश्चिम उत्तर प्रदेश के 13 ज़िलों से आए स्वयं सेवक लाइन लगाकर बैठे हैं।
दूसरे मंच से मिल रहे निर्देशों के मुताबिक वो योग के अभ्यास में लगे हैं। मंच से याद दिलाया जा रहा है कि उन्हें सर संघचालक यानी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आने के बाद ये तमाम क्रियाएं दोहरानी हैं।
दृश्य -4
मुख्य मंच के दाहिनी ओर क़रीब तीन सौ मीटर की दूरी पर बनी पत्रकार दीर्घा में एक स्वयं सेवक और एक चैनल के प्रतिनिधि के बीच बहस के बाद अफ़रा-तफ़री की स्थिति बन जाती है।
मामला शांत कराने कई लोग आगे आते हैं। बहस की वजह पूछने पर पत्रकार अभिषेक शर्मा कहते हैं, "दिक्कत ये है हम काम नहीं कर पा रहे हैं। यहां न इंटरनेट चल रहा है और न ही कुछ और चल रहा है। यहां मीडिया बंधक है। ये अव्यवस्था पर ख़बर नहीं करने दे रहे हैं।" यहां भी संघ के स्वयंसेवक तो बहुत हैं, लेकिन कार्यक्रम पर बोलने के लिए कोई तैयार नहीं।
दृश्य-5
क़रीब तीन बजे खुली जीप में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहुंचते हैं। आसमान में ड्रोन निगरानी कर रहे हैं। जीप मुख्यमंच के पास रुकती है। मोहन भागवत लिफ्ट से ऊपर पहुंचते हैं।
जैन मुनि विहर्ष सागर और महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के बाद माइक संभालते हैं और स्वयंसेवकों को क़रीब आधे घंटे 'राष्ट्रोदय' का अर्थ बताते हैं। मोहन भागवत अपने भाषण में राजनीति की कोई चर्चा नहीं करते, लेकिन शक्ति की ज़रूरत के बारे में विस्तार से बोलते हैं।
वो कहते हैं, "दुनिया का एक व्यावहारिक नियम है। दुनिया अच्छी बातों को भी तभी मानती है जब उसके पीछे कोई शक्ति खड़ी हो। कोई डंडा हो। देवता भी कहते हैं कि बकरे की बलि दो। वो कुछ नहीं कहता है, मैं... मैं... करता है। देव भी दुर्बलों का सम्मान नहीं करते।"
मोहन भागवत आरएसएस कार्यकर्ताओं को ये भी बताते हैं कि जब शक्ति होती है तो उसके बखान की ज़रूरत नहीं होती। वो कहते हैं, " ये कार्यक्रम प्रदर्शन के लिए नहीं है। शक्ति का हम हिसाब लगाते हैं कि कितनी शक्ति आई, लेकिन शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते। शक्ति होती है तो दिखाई देती है। हमारी कितनी शक्ति है? कितने लोगों को बुला सकते हैं? कितने लोगों को बिठा सकते हैं? कितने लोग अनुशासन में रह सकते हैं? इसको हम नापते हैं और निष्कर्ष के आधार पर आगे बढ़ते हैं।"
रामायण और महाभारत की कहानियों के जरिए स्वयंसेवकों को अपनी बात समझाने वाले मोहन भागवत का जिस तीसरी बात पर ज़ोर था, वो थी समाजिक एकता। राष्ट्रोदय की जानकारी देने के लिए पूरे शहर में लगाए होर्डिंगों में भी सबसे ज़्यादा होर्डिंग ऐसी थी जिनके ज़रिए सामाजिक एकता और छुआछूत के ख़िलाफ़ संदेश दिए जा रहे थे।
मोहन भागवत ने कहा, "हम ख़ुद को भूल गए हैं। आपस में जात-पात में बंटकर लड़ाई करते हैं। हम लड़ाई कर सकते हैं, ये जानने वाले हमको उकसाते हैं। हमारे झगड़ों की आंच पर सारी दुनिया के लोग अपने स्वार्थ की रोटियां सेकते हैं, इसको बंद करना है तो हर हिंदू मेरा भाई है। हिंदू मेरा अपना भाई है। समाज के प्रत्येक हिस्से को हम गले लगाएं।" आरएसएस के कार्यक्रम को कवर करने आए पत्रकारों ने मोहन भागवत के संदेशों को स्पष्ट करने की कोशिश की।
दलित और देहात पर फ़ोकस
अख़बार हिंदुस्तान के स्थानीय संपादक पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं, "पटना, बनारस, आगरा और अब मेरठ में अगर मोहन भागवत के संदेशों को देखें तो एक निहितार्थ नज़र आता है। संघ का जो प्रमुख एजेंडा है, प्रखर हिंदुत्व, वो उसे पीछे नहीं जाने दे रहे हैं। लेकिन जैसा आप जानते हैं कि 2019 क़रीब है। चुनाव क़रीब है तो ये सारी कवायद बेमानी नहीं हो सकती है। इसकी एक ही मंशा है अगर भारतीय जनता पार्टी से कोई वोटर छिटक रहा है तो वो फिर से जुड़े। उसमें भी फ़ोकस युवा, दलित और देहात पर नज़र आता है। "
पुष्पेंद्र शर्मा याद दिलाते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों और सवर्णों के बीच हुए संघर्ष का असर निकाय चुनाव में नज़र आया था। वो कहते हैं कि तब भारतीय जनता पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था।
पुष्पेंद्र शर्मा का आकलन है, "सहारनपुर की घटना के बाद नई शक्ति का उदय हो गया है। जिसका नाम है चंद्रशेखर रावण। इसमें जिग्नेश मेवाणी भी आते हैं। जो युवा नेतृत्व पूरे देश में उभर रहा है, सहारनपुर उसका प्लेटफॉर्म बन गया है। इसलिए दलितों को जोड़ने की ये एक सधी कोशिश है। इस कार्यक्रम में खाना दलित बाहुल्य वाले इलाकों से मंगाया गया है।"
हर गांव में शाखा का लक्ष्य
साल 1998 में मेरठ में ही हुए आरएसएस के ऐसे ही एक कार्यक्रम को कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश चौधरी की राय भी कुछ ऐसी ही है।
वो कहते हैं, "साल 2014 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी आंधी की तरह जीती। अब 2019 का चुनाव आने को है। आप देख रहे हैं, दो लाख लोग एक जगह पर हैं। एक घर से एक आदमी आया है तो कम से कम पांच लाख परिवारों के लोग यहां पर हैं। मैंने इनसे पूछा कि मक़सद क्या है। तो इनका कहना है कि हर गांव में शाखा होनी चाहिए। मैं आपको बता दूं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जो सामाजिक संरचना है। वहां बड़े-बड़े गांव हैं और एक-एक गांव में दस-दस हज़ार लोग हैं। चार गांव एक तरफ़ चले जाते हैं तो नतीजा बदल सकता है।"
सब जानते हैं कहां लगती है आरएसएस की शक्ति
लेकिन कभी भारतीय क्रिकेट टीम की किट के साथ दिखने वाले और रविवार को संघ की गणवेश में राष्ट्रोदय में हिस्सा लेने पहुंचे उत्तर प्रदेश के मंत्री चेतन चौहान ने इन अनुमानों को ख़ारिज किया।
उन्होंने कहा, "दूसरे सोच रहे हैं कि ये 2019 की तैयारी है। राजनीति से इसका कोई संबंध नहीं है। ये पूरे हिंदू समाज को इकट्ठा करने के लिए है। हमें बांटने वाली शक्तियों को हराना है।"
नाइजीरिया में लगने वाली दो शाखाओं में से एक की ज़िम्मेदारी संभालने वाले और मूल रूप से मेरठ के रहने वाले भरत पांडेय भी कहते हैं कि इस कार्यक्रम का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं। मोहन भागवत ने भी मंच से कोई राजनीतिक बात नहीं की। किसी सियासी दल का नाम नहीं लिया।
लेकिन पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं, "ये सब जानते हैं कि ये राजनीतिक संगठन नहीं है, लेकिन जब सांस्कृति संगठन की शक्ति एक ही पार्टी को मिलती हो तो उसका अर्थ समझ में आ जाता है। और अगर ये भारतीय जनता पार्टी के कहने पर हो रहा है तो साफ है कि 2019 के प्रचार में एक बार फिर उन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया है। "
दृश्य: 6-
मोहन भागवत के भाषण और राष्ट्रोदय कार्यक्रम की शुरुआत के क़रीब दो घंटे पहले मेरठ की मिश्रित आबादी वाले अहमद रोड इलाके में लगभग सन्नाटे की स्थिति है। दुकानें खुली हुई हैं। दुकानदार मौजूद हैं, लेकिन भीड़ नहीं है।
इसी इलाक़े में रहने वाले और खुद को पूर्व कांग्रेस नेता बताने वाले हाजी मोहम्मद इशरत कहते हैं, "तीन दिन से लोगों में भय का माहौल बना हुआ है। इतना बड़ा मंच है। लिफ्ट लगी हुई है। पता नहीं क्या-क्या हो रहा है। क्या-क्या होगा। इधर भी फ़ोर्स लगी हुई है। "
पास ही मौजूद पेशे से दर्ज़ी मोहम्मद उस्मान कहते हैं, "हिंदुस्तान में किसी संगठन को इजाज़त नहीं है कि वो भेदभाव की बात करे। हिंदू मुसलमान की बात करे।"...मोहम्मद इशरत सवाल करते हैं कि आरएसएस के आयोजन के लिए पैसा कहां से आया। साथ ही वो आरोप लगाते हैं कि केंद्र और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से 'सारी ताकत आरएसएस की तरफ़ आ गई है। वो कहते हैं वंदे मातरम कहोगे तो हिंदुस्तान में रहोगे।"
दृश्य 7-
राष्ट्रोदय आयोजन स्थल के गेट नंबर 1 से क़रीब तीन सौ मीटर दूर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का एक स्टॉल है। जहां क़रीब एक दर्जन कार्यकर्ता आने वालों को पानी पिला रहे हैं और फूल डालकर स्वागत कर रहे हैं। मंच के प्रांत सह संयोजक मौलाना हमीदुल्लाह ख़ान राजशाही कहते हैं, "मैं समझता हूं कि मुसलमानों को भी आरएसएस का साथ देना चाहिए। आरएसएस राष्ट्रवादी संगठन है।"
वहीं मौजूद कदीम आलम कार्यक्रम में खर्च होने वाली रकम के सवाल पर कहते हैं, "एक एक पैसा इकट्ठा होकर कार्यक्रम होता है।"
वो वंदेमातरम का समर्थन करते हुए कहते हैं, "वंदेमातरम हमारे संस्कार का हिस्सा है। ये नया नारा नहीं है।" और इन तमाम दृश्यों पर विशेषज्ञ टिप्पणी करते हुए ब्रजेश चौधरी कहते हैं, "मेरी राय में भीड़ तंत्र सबसे बड़ा तंत्र होता है।"