जिन्हें पिता की 'हत्या' ने बनाया आईएएस

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बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे...जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए न तो हमारे पिता थे और न ही हमारी मां।

बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में जब वो ये सब कह रही थीं तो उनकी आवाज से न तो दु:ख का पता चलता था और न ही भावुकता का। हां, वो ये जरूर कह रही थीं कि उनके पिता के हत्यारों को फांसी की सजा मिलने से वो खुश हैं।

लेकिन ये खुशी उनकी आवाज से छलक नहीं रही थी। मुमकिन है वक्त ने उनके जख्मों को भर दिया है और अब वो काफी हद तक संतुलित हो चुकी हैं।

जिंदगी की जद्दोजहद : किंजल सिंह आज एक आईएएस अफसर जरूर हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। पिता, केपी सिंह की उनके ही महकमे के लोगों ने कथित तौर पर 30 साल पहले हत्या कर दी थी।

पिछले हफ्ते उत्तरप्रदेश में एक विशेष अदालत ने केपी सिंह की हत्या करने के आरोप में तीन पुलिसवालों को फांसी की सजा सुनाई है। तभी से शुरू हुआ न्याय के लिए लंबा संघर्ष। इस जद्दोजहद में मां बीच में ही दुनिया छोड़कर चल बसीं। उन्हें कैंसर हो गया था।

किंजल कहती हैं कि सबसे ज्यादा भावुक करने वाली बात यह है कि मेरी मां जिन्होंने न्याय के लिए इतना लंबा संघर्ष किया आज इस दुनिया में नहीं है।

अगर यह फैसला और पहले आ जाता तो उन सब लोगों को खुशी होती जो अब इस दुनिया में नहीं है। तो क्या देरी से मिले न्याय की वजह से वो असंतुष्ट हैं? किंजल का जवाब ‘हां’ और ‘न’ के बीच से आता हैं। उनका कहना है कि फैसले से उन्हें खुशी हुई है लेकिन अगर न्याय के इंतजार में दौड़-भाग न करना पड़े तो अच्छा है।

न्याय मिला : कहावत है कि 'जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड' यानी देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर है। जाहिर है हर किसी में किंजल जैसा जुझारूपन नहीं होता और न ही उतनी सघन प्रेरणा होती है। तो क्या किंजल की नियति का फैसला उसी दिन हो गया था जिस दिन उनके पिता की हत्या हो गई थी।

वे कहती हैं कि जब मेरे पिता की हत्या हुई उस वक्त वो आईएस की परीक्षा पास कर चुके थे। उनका इंटरव्यू बाकी था। तभी से मेरी मां के दिमाग में ये ख्याल था कि उनकी दोनों बेटियों को सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठना चाहिए। उसी सपने को हम लोगों ने पूरा किया।

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जिस वक्त किंजल के पिता की हत्या हुई थी उस वक्त वे गोंडा जिले में पुलिस उपाध्यक्ष के पद पर तैनात थे। मार्च 1982 में गोंड़ा जिले के माधोपुर गांव में उनकी हत्या कर दी गई थी।

झूठी कहानी : पुलिस का दावा था कि केपी सिंह की हत्या गांव में छिपे डकैतों के साथ क्रॉस फायरिंग में हुई थी, लेकिन उनकी पत्नी यानी किंजल की मां का कहना था कि उनके पति की हत्या पुलिस वालों ने ही की थी। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।

जांच के बाद पता चला कि किंजल के पिता की हत्या उनके ही महकमे के एक जूनियर अधिकारी आर बी सरोज ने की थी। हद तो तब हो गई जब हत्याकांड को सच दिखाने के लिए पुलिसवालों ने 12 गांववालों की भी हत्या कर दी। अब 30 साल तक चले मुकदमे के बाद सीबीआई की अदालत ने तीनों अभियुक्तो को फांसी की सजा सुनाई। इस मामले में 19 पुलिसवालों को अभियुक्त बनाया गया था जिसमें से 10 की मौत हो चुकी है।

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