एक सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाने लिए देह व्यापार करते हैं। इस तरह से पैसे कमाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।
सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले दस वर्षों में विद्यार्थियों में देह व्यापार तीन फीसदी से बढ़कर 25 फीसदी तक पहुँच गया है। ये सर्वेक्षण किंग्स्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉन रॉबर्ट्स ने सेक्स उद्योग से विद्यार्थियों के संबंध को जानने के लिए किया है।
इस सर्वेक्षण में ये पाया गया कि करीब 11 फीसदी विद्यार्थी एस्कोर्ट का काम करने के विकल्प को मान लेते हैं या विचार करते हैं। हाई प्रोफाइल सेक्सकर्मी को एस्कोर्ट कहा जाता है।
प्रोफेसर रॉन रॉबर्ट्स कहते हैं कि कॉलेज में ट्यूशन फीस ज्यादा होने के वजह से विद्यार्थियों को ‘इंटरनेट पर अश्लील फिल्म’, ‘अश्लील बातें’ और ‘लैप डांस’ जैसा काम करना पड़ता है।
हलाँकि ये सर्वेक्षण ब्रिटेन के एक ही विश्वविद्यालय में किया गया है। उनका कहना है कि ये सर्वेक्षण पूरे देश के लिए सूचक मात्र है, खास कर शहरी क्षेत्रों के लिए। इसके लिए उन्होंने विद्यार्थियों पर कर्ज का बोझ और लैप डांसिंग क्लबों में हो रही बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार बताया है।
प्रोफेसर रॉन रॉबर्ट्स कहते हैं, 'सेक्स से जुड़ी बातें हर जगह है। अब देह व्यापार के प्रति मध्यमवर्गीय लोग उदार हो रहे हैं और इसे करियर बनाने के लिए एक अच्छा रास्ता मानते हैं। आचरण संबंधित सारी बातें अब बिल्कुल बदल गई है।'
क्लोए नाम की एक छात्रा बताती कि उन्होंने लैप डांसिंग इसलिए शुरू की क्योंकि उनके पास यह एक मात्र जरिया था जिससे वो पढ़ाई पर हो रहे खर्च का वहन कर सके।
चिंता का विषय : उनका कहना है, 'पढ़ाई के दौरान विश्वविद्यालय में मुझे जो काम मिलता है, वह वास्तव में कठिन होता है और उसे समयसीमा में करके देना होता है, लेकिन दूसरी तरफ अगर मैं लैप डांस नहीं करूँ तो मैं विश्वविद्यालय के खर्च को नहीं उठा पाऊँगीं।'
एक लैप डांसिंग क्लब की मालकिन कैरी हले कहती कि ‘बार’ और ‘रेस्टोरेन्ट’ में काम करने पर विद्यार्थियों को बहुत कम पैसा मिलता है और दिन में काम करना होता है। जबकि लैप डांसिग में ऐसा नहीं है इसलिए ये विद्यार्थियों के लिए अनुकूल है।
प्रोफेसर रॉन रॉबर्ट्स कहते हैं कि इस सर्वेक्षण को लेकर कई विश्वविद्यालयों ने विद्यार्थियों काफी हतोत्साहित किया। विद्यार्थियों का देह व्यापार में होना चिंता का विषय है।
वो कहते हैं कि इसी विषय पर इससे पहले किए गए सर्वेक्षण पर एक क्लब के मालिक बुरी तरह से भड़क गए। उनका कहना था कि पिछले सर्वेक्षण की भारतीय मीडिया में काफी चर्चा हुई थी, जोकि यहाँ के विश्वविद्यालयों के लिए बहुत बड़ा बाज़ार है।
उनका कहना है, 'विश्वविद्यालयों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और विद्यार्थियों की बातों को सुनना चाहिए। मेरे ख्याल से यहाँ विद्यार्थियों की स्थिति काफी खराब है और इन्हें पर्याप्त मदद नहीं मिलती है।'