तीसरे दौर में कम मतदान और भाजपा की उम्मीदें...

अनिल जैन

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015 (18:10 IST)
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान चौंकाने वाला रहा। पहले दो चरण में हुए औसत मतदान के बाद माना जा रहा था कि तीसरे चरण के मतदान से चुनाव का रुझान निकलेगा, लेकिन तीसरे चरण में पहले दो चरणों से भी कम मतदान हुआ। इस चरण में सिर्फ 53.32 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले। पटना में सबसे कम करीब 52 फीसदी वोट पड़े। पटना की शहरी सीटों पर तो 45 फीसदी से भी कम वोट पड़े, जबकि बक्सर में सबसे ज्यादा 56 फीसदी के करीब मतदान हुआ।
ऐसे में सवाल है कि तीन चरणों में हुए औसत मतदान को किस बात का संकेत माना जाए? हालांकि भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि तीसरे चरण में उनकी पार्टी दो तिहाई सीटें जीत रही हैं यानी पार्टी क्लीन स्वीप कर रही है। लेकिन पारंपरिक फार्मूले के आधार पर देखें तो कम मतदान यथास्थिति का संकेत है। इसका मतलब है कि मतदाता किसी बदलाव के लिए आतुर नहीं है और इसलिए वह बहुत भारी उत्साह के साथ मतदान के लिए नहीं निकला। पटना महानगर में भाजपा अब तक के चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करती आई है, वहां सबसे कम मतदान का मतलब यह निकाला जा सकता है कि उसके पारंपरिक मतदाता उत्साह के साथ वोट करने नहीं निकले।
 
हालांकि तर्क दिया जा सकता है कि आमतौर पर शहरी इलाकों और खासकर महानगरों में मतदान का प्रतिशत हमेशा ही कम रहता है, पर पटना के बारे में यह बात पूरी तरह से लागू नहीं होती है। पटना जिले के कई इलाके ऐसे हैं जो कस्बों या गांवों की तरह हैं और राजधानी शहर होने के बावजूद पटना पूरी तरह महानगरीय नहीं है। इसलिए पटना में कम मतदान भाजपा के लिए चिंता का कारण हो सकता है।
 
पटना में भाजपा के दो सांसद हैं। पटना साहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी से नाराज हैं और रोज पार्टी के लिए समस्याएं पैदा करने वाले बयान दे रहे हैं। उनकी नाराजगी भाजपा के उम्मीदवारों के लिए मुश्किल बन सकती है। दूसरे सांसद रामकृपाल यादव हैं। लेकिन जिस तरह बिहार में यादव मतदाताओं की गोलबंदी लालू प्रसाद यादव के साथ है, उसके चलते रामकृपाल यादव बहुत असरदार रहे होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। पटना का कम मतदान भाजपा का सिरदर्द बढ़ाने वाला है। ऊपर से अगर उसके दोनों सांसद बहुत प्रभावी नहीं रहे होंगे तो उसकी मुश्किलें और बढ़ेंगी।
 
तीसरे चरण में लालू यादव के गढ़ सारण और नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा में भी मतदान हुआ है और इन दोनों जगहों पर भी औसत मतदान हुआ है। ऐसे में पारंपरिक फार्मूले के आधार पर देखें तो माना जा सकता है कि कम मतदान होना दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है। अगर दोनों के प्रतिबद्ध मतदाताओं ने वोट किया है तो यह भी भाजपा के लिए चिंता का कारण होना चाहिए। 
 
बक्सर में औसत से ज्यादा मतदान हुआ है। वहां से भाजपा के अश्विनी चौबे सांसद हैं और उन्होंने चुनाव में पूरा दम लगाया होगा, लेकिन चुनाव से ठीक पहले राजद और जदयू ने पूर्व विधायक ददन पहलवान को अपने पाले में लाकर बड़ा उलटफेर किया था। वे अपने दम पर भाजपा, राजद और जद (यू) को चुनौती देते रह हैं। उनके महागठबंधन के साथ होने से भी इस इलाके में मतदान प्रतिशत बढ़ा हो सकता है।
 
वैशाली जिला रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के असर वाला है, लेकिन यहां भी दोनों गठबधंनों के बीच कांटे की टक्कर रही है। पासवान तो अपनी जाति के मतदाताओं को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ रखने में कामयाब रहे, लेकिन कुशवाहा ऐसा नहीं कर सके। उनकी जाति का वोट दोनों गठबंधनों में बंटा है। राजग के ये दोनों बड़े नेता मिलकर भी मतदाताओं को बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों पर लाने में कामयाब नहीं रहे। ऐसे में तीसरे चरण से आगे के दो चरण में हवा बनने की उम्मीद कर रहे भाजपा नेताओं को चौथे चरण तक इंतजार करना पड़ेगा। 

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