मोदी का हथियार अब मोदी पर ही कर रहा वार

पटना। लगभग डेढ़ साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में जिस शख्स ने नरेंद्र मोदी की उम्मीदों के गुब्बारे में हवा भरी थी, वही शख्स आज बिहार में मोदी के मंसूबों की हवा निकालने में लगा हुआ है।
प्रशांत किशोर वही शख्स हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में 'चाय पर चर्चा' और 'थ्रीडी सभाओं' जैसे नवीनतम चुनावी टोटकों और 'अबकी बार मोदी सरकार' जैसे स्लोगन के जरिए मोदी के चुनाव प्रचार को एक नई शक्ल और ऊर्जा दी थी। लेकिन एक साल के भीतर ही उनका मोदी से मोहभंग हो गया। अब वे बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के प्रचार प्रबंधन का काम संभालते हुए मोदी का मान-मर्दन करने में जुटे हैं। 
 
पटना में मुख्यमंत्री निवास -7 सर्कुलर रोड के एक कमरे से एक आईपैड, एक लैपटॉप और मोबाइल के सहारे प्रशांत पूरे आत्मविश्वास के साथ महागठबंधन की चुनावी व्यूहरचना करने में व्यस्त रहते हैं। वे चुनाव में एक तरह से नीतीश कुमार के सारथी की भूमिका में हैं और चुनाव प्रचार के सिलसिले में उनके लिए वही रणनीति अपना रहे हैं जो उन्होंने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए अपनाई थी।
 
नीतीश इन दिनों महागठबंधन के उम्मीदवारों के लिए बिहार भर में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, लेकिन अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच भी वे प्रशांत का फोन उठाने में जरा भी देर नहीं करते।
 
नीतीश कुमार पर मोदी के डीएनए वाले बयान के बाद लोगों के डीएनए सैंपल जमा करके मोदी को भेजने का बहुचर्चित आइडिया प्रशांत का ही था। जनता तक नीतीश की बात पहुंचाने के लिए उन्होंने 'चौपाल पर चर्चा', 'पर्चे पर चर्चा', 'हर घर दस्तक', नीतीश कुमार पर कॉमिक्स 'मुन्ना से नीतीश' और मोदी के डीएनए वाले बयान के खिलाफ 'शब्द वापसी आंदोलन' जैसे कार्यक्रम चला रखे हैं। बिहार के पढ़े-लिखे और इंटरनेट सेवी लोगों के लिए भी 'आस्क नीतीश' जैसे हाईटेक कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
 
नरेंद्र मोदी का साथ क्यों छोड़ा? इस सवाल पर ज्यादा बोलने से बचते हुए प्रशांत इशारों में बताते हैं कि उनके मतभेद मोदी से ज्यादा अमित शाह से हैं। वे कहते हैं, 'मैं नेता नहीं, रणनीतिकार हूं। मेरे पास वैज्ञानिक तरीके हैं, जिन्हें मैं इस्तेमाल करता हूं। पहले मैंने मोदी के लिए टेस्ट किया था, अब अलग ऐंगल से नीतीश के लिए आजमा रहा हूं।'
 
प्रशांत को अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा है और इसी आधार पर वे दावा करते हैं कि नीतीश कुमार की अगुवाई में जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का महागठबंधन 150 से भी ज्यादा सीटें जीत रहा हैं। यानी बिहार में भाजपा बुरी तरह हार रही है।
 
कौन हैं प्रशांत किशोर : गुजरात के विधानसभा चुनाव में मोदी की कामयाबी के बाद लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को मिले स्पष्ट बहुमत से राजनीतिक हलकों में जीत के भरोसे का पर्याय बने प्रशांत किशोर मूलतः बिहार के ही हैं। वे न तो एमबीए हैं और न ही मार्केटिंग एक्सपर्ट। मोदी के संपर्क में आने से पहले उनका राजनीति से भी कोई पेशेवर ताल्लुक नहीं था।
 
वे संयुक्त राष्ट्र में जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे थे। वहीं रहते हुए उन्होंने भारत में खासकर महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे विकसित राज्यों में कुपोषण की समस्या पर एक शोध-पत्र तैयार कर भारत सरकार को भेजा था। दिल्ली में बैठे स्वास्थ्य मंत्रालयों के नौकरशाहों ने उस शोध-पत्र को संबंधित राज्य सरकारों को भेज दिया। उसी शोध-पत्र को देखने के बाद मोदी ने प्रशांत से संपर्क किया और उन्हें गुजरात आने का न्योता दिया।
 
प्रशांत जब छुट्‌टी पर भारत आए तो मोदी से मिले। मोदी ने उनकी बातों से प्रभावित होकर उन्हें कुपोषण मुक्त गुजरात के लिए काम करने का प्रस्ताव दे दिया, जिसे प्रशांत ने स्वीकार कर लिया। संयुक्त राष्ट्र की नौकरी छोड़कर वे गुजरात आ गए। मोदी ने उन्हें काम करने के लिए मुख्यमंत्री आवास में ही एक कक्ष आवंटित करा दिया। इसी बीच गुजरात विधानसभा के चुनाव आ गए। मोदी का मुख्यमंत्री आवास चुनावी रणनीति का केंद्र था। वहीं पहली बार प्रशांत का सक्रिय राजनीति से परिचय हुआ। 

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