“चाणक्य जो भी हो,चंद्रगुप्त तो हम ही न है"
1990 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद पहली बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव का दिया गया यह बयान आज तीन दशक के बाद भी बिहार की सियासत में मौजूं है। फर्क सिर्फ इतना सा है कि राजनीति के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले लालू यादव आज अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का ‘चंद्रगुप्त’ बनाने के लिए सियासी व्यूह रचना बनाने में जुटे है।
चारा घोटाले में सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव इन दिनों रांची रिम्स के निदेशक के खाली पड़े बंगले में रहकर पार्टी की पूरी चुनावी कमान संभाले हुए है। भले ही चुनावी मैदान में आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव पार्टी का चेहरा हो लेकिन पर्दे के पीछे पूरी कमान लालू ने ही संभाल रखी है। वह बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का ‘चंद्रगुप्त’(मुख्यमंत्री) बनने के लिए दिन-रात जुटे हुए है। पार्टी के सारे नीतिगत निर्णय और उम्मीदवारों के टिकट तय करने का फैसला लालू ही कर रहे है।
टिकट की चाह लिए रोज बड़ी संख्या में आरजेडी नेता और कार्यकर्ता रिम्स का चक्कर लगा रहे है। रिम्स पहुंचने वाले पार्टी के हर नेता और कार्यकर्ता को यही उम्मीद है कि उन्हें लालू यादव का आशीर्वाद जरूर मिलेगा। आरजेडी के नेता और कार्यकर्ता अच्छी तरह जानते है कि लालू यादव का आज भी बिहार की जनता में एक अलग लोकप्रियता और जनाधार है।
डेढ़ दशक तक बिहार की सत्ता पर एकछत्र राज कने वाले लालू अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार के लोगों में स्वाभिमान, आत्मसम्मान और अहं का भाव कही ज्यादा गहाराई तक बैठा हुआ है इसलिए लालू चुनाव के समय लगातार सोशल मीडिया के जरिए ऐसी पोस्ट कर रहे है जिसका चुनावी लाभ उनको मिले सके।