Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद राजनीतिक दलों के बीच घमासान तेज हो गया है। नवंबर के पहले सप्ताह में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए महज 30 दिन से भी कम समय बाकी है, लेकिन विपक्षी महागठबंधन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के नेतृत्व में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर मामला उलझा हुआ नजर आ रहा है। तेजस्वी यादव, जो नीतीश कुमार के सबसे मजबूत चैलेंजर के रूप में उभरे हैं, को गठबंधन का आधिकारिक मुख्यमंत्री चेहरा बनाने पर सहमति नहीं बन पा रही।
मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस की चुप्पी : तेजस्वी यादव का नाम बिहार की सियासत में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है। लालू प्रसाद यादव के बेटे और दो बार के पूर्व उपमुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 2020 के चुनावों में आरजेडी को 243 में से 75 सीटें जीतकर अपनी क्षमता साबित की थी। नीतीश कुमार की सरकार पर सवाल उठाने और युवाओं-महिलाओं के बीच लोकप्रियता हासिल करने में तेजस्वी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, कांग्रेस की तरफ से उनका औपचारिक समर्थन न मिलना गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रहा है। मंगलवार को कांग्रेस नेता उदित राज की टिप्पणी ने तो जैसे आग में घी डाल दिया।
उन्होंने पीटीआई से बातचीत में कहा कि तेजस्वी आरजेडी के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं... लेकिन इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद का चेहरा सामूहिक रूप से तय किया जाएगा। आगे उन्होंने जोड़ा कि किसी भी पार्टी का समर्थक अपनी पार्टी के नेता का नाम ले सकता है, लेकिन इंडिया ब्लॉक का फैसला अभी बाकी है। देखते हैं कांग्रेस मुख्यालय क्या तय करता है।
आरजेडी या तेजस्वी की ओर से उदित राज की इस बयानबाजी पर चुप्पी साधे रखना भी एक संकेत है। क्या यह आंतरिक कलह का आगमन है? अगस्त में राहुल गांधी ने भी तेजस्वी की उम्मीदवारी पर जवाब टाल दिया था। उन्होंने कहा था कि इंडिया ब्लॉक के सहयोगी बिना किसी तनाव के काम कर रहे हैं। हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे और नतीजे अच्छे आएंगे। भाजपा ने इसे गठबंधन के भीतर फूट का सबूत बताकर विपक्ष पर हमला बोला। हालांकि, तेजस्वी ने एक रैली में राहुल गांधी को इंडिया ब्लॉक का प्रधानमंत्री चेहरा बताते हुए खुद की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जाहिर की, जो आपसी समझ का इशारा लगता है। लेकिन ये बयानबाजी अब पर्याप्त नहीं लग रही।
कहीं यह रणनीतिक चूक तो नहीं : यह झगड़ा सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का नहीं, बल्कि रणनीतिक चूक का है। बिहार के चुनाव 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होंगे। 2015 से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार और भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को उखाड़ फेंकना विपक्ष का लक्ष्य है। लेकिन अगर मुख्यमंत्री पद पर सहमति न बनी, तो वोटरों का विश्वास डगमगा सकता है। कांग्रेस की यह रणनीति क्या जातिगत समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश है? या फिर दिल्ली से आ रही हिदायतें तेजस्वी को सीमित रखना चाहती हैं? उदित राज का बयान याद दिलाता है कि कांग्रेस अभी भी सहयोगियों को किनारे लगाने की अपनी पुरानी आदत से बाज नहीं आई है।
तेजस्वी यादव जैसे युवा चेहरे ने विपक्ष को नई ऊर्जा दी है, लेकिन गठबंधन की यह आंतरिक जंग एनडीए के हित में जा रही है। भाजपा और नीतीश की जोड़ी पहले ही मजबूत है, ऊपर से विपक्ष का यह बिखराव उन्हें फायदा पहुंचा सकता है। 14 नवंबर को आने वाले नतीजे बताएंगे कि क्या तेजस्वी का सपना साकार होगा या कांग्रेस का 'सामूहिक फैसला' गठबंधन को ही सामूहिक हार की ओर ले जाएगा। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा? यदि ऐसा नहीं होता है तो एनडीए की जीत आसान हो जाएगी।