Maharana Pratap History : आज महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है। राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है। आइए जानते हैं 5 खास बातें...
1. प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। तथा अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई, 1540 ईस्वी में राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर/ जयवंत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। बचपन में सभी महाराणा प्रताप को 'कीका' नाम से पुकारते थे।
2. मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। एकलिंग महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है। मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं।
3. महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। विक्रम संवत 1628 फाल्गुन शुक्ल 15 अर्थात् 1 मार्च 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया था। उनके पास 'चेतक' घोड़ा था, उनको सबसे अधिक प्रिय था। महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहन कर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। और भाला, कवच और ढाल-तलवार का कुल मिलाकर वजन 208 किलो होता था, जिसे लेकर वे मैदान में युद्ध के लिए उतरते थे। महाराणा के मेवाड़ की राजधानी उदयपुर थी। उन्होंने 1568 से 1597 ईस्वी तक शासन किया। उदयपुर पर यवन, तुर्क आसानी से आक्रमण कर सकते हैं, ऐसा विचार कर तथा सामन्तों की सलाह से प्रताप ने उदयपुर छोड़कर कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के पहाड़ी इलाके को अपना केन्द्र बनाया था।
4. महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंग जी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे। अकबर ने उन्हें समझाने के लिए चार बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था।
उनके काल में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की, जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया।
5. मुगलों से कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती देने के पश्चात मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। 30 वर्षों तक संघर्ष और युद्ध के बाद भी अकबर महाराणा प्राताप को बंदी नहीं बना सका और न ही झुका सका। और आखिरकार युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप को लगी चोटों की वजह से 19 जनवरी 1597 को चावंड में उनका निधन हो गया। राजपूत की आन-बान, शान रहे सम्राट महाराणा प्रताप हमेशा अपने निश्चय पर अडिग रहे। और सीमित साधन में जीवन व्यतीत किया पर दुश्मन के सामने अपना सिर कभी नहीं झुकाया।
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