veer savarkar jayanti hindi: 28 मई 2025 को हम वीर सावरकर की जयंती मना रहे हैं। यह दिन न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी को याद करने का अवसर है, बल्कि उनके विचारों और कार्यों से प्रेरणा लेने का भी है। विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें हम 'वीर सावरकर' के नाम से जानते हैं, एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि समाज सुधार और सांस्कृतिक पुनर्जागरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वीर सावरकर का जीवन संघर्ष, समर्पण और देशभक्ति का प्रतीक है। उनकी जयंती पर हम सभी को उनके विचारों से प्रेरणा लेकर एक समृद्ध और एकजुट भारत के निर्माण में योगदान देना चाहिए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के भगूर गांव में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी। उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और बाद में कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए। वहां उन्होंने 'फ्री इंडिया सोसाइटी' की स्थापना की और 'इंडिया हाउस' के माध्यम से भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।
क्रांतिकारी गतिविधियां और 'अभिनव भारत'
1904 में सावरकर ने 'अभिनव भारत' नामक संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति करना था। उन्होंने '1857 का स्वतंत्रता संग्राम' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें 1857 की क्रांति को भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया। यह पुस्तक ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी।
काला पानी की सजा और जेल: 1910 में सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया और उन्हें अंडमान की सेलुलर जेल में भेजा गया, जिसे 'काला पानी' कहा जाता था। वहां उन्होंने 11 वर्षों तक कठोर कारावास की सजा भुगती। जेल में रहते हुए भी उन्होंने लेखन कार्य जारी रखा और अन्य कैदियों को प्रेरित किया।
सामाजिक सुधार और 'पतित पावन मंदिर': सावरकर ने समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने रत्नागिरी में 'पतित पावन मंदिर' की स्थापना की, जो सभी जातियों के लोगों के लिए खुला था। यह उस समय एक क्रांतिकारी कदम था, जब दलितों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।
हिंदुत्व और राजनीतिक विचारधारा: सावरकर ने 'हिंदुत्व' की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने हिंदू संस्कृति और राष्ट्रीयता को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने 'हिंदू महासभा' के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और 'हिंदू राष्ट्र' की परिकल्पना की। हालांकि उनके विचारों पर विवाद भी हुआ, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए कार्य किया।
साहित्यिक योगदान और प्रेरणादायक लेखन: सावरकर एक उत्कृष्ट लेखक और कवि भी थे। उन्होंने कई पुस्तकें और कविताएं लिखीं, जो आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। उनकी रचनाएं देशभक्ति, सामाजिक सुधार और आत्मबल को बढ़ावा देती हैं। उनकी पुस्तक '1857 का स्वतंत्रता समर' ने 1857 की क्रांति को भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया। इस पुस्तक को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन मैडम भीकाजी कामा ने इसे प्रकाशित किया और यूरोप में वितरित किया। 1910 में सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया और उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल (काला पानी) में 50 साल की सजा सुनाई गई। वहां उन्होंने 10 वर्षों तक कठोर कारावास झेला, लेकिन अपने विचारों और लेखन को जारी रखा।
मृत्यु और विरासत: सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में 'आत्मार्पण' का मार्ग अपनाया और भोजन तथा दवाइयों का त्याग कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और कार्य आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
वर्तमान में सावरकर की स्मृति: आज भी सावरकर की स्मृति को जीवित रखने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 2025 में उनकी जयंती पर कई स्थानों पर संगोष्ठियों, भाषणों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। उनके नाम पर 'वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा' और 'पतित पावन मंदिर' जैसी संस्थाएं उनकी विरासत को संजोए हुए हैं।
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